महिला आरक्षण बिल पर सर्वहारावर्गीय नज़रिया क्या हो?
एक वर्ग-विभाजित समाज में अलग-अलग वर्गों से आने वाली स्त्रियों के हित कभी एक नहीं हो सकते। हम देख चुके हैं कि स्त्रियों के साथ होने वाले भयंकर अपराधों तक के मामले में शासक वर्ग से आने वाली स्त्रियों और उनकी चाटुकारी करने वाले स्त्रियों के तबके ने अपना मुँह कभी खोला हो! सिर्फ़ औरत होना ही अपने आप में प्रगतिशील होना नहीं है जो कई अस्मितावादियों को लगता है। पूँजीवादी पितृसत्तात्मक समाज में शासक वर्ग से आने वाली औरतें अपने ही वर्ग हितों की रक्षा करती हैं और उन्हीं पितृसत्तात्मक मूल्य-मान्यताओं को स्थापित करने का काम करती हैं जो स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाती हैं।