क्या ईवीएम सचमुच अभेद्य है?

अनन्त

देश में 18वें लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। देशभर में आम चुनाव 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक चलेंगे। तत्पश्चात 4 जून को चुनाव परिणाम की घोषणा की जायेगी। यह चुनाव भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम तथा वोटर वेरीफाईएबल वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रायल यानी वीवीपैट की सहायता से करवाया जायेगा। किन्तु ग़ौरतलब है कि ईवीएम तथा वीवीपैट के इस्तेमाल पर विपक्षी दलों से लेकर बुद्धिजीवियों, अन्य प्रगतिशील संगठनों, तथा जनता के एक हिस्से में कई सवाल है जिन्हें चुनाव आयोग से लेकर उच्चतम न्यायालय तक में बार-बार उठाने के बावजूद इस पर केन्द्रीय चुनाव आयोग तथा उच्चतम न्यायालय दोनों ही कोई तर्कसंगत जवाब नहीं दे पा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में पिछले लम्बे समय से ढेरों याचिकाएँ इस बाबत दायर की गयी हैं, उन पर जाँच करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दायर ऐसी एक याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि अब वह इस प्रकार की कोई भी याचिका नहीं सुन सकता! क्योंकि ऐसी ढेरों याचिकाएँ दायर होती हैं!! और इसके साथ ही उपदेशात्मक दलील पेश की कि हर चुनाव पद्धति में कुछ सकारात्मक या नकारात्मक होता ही है! चुनाव जैसे एक बेहद ही गम्भीर मसले पर, जिसमें भागीदारी करने वाले उम्मीदवार से लेकर मतदाता तक में, अधिकांश लोगों का उस प्रक्रिया पर सवाल हो, तब ऐसी स्थिति में इस प्रकार का तर्क स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव को आश्वस्त नहीं कर सकता है। यह पूरा तर्क भी कुतर्क ज़्यादा है, और तर्क कम। और मज़ाकिया होने की हद तक कुतर्क है।

ज़ाहिरा तौर पर ईवीएम पर उठ रहे सवाल विपक्षी दलों का कोई चुनावी हथकण्डा मात्र नहीं है, बल्कि इसकी ठोस ज़मीन है। अलग-अलग समय पर विशेषज्ञों से लेकर आम राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार ये सवाल उठाये जाते रहे हैंl ईवीएम सवालों के घेरे में अपने शुरुआती दौर से ही है। देश में ईवीएम का पहले प्रयोग का इतिहास भी दिलचस्प है। सबसे पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल केरल के परवूर में किया गया था, जहाँ सीपीआई के सिवान पिल्लई ने काँग्रेस के ए.सी. जोस को 123 मतों से हरा दिया था। इस परिणाम को काँग्रेस उम्मीदवार ने केरल उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 तथा निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 चुनाव आयोग को ईवीएम के प्रयोग का अधिकार नहीं देता है। उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए कि, चुनाव आयोग चुनाव कराने की “एक नयी विधि का आविष्कार” नहीं कर सकता, पारम्परिक तरीक़े से मतपत्रों का उपयोग करके पुनर्मतदान का आदेश दिया। मतपत्रों से हुए मतदान के फलस्वरूप चुनाव परिणाम बदल गए। बहरहाल, दिसम्बर 1988 में, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में तबदीली कर चुनाव आयोग को ईवीएम  इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया।
1989 में नौवें आम चुनाव के समय राजीव गाँधी सरकार 150 सीटों पर ईवीएम का प्रयोग करना चाहती थी। किन्तु, विपक्षी नेताओं के दबाव में, जिन्होंने यह दिखाया कि ईवीएम दोषपूर्ण परिणाम दे सकता है, ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किया गया। 1998 तथा 2001 के बीच कुछ-कुछ जगहों पर इसका प्रयोग किया गया और फिर 2004 के आम चुनाव में हर जगह इसका इस्तेमाल किया गया। उसके बाद सवालों के घेरों में होने के बावजूद इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

