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(मज़दूर बिगुल के अगस्त 2024 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फ़ॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 का अक्षम और कुपोषित बजट / वृषाली
केन्द्रीय बजट : जनता की जेब काटकर पूँजीपतियों की तिजोरी भरने का काम बदस्तूर जारी / आनन्द
मौजूदा बजट में मनरेगा के लिए आवण्टन से मनरेगा मज़दूरों को सिर्फ 40 दिन ही काम मिलेगा
अडानी जी का मोदी जी से भ्रष्टाचार-विहीन प्रेम! / अन्वेषक
श्रम कानून
फासीवाद / साम्प्रदायिकता
काँवड़ यात्रियों के बहाने दुकानों पर नाम लिखने का योगी सरकार का हिटलरी फ़रमान / अदिति
विशेष लेख / रिपोर्ट
पूँजीवाद आपके बेहतर जीवन के सपने को कैसे बर्बाद कर रहा है! / भारत
संघर्षरत जनता
बंगलादेश का जनउभार और मेहनतकशों की एक क्रान्तिकारी पार्टी की ज़रूरत / प्रियम्वदा
समाज
बढ़ते स्त्री-विरोधी अपराधों के पैदा होने की ज़मीन की शिनाख़्त करनी होगी!
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
मोदी-शाह सरकार की नयी अपराध संहिताओं का फ़ासीवादी जनविरोधी चरित्र / शाम मूर्ति
बुर्जुआ जनवाद – चुनावी नौटंकी
लोकसभा चुनाव-2024 के नतीजों में हुई थी हेरा-फेरी- एडीआर और वोट फ़ॉर डेमोक्रेसी की रिपोर्ट
शिक्षा और रोजगार
दिल्ली में निजी कोचिंग संस्थानों के मुनाफ़े की हवस ने ली छात्रों की जान / आदित्य
पर्यावरण / विज्ञान
जलवायु परिवर्तन और ग़रीब मेहनतकश आबादी / अपूर्व
लेखमाला
मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (आठवीं किश्त) / सनी
मज़दूर बस्तियों से
नोएडा-ग्रेटर नोएडा में अँधेरे में रहने को मजबूर लाखों मेहनतकश / रूपेश
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन