Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न और मण्डल कमीशन की राजनीति

भारतीय बुर्जुआ राजनीति में दो शब्दों, मण्डल और कमण्डल को अक्सर एक दूसरे के विलोम के तौर पर प्रदर्शित किया जाता है। लेकिन वास्तव में दोनों ही राजनीतिक धाराओं का यह अन्तर केवल सतही है, और वस्तुत: ये एक दूसरे के पूरक का काम करती हैं। पिछले 40 वर्षों के राजनीतिक इतिहास ने तो यही दर्शाया है कि दोनों ही धाराएँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज भारत में कमण्डल की राजनीति के जरिये फ़ासीवाद की विषबेल भी मण्डल की राजनीति के कारण बनी ज़मीन पर ही पनपी है। कभी मण्डल की राजनीति के जरिये कमण्डल का जवाब देने की बात करने वाले नीतीश कुमार व शरद यादव भी सत्ता का सुख पाने के लिए भाजपा के साथ गलबहियाँ करने से नहीं हिचके। और यह अनायास नहीं था, बल्कि वर्गीय राजनीति में इसकी वजहें निहित थीं।

राम मन्दिर के बाद काशी के ज़रिये साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश में लगे संघ-भाजपा – इस उन्माद में मत बहिए! आइए अपने सही इतिहास को जानें!

मोदी सरकार के पास अब यही मुद्दे बचे हैं, जिसके ज़रिये वह 2024 का चुनाव जीत सकती है। पहले राम मन्दिर के नाम पर दंगे हुए, अब ज्ञानवापी के नाम पर उन्माद फैलाने की कोशिश जारी है और हो सकता है चुनाव तक काशी-मथुरा तक भी यह आग पहुँच जाये। भाजपा व संघ परिवार आपकी धार्मिक भावनाओं का शोषण कर आप को ही मूर्ख बना रही है। मोदी सरकार धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है। यह आपको तय करना है कि आपको क्या चाहिए। क्या आपको शिक्षा-चिकित्सा-रोज़गार-आवास के अपने बुनियादी हक़ चाहिए, एक बेहतर जीवन चाहिए या फिर आपको मन्दिर-मस्ज़िद के झगड़ों में ही उलझे रहना है।

हिटलर की तर्ज़ पर अरबों रुपये बहाकर मोदी की महाछवि का निर्माण

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि फासीवादियों के व्यवहार में अत्यन्त नाटकीयता होती है। उन्हें नाटकीयता से विशेष लगाव होता है। वे खुद को ‘रेजी’ (निर्देशन, मंच प्रबन्धन) बोलते हैं, और उन्होंने सीधे तौर पर नाटक की प्रभावी विधा की एक पूरी श्रृँखला अपनाई है  जैसे कि रोशनी और संगीत, कोरस और अप्रत्याशित मोड़। एक अभिनेता ने मुझे कई साल पहले बताया था कि हिटलर ने म्यूनिख के कोर्ट थिएटर में एक्टर फ्रिट्ज़ बेसिल से न केवल वक्तृत्व कला की, बल्कि ‘कम्पोर्टमेण्ट’ की भी शिक्षा ली थी। मसलन उसने सीखा कि मंच पर कैसे एक नायक की तरह चलते हैं, जिसके लिए आपको अपने घुटने सीधे रखते हुए पूरे पाँव को ज़मीन पर रखना होता है ताकि आप महान दिखें। और उसने अपनी बाहों को क्रॉस करने का सबसे प्रभावशाली तरीका सीखा और ये भी सीखा कि कैसे सहज दिखना होता है।

बिगुल पॉडकास्ट – 3 – भाजपा और संघ परिवार के गाय-प्रेम और गोरक्षा के बारे में सोचने के लिए कुछ सवाल

तीसरे पॉडकास्ट में हम मज़दूर बिगुल के अप्रैल 2023 अंक में प्रकाशित गायत्री भारद्वाज के एक बेहद जरूरी लेख को पेश कर रहे हैं। शीर्षक है – “भाजपा और संघ परिवार के गाय-प्रेम और गोरक्षा के बारे में सोचने के लिए कुछ सवाल”

बिगुल पॉडकास्ट – 2 – अब ज्ञानवापी पर ध्रुवीकरण तेज़ करने की तैयारी – जन असन्तोष कम करने में राम मन्दिर भी नाकाम 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर जारी की गयी सर्वेक्षण रिपोर्ट पर भारत की क्रांतिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) का बयान