ग़ौरतलब है कि जिस समय भारत में ईवीएम के प्रयोग को स्थापित किया जा रहा था, अन्य देश जहाँ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग होती थी, जिनमें इंग्लैण्ड, फ्रांस, नीदरलैण्ड और अमेरिका आदि शामिल थे, ने उसके उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मार्च 2009 में जर्मनी के सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया कि ईवीएम के माध्यम से मतदान असंवैधानिक है। 2009 के चुनाव परिणाम के बाद स्वयं भाजपा ने भी पुरज़ोर तरीक़े से ईवीएम प्रणाली पर सवाल उठाया था। 

ईवीएम पर उठ रहे सवालों को केन्द्रीय चुनाव आयोग मुख्य रूप से दो तर्कों के आधार पर निराधार बताता है, और ईवीएम को अचूक घोषित करता है। पहला, उसे किसी भी प्रकार से इण्टरनेट से नहीं जोड़ा जा सकता या किसी भी प्रकार से उसे दूर से हैक नहीं किया जा सकता। दूसरा तर्क कि ईवीएम के अन्दर लगने वाली जो मेमोरी है वह मेमोरी ओटीपी यानी वन टाइम प्रोग्रामेबल मेमोरी है, और इसे छेड़ा या बदला नहीं जा सकता। पहली बात पर ज़्यादातर विशेषज्ञों का भी यह मानना है ईवीएम को दूर से हैक करना या इण्टरनेट की मदद से उसमें छेड़खानी करना अभी सम्भव नहीं है। यह सच है। लेकिन दूसरे तर्क पर कई प्रकार के विचारणीय और सुसंगत सवाल हैं।
2019 में कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के वेंकटेश नायक द्वारा पूछे गए आरटीआई के सवाल से इस तर्क का विरोधाभास उजागर होता है। उन्होंने पाया कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा बने ईवीएम और वीवीपीएटी में प्रयोग होने वाले माइक्रोकंट्रोलर्स का निर्माण अमेरिका आधारित कम्पनी एनएक्सपी  द्वारा किया जाता है। जिस माइक्रोकंट्रोलर का विवरण ओटीपी के तौर पर दिया जा रहा है वह एनएक्सपी की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण से मेल नहीं खाता है। एनएक्सपी की वेबसाइट पर जो माइक्रोकंट्रोलर की विशेषताएँ हैं,  उसके मुताबिक उसमें तीन प्रकार की मेमोरी का इस्तेमाल होता है SRAM, FLASH, EEPROM. एक कम्प्यूटर चिप जिसमें FLASH मेमोरी शामिल है वह ओटीपी यानी वन टाइम प्रोग्रामेबल नहीं हो सकती है। तो चुनाव आयोग का यह दावा की मेमोरी से छेड़छाड़ करने की तकनीकी गुंजाइश है ही नहीं, हवा हो जाता है। यही नहीं, ईवीएम में होने वाले सोर्स कोड के बारे में स्वयं चुनाव आयोग की तकनीकी मूल्यांकन समिति (टीईसी) का मत ग़ौरतलब है। टीईसी ने 1990 और 2006 की अपनी रिपोर्टों में कहा था कि भारतीय ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है, क्योंकि एक बार सॉफ़्टवेयर माइक्रोचिप में डालने के बाद यह गुप्त रहता है और यहाँ तक ​​कि निर्माण कम्पनी भी इसे नहीं पढ़ सकती है। लेकिन चुनाव आयोग की बुकलेट और 2013 की टीईसी रिपोर्ट संयुक्त रूप से बताती है कि अब यह स्थिति बदल गयी है। 2013 में  टीईसी ने अपनी रिपोर्ट के उपशीर्षकईवीएम कोड की पारदर्शिताके तहत माना है कि ईवीएम इकाइयों के कोड को एक अनुमोदित बाहरी इकाई द्वारा पढ़ा या जाना जा सकता है। संक्षेप में कहें तो इसके कोड को एक्सेस किया जा सकता है।
विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि चुनाव आयोग की जानकारी के बिना बड़ी संख्या में छेड़छाड़ की गयी या नकली ईवीएम को असली ईवीएम से बदलना तीन चरणों में सम्भव है। पहला, ईवीएम निर्माण करने वाली कम्पनियों भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड (ईसीआईएल) में ईवीएमनिर्माण चरण में; दूसरा, गैरचुनाव अवधि के दौरान जिला स्तर पर जब ईवीएम को अपर्याप्त सुरक्षा प्रणालियों के साथ कई स्थानों पर पुराने गोदामों में संग्रहीत किया जाता है; और तीसरा, चुनाव से पहले प्रथमस्तरीय जाँच के चरण में जब ईवीएम की सेवा बीईएल और ईसीआईएल के अधिकृत तकनीशियनों द्वारा की जाती है।

