मुनाफ़े की भेंट चढ़ता हसदेव जंगल : मेहनत और कुदरत दोनों को लूट रहा पूँजीवाद
हसदेव के इलाके में कोयला निकालने के लिए ज़्यादा गहरा नहीं खोदना पड़ता है, इससे अडानी को खुदाई में होने वाले खर्च में काफ़ी बचत होगी और मोटा मुनाफ़ा होगा। अब सहज ही समझा जा सकता है कि यह उत्खनन देश में कोयले की आपूर्ति के लिए नहीं बल्कि अडानी को मुनाफ़ा पहुँचाने के लिए किया जा रहा है। जिसकी क़ीमत वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि के जरिये इलाके की आम मेहनतकश जनता चुका रही है। वहीं दूसरी ओर अन्धाधुन्ध पेड़ों की कटाई के कारण हाथी तथा अन्य जीव-जन्तु मारे जा रहे हैं और कुछ भाग कर आसपास के गाँवों में जा रहे हैं। पहले से ही छत्तीसगढ़ मानव-हाथी संघर्ष से जूझ रहा है। जिन इलाकों में पेड़ काटे गए हैं वहाँ से हाथी भागकर आसपास के गाँवों में जा रहे हैं और आदिवासियों के घरों को तोड़ रहे हैं और खेतों को बर्बाद कर रहे हैं। हसदेव के कुछ इलाकों से जंगलों की कटाई के बाद हसदेव नदी की कुछ शाखाएँ सूख गई हैं जिसका खामियाजा वहाँ के किसान, जो इन नदियों से सिंचाई कर रहे थे, भुगत रहे हैं।