दिव्य महाकुम्भ में भव्य भ्रष्टाचार

चन्द्रप्रकाश

हर गुज़रते दिन के साथ फ़ासीवादी मोदी-योगी सरकार का मज़दूर विरोधी और जन विरोधी चरित्र बेनक़ाब होता जा रहा है। इस साल इलाहाबाद में लगे कुम्भ के प्रचार पर योगी सरकार द्वारा हज़ारों करोड़ रुपये स्वाहा कर दिया गया। करोड़ों की लागत से टेण्ट सिटी बसायी गयी। दिव्य-भव्य-साफ़-स्वच्छ कुम्भ का ख़ूब ढिंढोरा पीटा गया। इस दिव्यता, भव्यता, स्वच्छता की सच्चाई तो कुम्भ के दौरान ही सामने आने लगी थी। लेकिन अब जबकि कुम्भ ख़त्म हो चुका है तब शासन-प्रशासन और ठेकेदारों के नापाक गठजोड़ के किस्से भी बाहर आने लगे हैं। जिनके दम पर टेण्ट सिटी जगमगा रही थी आज उनके घरों में अँधेरा है। जो मज़दूर व मेहनतकश बिना रुके, बिना आराम किये साफ़-स्वच्छ कुम्भ बनाने के लिए लगे रहे आज उनको अपने मेहनताने के लिए भी प्रदर्शन करना पड़ रहा है और कहीं कोई सुनवाई तक नहीं है। पूरे कुम्भ के दौरान योगी सरकार अपने को मज़दूर हितैषी दिखाने के लिए मज़दूरों के साथ खाना खाने, मज़दूरों पर पुष्प वर्षा करवाने जैसी नौटंकी करती रही। यहाँ तक की कुम्भ के आख़िरी दिन योगी सरकार द्वारा सफाईकर्मियों को 10,000 बोनस का सपना दिखाया गया। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। कुम्भ मेले में काम करने वाले सैकड़ों सफाई कर्मचारियों को मेला प्रशासन और नगर निगम द्वारा पिछले तीन महीने से वेतन नहीं दिया गया। सुनवाई के लिए तमाम दफ़्तरों का चक्कर काटने के बाद अन्ततः मजबूर होकर इन सफाई मज़दूरों ने इलाहाबाद-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित शास्त्री ब्रिज पर चक्का जाम कर दिया। यही नहीं महाकुम्भ मेला क्षेत्र के वार्ड 16 (तेलियरगंज और शान्तिपुरम) में ठेके पर लगायी गयी 18 महिला कर्मचारियों को तीन सप्ताह तक कार्य कराने के बाद काम से निकाल दिया गया और अभी तक उनका भुगतान नहीं किया गया है। इसी तरह का प्रदर्शन कुछ दिनों पहले सेक्टर 6,7,8, 9 के कर्मचारियों ने खाने-पीने और रहने की कोई व्यवस्था न होने को लेकर किया था। योगी सरकार की लफ़्फ़ाज़ियों को गोदी मीडिया द्वारा हवा देने का काम किया जाता रहा है। लेकिन यही मीडिया यह नहीं बताती कि कुम्भ में काम करने वाले ज़्यादातर सफाईकर्मी ठेके पर रखे गये थे। वास्तव में योगी सरकार द्वारा बोनस की जो घोषणा की गयी है वह कभी भी इन सफाईकर्मियों तक पहुँचेगा ही नहीं। सच्चाई यह है कि इस पूरे बजट का नेताओं-प्रशासनिक अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच बन्दरबाँट होने वाला है।

योगी सरकार ने 27 फ़रवरी को 1500 सफाई कर्मचारियों को लगाकर 10 किमी का स्वच्छता अभियान चलवाया। इनके जी-तोड़ मेहनत के बदौलत योगी सरकार ने अपना नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज़ करवाकर वाहवाही तो लूट ली लेकिन ख़ून पसीना बहाकर काम करने वाले इन कर्मचारियों को अभी तक मेहनताना नहीं मिला। कुम्भ में सफाई के काम में लगे अधिकांश मज़दूर दूर-दराज के जिलों से आये थे और कुछ अन्य राज्यों से भी। लगातार तीन महीनों से ये मज़दूर अपने घर-परिवार से दूर रहकर अपने परिवार के भरण-पोषण के ख़र्च जुटाने के लिए कुम्भ में साफ़-सफाई का काम कर रहे थे। अब तीन महीने से मज़दूरी न मिलने के कारण परिवार समेत भूखों मरने को मजबूर हैं। आर्थिक शोषण के साथ-साथ इन सफाईकर्मियों को पुलिस प्रशासन का दमन, अपमान से लेकर मारपीट तक सहना पड़ा है। 

25 जनवरी को कुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर-2 में कुछ पुलिस के गुण्डों ने वृद्ध पूरन सहित अन्य कई सफाई कर्मचारियों की बर्बर पिटाई की। कुम्भ के सेक्टर मेडिकल ऑफिसर डॉ. सन्तोष मिश्रा का बयान है कि “सफाई कर्मियों को पुलिस के द्वारा पीटने की यह पहली घटना नहीं है। अब तक चार बार पुलिसकर्मी इनकी पिटाई कर चुके हैं।”

