मोदी मण्डली के जन-कल्याण के हवाई दावे बनाम दौलत के असमान बँटवारे में तेज़ वृद्धि
तथाकथित देश भक्तों के दावों की हवा निकालते ताज़ा आँकड़े

रणबीर

पिछले दिनों महज़ बहसबाज़ी के अड्डे संसद में हवाई दावा करते हुए भारत के वित्त मन्त्री अरुण जेटली ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था की मोदी सरकार से पहले बहुत बुरी हालत थी, कि मोदी सरकार के दौरान अर्थव्यवस्था का बहुत विकास हुआ है, कि भारत की अर्थव्यवस्था अब एक मज़बूत अर्थव्यवस्था बन गयी है। मोदी मण्डली ज़ोर-शोर से प्रचार कर रही है कि अर्थव्यवस्था की “मज़बूती” से जनता की परिस्थितियाँ सुधारी हैं। दावे ये किये जा रहे हैं कि “देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है”। मोदी भक्त हर जगह यह काँव-काँव कर रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि देश तो बदल ही रहा है, आगे भी बढ़ रहा है – लेकिन आखि़र क्या बदला है, देश किस तरफ़ आगे बढ़ा है? आओ देखें।

मोदी सरकार के ढाई वर्षों के दौरान भारत के पूँजीवादी प्रबन्ध के गन्दे नाले से बहुत पानी बह चुका है। बहुत कुछ हमारे सामने है। लेकिन देश किस तरफ़ बदल रहा है, किधर आगे बढ़ रहा है, देश की अर्थव्यवस्था किस ढंग से विकसित हुई है, मज़बूत हुई है इसके लिए यहाँ सिर्फ़ एक ही पहलू देख लेना काफ़ी है। प्रश्न यह है कि देश में मेहनतकश जनता की मेहनत-मशक्कत से जो धन-दौलत पैदा हो रही है उसका बँटवारा किस तरह हो रहा है। हमें देखना होगा कि अमीरी-ग़रीबी की खाई और बड़ी हुई है या घटी है। आखि़र देश का मतलब तो मज़दूर-मेहनतकश हैं, उनकी हालत में क्या फ़र्क़ पड़ा है, यह देखना होगा।

अगर हम थोड़ी-सी भी समझ रखते हैं तो अपने चारों तरफ़ समाज में लगातार बढ़ रही आर्थिक असमानता को साफ़़ देख सकते हैं। आर्थिक पहलुओं के बारे में विभिन्न संस्थाएँ सर्वेक्षण करके रिपोर्टें भी जारी करती हैं जिनसे यह हक़ीक़त और भी स्पष्ट रूप में देखने में मदद मिलती है। पिछले दिनों एक अहम रिपोर्ट जारी हुई है। यह है क्रैडिट सुईस नाम की संस्था द्वारा जारी की गयी विश्व की अर्थव्यवस्था के बारे में रिपोर्ट (ग्लोबल वैल्थ रिपोर्ट)। इस रिपोर्ट में पूरे विश्व के देशों की अर्थव्यवस्था के आँकड़े हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरे विश्व में अमीरी-ग़रीबी की खाई पिछले समय में और चौड़ी हुई है। इस रिपोर्ट में पेश अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी भी अहम है जिसके लिए अलग से लिखा जाना चाहिए। फि़लहाल, यहाँ हम इस रिपोर्ट में पेश भारत के बारे में जानकारी पर नज़र डालेंगे और देखेंगे कि मोदी सरकार ने देश किस तरफ़ आगे बढ़ाया है और बदल कर कैसा बनाया है।

उपरोक्त रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि इस समय सिर्फ़ एक प्रतिशत भारतीयों का देश की 58.4 दौलत पर क़ब्ज़ा है। यानी भारत की 99 प्रतिशत आबादी के पास शेष 41.6 प्रतिशत दौलत है। लेकिन इस 99 प्रतिशत में भी बेहद अमीर आबादी शामिल है। और आगे आँकड़े देखने पर “भारत महान”  के “मज़बूत अर्थव्यवस्था” की ओर भी भयानक तस्वीर सामने आती है। सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी का भारत की 80.7 प्रतिशत दौलत पर क़ब्ज़ा है। अर्थात शेष 90 प्रतिशत के पास सिर्फ़ 19.3 प्रतिशत दौलत है। निचली 50 प्रतिशत आबादी के पास तो देश की कुल दौलत का सिर्फ़ 1 प्रतिशत ही है।

इन आँकड़ों से यह स्पष्ट है कि हमारे समाज में इस समय मेहनतकश लोगों के ख़ून-पसीने से पैदा हुई दौलत पर जोकों ने कितने बड़े स्तर पर क़ब्ज़ा किया हुआ है।

