ऑटोमोबाइल मज़दूर विकास की चिट्ठी
विकास, ऑटोमोबाइल मज़दूर, गुड़गाँव
मेरा नाम विकास कुमार है। मैं बिहार का रहनेवाला हूँ और हरियाणा में काम करता हूँ। मैं घर से करीब 1100 किलोमीटर दूर रोजी रोटी कमाने आया हूँ। मेरी उम्र 19 साल है। मैंने नवीं कक्षा तक की पढाई की है । तीन भाई और एक बहन में मैं सबसे बड़ा हूँ। मजबूरी के कारण मुझे कम उम्र में ही पढाई छोड़कर काम करने जाना पड़ा। मेरे पिताजी ऑटो चलाते थे, एक दिन उनकी गाडी पलट गयी जिसके कारण नौ लोग घायल हो गए, इस वजह से 3-4 लाख खर्च हो गया था, और क़र्ज़ चढ़ गया था। पढने की इच्छा थी फिर भी मुझे मजबूरी में आना पड़ा।
अगली बार जब गाँव गया तो, मेरे दोस्त मुझे दुबारा बहार जा कर कामने से रोक रहे थे, मेरी भी वही इच्छा थी लेकिन मुझे मजबूरी में आना पड़ा। जब मैं पहली बार गाँव से बहार निकला तो दिल्ली गया। वहाँ मैंने समयपुर बदली में पौचिंग लाइन में काम किया। बहुत काम करने के बावजूद वहाँ पर काम चलने लायक भी पैसा नहीं मिलता था। फिर मैं वहाँ से हरियाणा आया बिनोला गाँव में, यहाँ मेरे रिश्तेदार रहते थे। यहाँ पर बहुत सारे कारखाने थे। यहाँ अधिकतर कारखानों मैं गाड़ियों के पुर्जे बनते थे। तब मुझे समझ में आया कि जो गाड़ियाँ सड़कों पर बड़ी तेज़ी से दौड़ती हैं उन्हें मेरे जैसे लड़के और मज़दूर बनाते हैं। हर तरफ मजदूरों का रेला था। यहाँ से थोड़ी दूर पर मानेसर-गुडगाँव-धारूहेड़ा-बावल -हर तरफ़ मजदूरों का ऐसा ही झुण्ड दिखता था।
मैं अपने रिश्तेदार के साथ लॉज में उनके कमरे पर रुका। उन छोटे कमरों में मेरा दम घुटता है। एक कमरे में हमलोग 4 से 5 आदमी रहते हैं। मेरे रिश्तेदार मार्क एग्जौस्ट सिस्टम लिमिटेड मैं काम करते थे। उन्होंने मेरा काम मीनाक्षी पोलिमर्स में लगवा दिया। यहाँ पर करीब 100 लोग काम करते थे। यहाँ बहुत बुरी तरह से हमारा शोषण होता था। कम्पनी फ़र्श पर झाड़ू-पोछा भी लगवाती थी और कभी प्रोडक्शन का काम नहीं हो तो नाली वगैरह भी साफ़ करवाती थी। काम जबरिया दबाव में कराया जाता था, बारह घण्टे का काम आठ घण्टे में करवाया जाता था। अन्दर में बैठने की व्यवस्था नहीं था। बारिश के समय खाने पीने के लिए कोई जगह नहीं थी। गर्मी में काम करवाया जाता और पीने के लिए गर्म पानी दिया जाता। मैं दिन-रात मेहनत करता था ताकि कुछ पैसे कमा बचा सकूँ। लेकिन यहाँ मालिक ज़िन्दा रहने लायक भी पैसा नहीं दे रहा था। हम अपना हक माँग रहे हैं और मालिक दे नहीं रहा है, हम यूनियन बनाने का प्रयास कर रहे हैं मालिक बनने नहीं दे रहा है। मैं जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूँ, लेकिन मैं अब समझ गया हूँ कि मैं अकेले आगे नहीं बढ़ सकता। हम सबकी ज़िन्दगी ख़राब है इसीलिए हम सभी को एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए। इसीलिए दोस्तों और मजदूर भाइयो अपना हक माँगो और यूनियन बनाओ।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2024
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