Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

भारत को विश्वगुरु बनाने के ‘डंकापति’ के दावों का सच!

आज से पहले कभी किसी प्रधानमन्त्री या पार्टी ने इस हद तक जाकर युद्धोन्माद का इस्तेमाल अपने चुनावी फ़ायदे के लिए शायद ही किया हो, जितना नरेन्द्र मोदी और भाजपा ने किया है। पिछले एक दशक में पड़ोसी देशों के प्रति बेवजह की आक्रमकता दिखाकर और वैश्विक स्तर पर निरंकुश सत्ताओं को समर्थन देकर फ़ासीवादी मोदी सरकार ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बेतहाशा फ़जीहत करवायी है। लेकिन जैसा कि हमने लेख की शुरुआत में ही कहा था कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी भद पिटवाने के बावजूद गोदी मीडिया और संघी आई.टी सेल की ट्रोल आर्मी ने मोदी की छवि का आभामण्डल “विश्व-विजयी सम्राट” सरीखा बना रखा है! हालाँकि देर-सबेर सच्चाई की ठोस दीवार से टकराकर यह आभामण्डल भी टूटेगा!  

उत्तर प्रदेश में बिजली का निजीकरण किसके हक़ में?

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बिजली विभाग पर निजीकरण का बुलडोज़र चलाने की ठान चुकी है। बिजली कर्मचारियों के व्यापक विरोध प्रदर्शन के बावजूद योगी सरकार पूँजीपतियों के हक़ में अपने अटल इरादे को ज़ाहिर कर चुकी है। इसके लिये योगी सरकार एस्मा जैसे क़ानून का डण्डा और निलम्बन और बर्खास्तगी जैसे हथकण्डे इस्तेमाल करने के लिए तैयार बैठी है। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) दो प्रमुख बिजली वितरण निगमों (डिस्कॉम) – दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम (आगरा) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम (वाराणसी) का निजीकरण करने जा रही है। योगी सरकार की मंज़ूरी के बाद ऊर्जा विभाग ने यूपी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को इस योजना को लागू करने के लिए आदेश जारी कर दिया है। यह निर्णय उत्तर प्रदेश के 40 से अधिक ज़िलों को प्रभावित करेगा।

फ़ासीवादियों द्वारा इतिहास के साम्प्रदायिकीकरण का विरोध करो! अपने असली इतिहास को जानो! (भाग-1)

फ़ासिस्ट इतिहास से ख़ौफ़ खाते हैं। ये इतिहास को इसलिए भी बदल देना चाहते हैं क्योंकि इनका अपना इतिहास राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन से ग़द्दारी, माफ़ीनामे लिखने, क्रान्तिकारियों की मुख़बिरी करने, साम्प्रदायिक हिंसा और उन्माद फैलाने का रहा है। जब भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारी राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन में अपनी शहादत दे रहे थे, तो उस दौर में संघी फ़ासिस्टों के पुरखे लोगों को समझा रहे थे कि अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने की बजाय मुसलमानों और कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ लड़ना चाहिए! संघी फ़ासिस्टों के गुरु “वीर” सावरकर का माफ़ीनामा, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोगों द्वारा मुख़बिरी और गाँधी की हत्या में संघ की भूमिका और ब्रिटिश सत्ता के प्रति वफ़ादारी के इतिहास को अगर फ़ासिस्ट सात परतों के भीतर छिपा देना चाहते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

रेखा गुप्ता सरकार दिल्ली में मज़दूरों की बस्तियों पर बेरहमी से चला रही है बुलडोज़र!

