मौजूदा समय में जब पूरी विश्व पूँजीवादी व्यवस्था में आर्थिक संकट के बादल छाये हुए हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ा रही है, मुनाफे सिकुड़ रहे हैं, सकल घरेलू गतिरोधव गिरावट का शिकार है, तब भारत के पूँजीवादी हुक्मरान देसी -विदेशी पूँजी के लिए भारत में साजगार माहौल के निर्माण की कोशिश में लगे हुए हैं। आर्थिक सुधारों में बेहद तेज़ी भारतीय पूँजीवादी हुक्मरानों की इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है। ‘’इंस्पेक्टर राज’’ के ख़ात्मे की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का भी यही कारण है। आज मज़दूरों द्वारा भी पूँजीपति वर्ग के इस हमले के ख़िलाफ़ ज़ोरदार हल्ला बोलने की ज़रूरत है। ज़रूरत तो इस बात की है कि पहले से मौजूदा श्रम अधिकारों को तुरंत लागू किया जाये, श्रम अधिकारों को विशाल स्तर पर और बढ़ाया जाये। ज़रूरत इसकी है कि पूँजीपतियों पर बड़े टेक्स बढ़ाकर सरकार द्वारा जनता को बड़े स्तर पर सहूलतें मिलें। ज़रूरत इस बात की है कि पूँजीपतियों द्वारा मज़दूरों-मेहनतकशों की मेहनत की लूट पर लगाम कसने के लिए कानून सख़्त किए जाएँ। इन कानूनों के पालन के लिए अपेक्षित ढाँचा बनाया जाए। परन्तु पूँजीपतियों की सरकारों से जो उम्मीद की जा सकती है वह वही कर रही हैं – पूँजीपति वर्ग की सेवा। मज़दूर वर्ग यदि आज पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर कुछ थोड़ी-बहुत भी राहत हासिल करना चाहता है तो उसको मज़दूरों के विशाल एकजुट आन्दोलन का निर्माण करना होगा। पूँजीपति वर्ग द्वारा मज़दूर वर्ग पर बड़े एकजुट हमलों का मुकाबला मज़दूर वर्ग द्वारा जवाबी बड़े एकजुट हमले द्वारा ही किया जा सकता है।