आँगनवाड़ी कर्मियों ने लोकसभा चुनाव में मज़दूरों-मेहनतकशों के स्वतन्त्र पक्ष को मज़बूत करने का निर्णय लिया!!

(लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन (DSAWHU) द्वारा जारी पर्चा)

बहनो, साथियो,

आने वाली 25 मई को दिल्ली में लोकसभा के चुनाव हैं। यह चुनाव एक ऐसे वक़्त में हो रहा है जब हमारे देश की 80 फ़ीसदी आबादी जो मेहनत-मज़दूरी करके अपनी जीविका चलाती है वह बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार, महँगी शिक्षा और साम्प्रदायिकता से त्रस्त है। तमाम चुनावबाज़ पार्टियों के शासन ने यह दिखला दिया है कि वो हमारे हितों की नुमाइंदगी कतई नहीं कर सकतीं!

मोदी सरकार के पिछले 10 साल देश मेहनतकश अवाम के लिए नर्क़ साबित हुए हैं। भाजपा और मोदी सरकार की अमीरपरस्त नीतियों की वजह से जनता के ऊपर बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता का ऐसा कहर टूटा है, जिसकी मिसाल हमारे देश के इतिहास में मौजूद नहीं है। नोटबन्दी, जीएसटी, कोरोना महामारी के दौरान का कुप्रबन्धन, राफ़ेल घोटाला, अडानी घोटाला, इलेक्टोरल बॉण्ड महाघोटाला, ईवीएम घोटाला, आसमान छूती महँगाई और बेरोज़गारी दर, साम्प्रदायिकता का ज़हर, मज़दूर विरोधी लेबर कोड, जन आन्दोलनों का बर्बर दमन : यही नेमतें हैं 10 साल के मोदी राज की! आज अमीरों और धन्नासेठों की सबसे चहेती पार्टी भाजपा यूँ ही नहीं है और हजारों करोड़ रुपए का चन्दा इन धन्नासेठों ने मोदी को समाजसेवा के लिए तो दिया नहीं है। ज़ाहिरा तौर पर इसका मतलब ही यह है कि भाजपा इस दौर में पूँजीपति वर्ग की सबसे कारगर तरीक़े से सेवा कर सकती है और पूँजीपरस्त नीतियों को डण्डे के ज़ोर पर लागू करवा सकती है। यह एक फ़ासीवादी पार्टी है और इसलिए जनता की सबसे बड़ी दुश्मन है।

अपने संघर्षो के दौरान तमाम पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियों की असलियत से आँगनवाड़ी महिलाकर्मी पहले से ही परिचित हैं। लेकिन आज पूरे देश के स्तर पर बात करें तो भाजपा आम मेहनतकश जनता यानी कि मज़दूरों, आँगनवाड़ी कर्मियों, ग़रीब किसानों, निम्न व आम मध्यमवर्गीय लोगों, आम स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों व मुसलमानों की सबसे बड़ी और सबसे ख़तरनाक दुश्मन है। चुनाव से पाँच दिन पहले अपना लम्बा-चौड़ा घोषणापत्र लेकर आयी भाजपा ने कहीं हमारी माँगों पर कोई शब्द ख़र्च नहीं किया। हालाँकि, अगर किया भी होता तो वह जुमला ही साबित होता क्योंकि इनके तमाम चुनावी वायदों की सच्चाई पिछले दस सालों में हमसे छुपी हुई नहीं है। 2022 की हमारी ऐतिहासिक हड़ताल पर ‘एस्मा’ जैसे दमनकारी क़ानून का इस्तेमाल करने वाली यह भाजपा सरकार ही थी और 3 मार्च 2024 को जन्तर-मन्तर पर हमारे शान्तिपूर्ण सभा को पुलिस के बल पर इसी सरकार ने नहीं होने दिया। “स्त्री-सशक्तिकरण” की बात करने वाले और खुद को “स्त्रियों की गरिमा के रक्षक” बताने वाले ये लोग असल मायने में सबसे कुत्सित-घृणित दर्जे के स्त्री-विरोधी हैं। भाजपा के सत्ता में आने के बाद केन्द्र सरकार द्वारा आँगनवाड़ी कर्मियों के मानदेय में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गयी है। 2015 में प्रधानमन्त्री द्वारा 1500 रुपये और 750 रुपये की घोषणा भी जुमला निकला। वहीं “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ” के नाम पर 446.82 करोड़ रुपये में से 80% केवल विज्ञापन में बहा दिये गये। इस बार भी चुनाव में आँगनवाड़ी कर्मियों के सामने “आयुष्मान भारत स्कीम” का जुमला उछालकर यह सोच रहे हैं कि हम इनके झाँसे में आ जायेंगे !!

इस चुनावी सरगर्मी में मोदी के नक़्शेक़दम पर चलते हुए केजरीवाल सरकार ने भी दिल्ली की महिलाओं को 1000 रुपये प्रतिमाह देने का जुमला उछाला है। यह वही ‘आप’ सरकार है जिसने हमें, दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों को 2022 में अपना मेहनताना और न्यूनतम वेतन की माँग करने की ‘एवज़’ में हाथ में टर्मिनशन लेटर थमा दिये थे। यूँ तो दिल्ली में हर दूसरे मसले पर उप-राज्यपाल द्वारा हस्तक्षेप की ख़बर आ जाती है, लेकिन आँगनवाड़ी कर्मियों के गैर-क़ानूनी टर्मिनेशन पर उप-राज्यपाल की आँखों पर पट्टी बँध गयी। वरना तो अपने सियासी फ़ायदों के लिए आपस में “तू-तू-मैं-मैं” करने में भाजपा, ‘आप’ और कांग्रेस हमेशा तैयार रहते हैं, लेकिन जहाँ मज़दूरों-मेहनतकशों के दमन की बात आती है इनका याराना देखते ही बनता है। इस कुकृत्य में कांग्रेस भी उतनी ही भागीदार है। दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रहे हमारे केस में ‘आप’ की वकालत करने वाले कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी हैं। 1975 में समेकित बाल विकास परियोजना की शुरुआत भी कांग्रेस सरकार ने की थी, और स्त्रियों को अवसर देने के नाम पर उनके श्रम शक्ति की लूट पर इस योजना का आधार खड़ा किया। इस लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने स्कीमवर्करों को लुभाने के लिए उनके मानदेय में केन्द्र सरकार के हिस्से को दोगुना करने का वायदा किया है। लेकिन मानदेय में केन्द्र सरकार का हिस्सा ही इतना कम है कि महँगाई के मद्देनज़र उसके दुगुना हो जाने पर भी हमें कोई राहत नहीं मिलने वाली। दूसरा वायदा उसने आँगनवाड़ी कर्मियों की संख्या को दुगुना करने का किया है; मतलब मेहनत की लूट की इस परियोजना में और स्त्रियों को शामिल कर उनके शोषण किया जायेगा। देश के स्तर पर में अलग-अलग समय में तमाम पार्टियों ने स्कीम वर्करों के संघर्षों का दमन किया है।

जैसा कि आप सभी को पता है, लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन (DSAWHU) ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकार समेत सभी पार्टियों के नाम एक माँगपत्रक तैयार किया था और 3 मार्च को दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर बड़े कार्यक्रम का आयोजन भी किया था। हालाँकि आँगनवाड़ी कर्मियों समेत अन्य मज़दूरों-मेहनतकशों के जुझारू तेवर से बौखलाई हुई मोदी सरकार ने दिल्ली पुलिस के ज़रिये इस महाजुटान पर दमनात्मक कार्रवाई करवायी थी जिसका डटकर बहादुराना तरीक़े से मुक़ाबला किया गया था। यह माँगपत्रक इस चुनाव में दिल्ली की 22 हज़ार आँगनवाड़ीकर्मियों का एजेण्डा है। कर्मचारी के दर्जे की माँग, मानदेय में बढ़ोत्तरी, बरख़ास्त आँगनवाड़ी कर्मियों की तत्काल बहाली, पेंशन, रिटायरमेण्ट सुविधाएँ, ईएसआई-पीएफ़, समेत अन्य कई माँगें इसमें शामिल हैं।

हमारे माँगपत्रक पर किसी भी चुनावबाज़ दल ने यानी भाजपा से लेकर कांग्रेस या आप तक किसी भी पार्टी ने कोई ठोस बात नहीं कही है। हड़ताल के दौरान बरख़ास्त की गयी आँगनवाड़ी कर्मियों के मसले पर तो यह तीनों ही दल इतने बेशर्म तरीक़े से नंगे हुए हैं कि अब दिल्ली में आँगनवाड़ीकर्मियों के बीच इनकी दाल नहीं गलने वाली है।

इसके अलावा जिस एक पार्टी ने आँगनवाड़ी की महिलाओं की सभी माँगों को अपने घोषणापत्र में शामिल किया है वह है – भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI)। RWPI ने पहले भी महिलाकर्मियों की सभी माँगों का न सिर्फ़ पुरज़ोर समर्थन किया है बल्कि उनके संघर्षों, आन्दोलनों व हड़तालों में प्रत्यक्ष भागीदारी भी की है। ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ (RWPI) सभी मेहनतकशों की पार्टी है जो किसी और के श्रम का शोषण नहीं करते, अपनी मेहनत के बूते अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं, कल-कारख़ानों में, खेतों में, खानों-खदानों में, सरकारी और निजी कार्यालयों में काम करते हैं, शहरों-गाँवों में अनौपचारिक कामगार के रूप में मेहनत करते हैं। RWPI मज़दूरों-मेहनतकशों के चन्दे के दम पर चलने वाली पार्टी है इसलिए ही यह सही मायने में उनके हक़ों-अधिकारों के लिए लड़ सकती है।

