Category Archives: मज़दूर बस्तियों से

नूंह में हुई हिंसा की सच्चाई : एक जाँच रिपोर्ट

नूंह में मोनू मानेसर, बंटी आदि जैसे अपराधी बजरंग दलियों और विहिप द्वारा योजनाबद्ध तरीके से दंगे भड़काये गये और उसके ज़रिये हरियाणा समेत पूरे देश में हिन्दू-मुसलमान दंगे फैलाने के प्रयास किये गये। इसका कारण है कि अगले साल हरियाणा और देश में चुनाव हैं और हमेशा की तरह संघ चुनाव से पहले दंगों की बारिश कराने में लग गया है ताकि अगले साल वोट की अच्छी फ़सल काटी जा सके और जनता का ध्यान महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार से भटकाया जा सके।

स्त्री मुक्ति लीग, मुम्बई ने पूँजीवादी पितृसत्ता के खिलाफ आवाज़ बुलन्द करते हुए किया ‘मुक्ति के स्वर’ पुस्तकालय का उद्घाटन

पुस्तकालय के उद्घाटन के अवसर पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौक़े पर स्त्री मुक्ति संघर्ष में शामिल क्लारा ज़ेटकिन, रोज़ा लक्ज़मबर्ग, सावित्रीबाई फुले, फ़ातिमा बी शेख, प्रीतिलता वाड्डेदार, दुर्गा भाभी के साथ-साथ साथी मीनाक्षी और साथी शालिनी जैसी क्रान्तिकारी स्त्रियों की तस्वीरों के साथ ‘स्त्री मुक्ति का रास्ता, इंक़लाब का रास्ता‘, ‘जीना है तो लड़ना होगा, मार्ग मुक्ति का गढ़ना होगा’, ‘पूँजीवादी पितृसत्ता मुर्दाबाद’ जैसे नारे लगाते हुए रैली निकाली गयी और ‘औरत’ नाटक का मंचन किया गया।

साक्षी की हत्या को ‘लव जिहाद’ बनाने के संघ की कोशिश को ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ के नेतृत्व में शाहबाद डेरी की जनता ने नाकाम किया

शाहाबाद डेरी में संघ के ‘लव जिहाद’ के प्रयोग को असफल कर दिया गया। पहले तो इलाक़े में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ताओं और लोगो ने एकजुट होकर संघियों को इलाक़े से खदेड़ दिया। इसके बाद इलाक़े में संघियों को चेतावनी देते हुए और हत्यारे साहिल को कठोर सज़ा देने की माँग करते हुए रैली निकाली गयी। इलाक़े से खदेड़े जाने के बाद से और ‘लव जिहाद’ का मसला न बन पाने के कारण संघी बौखलाये हुए थे। संघ के अनुषांगिक संगठनों द्वारा इलाक़े का माहौल ख़राब करने के मक़सद से सभा भी बुलायी गयी और मुस्लिमों के ख़िलाफ़ खुलकर ज़हर उगला गया, पर इनकी यह कोशिश भी नाक़ाम रही।

दिल्ली के मेहनतकशों को बेघर करके जारी है जी-20 के जश्न की तैयारी

जी-20 के लिए देश की राजधानी को चमकाया जा रहा है। इसका सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है लेकिन उसकी क़ीमत दिल्ली के ग़रीब मेहनतकश अवाम को चुकानी पड़ रही है। दिल्ली के ग़रीब मेहनतकश अवाम को उनके रहने की जगहों से उजाड़ा जा रहा है। पिछले 3 महीनों में 16,000 घर तोड़े गये है जिसमें क़रीब 2,60,000 लोगों को बेघर होना पड़ा है। जी-20 में आए हुए प्रतिनिधि, यानी अन्य देशों के लुटेरे और हुक्मरान जो इन देशों में हमारे मेहनतकश भाइयों-बहनों को लूटते हैं, राजघाट पर गाँधी के समाधि स्थल को देखने जा सकते हैं! इस कारण राजघाट के आसपास के इलाक़ों से मेहनतकशों के घरों को तोड़ दिया गया है। इसके साथ ही महरौली में भी ये प्रतिनिधि ऐतिहासिक भ्रमण के लिए जा सकते हैं इस कारण यहाँ पर दशकों से बसे घरों को तोड़ दिया गया। तुगलकाबाद में भी घरों को तोड़ा गया।

