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अदालत ने भी माना : आँगनवाड़ीकर्मी हैं सरकारी कर्मचारी के दर्जे की हक़दार!

यह फ़ैसला लम्बे समय से संघर्षरत आँगनवाड़ीकर्मियों के संघर्ष का ही नतीजा है। कर्मचारी के दर्जे की माँग की हमारी लड़ाई को आगे ले जाने के में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ देश भर की आँगनवाड़ीकर्मियों को इसके लिए बधाई देती है। लेकिन हमें कोर्ट के इस आदेश मात्र से निश्चिन्त होकर नहीं बैठ जाना होगा। देश भर में आन्दोलनरत स्कीम वर्करों के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि किस प्रकार एक स्वतन्त्र और इन्क़लाबी यूनियनें खड़ी की जायें और अलग-अलग राज्यों में बिखरे हुए इन आन्दोलनों को एक सूत्र में पिरोया जाये। आँगनवाड़ीकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने के लिए नीति में ज़रूरी बदलाव केन्द्र सरकार के हाथों में है। इसके लिए केन्द्र सरकार के खिलाफ़ संघर्ष को तेज़ करने और देशभर में आँगनवाड़ीकर्मियों को एकजुट करने की ज़रूरत है।

सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 का अक्षम और कुपोषित बजट

नयी शिक्षा नीति 2020 के तहत शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देने की स्कीम में आँगनवाड़ीकर्मियों के श्रम की लूट का भी हिस्सा है। ‘पोषण भी – पढ़ाई भी’ योजना मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में ही शुरू कर दिया गया था। इसके अनुसार आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अब औपचारिक प्राथमिक शिक्षा का भार उठाना पड़ेगा। ज़ाहिरा तौर पर कार्यकर्ताओं का बोझ बढ़ेगा, मानदेय नहीं! एक रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2023 में पोषण ट्रैकर ऐप से जुटाया गया आँकड़ा यह बताता है कि महराष्ट्र, ओड़ीसा, राजस्थान और तेलंगाना में लाभार्थी और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता का अनुपात क्रमशः 67.7, 55.4, 75.6 और 64.5 है। आबादी की ज़रूरत के अनुसार नये केन्द्र खोले जाने, खाली पड़े पदों की भर्ती इत्यादि पर महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है।

आँगनवाड़ी कर्मियों ने लोकसभा चुनाव में मज़दूरों-मेहनतकशों के स्वतन्त्र पक्ष को मज़बूत करने का निर्णय लिया!!

मोदी सरकार के पिछले 10 साल देश मेहनतकश अवाम के लिए नर्क़ साबित हुए हैं। भाजपा और मोदी सरकार की अमीरपरस्त नीतियों की वजह से जनता के ऊपर बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता का ऐसा कहर टूटा है, जिसकी मिसाल हमारे देश के इतिहास में मौजूद नहीं है। नोटबन्दी, जीएसटी, कोरोना महामारी के दौरान का कुप्रबन्धन, राफ़ेल घोटाला, अडानी घोटाला, इलेक्टोरल बॉण्ड महाघोटाला, ईवीएम घोटाला, आसमान छूती महँगाई और बेरोज़गारी दर, साम्प्रदायिकता का ज़हर, मज़दूर विरोधी लेबर कोड, जन आन्दोलनों का बर्बर दमन : यही नेमतें हैं 10 साल के मोदी राज की! आज अमीरों और धन्नासेठों की सबसे चहेती पार्टी भाजपा यूँ ही नहीं है और हजारों करोड़ रुपए का चन्दा इन धन्नासेठों ने मोदी को समाजसेवा के लिए तो दिया नहीं है। ज़ाहिरा तौर पर इसका मतलब ही यह है कि भाजपा इस दौर में पूँजीपति वर्ग की सबसे कारगर तरीक़े से सेवा कर सकती है और पूँजीपरस्त नीतियों को डण्डे के ज़ोर पर लागू करवा सकती है। यह एक फ़ासीवादी पार्टी है और इसलिए जनता की सबसे बड़ी दुश्मन है।

‘एस्मा’ को तत्काल वापस लो! आँगनवाड़ीकर्मियों की माँगों को पूरा करो!!