पूँजीवाद में एक तरफ़ गाँव से शहरों की ओर प्रवास जारी रहता है और दूसरी तरफ़ शहर फैलते रहते हैं जिसमें शहरी “विकास” हर-हमेशा ग़रीबों की बस्तियों को उजाड़ने की क़ीमत पर किया जाता है। जो सीमित वैकल्पिक आवास मज़दूरों को मुहैया कराये जाते हैं वे मज़दूरों के रोज़गार के स्थान से दूर तथा अस्पताल, शिक्षा, पानी, बिजली जैसी सुविधाओं से रिक्त होते हैं। दिल्ली में बवाना और नरेला में झुग्गियों को उजाड़कर बसायी झुग्गी-झोंपड़ी क्लस्टर के मकान झुग्गियों से भी बदतर जीवन स्थिति देते हैं। झुग्गी-मुक्त शहर के दावे झूठे और बेमानी हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार ही भारत में 6.5 करोड़ झुग्गीवासी थे और क़रीब एक लाख झुग्गियाँ थीं। ये झुग्गियाँ पटरी किनारे, नाले किनारे या शहर के कोनों में बसी होती हैं जहाँ बिजली, पानी, सीवर, शौचालय, सड़क से लेकर साफ़-सफ़ाई की समस्या हमेशा रहती है। हालाँकि कई रिपोर्टें बताती हैं कि यह आँकड़ा सटीक नहीं था और असल संख्या 14-15 करोड़ है।

भाजपा के “रामराज्य” में बढ़ते स्त्री-विरोधी अपराध

फ़ासीवादी भाजपा के शासन में एक तरफ़ महिलाओं को ही सीमा में और संस्कार में रहने की हिदायत दी जाती है, महिलाओं के कपड़े पहनने, खाने, जीवनसाथी चुनने की आज़ादी पर हमला किया जाता है और दूसरी तरफ़ बलात्कारियों को खुली छूट मिलती है! जब ऐसी पार्टी सत्ता में होगी तो क्या नवधनाढ्य वर्गों, लम्पट टुटपुँजिया वर्गों और नेताओं की बिगड़ी औलादों का दुस्साहस नहीं बढ़ेगा कि वह किसी भी औरत पर हमला करे और उसका बलात्कार करे? जब इन आपराधिक तत्वों को यह यक़ीन है कि इन अपराधों की उसे कोई सज़ा नहीं मिलेगी, बस उसे भाजपा में शामिल हो जाने की आवश्यकता है, तो ज़ाहिर सी बात है कि स्त्री–विरोधी अपराधों में बढ़ोत्तरी तो होगी ही। शुचिता और संस्कार का ढोंग करने वाली फ़ासीवादी भाजपा के राज ने इस पतनशील और प्रतिक्रियावादी स्त्री-विरोधी मानसिकता को और मज़बूत किया है। भाजपा के गुरू गोलवलकर का मानना था कि औरतें बच्चा पैदा करने का यन्त्र होती हैं; इनके माफ़ीवीर सावरकर का मानना था कि बलात्कार का राजनीतिक हिंसा के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यही इनकी असली जन्मकुण्डली है!

पहलगाम आतंकी हमला : कश्मीर में शान्ति स्थापना के दावे हुए हवा! सैलानियों और आम नागरिकों की सुरक्षा में चूक के लिए कौन है ज़िम्मेदार ?

कश्मीर दुनिया भर में सबसे ज़्यादा सैन्यकृत जगहों में से एक है। इसके बावजूद कैसे पुलवामा जैसी घटना हो जाती है जिसमें सीआरपीएफ़ के 40 जवान मारे गये थे? और अब कैसे पहलगाम जैसी घटना हो गयी, जिसमें 27 बेगुनाहों की जान चली गयी!? यदि इन हमलों के पीछे सचमुच पाकिस्तान का ही हाथ है तो सीमापार से घुसपैठ हो कैसे जाती है! मोदी सरकार ने अपना छप्पन इंची सीना फुलाकर नोटबन्दी के साथ “आतंकवाद की कमर तोड़नी” शुरू की थी, लेकिन उसके बाद भी “आतंकवाद की कमर टूटती” नज़र नहीं आ रही है। निश्चय ही जहाँ न्याय नहीं है वहाँ शान्ति नहीं हो सकती है।

हिमांशी नरवाल और शैला नेगी को संघी गुबरैलों द्वारा धमकी : यही है इन फ़ासिस्टों का असली चरित्र

हिमांशी नरवाल और शैला नेगी ने जिस बहादुरी के साथ इन संघियों के साम्प्रदायिक एजेण्डा को ध्वस्त किया है आज हमें इससे सीखने की ज़रूरत है। गुण्डों का ये गिरोह सड़कों पर जो आतंक मचाये फिर रहा है उसको उसी की भाषा में सड़कों पर मुँहतोड़ जवाब देना होगा। इन गुबरैलों को सबसे ज़्यादा डर लोगों की एकजुटता से लगता है। लोग एकजुट होकर इनके दोगलेपन पर सवाल न करने लगें इसीलिए जब भी कोई व्यक्ति इनसे सवाल करता है तो ये बिलबिला जाते हैं और फिर उसे जान से मारने, रेप आदि की धमकी देते हैं जैसा की इन मामलों में हुआ है। पहलगाम हमले के बाद संघ की पूरी मशीनरी ने देश में दंगा भड़काने की पूरी कोशिश की लेकिन जनता की एकजुटता ने उसके मंसूबों पर पानी फ़ेर दिया। आज हम मेहनतकश लोगों को ये बात समझ लेना होगा कि साम्प्रदायिकता, दंगा और युद्ध से हमें कुछ हासिल नहीं होगा। हमें अपनी वर्गीय एकजुटता कायम करके संघ और भाजपा के सभी प्रोपैगेण्डा को ध्वस्त करना होगा और उनके गुण्डा गिरोहों को मुँहतोड़ जवाब देना होगा। हमारे दुश्मन देश के बाहर नहीं हैं और न ही हमारे दुश्मन देश के अन्दर किसी धर्म या समुदाय के अल्पसंख्यक लोग हैं। हमारे दुश्मन हमारे ही देश के धन्नासेठ, धनी व्यापारी, धनी कुलक व पूँजीवादी भूस्वामी और इस समूचे पूँजीपति वर्ग की मैनेजिंग कमेटी का काम करने वाली पूँजीवादी सरकार है, जो आज फ़ासीवादी संघ परिवार के हाथों में है। सवाल धर्म का नहीं है, सवाल वर्ग का है। यही सवाल समझने की ज़रूरत है।

पाठ्यक्रमों में बदलाव और इतिहास का विकृतिकरण करना फ़ासीवादी एजेण्डा है!

भारतीय फ़ासीवादियों का इतिहास को बदलने की एक वजह और है। वह है भारतीय राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन में इनकी ग़द्दारी। आज यह कितना भी ख़ुद को सबसे बड़ा देशभक्त होने के तमगे दे लें लेकिन सच्चाई से सब वाकिफ़ हैं कि आज़ादी की लड़ाई में इन्होंने एक ठेला तक नहीं उठाया उल्टे चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रान्तिकारियों की मुखबिरी की। वी डी सावरकर जैसे इनके नेताओं ने माफ़ीनामे लिखकर दिये।