अब मोदी भक्त प्रश्न उठायेंगे कि आर्थिक असमानता तो मोदी सरकार से पहले ही मौजूद है। वे कहेंगे कि ये तो कांग्रेस की सरकारों की ही काली करतूत है। बिल्कुल दुरुस्त, आर्थिक असमानता तो पहले से ही मौजूद है। कांग्रेस की या इसकी अगवाई करने वाली सरकारों ने देश के धन्नासेठों की ही सेवा की है। साथ ही, मोदी सरकार से पहले की भाजपा की अगवाई करने वाली केन्द्र सरकारों ने भी तो यही कुछ किया है। कांग्रेस तथा मौजूदा सरकार द्वारा सभी विरोधी पार्टीयों की केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने पूरे जी-जान से पूँजीपति वर्ग की सेवा की है। यह भी मेहनतकश जनता को पूँजीपति वर्ग के लिए ही लूटने और पीटने का काम करती रही हैं। क्रेडिट सुईस की रिपोर्ट बताती है कि 1 प्रतिशत आबादी की दौलत सन् 2010 से 2014 तक 40.3 प्रतिशत से बढ़ कर 49 प्रतिशत हो गयी है। इसलिए मोदी भक्तों से हम कहना चाहेंगे कि हम समाज में दौलत के असमान बँटवारे के लिए सिर्फ़ मोदी सरकार को ही दोषी नहीं ठहराते। लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि पूँजीपति वर्ग की सेवा करने में, आर्थिक असमानता बढ़ाने में मौजूदा मोदी सरकार जैसा कोई नहीं। उपरोक्त रिपोर्ट में पेश आँकड़े यह भी अच्छी तरह से स्पष्ट करते हैं। देखो ये आँकड़े क्या कहते हैं –

रिपोर्ट बताती है कि सन् 2014 से 2016 तक ऊपर की 1 प्रतिशत आबादी के पास भारत में कुल दौलत में हिस्सा 49 प्रतिशत से 58.4 प्रतिशत हो गया है। इस तरह ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी की दौलत में भी वृद्धि हुई है। रिपोर्ट मुताबिक़ 80.7 प्रतिशत दौलत की मालिक यह ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी सन् 2010 में 68.8 प्रतिशत की मालिक थी। यह आबादी भी मोदी सरकार के समय में और भी तेज़ी से माला-माल हुई है।

मोदी मण्डली भ्रष्टाचार के ि‍ख़लाफ़ लड़ने के बड़े-बड़े दावे कर रही है। काले धन के ख़ात्मे के बहाने नोटबन्दी कर दी गयी है। उपरोक्त आँकड़े मोदी मण्डली के दावों की हवा निकाल रहे हैं। साबित कर रहे हैं कि मोदी द्वारा जन-कल्याण, भ्रष्टाचार के ख़ात्मे, आदि के नाम पर की जाने वाली कार्यवाइयाँ कितनी बड़ी डरामेबाज़ियाँ हैं। यह डरामा-मण्डली पर्दे के पीछे असल में जो कुछ कर रही है उसका मक़सद देशी-विदेशी पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाना है। मोदी सरकार से पहले की सरकारें भी तेज़ी और सख्ती से पूँजीपति वर्ग के हित की नीतियाँ (जैसे कि श्रम क़ानूनों में मज़दूर विरोधी और पूँजीपति वर्ग के पक्ष में सुधार, किसानों से ज़मीनें छीनकर पूँजीपतियों को सौंपने, जनता से सरकारी सुविधाएँ छीनने, जनता पर करों का बोझ बढ़ाने आदि अनेक नीतियाँ) लागू करना चाहती हैं। लेकिन अनेकों राजनीतिक मज़बूरियों के चलते वे ये नीतियाँ मनचाहे ढंग से लागू नहीं कर पा रही थीं। लेकिन पूँजीपतियों से हासिल हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करके, जनता को धर्म-जाति आदि के नाम पर बाँटकर, समाज में बड़े स्तर पर साम्प्रदायिक नफ़रत का ज़हर फैलाकर भाजपा ने केन्द्र में एक मज़बूत सरकार बनायी है। ऐसी सरकार के ज़रिये पूँजीपति वर्ग की धन-दौलत में तेज़ वृद्धि होनी ही है।

स्पष्ट है कि मोदी राज में देश किस ढंग से बदला है, किस तरफ़ आगे बढ़ा है। बड़े स्तर पर आर्थिक असमानता, जनता की बदहाली और जोंकों की खु़शहाली में वृद्धि – यही है मोदी मण्डली सहित पूँजीपति वर्ग के सभी सेवादार के लिए आर्थिक विकास और एक “मज़बूत अर्थव्यवस्था”। ऐसी “मज़बूत अर्थव्यवस्था” का जितनी जल्दी विनाश हो उतना ही अच्छा।

 

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2017


 

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