राजधानी दिल्ली में एकजुट होकर अधिकारों के लिए आवाज़ उठायी मनरेगा मज़दूरों ने
बिगुल संवाददाता
5-6 दिसम्बर को जन्तर मन्तर पर नरेगा संघर्ष मोर्चा के बैनर तले, पूरे देशभर से सैकड़ों मनरेगा मज़दूरों ने मज़दूर विरोधी, ग़रीब विरोधी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ दो दिवसीय विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी मज़दूरों ने मनरेगा क़ानून के तहत तत्काल कार्रवाई की माँग की, जैसे कि मज़दूरी भुगतान में देरी, जॉब कार्डों को डिलीट करना और केन्द्र सरकार द्वारा पर्याप्त बजट का आवण्टन न करना शामिल थी। दो दिवसीय धरने में यूपी, बंगाल, बिहार, झारखण्ड, राजस्थान व हरियाणा के मज़दूरों की भागीदारी रही।
नरेगा संघर्ष मोर्चा के आशीष रंजन ने बताया कि बजट की बात करें तो मनरेगा बजट के लिए 86,000 हज़ार करोड़ आवण्टित किये गये हैं जो वित्तीय वर्ष 2023-24 के मद 1,05,299 करोड़ रुपये के वास्तविक व्यय से 19,298 करोड़ रुपये कम है। असल में केंद्र सरकार अगर इस योजना में कार्यरत मौजूदा मज़दूरों के कार्य दिवसों को बढ़ाने का इरादा रखती है, तो भी उन्हें मनरेगा बजट के लिए उसे 2.5 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। फिलहाल इस बजट के 86,000 करोड़ रुपये से केवल 35 दिन ही मनरेगा मज़दूर परिवारों को काम मिल पाएगा।
दूसरा, पिछले सालों के अनभुव से हम जानते है कि मौजूदा बजट की मद का 25 प्रतिशत हिस्सा पिछले वर्षों के बकाए का भुगतान करने में इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए, अन्तिम आँकड़ा लगभग 60,000 करोड़ रुपये जो कि वास्तविक आवश्यकता का एक-चौथाई है। यानी कुल जीडीपी के प्रतिशत के रूप में इस वित्त वर्ष के लिए मनरेगा बजट का आवण्टन केवल 1 प्रतिशत के आस-पास है। इस बजट कटौती का सीधा अर्थ है मज़दूरों के कार्यदिवस की कटौती। साफ़ है कि मोदी सरकार आने वाले दिनों में मनरेगा के सीमित हक़-अधिकारों को भी छीनने पर आमादा है।
क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन (हरियाणा) के साथी अजय ने बताया कि आज मज़दूरों के साझा हितों के लिए हमें एकजुट होकर मोदी सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। अगर हम हरियाणा के कैथल जिले के कलायत तहसील की बात करें तो मनरेगा मज़दूरों के बीच बेरोज़गारी, मज़दूरी के भुगतान में देरी व मनरेगा में भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ हैं। यूँ तो मनरेगा क़ानून 100 दिन के रोज़गार की गारण्टी का वादा करता है लेकिन हक़ीक़त में देश पैमाने पर मनरेगा के तहत 30-40 दिन ही परिवार को काम मिलता है।
वहीं बंगाल से आये मज़दूरों ने बताया की पश्चिम बंगाल में पिछले तीन साल से मनरेगा का काम बन्द पड़ा है। मोदी सरकार द्वारा फण्ड रोकने से मनरेगा मज़दूर बेहद बुरे हाल से गुज़र रहे हैं। मोदी सरकार और राज्य सरकार की नूराँकुश्ती में मज़दूर रोज़गार के अधिकार से वंचित हैं। जबकि मनरेगा एक्ट की धारा 27 किसी विशिष्ट शिकायत के आधार पर “उचित समय के लिए” अस्थायी निलम्बन से अधिक कुछ भी अधिकृत नहीं करती है। यह निश्चित रूप से केन्द्र को उन श्रमिकों के वेतन को रोकने के लिए अधिकृत नहीं करता है जो पहले से ही काम कर चुके हैं। यह मामला मोदी के मज़दूर विरोधी चेहरे को फिर उजागर करती हैं। ऐसे हालात में देशभर के मनरेगा मज़दूरों की एकजुटता मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का विरोध करते है।
हम माँग करते हैं…
(1) मनरेगा बजट में तत्काल बढ़ोतरी की जाये
(2) मनरेगा मज़दूरी दर में बढ़ोतरी की जाये
(3) समय पर भुगतान की गारण्टी की जाये
(4) तकनीकी तन्त्र का अन्त जिसमें मज़दूरी भुगतान को एनएनएमएस और एबीपीएस से अनिवार्य रूप से जोड़ना शामिल है
(5) बंगाल मनरेगा मज़दूरों का काम तत्काल शुरू किया जाये व मजदूरों की बकाया राशि जारी की जाये।
देशभर से आये मनरेगा मज़दूरों ने संकल्प लिया कि यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक मनरेगा मज़दूरों को सम्मानजनक वेतन व साल भर काम नहीं मिल जाता।
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2024 – जनवरी 2025
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