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अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार : पूँजीवाद के इतिहास से उपनिवेशवाद के ख़ूनी दाग़ साफ़ करने के प्रयासों का ईनाम

उनका सिद्धान्त उपनिवेशवाद के रक्तरंजित इतिहास को साफ़ करने की कोशिश करता है। वे एक भी जगह उपनिवेशवाद द्वारा ग़ुलाम देशों के लोगों पर की गयी लूट, हत्या और अत्याचारों को ध्यान में नहीं रखते हैं। आश्चर्य की बात नहीं है कि पुरस्कार प्राप्त करने के बाद जीतने वाले एक अर्थशास्त्री ऐसमोग्लू ने कहा कि उपनिवेशवाद के कुकर्मों पर विचार करने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी। उपनिवेशीकरण की रणनीतियों के जो निहितार्थ थे बस उन्हीं में उनकी दिलचस्पी थी। हालाँकि अगर इस स्पष्ट स्वीकारोक्ति को छोड़ भी दिया जाये तो वैज्ञानिक व ऐतिहासिक रूप में उनका सिद्धान्त अन्य जगहों पर भी बुरी तरह विफल होता है। मसलन, उपनिवेशवाद के परिणाम उपनिवेशवादी देशों और उपनिवेशों के लिए समान या सीधे समानुपाती नहीं होते हैं। सच्चाई तो यह है कि उपनिवेशवादी देश ग़ुलाम देशों की भूमि से कच्चा माल व अन्य प्राकृतिक संसाधन लूटते हैं, वहाँ की जनता का सस्ता श्रम निचोड़ते हैं और ग़ुलाम देशों की क़ीमत पर अपने देश को समृद्ध बनाते है। इसलिए, पश्चिमी उदार लोकतंत्र वाले साम्राज्यवादी देश, जिनकी ये नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रशंसा करते नहीं थकते, उपनिवेशवाद की सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद, यानी दुनिया के तमाम देशों को गुलाम बनाकर और उन्हें लूटकर आर्थिक समृद्धि के वर्तमान स्तर पर पहुँचे हैं।

कोरोना से हुई मौतों का सच छिपाने की मोदी सरकार की कोशिश बेनक़ाब!

फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा देश में कोरोना महामारी से हुई मौतों को छुपाने व मौत के ग़लत आँकड़े पेश करने के बावजूद कई रिपोर्टों से अब यह साबित हो रहा है कि दुनिया में कोरोना महामारी से सबसे ज़्यादा मौतें, एक रिपोर्ट के मुताबिक़ लगभग 47 लाख, भारत में हुई हैं। मानवद्रोही व संवेदनहीन मोदी सरकार का यह दावा कि कोरोना की दूसरी लहर में देश में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई, महज़ एक लफ़्फ़ाजी है।

राजधानी दिल्ली की बेह‍तर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे और हक़ीक़त

कोरोना महामारी ने हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली की “विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं” के केजरीवाल सरकार के दावे की भी पोल खोल दी। हमारे देश में पिछले साल आयी कोरोना महामारी के समय भी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के इन्तज़ाम बेहतर नहीं थे, पर अब आयी कोरोना की दूसरी लहर ने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के ख़स्ता हालात को और भी उजागर कर दिया है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक (9 मई 2021) दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 19,071 लोगों की मौतें हो चुकी थीं, संक्रमित लोगों की संख्या 87,907 थी और प्रतिदिन औसतन 20,000 लोग संक्रमित दर्ज किये जा रहे थे।

मंगोलपुरी की घटना ने फिर साबित किया कि आज न्याय, इंसाफ़ और सुरक्षा सिर्फ अमीरज़ादों के लिए ही है!

नगरनिगम, विधानसभा से लेकर संसद तक मौजूदा सरकारें समाज के धनी वर्गों की सेवा करती हैं। अमीरज़ादों के लिए बनाये गये सरकारी और निजी स्कूलों में सुरक्षा के सारे इन्तज़ाम हैं। जबकि ग़रीबों के बच्चों को बुनियादी सुरक्षा भी स्कूलों में नहीं दी जाती है, कि उनका जीवन सुरक्षित रहे। और तो और, ऐसी किसी घटना के बाद गरीब लोगों को आमतौर पर इंसाफ मिल ही नहीं पाता है। मंगोलपुरी की इस घटना के बाद प्रशासन का जो रवैया रहा उसने यही साबित किया कि मौजूदा व्यवस्था में न्याय, इंसाफ और सुरक्षा सिर्फ अमीरज़ादों के लिए ही है; जबकि मज़दूरों के लिए ये सिर्फ कागज़ी बातें है। मेहनतकश लोग अगर सच्चे मायनों में अपने और अपने बच्चों के लिए न्याय, इंसाफ और सुरक्षा चाहते हैं तो उन्हें मुनाफ़े पर टिकी मौजूदा व्यवस्था के ख़ात्मे के बारे में सोचना होगा।

‘नकद सब्सिडी योजना’ -एक ग़रीब विरोधी योजना

दिल्ली में विधानसभा और देश में लोकसभा चुनावों से पहले इस योजना की घोषणा करना वोट बैंक की बढ़ाने की कोशिश तो है ही; साथ ही इस योजना का खतरनाक पहलू यह भी है कि आने वाले समय में इस योजना के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) के रहे-सहे ढांचे को भी निर्णायक तरीक़े से ध्वस्त करके खाद्यान्न क्षेत्र को पूरी तरह बाज़ार की शक्तियों के हवाले कर दिया जायेगा। इससे साफ़ तौर पर इस क्षेत्र के व्यापारियों के मुनाफ़े में कई गुना की बढ़ोतरी होगी।