“बुलडोज़र” बन रहा है फ़ासिस्ट हुक्मरानों की दहशत की राजनीति का नया प्रतीक-चिह्न!
फ़ासीवादी सरकारें “क़ानून के राज” को क़ायम करने के लिए आम मुसलमानों के घरों पर ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बुलडोज़र चला रही हैं और पूँजीवादी विपक्षी दलों से लेकर उच्चतम न्यायलय समेत सभी अदालतें तक इस आतंक और दहशत के ताण्डव को मूक दर्शक बने देख रहे हैं। ऐसे हज़ार मामलों में से किसी एक मामले में यदि अदालतें हस्तक्षेप करती भी हैं तो संशोधनवादियों, सामाजिक-जनवादियों समेत पूरा वाम-उदार तबक़ा लहालोट हो उठता है मानो क्या ग़ज़ब का काम किया हो! जिन 999 मामलों में अदालतों की ज़ुबान पर ताले लटके रहते हैं उनको विस्मृति के अँधेरे में धकेल दिया जाता है और उनपर कोई बात भी नहीं होती है। यह भी सोचने वाली बात है कि बुलडोज़र द्वारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से मुसल्मानों के घरों को गिराये जाने के एक भी मसले में सर्वोच्च न्यायलय या उच्च न्यायालयों ने स्वतः संज्ञान नहीं लिया। इसके लिए भी पूर्व न्यायाधीशों को सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश से अदालती हस्तक्षेप की गुहार लगानी पड़ी थी। क्या यह मौजूदा न्याय व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं बताता?