Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

मोदी-शाह की राजग गठबन्धन सरकार का पहला बजट – मेहनतकश-मज़दूरों के हितों पर हमले और पूँजीपतियों के हितों की हिमायत का दस्तावेज़

मौजूदा बजट का मक़सद साफ़ है : संकट के दौर में पूँजीपतियों को अधिक से अधिक सहूलियतें, राहतें और रियायतें देना, निजीकरण की आँधी को बदस्तूर जारी रखना, मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश अवाम की औसत मज़दूरी व औसत आय को नीचे गिराकर उन्हें पूँजीपतियों के समक्ष अधिकतम सम्भव ज़रूरतमन्द और ग़रज़मन्द बनाना, पूँजीपतियों को करों से अधिक से अधिक मुक्त करना, सरकारी ख़ज़ाने में इससे होने वाली कमी को पूरा करने के लिए करों के बोझ को आम मेहनतकश जनता व मध्यवर्ग के ऊपर अधिक से अधिक बढ़ाना, जनता की साझा सम्पत्ति व सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक से अधिक पूँजीवादी लूट के लिए खोलना, रोज़गार सृजन के नाम पर ऐसी योजनाओं को लागू करना जो पूँजीपतियों के लिए बेहद सस्ते श्रम के अतिदोहन को सरल और सहज बनाये।

केन्द्रीय  बजट : जनता की जेब काटकर पूँजीपतियों की तिजोरी भरने का काम बदस्तूर जारी

2014 में कुल कर राजस्व में कॉरपोरेट करों का हिस्सा 34.5 प्रतिशत था जो 2024 में घटकर 26.6 प्रतिशत रह गया है। अब विदेशी कम्पनियों को दी गयी राहत के बाद कॉरपोरेट करों का हिस्सा और भी कम होगा। कम्पनियों पर लगने वाले करों में कटौती का तर्क यह दिया जाता है कि इससे निवेश बढ़ेगा और रोज़गार के नये अवसर पैदा होंगे। परन्तु पिछले 10 सालों के मोदी सरकार के कार्यकाल में कई लाख करोड़ रुपयों की राहत देने के बाद भी रोज़गार की स्थिति बद से बदतर ही हुई है। कम्पनियों को करों में छूट देने का साफ़ मतलब है कि सरकार अपनी आमदनी के लिए जनता पर करों का बोझ बढ़ाती जाएगी। वैसे भी सरकार के कुल राजस्व में जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा बढ़ता जा रहा है जो आम जनता पर भारी पड़ता है क्योंकि वह सभी पर एकसमान दर से लगता है और लोगों की आय से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर पेपर लीक और भर्तियों में धाँधली के खिलाफ़ छात्रों-युवाओं का जुझारू प्रदर्शन!

इस देश के हुक्मरानों का अपनी न्यायपूर्ण माँगों के लिए शान्तिपूर्ण विरोध कर रहे आम छात्रों-युवाओं के प्रति रवैया फिर से साफ़ हो गया। ख़ासतौर पर भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान देश में बेरोज़गारी, परीक्षाओं में पेपर लीक और भर्तियों में भ्रष्टाचार पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ चुका है। प्रधानमन्त्री मोदी जी ने कभी इस बात पर गर्व किया था कि हमारा देश युवा आबादी का सबसे बड़ा देश है। लेकिन युवा आबादी के इस सबसे बड़े देश के युवाओं का भविष्य अँधेरे की गर्त में है। पिछले सात सालों के दौरान 80 से ज़्यादा परीक्षाओं के पेपर लीक हो चुके हैं। भर्तियों में होने वाला भ्रष्टाचार हम सबके सामने है। आरओ-एआरओ, यूपी पुलिस भर्ती परीक्षा, बीपीएससी से लेकर हाल में नीट और यूजीसी नेट जैसी परीक्षाओं की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है। इस पर भी मौजूदा शिक्षा मन्त्री धर्मेन्द्र प्रधान संसद में यह बयान देने की बेशर्मी कर रहे हैं कि भाजपा के कार्यकाल में एक भी पर्चा लीक नहीं हुआ है। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाएँ भी आयोजित करने वाली एनटीए जैसी संस्था को बिना किसी सुव्यवस्थित ढाँचे के चलाया जा रहा है जिसका नतीजा यह है कि एनटीए द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ सामने आ रही हैं। एनटीए द्वारा आयोजित की जाने वाली सभी परीक्षाएँ प्राइवेट एजेंसियों के माध्यम से करायी जा रही हैं।