RWPI के उम्मीदवार दिल्ली में दो सीटों समेत पूरे देश में छह सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली से योगेश स्वामी उम्मीदवार हैं तो वहीं उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से अदिति चुनाव में मज़दूरों व आँगनवाड़ीकर्मियों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और असल मायने में यही स्कीम वर्कर्स की माँगों को उठा सकते हैं क्योंकि यह पार्टी अपने समस्त संसाधनों, नीति-निर्माण और गतिविधियों के लिए मेहनतकश वर्गों पर निर्भर करती है और ठीक इसीलिए मेहनतकश वर्गों के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष को मज़बूती से उठा सकती है। कांग्रेस से लेकर आप, भाजपा जैसी तमाम पार्टियाँ मालिकों-धन्नासेठों की पार्टियाँ हैं। जब मज़दूरों और मालिकों के हित एक नहीं हो सकते तो मालिकों की पार्टी या पार्टियाँ मज़दूरों के हितों की नुमाइन्दगी कैसे कर सकती हैं? मज़दूरों व आँगनवाड़ी कर्मियों के हितों की नुमाइन्दगी उनकी अपनी क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ही कर सकती है जो उन्हीं के दम पर खड़ी हो और उनके ही फ़ण्ड से चलती हो।

आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में न सिर्फ़ भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन देने फ़ैसला लिया है बल्कि भाजपा जैसी आँगनवाड़ी कर्मियों, महिलाओं, मज़दूरों की दुश्मन नम्बर 1 पार्टी की वोटबन्दी का भी फ़ैसला लिया है।

हमारा माँगपत्रक :-

  1. सभी आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाये, हमें नियमित किया जाये व श्रम क़ानूनों के अन्तर्गत लाया जाये ताकि हमें रोज़गार की पक्की गारण्टी मिले।
  2. हमारी ज़िम्मेदारी और महँगाई को ध्यान में रखते हुए सरकार हमारे मानदेय में तत्काल प्रभाव से बढ़ोत्तरी कर कार्यकर्ता एवं सहायिका को क्रमशः 30,000 रुपये व 25,000 रुपये के हिसाब से मानदेय का भुगतान करे।
  3. केन्द्र व राज्य सरकार यह सुनिश्चित करे कि केन्द्र सरकार द्वारा घोषित व 1 अक्तूबर 2018 से लागू मानदेय वृद्धि की बकाया राशि (जनवरी 2024 तक 63 महीनों के लिए कार्यकर्ता व सहायिका को क्रमशः 94,500 रुपये व 47,250 रुपये) का तुरन्त भुगतान किया जाये।
  4. दिल्ली में 2022 की हड़ताल के उपरान्त गैर-क़ानूनी रूप से टर्मिनेट की गयी सभी 884 महिलकर्मियों को बिना शर्त काम पर वापस रखा जाये और टर्मिनेशन की इस अवधि के दौरान के मानदेय का पूरा भुगतान किया जाये।
  5. महँगाई पर रोक लगाने के लिए सभी अप्रत्यक्ष करों को समाप्त किया जाये और बढ़ती सम्पत्ति के आधार पर प्रगतिशील प्रत्यक्ष करों की व्यवस्था को मज़बूती के साथ लागू किया जाये।
  6. ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ पारित हो। हर काम करने योग्य व्यक्ति को साल के 365 दिन पक्का काम दिया जाये। काम न दे पाने की सूरत में हर महीने 15,000 रुपये बेरोज़गारी दिया जाये।
  7. सभी श्रम क़ानूनों को सख़्ती से लागू किया जाये, प्रस्तावित चार ‘लेबर कोड’ रद्द किये जायें। ग्रामीण मज़दूरों को भी श्रम क़ानूनों के अन्तर्गत लाया जाये। ‘पुरानी पेंशन स्कीम’ बहाल किया जाये। ठेकेदारी प्रथा ख़त्म कर नियमित प्रकृति के कामों पर पक्के रोज़गार का प्रबन्ध किया जाये।
  8. “सर्वधर्म समभाव” की नकली धर्मनिरपेक्षता की जगह सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य को सुनिश्चित करने के लिए क़ानून लाया जाये। किसी भी नेता या पार्टी द्वारा धर्म, समुदाय या आस्था का सार्वजनिक जीवन में किसी भी रूप में उल्लेख व इस्तेमाल करना दण्डनीय अपराध घोषित किया जाये।
  9. आँगनवाड़ी कर्मियों को रिटायरमेण्ट सुविधाएँ दी जायें व ग्रेच्युटी दी जाये व रिटायरमेण्ट की आयु सीमा 65 वर्ष की जाये।
  10. मिनी आँगनवाड़ी कार्यकर्ता को कार्यकर्ता का दर्जा और बराबर मानदेय दिया जाये।
  11. आँगनवाड़ी कर्मियों को सवैतनिक सर्दी व गर्मी अवकाश और मातृत्व अवकाश दिया जाये।
  12. दिल्ली व केन्द्र सरकार द्वारा आँगनवाड़ीकर्मियों को बेगार खटवाने के लिये ‘सहेली समन्वय केन्द्र’ व क्रेच खोलने के फ़ैसले वापस लिये जायें। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों के कार्यदिवस को बढ़ाने का फैसला तत्काल वापस लिया जाये।
  13. समेकित बाल विकास परियोजना में गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) की घुसपैठ और हस्तक्षेप पर तत्काल पाबन्दी लगायी जाये।
  14. नयी शिक्षा नीति – 2020 वापस ली जाये व आई.सी.डी.एस. में किसी भी प्रकार के निजीकरण पर रोक लगायी जाये।
  15. सभी आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं को ई.एस.आई., पी.एफ़. व पेंशन जैसी सुविधाएँ मुहैया करायी जायें व सभी आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों के लिए सामाजिक सुरक्षा कार्ड जारी किये जायें।
  16. आई.सी.डी.एस. योजना में रिक्त पदों पर पारदर्शी तरीक़े से तत्काल भर्ती की जाये। सुपरवाइज़र पद पर पदोन्नति (प्रमोशन) आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं में से ही की जाये और योग्य आँगनवाड़ी सहायिकाओं का ‘प्रमोशन’ कार्यकर्ताओं के तौर पर किया जाये।
  17. जिन आँगनवाड़ीकर्मियों को ‘पैनल’ या ‘लीव’ पर रखा गया है, उन्हें तत्काल पारदर्शिता के साथ नियमित किया जाये।
  18. आबादी के अनुसार नये केन्द्र खोलें जायें व ‘अडिशनल चार्ज’ का सिस्टम ख़त्म किया जाये।
  19. फ़ोन और इण्टरनेट बिल का ख़र्च सरकार वहन करे और इसका भुगतान नियमित किया जाये।
  20. ‘पोषण ट्रैकर ऐप’ बन्द किया जाये व लोकेशन और ऐप ज़रिये अनुपस्थिति की प्रणाली को ख़त्म किया जाये।
  21. गोदभराई, अन्नप्राशन इत्यादि गतिविधियों के ख़र्चों का वहन विभाग करे और समय से भुगतान करे।

बहनो, हमारी यह सभी माँगें जायज़ हैं और हमारा हक़ हैं। चुनाव में हमारा एजेण्डा भी यही मसले हैं। और एक आँगनवाड़ीकर्मी के अलावा हम इस देश के नागरिक भी हैं। हम इस देश की उस 80 प्रतिशत आबादी का हिस्सा हैं जो इस देश को चलाने और बनाने का काम करती है। आज़ादी 77 सालों में हमने तमाम पार्टियों की सत्ता और स्कीम वर्कर्स के प्रति उनके रवैये को साफ़ देखा है। मौजूदा समय में जिस पार्टी की सत्ता ने मज़दूरों-मेहनतकशों का सबसे ज़्यादा दमन किया है, उनकी लूट को आसान बनाया है; उस भाजपा का इस लोकसभा चुनाव में हम पूर्ण वोटबन्दी का आह्वान करते हैं।

इस लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र भी हमारे तैयार किये गये माँगपत्रक को अपने घोषणापत्र में शामिल करने वाली सिर्फ़ एक ही पार्टी है – भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI)। दिल्ली की जिन दो लोकसभा सीटों पर इस पार्टी के प्रत्याशी खड़े हो रहे हैं, वे न केवल स्कीमवर्करों के मसलों को उठा रहे हैं, बल्कि इस देश की मेहनतकश अवाम का सही मायनों में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यही वह पार्टी है जो हम जैसों, यानि मेहनतकशों के दम पर चलती है। हमें न केवल ख़ुद इनका समर्थन करने की, बल्कि एक बड़ी आबादी अपने परिचितों, रिशतेदारों और लाभार्थियों के बीच भी इनके लिए समर्थन जुटाने के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि ये ही हमारी माँगों को संसद में उठाने का माद्दा रखते हैं और ये ही इस देश की 80 फ़ीसदी जनता का स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष खड़ा कर सकते हैं।

 

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2024


 

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