नयी आपराधिक प्रक्रिया संहिताएँ, जनता के दमन के नये औज़ार

फ़ासिस्टों के “न्याय” में अंग्रेज़ों के काले क़ानूनों से ज़्यादा अँधियारा है। ग़ौरतलब है कि मानसून सत्र में पेश किया गये पहले मसौदे में आतंकवाद के अपराध की परिभाषा, इन नयी “न्याय” संहिताओं के लाने के असल औचित्य को नंगे रूप से रेखांकित करती थी, हालाँकि बाद में उसे संशोधित कर एक पुरानी परिभाषा को ही अंगीकार कर पेश किया गया, जोकि इन नये संहिताओं के मर्म को बखूबी पेश करता है। आने वाले समय में व्यवहार में इन संहिताओं को किस तरह से लागू किया जायेगा, इसका अन्दाज़ा लगाना कोई अन्तरिक्ष विज्ञान का मसला नहीं है।

मोदी सरकार के दस साल और राज्यसत्ता का फ़ासीवादीकरण

पुलिस, सेना से लेकर सीबीआई, ईडी, रॉ जैसी संस्थाएँ आज नंगे तौर पर फ़ासीवादियों के हाथों की कठपुतली बनी हुई हैं। बीते साल प्रमुख अमेरिकी अख़बार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ की एक रिपोर्ट ने यह खुलासा किया कि रॉ के एक उच्च अधिकारी कर्नल दिव्य सतपथी डिसिनफो लैब नामक एक फ़र्ज़ी रिसर्च कम्पनी बनाकर विदेश में रह रहे मोदी सरकार के विरोधियों को अपना निशाना बना रहे थे। रॉ द्वारा संचालित इस कंपनी का कार्यभार था मोदी-शाह हुकूमत के आलोचकों को और ऐसे समूहों को भारत के ख़िलाफ़ एक वैश्विक साज़िश के रूप मे पेश करना और उन्हें फ़र्ज़ी मुक़दमों में जेल भेजने का अधार बनाना।

बिगुल पॉडकास्ट – 1 – राम मन्दिर के ज़रिये साम्प्रदायिक लहर पर सवार हो फिर सत्ता पाने की फ़िराक़ में मोदी सरकार

बिगुल पॉडकास्ट – 1 – इस पॉडकास्ट की शुरुआत हम बिगुल के जनवरी 2024 अंक के संपादकीय “महँगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टचार पर काबू पाने में नाकाम मोदी सरकार राम मन्दिर के ज़रिये साम्प्रदायिक लहर पर हो फ़िर सत्ता पाने की फ़िराक़ में” लेख के साथ कर रहे हैं।

राम मन्दिर के ज़रिये साम्प्रदायिक लहर पर सवार हो फिर सत्ता पाने की फ़िराक़ में मोदी सरकार

यह कोई धार्मिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक कार्यक्रम है। महँगाई को क़ाबू करने, बेरोज़गारी पर लगाम कसने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने, मज़दूरों-मेहनतकशों को रोज़गार-सुरक्षा, बेहतर काम और जीवन के हालात, बेहतर मज़दूरी, व अन्य श्रम अधिकार मुहैया कराने में बुरी तरह से नाकाम मोदी सरकार वही रणनीति अपना रही है, जो जनता की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर उसे बेवकूफ़ बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी और उसका आका संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा से अपनाते रहे हैं। चूँकि मोदी सरकार के पास पिछले 10 वर्षों में जनता के सामने पेश करने को कुछ भी नहीं है, इसलिए वह रामभरोसे सत्ता में पहुँचने का जुगाड़ करने में लगी हुई है। इसके लिए मोदी-शाह की जोड़ी के पास तीन प्रमुख हथियार हैं : पहला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का देशव्यापी सांगठनिक काडर ढाँचा; दूसरा, भारत के पूँजीपति वर्ग की तरफ़ से अकूत धन-दौलत का समर्थन; और तीसरा, कोठे के दलालों जितनी नैतिकता से भी वंचित हो चुका भारत का गोदी मीडिया, जो खुलेआम साम्प्रदायिक दंगाई का काम कर रहा है और भाजपा व संघ परिवार की गोद में बैठा हुआ है।

कश्मीर के भारतीय औपनिवेशिक क़ब्ज़े पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर

आरएसएस ने पिछले सौ वर्षों में तमाम संस्थानों में अपनी पैठ जमायी है जिसमें न्यायपालिका प्रमुख है। इसने न्यायाधीशों से लेकर तमाम पदों पर अपने लोगों की भर्ती की है जिसके नतीजे के तौर पर आज हमें न्यायपालिका का साम्प्रदायिक चेहरा नज़र आ रहा है। आज संघ ने न्यायपालिका को भी संघ के प्रचार और फ़ासीवादी एजेण्डे को लागू करने का एक औजार बना दिया है। फ़ासीवाद की यह एक चारित्रिक अभिलाक्षणिकता होती है कि वह तमाम सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में अपनी पैठ जमाता है और इनके तहत अपने फ़ासीवादी एजेण्डे को पूरा करता है।