अब जरा गौर कीजिए कि ईवीएम निर्माण में कौन लोग जुड़े हैं? भारत में प्रयोग होने वाले ईवीएम का निर्माण दो कम्पनियाँ करती हैं, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड (ईसीआईएल)। उनमें से एक कम्पनीभारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेडके बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में स्वतन्त्र निदेशक के रूप में भाजपा के चार पदाधिकारी और नामांकित व्यक्ति हैं! मजेदार यह है कि जब चुनाव आयोग से इस तथ्य के बाबत पूछा गया तो उसने चुप्पी साध ली। क्या ऐसे में यह कयास लगाना निराधार है की ईवीएम निर्माण के समय ही उसमें धाँधली करने की गुंजाइश है? और ऐसी समेकित धाँधली जो बूथ लूटने तथा कैप्चर करने की तुलना में अधिक परिष्कृत है। यही नहीं चुनाव आयोग ने इस बात का भी कोई माकूल जवाब नहीं दिया कि फैक्ट्री से चुनाव आयोग पहुँचने के बीच करीब 19 लाख मशीनें कहाँ गायब थीं! चुनाव आयोग को जो 17.5 लाख  वीवीपैट मशीन भेजी गयीं उनमें से क़रीब 4 लाख मशीनें ख़राब पायी गयीं।  इन सब तथ्यों की रोशनी में यह बात ज़ाहिर है कि ईवीएम प्रणाली बेहद वाजिब सवालों के घेरे में है।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट तक इस मसले पर तत्काल क़दम उठाकर, जनता के शक़ को दूर करते हुए ईवीएम से चुनावों को रद्द कर चुनाव आयोग को मतपत्र से मतदान करवाने का आदेश देने के बजाय याचिका डालने वालों को ही डपट रहा है और चुनाव आयोग की हर बात को यूँ मान ले रहा है कि वह झूठ बोल ही नहीं सकता। साथ में, विलम्ब कर-करके वीवीपैट पर्चियों से मिलान की बात पर चुनाव आयोग से जवाब माँगा जा रहा है। इस विलम्ब का नतीजा यह होगा कि 2024 के चुनाव इसी सन्देहास्पद प्रणाली से हो जायेंगे और फिर इन सारी सुनवाइयों का और चुनाव आयोग को विलम्ब कर-करके जवाबतलब किये जाने का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। ऐसे में, जनता को व्यापक पैमाने पर सड़कों पर उतरकर इस प्रणाली से चुनाव करवाये जाने का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए। अन्य पूँजीवादी पार्टियाँ इस मसले पर सड़क पर उतरने और जनता को सड़कों पर उतारने का साहस खो चुकी हैं। ऐसे में, जनता को स्वयं अपने जुझारू जनान्दोलन के ज़रिये ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए व्यवस्था को बाध्य करना होगा।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2024


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments