Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

शाखा में साख

बहुत दिन हुए, मोहल्ले में विधर्मियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। गहन मुद्रा में बैठे पाण्डेय जी सोच रहे थे। अन्य शाखा प्रान्त के लोग उनका कभी-कभी मज़ाक भी उड़ाने लगे थे। वे कहते “पाण्डेय जी आपके इलाक़े में तो इन मुल्लों की संख्या बढ़ती जा रही है। लगता है आपको पण्डिताईनी से फ़ुरसत नहीं मिल रही।” यही ख़्याल उन्हें बार-बार कुरेद रहा था। रविवार के दिन काम-धन्धें से फ़ारिग़ होकर कुर्सी पर बैठे वह इसी चिन्तन में मगन थे। पाण्डेय जी अब 50 के होने को आये हैं, बड़े से अपार्टमेण्ट में रह रहे हैं। बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत हैं। इनका एक बच्चा अभी विदेश में सेटल हो चुका है, दूसरा बैंगलोर की एक बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है। बचपन में ही पाण्डेय जी शाखा से जुड़ गये थे। आज वह शाखा के उत्तर-पश्चिमी ज़िला के संघचालक हैं। जवानी में उन्होंने बाबरी मस्ज़िद के आन्दोलन में भी भाग लिया था।

अपराध को साम्प्रदायिक रंग देने की संघियों की कोशिश को जनता की एकजुटता ने फिर किया नाक़ाम!

पूरे इलाक़े में नशाखोरी बड़े पैमाने पर फैली हुई है। अक्सर नुक्कड़ चौराहों तक पर लम्पट तत्व छेड़खानी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। बहुत से लम्पट तो भाजपा-आम आदमी पार्टी तथा अन्य चुनावबाज़ पार्टियों से ही जुड़े होते हैं। इन पार्टियों के तमाम नेता इन गुण्डों को शह देते हैं, ताकि चुनाव के समय इनका इस्तेमाल कर सकें। इलाक़े में इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी कई बार बच्चियों व स्त्रियों से बलात्कार के मामले सामने आ चुके हैं। एक वर्ष पहले साक्षी हत्याकाण्ड एवं कुछ साल पहले पाँच वर्ष की बच्ची मुस्कान के साथ भी बलात्कार और हत्या की घटना सामने आयी थी।

फ़ासिस्ट मोदी-शाह सरकार के तीसरे कार्यकाल में भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) के बढ़ते मामलों का क्या मतलब है

2014 में सत्ता में क़ाबिज़ होने के बाद से मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों के परिणामस्वरूप बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी एवं सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा बढ़ी है। इन समस्याओं से त्रस्त जनता के गुस्से को फ़ासिस्ट गिरोह द्वारा किसी काल्पनिक शत्रु के मत्थे मढ़ देने का काम कुशलतापूर्वक किया जा रहा है। इस काल्पनिक शत्रु के दायरे में धार्मिक अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान आते हैं और बाद में इस काल्पनिक दुश्मन की छवि में दलित, आदिवासी, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता व कम्युनिस्ट सभी को समेट लिया जाता है। 2014 के बाद से ही इस काल्पनिक शत्रु के श्रेणी से आने वाले लोगों को अलग-अलग तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और इनके ख़िलाफ़ मॉब लिंचिंग की असंख्य वारदातों को अंजाम दिया गया है। पहले से ही कमज़ोर और अब फ़ासीवाद द्वारा पंगु बना दिये गये भारतीय बुर्जुआ जनवाद और उसकी संवैधानिक संस्थाओं और गोदी मीडिया के भोंपू तन्त्र के भरपूर सहयोग के बावजूद जनता के एक हिस्से में फ़ासिस्ट गिरोह की कलई उजागर हो रही है। धाँधली और तीन-तिकड़म के बाद भी गठबन्धन की बैसाखी से तीसरी बार सत्ता में पहुँचने बाद फ़ासिस्ट गुण्डा गिरोह बुरी तरह बौखलाया हुआ है। मॉब लिंचिंग सरीखे नफ़रती खेल के ज़रिये विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल करने के जुगत में है। मज़दूर व आम मेहनतकश लोग ही ज़्यादातर मामलों में इस खेल का शिकार हो रहे हैं, हमें इस खेल की असलियत का भण्डाफोड़ करना होगा। हिटलर और मुसोलिनी के इन वंशजों के ख़िलाफ़ संघर्ष करना ही होगा! वरना काठ की हाँडी बार-बार चढ़ती रहेगी।

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के सौ दिन : गठबन्धन की तनी रस्सी पर फ़ासीवाद के नटनृत्य और जनता की जारी तबाही और बदहाली के सौ दिन