क़ानूनन तो यह केवल सरकारी कर्मचारियों पर ही लगाया जा सकता है और आँगनवाड़ीकर्मियों को तो सरकार कर्मचारी मानती नहीं है फिर उनपर इसका इस्तेमाल क्या दिखलाता है!? और अगर आँगनवाड़ीकर्मियों द्वारा दी जा रहीं सेवाएँ आवश्यक सेवाएँ हैं, तो फिर उन्हें कर्मचारी का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा??

दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष बुर्जुआ न्यायतन्त्र के चेहरे को भी कर रहा बेनक़ाब!

क़ानून की आँखों पर निष्पक्षता की नहीं बल्कि पूँजीपतियों-मालिकों के हितों की पट्टी बँधी हुई है। इस वर्ग-विभाजित समाज में क़ानून और न्यायपालिका का चरित्र और उसकी वचनबद्धता मज़दूरों-मेहनतकशों के पक्ष में हो भी नहीं सकती हैं। हमें इस गफ़लत से बाहर आ जाना चाहिए कि अदालतों में अन्ततोगत्वा न्याय मिलता ही है। न्याय व्यवस्था की आँख मज़दूरों के पक्ष में तभी थोड़ी खुलती है जब सड़कों पर कोई जुझारू संघर्ष लड़ा जा रहा हो। आँगनवाड़ी स्त्री-कामगारों ने अपने आन्दोलन से इस बात को चरितार्थ किया है। आँगनवाड़ीकर्मियों ने व अन्य कामगारों ने जो भी थोड़े-बहुत हक़-अधिकार हासिल किये हैं वो अपने संघर्ष के दम पर ही हासिल किये हैं। बहाली की माँग को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रहे संघर्ष को भी गति देने के लिए अपने आन्दोलन को तेज़ करना ही आज एकमात्र रास्ता है।

आँगनवाड़ी कर्मियों को ग़ैरक़ानूनी रूप से टर्मिनेट करने वाले केजरीवाल के लाभार्थियों के लिए दावे झूठे हैं!!!

पहले से ही काम के बोझ तले दबी हुई आँगनवाड़ीकर्मियों से अब शिक्षक का काम भी लेकर उन्हें “स्वयंसेविकाओं” के अनुरूप मानदेय थमाया जायेगा। यही आँगनवाड़ीकर्मी जब अपने केन्द्रों पर बँटने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठा देंगी तो इन्हें बर्ख़ास्त कर दिया जाएगा, वाजिब मेहनताना पाने का संघर्ष करेंगी तो उसे “हिंसक” घोषित कर दिया जाएगा। ज़ाहिरा तौर पर, समेकित बाल विकास परियोजना के लाभार्थियों को लेकर केजरीवाल की चिन्ता महज़ दिखावा है।

सड़क पर तो हम जीते ही थे, अब न्यायालय में भी जीत के क़रीब है दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष!

दिल्ली सरकार, महिला एवं बाल विकास विभाग और उसके दलालों की बेचैनी इस बात का सबब है कि दिल्ली सरकार के सामने अब कोई रास्ता नहीं बचा है। कुछ वक़्त पहले तक इन्हीं बर्ख़ास्तगियों को सही ठहराने वाला महिला एवं बाल विकास विभाग ऑर्डर जारी कर पुनः बहाली की नौटंकी करने को मजबूर हुआ। लेकिन अनर्गल शर्तों से भरे इस ऑर्डर को महिलाकर्मियों ने नामंज़ूर कर अपने संघर्ष को तब तक जारी रखने का ऐलान किया है जब तक सभी 884 ग़ैर-क़ानूनी टर्मिनेशन रद्द नहीं कर दिये जाते हैं। दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष न केवल टर्मिनेशन के ख़िलाफ़ है बल्कि न्यूनतम मज़दूरी, कर्मचारी का दर्जा, एरियर का भुगतान व ग्रैच्युटी समेत अन्य कई वाजिब माँगों के लिए भी है। महिलाकर्मियों के संघर्ष के दमन के ज़िम्मेदार आम आदमी पार्टी व भाजपा के ख़िलाफ़ दिल्ली निगम चुनाव में चला व्यापक बहिष्कार आन्दोलन भी आगे जारी रहेगा। न्यायालय में हमारा पक्ष इसीलिए मज़बूत है क्योंकि हमारी एकजुटता ठोस है और हम सड़क पर मज़बूत हैं।

