कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न और मण्डल कमीशन की राजनीति
भारतीय बुर्जुआ राजनीति में दो शब्दों, मण्डल और कमण्डल को अक्सर एक दूसरे के विलोम के तौर पर प्रदर्शित किया जाता है। लेकिन वास्तव में दोनों ही राजनीतिक धाराओं का यह अन्तर केवल सतही है, और वस्तुत: ये एक दूसरे के पूरक का काम करती हैं। पिछले 40 वर्षों के राजनीतिक इतिहास ने तो यही दर्शाया है कि दोनों ही धाराएँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज भारत में कमण्डल की राजनीति के जरिये फ़ासीवाद की विषबेल भी मण्डल की राजनीति के कारण बनी ज़मीन पर ही पनपी है। कभी मण्डल की राजनीति के जरिये कमण्डल का जवाब देने की बात करने वाले नीतीश कुमार व शरद यादव भी सत्ता का सुख पाने के लिए भाजपा के साथ गलबहियाँ करने से नहीं हिचके। और यह अनायास नहीं था, बल्कि वर्गीय राजनीति में इसकी वजहें निहित थीं।