‘आधार’ – जनता के दमन का औज़ार
रणबीर
बीती 11 मार्च को लोकसभा में आधार कानून–2006 पारित कर दिया गया है। इससे सम्बन्धित बिल मोदी सरकार द्वारा धन सम्बन्धी बिल के रूप में पेश किया गया था। इसलिए इसे राज्यसभा में पारित करवाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। लोकसभा में मोदी सरकार के पास बहुतमत है लेकिन राज्यसभा में नहीं है। राज्यसभा में इस कानून को पारित करवा पाना मोदी सरकार के लिए बहुत मुश्किल था इस लिए इसे धन सम्बन्धी कानून के रूप में पेश करना बेहतर समझा। आधार कानून के तहत वेतन भुगतान, बुढापा पेंशन, स्कूल दाखिला, ट्रेन बुकिंग, विवाह पंजीकरण, ड्राईविंग लाईसेंस, सिम कार्ड खरीदने, साईबर कैफे इस्तेमाल करने आदि के लिए आधार कार्ड लाजिमी कर दिया गया है। आधार कार्ड इस्तेमाल करने की इतनी सारी मज़बूरियों के बाद आधार कार्ड बनवाना मज़बूरी बन जाता है।
1 अक्टूबर 2013 को आधार कार्ड सम्बन्धी परियोजना शुरू की गयी थी। उस समय कहा गया था कि आधार कार्ड बनवाना किसी के लिए आवश्यक नहीं है। कोई बनवाये चाहे न बनवाये। सरकार की शुरू से ही यह कोशिश रही है कि भारत वासियों के लिए यह कार्ड बनवाना मजबूरी बन जाए। इसलिए रसोई गैस, बैंक खाता आदि विभिन्न सेवाओं के लिए इसे आवश्यक बनाने की कोशिश की गयी। सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में एक फैसला किया था कि किसी भी सेवा के लिए आधार कार्ड आवश्यक तौर पर नहीं माँगा जाना चाहिए। इसके बाद अब सरकार यह आधार कानून ले आयी है। हालाँकि सरकार आधार को एक जनपक्षधर परियोजना के रूप में प्रचारित कर रही है लेकिन वास्तव में आधार राज्यसत्ता के हाथ में दमन के एक बेहद खतरनाक औज़ार के सिवा और कुछ नहीं है। आधार कार्ड के जरिए विभिन्न सुविधाएँ -आर्थिक लाभ-सब्सिडियाँ जनता तक पहुँचाने की बातें तो सिर्फ एक बहाना हैं। जनता के निजी गुप्तता के अधिकार का हनन, इस तरह जनता के अन्य जनवादी अधिकारों को कुचलना ही वास्तविक निशाना है।
बहुत सारे लोगों को हमारी उपरोक्त बात बहुत हैरानी वाली लगेगी। लेकिन हमारे द्वारा यह बात कहे जाने के पुख्ता कारण हैं। जब से देश में आधार कार्ड लागू किया गया है तब से ही अनेकों लोग आधार कार्ड पर प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबन्धन सरकार द्वारा इसे लागू किया गया और इसने भी इसे लोगों पर जबरदस्ती थोपने की कोशिश की थी। लेकिन अब जब भाजपा के नेतृत्व वाली गठबन्धन सरकार ने इस बारे में कानून बनाया है तो कांग्रेस, इसकी सहयोगी व अन्य पार्टियाँ आधार कानून के कुछ पक्षों की आलोजना कर रही हैं और जरूरी संशोधनों की जरूरत पर ज़ोर दे रही हैं। वोट सियासत में चुनावी पार्टियों को सहमती होते हुए भी असहमती के डरामे करने पड़ते हैं। बहुत सारे लोग आधार कार्ड सम्बन्धी लोगों की निजी गुप्तता की सुरक्षा की गारण्टी करने के लिए जरूरी कानूनी प्रावधानों की बात कह रहे हैं। लेकिन हमारा मानना है कि समूची आधार परियोजना को ही खत्म किया जाना चाहिए।
आधार कार्ड के लिए भारत वासियों के नाम, पते, तस्वीर सहित हाथों की उँगलियों की निशान और आँखों की पुतलियों के स्कैन आदि निजी जानकारी जुटाई जाती है। इस जानकारी को भारत की आधार अथारिटी के केन्द्रीय डाटाबेस में इकट्ठा किया जा रहा है। जनगणना के तहत जुटाई कई व्यक्तिगत जानकारी भी इस आधार खाते के साथ जोड़ी जा रही है। पूरे देश में विभिन्न सेवाओं को इस केन्द्रीय डाटाबेस के साथ इण्टरनेट के ज़रिए जोड़ा जा रहा है। कानूनन इस जानकारी को कोई भी अफसर या अन्य कोई व्यक्ति सार्वजनिक नहीं कर सकता। लेकिन अदालतें ज़रूरत पड़ने के आधार पर उपलब्ध जानकारी मँगवा सकते हैं। ज्वाइण्ट सेक्रेटी स्तर का अधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा का कारण बताते हुए किसी व्यक्ति की जानकारी सार्वजनिक करने की आज्ञा दे सकता है।
इस तरह आधार के ज़रिए कम से कम इतना तो पक्का कर दिया गया है कि सरकारी तंत्र के पास आधार कार्डधारक सम्बन्धी पूरी जानकारी उपलब्ध होगी। विभिन्न सेवाएँ हासिल के लिए लिए लोगों को आधार कार्ड इस्तेमाल करना पड़ेगा। कौन कहाँ आ-जा रहा है, बैंक खाते के जरिए क्या लेन-देन कर रहा है, किस से फोन पर बात कर रहा है आदि अनेकों निजी गुप्तता वाली जानकारियाँ अब सरकारी तंत्र के पास हर वक्त उपलब्ध रहेंगी। मसला सिर्फ आधार से जुड़ी व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक किये जाने का नहीं है। बल्कि सबसे बड़ी बात है कि जनविरोधी सरकारी तंत्र आपकी जिन्दगी के बड़े दायरे में ताक-झाँक कर सकता है, दखल दे सकता है, आपकी जिन्दगी को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। कर सकता है नहीं बल्कि यह कहना ज़्यादा ठीक रहेगा कि करेगा ही करेगा। मंत्री, सांसद, विधायक, व राजनीतिक पहुँच वाले तमाम व्यक्ति, पुलिस-फौज, अदालत, समाज का राजनीतिक-आर्धिक असर-रसूख वाला सारा तबका, आधार के जरिए कानूनी-गैरकानूनी ढंग से हासिल जानकारी के जरिए साधारण जनता को बड़े स्तर पर तंग-परेशान करेगा, जुल्म-दमन का शिकार बनायेगा। विभिन्न जगह पर बिखरी जानकारी को इस मकसद के लिए जुटाना अपेक्षाकृत मुश्किल है। लेकिन अब सारी जानकारी एक जगह मिल जायेगी। राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए, खासकर क्रान्तिकारी-जनवादी आन्दोलन के साथ जुड़े नेताओं, कार्यकर्ताओं, समर्थकों, शुभचिन्तकों को दमन का शिकार बनाने के लिए आधार का हर तरह से इस्तेमाल किया जाएगा।
सरकारी तंत्र में असर-रसूख के बिना इण्टनेट पर उपलब्ध आधार केन्द्रीय डाटाबेस पर पड़ी जानकारी को भेद पाना देशों-विदेशों के हैकरों के लिए कौन सी मुश्किल बात है? सरकार चाहे इस जानकारी के सुरक्षित होने की कितनी भी बात करती रहे लेकिन यह असुरक्षित है। अनेकों माहिर व्यक्ति इस बात की पुष्टि कर चुके हैं। इस सम्बन्धी अनेकों लेख छप चुके हैं। भारत सरकार की इस परियोजना का एक गुप्त दस्तावेज, गुप्त दस्तावेजों को लीक करने वाली वेबसाइट विकीलीकस के जरिए लीक हो चुका है। यह दस्तावेज मानता है कि आधार जानकारी लीक होने और इसमें छेड़छेड़ होने की सम्भावनाएँ हैं। लोगों की निजी जानकारी की सुरक्षा, निजी गुप्तता के जनवादी अधिकार की गारण्टी करना, लोगों की सुरक्षा की गारण्टी करना जनविरोधी सरकार का लक्ष्य है भी नहीं। वास्तविक मकसद जनता की जिन्दगी में दखल देना है, लोगों की जासूसी करना है, जनता की सत्ता विरोधी, सरकार विरोधी, लूट-खसूट-अन्याय विरोधी हर सक्रियता को दबाने की बेहिसाब ताकत हासिल करना है।