आर्थिक और राजनीतिक, दोनों ही पैमानों पर, मोदी सरकार के 100 दिन जनता के लिए ‘फ़ासीवादी दण्ड’ के जारी रहने के 100 दिन ही साबित हुए हैं, चाहे उसके प्रतीतिगत रूपों में कुछ बदलाव क्यों न आये हों। यह ‘दण्ड’ जनता को तभी मिलता है, जब उसकी जनगोलबन्दी, उसके जन संगठन और उसका क्रान्तिकारी हिरावल तैयार नहीं हो पाता है और नतीजतन आर्थिक व राजनीतिक संकट क्रान्तिकारी मोड़ लेने के बजाय एक प्रतिक्रियावादी मोड़ लेता है। इससे देश के मेहनतकशों व मज़दूरों के लिए सबक वही है: एक देशव्यापी क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी के निर्माण और गठन के कार्य को अधिकतम सम्भव तेज़ी से आगे बढ़ाना और जनता के विभिन्न हिस्सों और वर्गों के जुझारू क्रान्तिकारी जनान्दोलनों को जनता के ठोस मुद्दों ठोस नारों व ठोस कार्यक्रम के साथ खड़ा करना। ये ही आज के प्रमुख राजनीतिक कार्यभार हैं।

मोदी-शाह सरकार की नयी अपराध संहिताओं का फ़ासीवादी जनविरोधी चरित्र

नये अपराधिक क़ानून दमन के हथियारों को अपडेट करने और अधिक दमनात्मक बनाने का ही काम करते हैं। अपने भक्तों और जनता के बेवकूफ़ बनाने के लिए फ़ासीवादी सत्ता को अपने को भारतीय, आधुनिक, जनपक्षधर, न्यायप्रिय दिखाने का प्रपंच करना पड़ता है। लेकिन असलियत छिपाना मुश्किल है। पुराना भारतीय दण्ड क़ानून हो या भारतीय न्याय क़ानून, ये सभी क़ानून जनता के दमन के ही निकाय हैं। लेकिन मोदी सरकार के नये क़ानूनों को पहले से अधिक दमनकारी और फ़ासीवादी बनाया गया है। तीन नये आपराधिक क़ानूनों के ज़रिये आने वाले बर्बर समय की आहट महसूस की जा सकती है, जिसकी ज़द में तमाम इन्साफ़पसन्द नागरिक, जनपक्षधर बुद्धिजीवी, पत्रकार, क्रान्तिकारी राजनीतिक कार्यकर्ता से लेकर आम मेहनतकश आबादी आयेगी।

काँवड़ यात्रियों के बहाने दुकानों पर नाम लिखने का योगी सरकार का हिटलरी फ़रमान

मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में काँवड़ यात्रा के मार्ग पर पड़ने वाले सभी मुसलमान मालिकों के होटल बन्द करा दिये गये थे। इनमें वे शाकाहारी होटल भी शामिल थे जहाँ खाने में प्याज-लहसुन भी नहीं डाला जाता था। इस बेहूदा आदेश के पीछे मुस्लिम दुकानदारों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे स्वामी यशवीर नाम के एक ढोंगी बाबा का हाथ है। इस घोर साम्प्रदायिक व्यक्ति ने आरोप लगया है कि “मुसलमान लोग खाने में थूक रहे हैं और मूत्र भी कर रहे हैं।” ऐसे अपराधी की जगह सीधे जेल में होनी चाहिए थी, लेकिन फ़ासिस्ट भाजपा उसे सर-आँखों पर बैठाकर उसके वाहियात आरोपों के आधार पर लोगों का कारोबार बन्द करा रही है। इसके ज़रिये काँवड़ के नाम पर रास्ते में गुण्डागर्दी करने व साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करने वालो के लिए राह आसान बना रही है कि वे मुस्लिम नामों की पहचान करके उन दुकानों को निशाना बनायें। संघ परिवार व उसके अनुषंगी संगठनों द्वारा वैसे भी मुस्लिम दुकानदारों से हिन्दुओं द्वारा सामान न खरीदने का अभियान लम्बे समय से चलाया जाता रहा है।

मोदी-शाह की राजग गठबन्धन सरकार का पहला बजट – मेहनतकश-मज़दूरों के हितों पर हमले और पूँजीपतियों के हितों की हिमायत का दस्तावेज़