भाजपा देशभर में त्योहारों का इस्तेमाल कर रही है साम्प्रदायिक नफ़रत फैलाने में

रामनवमी समेत तमाम हिन्दू त्योहारों पर संघ परिवार व उसके विभिन्न आनुषंगिक संगठनों की अगुवाई में, प्रशासन की मूक या प्रत्यक्ष सहमति से चलती गाड़ियों या रास्ते में विभिन्न जगह डीजे के ज़रिए बहुत भोंडे और भद्दे मुस्लिम विरोधी गीत बजाये जाते हैं। जानबूझकर मस्जिदों के सामने या मुस्लिम इलाक़ों को टारगेट किया जाता है। मुस्लिमों को उकसाया जाता है कि वो कुछ करें ताकि तोड़-फोड़, आगजनी की स्थिति पैदा की जा सके और पूरे माहौल को साम्प्रदायिक बनाया जा सके। इस बीच जो हिन्दू-पॉप गाने त्योहारों पर रास्ते में या जुलूस में बजाये जा रहे हैं उनमें कुछ गीतों के बोल इस तरह हैं-‘बुलडोज़र में दबकर मर गए जो आस्तीन के साँप रहे हैं, बुलडोज़र बाबा चाँप रहे हैं’, ‘पाकिस्तान में भेजो या क़त्लेआम कर डालो, आस्तीन के साँपों को न दुग्ध पिलाकर पालो’, ‘टोपी वाला भी सर झुकाकर जै श्री राम बोलेगा’, ‘सुन लो मुल्लो पाकिस्तानी, गुस्से में हैं बाबा बर्फानी’, ‘जो छुएगा हिन्दुओं की बस्ती को, मिटा डालेंगे उसकी बस्ती को’ आदि। इस बार रामनवमी के मौक़े पर बंगाल और बिहार के भागलपुर, औरंगाबाद, समस्तीपुर और मुंगेर इलाकों में हुए झड़पों में इस तरह के गानों की एक महती भूमिका रही है। इन मौकों पर इकट्ठी भीड़ का फ़ायदा उठाकर मुस्लिम दुकानों, घरों या मस्जिदों पर जबरिया भगवा झण्डा आदि लगाने से भी उकसाने की कोशिश होती है। जब झड़प होती है तो तुरन्त मीडिया और प्रशासन हिन्दुओं के पक्ष में आ जाता है। मीडिया द्वारा व्यापक आबादी में एकतरफ़ा शोर मचाया जाता है कि हिन्दुओं के जुलूस पर मुस्लिमों ने पत्थर फेंके आदि आदि। उसके बाद फ़र्ज़ी मुक़दमों, बुलडोज़र से घर गिराने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

रसोई गैस के दाम और पेट्रोल-डीज़ल पर कर बढ़ाकर मोदी सरकार का जनता की गाढ़ी कमाई पर डाका!

सरकार लगातार कॉरपोरेट कर और उच्च मध्य वर्ग पर लगने वाले आयकर को घटा रही है और इसकी भरपाई आम जनता की जेबों से कर रही है। भारत में मुख्‍यत: आम मेहनतकश जनता द्वारा दिया जाने वाला अप्रत्‍यक्ष कर, जिसमें जीएसटी, वैट, सरकारी एक्‍साइज़ शुल्‍क, आदि शामिल हैं, सरकारी खज़ाने का क़रीब 60 प्रतिशत बैठता है। यह वह टैक्‍स है जो सभी वस्तुओं और सेवाओं ख़रीदने पर आप देते हैं, जिनके ऊपर ही लिखा रहता है ‘सभी करों समेत’। इसके अलावा, सरकार बड़े मालिकों, धन्‍नासेठों, कम्‍पनियों आदि से प्रत्‍यक्ष कर लेती है, जो कि 1990 के दशक तक आमदनी का 50 प्रतिशत तक हुआ करता था, और जिसे अब घटाकर 30 प्रतिशत तक कर दिया गया है। यह कॉरपोरेट और धन्‍नासेठों पर लगातार प्रत्‍यक्ष करों को घटाया जाना है, जिसके कारण सरकार को घाटा हो रहा है। दूसरी वजह है इन बड़ी-बड़ी कम्‍पनियों को टैक्‍स से छूट, फ़्री बिजली, फ़्री पानी, कौड़ियों के दाम ज़मीन दिया जाना, घाटा होने पर सरकारी ख़र्चों से इन्‍हें बचाया जाना और सरकारी बैंकों में जनता के जमा धन से इन्‍हें बेहद कम ब्याज दरों पर ऋण दिया जाना, उन ऋणों को भी माफ़ कर दिया जाना या बट्टेखाते में, यानी एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) बोलकर इन धन्‍नासेठों को फोकट में सौंप दिया जाना। अब अमीरों को दी जाने वाली इन फोकट सौगातों से सरकारी ख़ज़ाने को जो नुक़सान होता है, उसकी भरपाई आपके और हमारे ऊपर टैक्‍सों का बोझ लादकर मोदी सरकार कर रही है।