लोकसभा चुनाव-2024 के नतीजों में हुई थी हेरा-फेरी- एडीआर और वोट फ़ॉर डेमोक्रेसी की रिपोर्ट

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट की 538 सीटों में पड़े कुल वोटों और गिने गए वोटों की संख्या में लगभग छह लाख वोटों का अन्तर था। रिपोर्ट के मुताबिक, अमरेली, अहिंगल, लक्षद्वीप, दादरा नगर हवेली एवं दमन दीव को छोड़कर 538 सीटों पर डाले गए कुल वोटों और गिने गए वोटो की संख्या अलग-अलग है। सूरत सीट पर मतदान नहीं हुआ था। एडीआर के संस्थापक जगदीप छोकर के मुताबिक़ चुनाव में वोटिंग प्रतिशत देर से जारी करने और निर्वाचन क्षेत्रवार तथा मतदान केन्द्रवार आँकड़े उप्लब्ध न होने को लेकर सवाल है।

बिगुल पॉडकास्ट – 6 – मोदी सरकार की फ़ासीवादी श्रम संहिताओं के विरुद्ध तत्काल लम्बे संघर्ष की तैयारी करनी होगी

छठे पॉडकास्ट में हम मज़दूर बिगुल के संपादकीय लेख को पेश कर रहे हैं। शीर्षक है – “मोदी सरकार की फ़ासीवादी श्रम संहिताओं के विरुद्ध तत्काल लम्बे संघर्ष की तैयारी करनी होगी”

जन विरोध के बाद लखनऊ में हज़ारों घरों पर बुलडोज़र चलाने से पीछे हटी योगी सरकार

बुलडोज़र पर सवार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लखनऊ के बीचोबीच अकबरनगर के हज़ारों घरों की बस्ती को नेस्तनाबूद करने के बाद सत्ता के नशे में पगला गयी थी। किसी बड़े विरोध के बिना पूरी बस्ती को बुलडोज़रों से रौंदने में सफल होने से उसके हौसले और भी बुलन्द हो गये थे और कुकरैल नाले (जिसे जबरन नदी घोषित कर दिया गया) के किनारे बसी पंतनगर, अबरार नगर, खुर्रम नगर, रहीम नगर, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी आदि बस्तियों से भी लाखों लोगों को बेदखल करने और हज़ारों घरों पर बुलडोज़र चलाने की तैयारी कर ली गयी थी। इन बस्तियों के हज़ारों घरों पर लखनऊ विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों ने लाल निशान लगाने शुरू कर दिये थे।

काँवड़ यात्रियों के नाम पर योगी सरकार का एक और फ़ासिस्ट आदेश

इस बेहूदा आदेश के पीछे मुस्लिम दुकानदारों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे स्वामी यशवीर नाम के एक ढोंगी बाबा का हाथ है। इस घोर साम्प्रदायिक व्यक्ति ने आरोप लगया है कि “ये लोग खाने में थूक रहे हैं और मूत्र भी कर रहे हैं।” ऐसे अपराधी की जगह सीधे जेल में होनी चाहिए थी लेकिन फ़ासिस्ट भाजपा उसे सर-आँखों पर बैठाकर उसके वाहियात आरोपों की बिना पर लोगों का कारोबार बन्द करा रही है और कांवड़ के नाम पर रास्ते पर भर गुण्डागर्दी और आवारागर्दी करने वालों के लिए आसान बना रही है कि वे मुस्लिम नामों की पहचान करके उन दुकानों को निशाना बनायें।

मोदी सरकार की तीसरी पारी की शुरुआत के साथ ही साम्प्रदायिक भीड़ द्वारा हत्या (मॉब–लिंचिंग) की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी

