मॉब-लिंचिंग की घटनाओं में आमतौर पर गरीब व निम्न मध्यवर्गीय मुसलमान को निशाना बनाया जाता है और एक बड़ी मुसलमान आबादी के बीच डर का माहौल पैदा किया जाता है। मॉब-लिंचिंग की इन घटनाओं पर सोचते समय यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि यह फ़ासीवादी राजनीति का ही एक हिस्सा है। शुरू में फ़ासीवादी राजनीति के तहत अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है, उन्हें एक नकली दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है, फ़ासीवादी नेतृत्व को बहुसंख्यक समुदाय के अकेले प्रवक्ता और हृदय-सम्राट के रूप में पेश किया जाता है और बाद में हर उस शख़्स को जो फ़ासीवादी सरकार की आलोचना करता है, उसे इस नकली दुश्मन की छवि में समेट लिया जाता है। नतीजतन, केवल किसी अल्पसंख्यक समुदाय को ही काल्पनिक दुश्मन के रूप में नहीं पेश किया जाता बल्कि नागरिक-जनवादी अधिकारों के लिए लड़ने वालों, मज़दूरों व उनकी ट्रेड यूनियनों, और फिर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को बहुसंख्यक समुदाय के दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, वह तमाम लोग जो समाज में वैज्ञानिकता, तार्किकता एवं अन्धविश्वास उन्मूलन का काम करते हैं, उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया जाता है।