कुम्भ में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जिससे योगी-मोदी का मज़दूर-विरोधी चरित्र उजागर होता है। इसमें नाबालिग मज़दूर भूरेलाल की हत्या से लेकर पाइपलाइन बिछाने के काम में लगे मज़दूरों के पैर कटने जैसी कई घटनाएँ शामिल हैं। इसकी विस्तार से चर्चा हमने ‘मज़दूर बिगुल’ के फ़रवरी अंक में की थी। मज़दूरों के साथ होने वाली ये घटनाएँ हर बार कुम्भ या अर्द्धकुम्भ के आयोजन में होती हैं लेकिन फ़ासिस्ट इन घटनाओं को छुपाने के लिए ढोंग रचते हैं और खुद को मज़दूर हितैषी दिखाने की कोशिश करते हैं। पिछली बार के अर्द्ध कुम्भ (25 फ़रवरी, 2019) में मोदी ने कुछ सफ़ाई कर्मचारियों का पैर धुलकर मीडिया में बयान दिया कि उसे सन्तोष प्राप्त हुआ है। लेकिन उन सफ़ाई कर्मचारियों की ज़िन्दगी पिछले पाँच सालों में बद से बदतर हो गयी है। उनके पास रहने के लिए कोई पक्का मकान न होने के कारण वे छोटी-छोटी झुग्गियों में रहने को अभिशप्त हैं।

आज हम मज़दूर यह जानते हैं कि हम ही पूरे शहर को साफ़ करते हैं लेकिन सरकार को हमारी यह झुग्गी बस्तियाँ गन्दगी का ढेर नजर आती हैं इसलिए किसी बड़े कार्यक्रम के आयोजन पर इन झुग्गी बस्तियों को ढँक दिया जाता है। इस बार भी महाकुम्भ के आयोजन पर यही हुआ था। संगम के किनारे लगे हुए सारी झुग्गियों को लोहे के चद्दरों से ढँक दिया गया था। 

सिर्फ़ इलाहाबाद ही नहीं बल्कि पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाओं के तहत इन सफाई कर्मचारियों का भयंकर शोषण जारी है। इन कर्मचारियों से दिन-रात मेहनत तो करवा ली जाती है लेकिन उन्हें समय से तय मज़दूरी नहीं मिलती। ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए सफाई का कॉण्ट्रैक्ट लेने वाली कम्पनियों और सरकारी निगमों की तरफ से सफाई के लिए ज़रूरी उपकरण न उपलब्ध करवाये जाने के कारण हर साल सैकड़ों सफ़ाई कर्मचारियों की मौत सीवर व सेप्टिक टैंकों में सफ़ाई के दौरान दम घुटने से हो जाती है। 9 मार्च को मुम्बई के नागपाड़ा मिंट रोड पर गुड लक मोटर ट्रेनिंग स्कूल के पास एक निर्माणाधीन इमारत में पानी के टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने से 5 कर्मचारियों (19 वर्षीय हसीपाल शेख़, 20 वर्षीय राजा शेख़, 36 वर्षीय जियाउल्ला शेख़, 38 वर्षीय इमांडू शेख़ और 31 वर्षीय पुरहान शेख़) की मौत हो गयी। 

‘हिन्दू राष्ट्र’ के कुम्भ के धार्मिक आयोजन में मज़दूरों और मेहनतकशों की यही जगह है क्योंकि स्वयं इनके ‘हिन्दू राष्ट्र’ में मज़दूरों की यही जगह है, चाहे उनका धर्म या जाति कुछ भी हो। धन्नासेठ, अमीरज़ादे, ऐय्याश धनपशु अपना पापनाश कर सकें, उसके लिए मज़दूरों को अपनी हड्डियाँ-हाड़ गलाना ही होगा, चाहे उनका ही नाश क्यों न हो जाये! मोदी-योगी के चमचे बाबा धीरेन्द्र शास्त्री के अनुसार, अमीरज़ादों के पापनाश की नौटंकी में अगर मज़दूर और आम जनता मरते हैं, तो उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है! जो मज़दूर संघ परिवार, मोदी और योगी के ‘हिन्दू राष्ट्र’ में दास और सेवक जैसी हालत में अपना शोषण, उत्पीड़न और दमन करवाने को मोक्ष समझते हैं, उनसे हम क्या ही कह सकते हैं। लेकिन जिन मज़दूरों के भीतर आत्मसम्मान, गरिमा और अपने अधिकारों का बोध है, वे जानते हैं कि इस ‘हिन्दू राष्ट्र’ की सच्चाई केवल मालिकों, धनपशुओं, ठेकेदारों, व्यापारियों की लूट के तहत देश के मेहनतकश अवाम को निचोड़ने की व्यवस्था है। इसपर ही धर्म की चादर चढ़ाई जाती है, ताकि हम इस लूट और शोषण को इहलोक में अपना कर्म मानकर चुपचाप इसे सहते रहें, इस आशा में कि परलोक में मोक्ष प्राप्त होगा! आपको समझ लेना चाहिए कि ये बातें केवल आपको बेवकूफ़ बनाने का तरीक़ा हैं।

फ़ासीवाद और पूँजीवाद हम मज़दूरों को शोषण, उत्पीड़न ही दे सकता है। हम इस चीज़ को समझ ना सकें इसके लिए भारतीय मज़दूर संघ और संघ के अन्य संगठन हम मज़दूरों को आपस में धर्म के नाम पर बाँटने में लगे हैं। हमें यह हकीकत समझने की ज़रूरत है कि देश भर में हर साल सीवर में होने वाली मौतें हों, आत्महत्या करने वाले मज़दूर हों या समय से तय वेतन न पाने वाले कर्मचारी हों सभी परेशान हैं। चाहे वे किसी भी जाति-धर्म से आते हों। इसलिए हमें आपस में बँटकर लड़ने के बजाय एकजुट होकर उजरती श्रम की लूट पर टिकी इस पूँजीवादी व्यवस्था और इस फ़ासीवादी सत्ता के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत है।

 

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2025


 

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