मौजूदा बजट का मक़सद साफ़ है : संकट के दौर में पूँजीपतियों को अधिक से अधिक सहूलियतें, राहतें और रियायतें देना, निजीकरण की आँधी को बदस्तूर जारी रखना, मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश अवाम की औसत मज़दूरी व औसत आय को नीचे गिराकर उन्हें पूँजीपतियों के समक्ष अधिकतम सम्भव ज़रूरतमन्द और ग़रज़मन्द बनाना, पूँजीपतियों को करों से अधिक से अधिक मुक्त करना, सरकारी ख़ज़ाने में इससे होने वाली कमी को पूरा करने के लिए करों के बोझ को आम मेहनतकश जनता व मध्यवर्ग के ऊपर अधिक से अधिक बढ़ाना, जनता की साझा सम्पत्ति व सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक से अधिक पूँजीवादी लूट के लिए खोलना, रोज़गार सृजन के नाम पर ऐसी योजनाओं को लागू करना जो पूँजीपतियों के लिए बेहद सस्ते श्रम के अतिदोहन को सरल और सहज बनाये।

केन्द्रीय  बजट : जनता की जेब काटकर पूँजीपतियों की तिजोरी भरने का काम बदस्तूर जारी

2014 में कुल कर राजस्व में कॉरपोरेट करों का हिस्सा 34.5 प्रतिशत था जो 2024 में घटकर 26.6 प्रतिशत रह गया है। अब विदेशी कम्पनियों को दी गयी राहत के बाद कॉरपोरेट करों का हिस्सा और भी कम होगा। कम्पनियों पर लगने वाले करों में कटौती का तर्क यह दिया जाता है कि इससे निवेश बढ़ेगा और रोज़गार के नये अवसर पैदा होंगे। परन्तु पिछले 10 सालों के मोदी सरकार के कार्यकाल में कई लाख करोड़ रुपयों की राहत देने के बाद भी रोज़गार की स्थिति बद से बदतर ही हुई है। कम्पनियों को करों में छूट देने का साफ़ मतलब है कि सरकार अपनी आमदनी के लिए जनता पर करों का बोझ बढ़ाती जाएगी। वैसे भी सरकार के कुल राजस्व में जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा बढ़ता जा रहा है जो आम जनता पर भारी पड़ता है क्योंकि वह सभी पर एकसमान दर से लगता है और लोगों की आय से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर पेपर लीक और भर्तियों में धाँधली के खिलाफ़ छात्रों-युवाओं का जुझारू प्रदर्शन!

इस देश के हुक्मरानों का अपनी न्यायपूर्ण माँगों के लिए शान्तिपूर्ण विरोध कर रहे आम छात्रों-युवाओं के प्रति रवैया फिर से साफ़ हो गया। ख़ासतौर पर भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान देश में बेरोज़गारी, परीक्षाओं में पेपर लीक और भर्तियों में भ्रष्टाचार पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ चुका है। प्रधानमन्त्री मोदी जी ने कभी इस बात पर गर्व किया था कि हमारा देश युवा आबादी का सबसे बड़ा देश है। लेकिन युवा आबादी के इस सबसे बड़े देश के युवाओं का भविष्य अँधेरे की गर्त में है। पिछले सात सालों के दौरान 80 से ज़्यादा परीक्षाओं के पेपर लीक हो चुके हैं। भर्तियों में होने वाला भ्रष्टाचार हम सबके सामने है। आरओ-एआरओ, यूपी पुलिस भर्ती परीक्षा, बीपीएससी से लेकर हाल में नीट और यूजीसी नेट जैसी परीक्षाओं की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है। इस पर भी मौजूदा शिक्षा मन्त्री धर्मेन्द्र प्रधान संसद में यह बयान देने की बेशर्मी कर रहे हैं कि भाजपा के कार्यकाल में एक भी पर्चा लीक नहीं हुआ है। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाएँ भी आयोजित करने वाली एनटीए जैसी संस्था को बिना किसी सुव्यवस्थित ढाँचे के चलाया जा रहा है जिसका नतीजा यह है कि एनटीए द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ सामने आ रही हैं। एनटीए द्वारा आयोजित की जाने वाली सभी परीक्षाएँ प्राइवेट एजेंसियों के माध्यम से करायी जा रही हैं।

लोकसभा चुनाव-2024 के नतीजों में हुई थी हेरा-फेरी- एडीआर और वोट फ़ॉर डेमोक्रेसी की रिपोर्ट

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट की 538 सीटों में पड़े कुल वोटों और गिने गए वोटों की संख्या में लगभग छह लाख वोटों का अन्तर था। रिपोर्ट के मुताबिक, अमरेली, अहिंगल, लक्षद्वीप, दादरा नगर हवेली एवं दमन दीव को छोड़कर 538 सीटों पर डाले गए कुल वोटों और गिने गए वोटो की संख्या अलग-अलग है। सूरत सीट पर मतदान नहीं हुआ था। एडीआर के संस्थापक जगदीप छोकर के मुताबिक़ चुनाव में वोटिंग प्रतिशत देर से जारी करने और निर्वाचन क्षेत्रवार तथा मतदान केन्द्रवार आँकड़े उप्लब्ध न होने को लेकर सवाल है।