केन्द्रीय बजट में महिला एवं बाल विकास के मद में 20 प्रतिशत बढ़ोत्तरी का सच

सरकार समेकित बाल विकास परियोजना को लेकर कितनी गम्भीर है उसका एक जवाब देश में कुपोषण की भयंकर समस्या ही दे देती है। अक्टूबर 2018 में आयी वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट कहती है कि भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर पहुँच गया है। और यहाँ के हालात अफ्रीका के बेहद ग़रीब और पिछड़े हुए देशों से भी ज़्यादा ख़राब हैं। सितम्बर 2018 में जारी मानवीय विकास सूचकांक की 189 देशों की सूची में भारत 130वें स्थान पर आ चुका है। भाजपा एक ओर तो देश को विश्वगुरु बनाने के ख़्वाब दिखा रही है दूसरी ओर एक धन-धान्य से सम्पन्न देश को दुर्गति की गर्त में धकेल रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में साल 2017 में 8 लाख बच्चों की कुपोषण और साफ़-सफ़ाई व स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी के कारण मौत हुई जोकि दुनिया में सबसे ज़्यादा है! ये सिर्फ़ आँकड़े नहीं हैं बल्कि हमारी हो रही दुर्गति के जीते-जागते प्रमाण हैं। जिस धरती पर हर 2 मिनट में 3 नौनिहालों की मौत कुपोषण के कारण हो जाती हो, वहाँ पर व्यवस्था के ठेकेदारों और जुमलेबाजों को शर्म भी ना आये तो हालात की भयंकरता को समझा जा सकता है।

आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा : प्रधानमन्त्री का एक और वायदा निकला जुमला!

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 11 सितम्बर 2018 को आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा की गयी थी। ‘आँगनवाड़ी’ और ‘आशा’ महिलाकर्मियों को मानदेय बढ़ोत्तरी का यह वायदा दिवाली के तोहफ़े के तौर पर किया गया था किन्तु अभी तक भी इस मानदेय बढ़ोत्तरी की एक फूटी कौड़ी भी किसी के खाते में नहीं आयी है! दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन को जिस बात की पहले ही आशंका थी, वही हुआ। यूनियन के द्वारा अपनी पिछली प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की आशंका भी जतायी गयी थी। प्रधानमन्त्री द्वारा किये गये वायदे के अनुसार अक्टूबर माह से कार्यकर्त्ताओं के वेतन में 1,500 रुपये और सहायिकाओं के वेतन में 750 रुपये की वृद्धि होनी थी लेकिन अक्टूबर के महीने से बढ़ी हुई यह राशि अब तक किसी महिलाकर्मी को प्राप्त नहीं हुई है।

आपस की बात : हमें एकजुटता बनानी होगी

मैं पिछले वर्ष से जब से हमारी हड़ताल हुई थी तब से मज़दूर बिगुल अख़बार पढ़ रही हूँ। इसी अख़बार ने हमारी हड़ताल की रिपोर्टों को भी काफ़ी जगह दी थी। इसके लिए मैं अपनी आँगनवाड़ी की सभी बहनों और साथियों की तरफ़ से आपका धन्यवाद करती हूँ। हम सभी यह जानते हैं कि मज़दूर वर्ग बहुत सारी मुश्किलों का सामना करता है। दिन पर दिन हमारी दिक़्क़तें बढ़ती ही जाती हैं। आँगनवाड़ी में काम करते हुए हमें भी बहुत तरह की परेशानियों को झेलना पड़ता है। जैसे खाने की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों की वजह से खाने में कीड़े तो छोड़िए छिपकली तक निकल जाती है लेकिन जब इस तरह के खाने की वजह से बच्चों की तबीयत खराब होती है तो उसका दण्ड हमें भुगतना पड़ता है।