अदालत ने भी माना : आँगनवाड़ीकर्मी हैं सरकारी कर्मचारी के दर्जे की हक़दार!
वृषाली
देश भर में तक़रीबन 1 करोड़ स्कीम वर्कर कार्यरत हैं। इनमें से 23.71 लाख आँगनवाड़ीकर्मी हैं। ये 1 करोड़ महिलाएँ वे हैं जिन्हें “सशक्त” करने के नाम पर सस्ते श्रम के स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। सरकार की ओर से चलने वाली बेहद ज़रूरी स्कीमों में ये महिलाकर्मी ज़मीनी स्तर पर कार्यरत महिलाएँ हैं। ‘समेकित बाल विकास परियोजना’ 1975 में बेहद सस्ती दरों पर बच्चों, गर्भवती महिलाओं आदि की देखरेख व पोषण तथा बुनियादी शिक्षा मुहैया कराने के मक़सद के साथ शुरू की गयी थी। इन बुनियादी ज़िम्मेदारियों के अलावा आज आँगनवाड़ीकर्मियों के कामों का बोझ कई गुना बढ़ाया जा चुका है। मौजूदा मोदी सरकार तो इन तथाकथित “स्वयंसेविकाओं” पर नयी शिक्षा नीति के तहत प्राथमिक शिक्षकों की ज़िम्मेदारी सौंपने की तैयारी में हैं। लेकिन बावजूद इसके, सरकार इन महिलाकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने को तैयार नहीं, न्यूनतम वेतन तक देने को तैयार नहीं। सरकार का समेकित बाल विकास परियोजना के प्रति कितना सरोकार है यह इस तथ्य से साफ़ है कि इस योजना की शुरुआत के लगभग 50 साल बाद भारत विश्व भूख सूचकांक में 127 देशों की सूची में 105वें स्थान पर खड़ा है।
समेकित बाल विकास परियोजना को ज़मीनी स्तर पर लागू करने वाली आँगनवाड़ीकर्मी देश भर में संघर्षरत हैं। उनकी मुख्य माँग यह है कि उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाये, न्यूनतम वेतन, पेंशन, ग्रेच्युटी इत्यादि सुविधायें दी जायें, समेकित बाल विकास परियोजना के तहत मिलने वाली सुविधाओं को बेहतर किया जाये। जितने दबाव में आज आँगनवाड़ीकर्मी काम करने को मजबूर हैं, उस अनुसार उन्हें दिया जाने वाला मानदेय उन महिलाकर्मियों के साथ एक भद्दा मज़ाक है। दिल्ली जैसे शहर में भी 2017 से पहले आँगनवाड़ी वर्करों को 5000 रुपये व हेल्परों को 2500 रुपये की मामूली राशि दी जाती थी। दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों ने अपनी ‘यूनियन ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेलपर्स यूनियन’ के बैनर तले चले संघर्ष के दम पर 2017 और 2022 में मानदेय बढ़ोत्तरी हासिल की थी। पिछले कुछ सालों में देश भर में आँगनवाड़ीकर्मियों के कई राज्यों में आन्दोलन तेज़ हुए हैं और इसके साथ ही सरकार की दमन की कार्रवाई भी तेज़ हुई है। 2022 में दिल्ली में आँगनवाड़ीकर्मियों की हड़ताल पर ‘हेस्मा’ क़ानून थोपे जाने के बाद 2024 में आन्ध्र प्रदेश में भी आँगनवाड़ीकर्मियों के आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए ‘एस्मा’ का इस्तेमाल किया गया। जिन सरकारों की नज़रों में आँगनवाड़ीकर्मी महज़ “स्वयंसेविकाएं” हैं, उनके आन्दोलन से भयाक्रान्त सरकारें हड़ताल तोड़ने के वक़्त सरकारी कर्मचारियों पर इस्तेमाल किए जाने वाले काले क़ानून थोप रही हैं!
दमन की इन कार्रवाइयों के बावजूद आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष देशभर में जारी है। आँगनवाड़ीकर्मियों की सरकारी कर्मचारी के माँग के मसले पर कई राज्यों के उच्च न्यायालयों में भी अलग-अलग यूनियनों ने अर्ज़ियाँ दायर की गयी हैं। इस मद्देनज़र हाल में कई महत्वपूर्ण बयान और फ़ैसले आये हैं। वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि आँगनवाड़ीकर्मियों को ग्रेच्युटी दी जानी चाहिए और इस दिशा में केन्द्र व राज्य सरकारों को ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए। अब बीते 30 अक्टूबर को गुजरात हाईकोर्ट द्वारा का बहुत महत्वपूर्ण फैसला आया है जिसमें केन्द्र व सभी राज्य सरकारों को यह आदेश दिया गया है कि वे आँगनवाड़ीकर्मियों को नियमित करने की दिशा में ठोस योजना बनाये। इसके साथ ही इस आदेश में यह भी बात कही गयी है कि जबतक आँगनवाड़ीकर्मियों को नियमित करने की योजना लागू नहीं होती है तब तक उन्हें ग्रेड 3 व ग्रेड 4 रैंक के सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाला वेतन और तमाम अन्य सुविधाएँ मुहैया करायी जायें। इस फ़ैसले को राज्य सरकार और केन्द्र सरकार द्वारा तुरन्त संज्ञान में लेते हुए इसपर कारवाई शुरू की जाये।
यह फ़ैसला लम्बे समय से संघर्षरत आँगनवाड़ीकर्मियों के संघर्ष का ही नतीजा है। कर्मचारी के दर्जे की माँग की हमारी लड़ाई को आगे ले जाने के में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ देश भर की आँगनवाड़ीकर्मियों को इसके लिए बधाई देती है। लेकिन हमें कोर्ट के इस आदेश मात्र से निश्चिन्त होकर नहीं बैठ जाना होगा। देश भर में आन्दोलनरत स्कीम वर्करों के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि किस प्रकार एक स्वतन्त्र और इन्क़लाबी यूनियनें खड़ी की जायें और अलग-अलग राज्यों में बिखरे हुए इन आन्दोलनों को एक सूत्र में पिरोया जाये। आँगनवाड़ीकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने के लिए नीति में ज़रूरी बदलाव केन्द्र सरकार के हाथों में है। इसके लिए केन्द्र सरकार के खिलाफ़ संघर्ष को तेज़ करने और देशभर में आँगनवाड़ीकर्मियों को एकजुट करने की ज़रूरत है।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2024
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