‘आधुनिक रोम’ में ग़ुलामों की तरह खटते मज़दूर

गुड़गाँव के इफ़्को चौक मेट्रो स्टेशन से गुड़गाँव शहर (या भाजपा द्वारा किये नामकरण के अनुसार गुरुग्राम) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आप किसी जादुई नगरी में आ गये हों। आधुनिक स्थापत्यकला (तकनीकी भाषा में कहें तो ‘उत्तरआधुनिक स्थापत्यकला’) के एक से एक नमूनों में शीशे-सी जगमगाती मीनारों की आड़ी-तिरछी आकृतियों से शहर की रंगत अलग ही लगती है। पर इस जगमग शहर की सड़कों पर मज़दूरों को अपने परिवारों के साथ घूमने की इजाज़त नहीं, इस शहर के पार्कों में हम जा नहीं सकते, भले ही सड़कों को चमकाने और पार्कों को सुन्दर बनाने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर ही आती हो।

बढ़ती महँगाई और मज़दूरों के हालात

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ याद कीजिए ये नारा 2014 में खूब प्रचलित हुआ था। आज इस मोदी सरकार को आए 7 साल से अधिक हो गए। जहां एक तरफ बढ़ती महँगाई से पूँजीपति अकूत मुनाफ़ा बना रहा हैं, जिसमें मोदी सरकार उनका भरपूर साथ दे रही है, जहां बीते एक वर्ष में महँगाई बेरोज़गारी ने आम जनता की कमर तोड़ कर रख दी है, वहीं मोदी के चहेते अदानी की संपत्ति बीते एक साल में 57 अरब डॉलर बढ़ी है। साल 2022 में अब तक कमाई के मामलें में गौतम अडानी टॉप पर हैं।

मई दिवस 1886 से मई दिवस 2022 : कितने बदले हैं मज़दूरों के हालात?

इस वर्ष पूरी दुनिया में 136वाँ मई दिवस मनाया गया। 1886 में शिकागो के मज़दूरों ने अपने संघर्ष और क़ुर्बानियों से जिस मशाल को ऊँचा उठाया था, उसे मज़दूरों की अगली पीढ़ियों ने अपना ख़ून देकर जलाये रखा और दुनियाभर के मज़दूरों के अथक संघर्षों के दम पर ही 8 घण्टे काम के दिन के क़ानून बने। लेकिन आज की सच्चाई यह है कि 2022 में कई मायनों में मज़दूरों के हालात 1886 से भी बदतर हो गये हैं। मज़दूरों की ज़िन्दगी आज भयावह होती जा रही है। दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए 12-12 घण्टे खटना पड़ता है।

जिनकी मेहनत से दुनिया जगमगा रही है वे अँधेरे के साये में जी रहे हैं

इलाहाबाद में संगम के बग़ल में बसी हुई मज़दूरों-मेहनतकशों की बस्ती में विकास के सारे दावे हवा बनकर उड़ चुके हैं। आज़ादी के 75 साल पूरा होने पर सरकार अपने फ़ासिस्ट एजेण्डे के तहत जगह-जगह अन्धराष्ट्रवाद की ख़ुराक परोसने के लिए अमृत महोत्सव मना रही है वहीं दूसरी ओर इस बस्ती को बसे 50 साल से ज़्यादा का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक यहाँ जीवन जीने के लिए बुनियादी ज़रूरतें, जैसे पानी, सड़कें, शौचालय, बिजली, स्कूल आदि तक नहीं हैं।

पर्यावरण और मज़दूर वर्ग

हर साल की तरह इस बार भी इस मौसम में दिल्ली-एनसीआर एक गैस चैम्बर बन गया है जिसमें लोग घुट रहे हैं। दिल्ली और आसपास के शहरों में धुँआ और कोहरा आपस में मिलकर एक सफ़ेद चादर की तरह वातावरण में फैला हुआ है, जिसमें हर इन्सान का साँस लेना दूभर हो रहा है। ‘स्मोक’ और ‘फॉग’ को मिलाकर इसे दुनियाभर में ‘स्मॉग’ कहा जाता है। मुनाफ़े की अन्धी हवस को पूरा करने के लिए ये पूँजीवादी व्यवस्था मेहनतकशों के साथ-साथ प्रकृति का भी अकूत शोषण करती है, जिसका ख़ामियाज़ा पूरे समाज को जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण के रूप में भुगतना पड़ता है।

कोरोना काल में मज़दूरों की जीवनस्थिति

आज देशभर के मज़दूर कोरोना की मार के साथ-साथ सरकार की क्रूरता और मालिकों द्वारा बदस्तूर शोषण की मार झेल रहे हैं। बीते वर्ष से अब तक पूरे कोरोनाकाल में मज़दूरों-मेहनतकशों का जीवन स्तर नीचे गया है। खाने-पीने में कटौती करने से लेकर वेतन में कटौती होने या रोज़गार छीने जाने से मज़दूरों के हालात बद से बदतर हुए हैं। कोरोना महामारी से बरपे इस क़हर ने पूँजीवादी व्यवस्था के पोर-पोर को नंगा करके रख दिया है।