जहाँ तक लोगों को आधार कार्ड के जरिए सरकारी सहूलतें-सब्सिडियाँ आदि फायदे पहुँचाने का स्वाल है यह सरासर बकवास है। मौजूदा उदारीकरण-निजीकरण के दौर में सरकार लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, पानी, बिजली, साफ़-सफाई आदि बुनियादी जरूरतों से जुड़ी सरकारी सहूलतों-सब्सिडियों का बड़े स्तर पर खात्मा कर चुकी है और कर रही है। ऐसे समय में लोगों को सहूलतें पहुँचाने की बात करना हास्यास्पद बात है। आधार कार्ड के जरिए तो कम से कम 15 करोड़ लोग तो अपनी पहचान ही साबित नहीं कर पायेंगे। कृषि, निर्माण, और हाथों से कठोर काम करने वाले लोगों की उँगलियों के निशान काफी घिस जाते हैं, मद्धम पड़ जाते हैं जिन्हें सैंसर उठा नहीं पायेंगे। सैंसरों पर उँगलियों के कम-ज़्यादा दबाव, उँगलियाँ रखे जाने की दिशा, जरूरत से अधिक सूखी या चिकनाहट वाली चमड़ी आदि भी निशान मिलाये जाने में गम्भीर दिक्कतें हैं। इन दिक्कतों के बारे में आधार अथारिटी के दस्तावेजों में भी माना गया है। आँखों की पुतलियों का स्कैन अंधों, मोतिया बिन्द से ग्रस्त, आँखों में निशान वाले आदि लोगों पर नहीं किया जा सकता। और सैंसरों और स्कैनरों को धोखा दिया जा सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, चीन, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों ने ऐसे प्रोजेक्ट लागू करनी की असफल कोशिश के बाद इसे अव्यावहारिक, नाजायज व खतरनाक माना है। लेकिन भारत के हुक़्मरान फिर भी इसे लागू कर रहे हैं।
सरकारी सुविधाओं का फायदा लोगों तक न पहुँचने का कारण यह नहीं है कि लोग अपनी पहचान सिद्ध नहीं कर पाते। इसका कारण यह है कि समाज के मुट्ठी भर लोग समाज के समाज के स्रोत-संसाधनों पर नियंत्रण रख रहे हैं। यह मुट्ठीभर तबका सारे फायदे ले जाता है। सरकारी सहूलियतों का मुख्य रूप से कानूनी-गैरकानूनी ढंग से यही तबका फायदा ले रहा है। उदाहरण के तौर पर गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवार पक्के राशन कार्ड होने के बावजूद भी अनाज का पूरा कोटा हासिल कर पाने में अक्षम होते हैं क्योंकि राशन डिपो के इंजार्ज उनकी लूट करते हैं। वह गरीबों को मज़बूर करते हैं कि वे अपने कोटे से कम लें (लिखवायें ज़्यादा)। दलित छात्रों को लगे वजीफे उन्हें इसलिए हासिल नहीं होते कि वे अपने दलित होने का सबूत नहीं दे पाते बल्कि स्कूलों-कालेजों का प्रशासन अनेकों ढंगों से उनका वजीफा मार जाता है। लोगों को सहूलियतें पहुँचाने के लिए आधार कार्ड की जरा भी जरूरत नहीं है। ऐसा पहले से मौजूद प्रमाणपत्रों के जरिए भी किया जा सकता है बशर्त कि ऐसा करने के लिए एक जनपक्षधर आर्थिक-राजनीतिक ढाँचा मौजूद हो।
भारत के जनविरोधी हुक़्मरानों ने जनता के जनवादी अधिकारों-आज़ादी के खिलाफ़ एक जंग छेड़ी हुई है। जनता के खिलाफ़ इस जंग में हुक़्मरान तरह-तरह के हथकण्डे अपना रहे हैं। पहले से बने दमनकारी कानूनों का इस्तेमाल बढ़ चुका है। नये-नये दमनकारी काले कानून-नियम जारी किये जा रहे हैं। दमन के औज़ारों के भण्डार में आधार को भी शामिल किया गया है। मौजूदा फासीवादी उभार के समय में जब राज्यसत्ता की हिमायत प्राप्त हिन्दुत्ववादी अँधराष्ट्रवाद व साम्प्रदायिकता का बोलबाला है, जब जनता के विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी, अधिकारों के लिए संगठित होने व संघर्ष करने के संविधानिक-जनवादी अधिकारों पर राज्यसत्ता द्वारा जोरदार हमले हो रहे हैं ऐसे फासीवादी उभार के समय में देश के पूँजीवादी हुक़्मरानों के हाथ में आधार जैसा दमन का औजार आना एक बेहद चिंताजनक बात है। जनता को हुक़्मरानों के इस हमले से परिचित कराना, इसके खिलाफ़ जगाना, संगठित करना बहुत ज़रूरी है।
मज़दूर बिगुल, मई 2016
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