मॉब-लिंचिंग की घटनाओं में आमतौर पर गरीब व निम्न मध्यवर्गीय मुसलमान को निशाना बनाया जाता है और एक बड़ी मुसलमान आबादी के बीच डर का माहौल पैदा किया जाता है। मॉब-लिंचिंग की इन घटनाओं पर सोचते समय यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि यह फ़ासीवादी राजनीति का ही एक हिस्सा है। शुरू में फ़ासीवादी राजनीति के तहत अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है, उन्हें एक नकली दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है, फ़ासीवादी नेतृत्व को बहुसंख्यक समुदाय के अकेले प्रवक्ता और हृदय-सम्राट के रूप में पेश किया जाता है और बाद में हर उस शख़्स को जो फ़ासीवादी सरकार की आलोचना करता है, उसे इस नकली दुश्मन की छवि में समेट लिया जाता है। नतीजतन, केवल किसी अल्पसंख्यक समुदाय को ही काल्पनिक दुश्मन के रूप में नहीं पेश किया जाता बल्कि नागरिक-जनवादी अधिकारों के लिए लड़ने वालों, मज़दूरों व उनकी ट्रेड यूनियनों, और फिर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को बहुसंख्यक समुदाय के दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, वह तमाम लोग जो समाज में वैज्ञानिकता, तार्किकता एवं अन्धविश्वास उन्मूलन का काम करते हैं, उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया जाता है।

विकास के खोखले दावों की पोल खोलते गिरते पुल, जलभराव, टूटी सड़कें!

हमसे ही वसूले गये टैक्स के पैसे को सरकार इन पब्लिक सेक्टर के कामों में लगाती है। इसका ठेका प्राईवेट कॉन्ट्रैक्टर व कम्पनियों को दिया जाता है और जो भाजपा को अधिक चन्दा देता है, इन कामों का ठेका उन्हें दे दिया जाता है। आपको याद ही होगा पिछले साल उत्तराखण्ड में जिस सुरंग के ढहने से मज़दूर फँस गये थे, उस सुरंग का निर्माण करने वाली कम्पनी नवयुग इन्जीनियरिंग ने भाजपा को 55 करोड़ का चन्दा दिया था। इससे पहले भी यह कम्पनी ज़मीन अधिग्रहण और प्रोजेक्ट तैयार करने को लेकर भी विवाद में लिप्त थी, पर भाजपा ने इनको धन्धा देकर अपना धर्म निभाया। ऐसे में सरकार द्वारा जारी तमाम टेण्डरों में भ्रष्टाचार होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

मोदी सरकार की फ़ासीवादी श्रम संहिताओं के विरुद्ध तत्काल लम्बे संघर्ष की तैयारी करनी होगी

अगर ये श्रम संहिताएँ लागू होती हैं तो मज़दूर वर्ग को गुलामी जैसे हालात में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। अभी भी 90 फ़ीसदी अनौपचारिक मज़दूरों के जीवन व काम के हालात नारकीय हैं। अभी भी मौजूद श्रम क़ानून लागू ही नहीं किये जाते, जिसके कारण इन मज़दूरों को जो मामूली क़ानूनी सुरक्षा मिल सकती थी, वह भी बिरले ही मिलती है। लेकिन अभी तक अगर कहीं पर अनौपचारिक व औपचारिक, संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के मज़दूर, संगठित होते थे, तो वे लेबर कोर्ट का रुख़ करते थे और कुछ मसलों में आन्दोलन की शक्ति के आधार पर क़ानूनी लड़ाई जीत भी लेते थे। लेकिन अब वे क़ानून ही समाप्त हो जायेंगे और जो नयी श्रम संहिताएँ आ रही हैं उनमें वे अधिकार मज़दूरों को हासिल ही नहीं हैं, जो पहले औपचारिक तौर पर हासिल थे। इन चार श्रम संहिताओं का अर्थ है मालिकों और कारपोरेट घरानों, यानी बड़े पूँजीपति वर्ग, को जीवनयापन योग्य मज़दूरी, सामाजिक सुरक्षा और गरिमामय कार्यस्थितियाँ दिये बग़ैर ही उनका भयंकर शोषण करने की इजाज़त ओर मौक़ा देना।