भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के 94वें शहादत दिवस (23 मार्च) पर दिल्ली के शाहबाद डेरी में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की ओर से लगा ‘शहीद मेला’
आशीष
शहीदों की मज़ारों पर,
जुड़ेंगे हर बरस मेले!
वतन पर मरने वालों का,
बाक़ी यही निशाँ होगा!!
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा आयोजित दो दिवसीय (23 एवं 24 मार्च) शहीद मेले की शुरुआत भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु की तस्वीरों पर माल्यार्पण व ज़ोरदार नारों के साथ हुई। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता RWPI की सदस्य अदिति, पार्टी के वॉलण्टियर शमशाद एवं देवेन्द्र तथा गंगाराम अस्पताल की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अनिता महाजन ने की। कार्यक्रम का संचालन कर रही नौरीन ने बताया कि आज के फ़ासीवादी दौर में हमारे शहीद क्रान्तिकारियों के विचारों की प्रासंगिकता पहले से कहीं ज़्यादा है। आज के अँधेरे समय में भगतसिंह और उनके साथियों के विचार जलती हुई मशाल के समान हैं। शासक वर्ग इन विचारों को आम मेहनतकश जनता तक पहुँचने से रोकने की पूरी कोशिश करते रहे हैं। हम शहीद मेला जैसे कार्यक्रमों के ज़रिये इन इंक़लाबियों के विचारों को लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं। शहीद मेले का आयोजन हमारे महान क्रान्तिकारियों के सपनों को आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने और उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने का एक और संकल्प है। साथ ही यह मेला एक जनउत्सव भी है।
इसके नौजवान भारत सभा की ओर से प्रकाशित एक पुस्तिका का लोकार्पण किया गया।
मेले में प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट लीग के कलाकार साथियों द्वारा भगतसिंह के जीवनवृत्त और क्रान्तिकारी आन्दोलन के दौर के महत्वपूर्ण घटनाक्रम और आज के दौर में उसके महत्व पर केन्द्रित कला प्रदर्शनी लगायी गयी थी। शहीद मेला आयोजन समिति की सांस्कृतिक टीम की ओर से कई क्रान्तिकारी गीतों प्रस्तुति भी की गयी। इसके अलावा मेले में खाने-पीने के स्टॉल, झूले और बच्चों के लिए खेलकूद के स्टॉल भी लगाये गये थे। मेले के दौरान मेले में शाहबाद डेरी व आसपास के इलाक़े से क़रीब 4000-5000 लोगो ने भागीदारी की।
बुराड़ी के ‘सावित्रीबाई फुले-फ़ातिमा शेख’ पुस्तकालय के बच्चों ने भगतसिंह के विचारों और आज के वक़्त पर आधारित एक नाटक की प्रस्तुति की। इनमें से कई बच्चों ने भगतसिंह पर अपनी लिखी कई कविताएँ भी सुनायीं। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की सांस्कृतिक टोली ने शहीदों की याद में कई क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किये। इसके बाद शाहबाद डेरी के बच्चों की ओर से एक प्रेमचन्द की कहानी पर नाटक ‘ईदगाह’ प्रस्तुत किया गया। इलाक़े के बच्चों ने बहुत कम तैयारी के बावजूद शानदार समूह नृत्य भी पेश किये।
तर्कशील सोसाइटी (पंजाब) से आये रामकुमार जी ने बच्चों को जादू के खेल के ज़रिये कई अन्धविश्वासों से परदा हटाया और इनके विभिन्न “चमत्कारों” के पीछे के वैज्ञानिक कारणों के बारे में बताया।
शहीद मेला आयोजन समिति की सांस्कृतिक टोली की ओर से ‘हमें तुम्हारा नाम लेना है’ नामक नाटक की प्रस्तुति की गयी। नाटक की कथावस्तु भगतसिंह और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं, आज़ादी के आन्दोलन और समाज तथा भगतसिंह के वैचारिक पक्ष के इर्द-गिर्द रची गयी थी। नाटक में युवा कलाकार रउफ़ ने संगीत की शानदार प्रस्तुति दी। कलाकारों के अभिनय की दर्शकों ने भी खूब सराहना की।
नाटक में काकोरी के शहीदों को फाँसी का दृश्य दिखाते हुए अशफ़ाक़-बिस्मिल के एकता के पैग़ाम को जनता के सामने प्रमुखता से रेखांकित किया गया। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने कहा था कि सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है और इसी तरह यह सोचना भी फ़िज़ूल है कि पच्चीस करोड़ हिन्दुओं से इस्लाम क़बूल करवाया जा सकता है। मगर यह आसान है कि हम सब ग़ुलामी की ज़ंजीरें अपनी गर्दन में डाले रहें। रामप्रसाद बिस्मिल ने कहा था कि यदि देशवासियों को हमारे मरने का जरा भी अफ़सोस है तो वे जैसे भी हो हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करें यही हमारी आख़िरी इच्छा है, यही हमारी यादगारी हो सकती है।
महिलाएँ-बच्चे मेले में घूमने के लिए नये कपड़े पहनकर आ रहे थे। अपने इलाक़े में इस तरह के मेले का उनका पहला अनुभव था। मेले के दौरान केवल बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े लोगों ने भी इसमें काफ़ी दिलचस्पी दिखायी। लोगों ने कार्यक्रमों में शिरकत करने के अलावा गोलगप्पे, आइसक्रीम, फालूदा, पकौड़े आदि के स्टॉलों पर भी लुत्फ़ उठाया। बच्चों के लिए खेलने के स्टॉल भी मेले के दौरान काफ़ी गुलज़ार रहे।
RWPI की ओर से साथी अदिति ने कहा कि आज त्योहारों पर धार्मिक आवरण चढ़ा दिया गया है। एक वक़्त था जब इन त्योहारों को मनाने के पीछे का आधार खेती में फ़सल की कटाई और उसका सामूहिक जश्न होता था। लेकिन पूँजी के प्रवेश के बाद लोगों की ये सामूहिकता भी उनसे छीन ली गयी, और हर चीज़ को बाज़ार के हवाले कर दिया गया। इन त्योहारों को धार्मिक रंग देकर शासक वर्ग ने अपनी लूट-खसोट को धार्मिक वैधता प्रदान करने का काम किया है। आज तो यह एक क़दम और आगे बढ़ चुका है जब फ़ासीवादी ताक़तें अपने फ़ासीवादी प्रचार और दंगे कराने में त्योहारों का इस्तेमाल कर रही है। रामनवमी से लेकर होली और दिवाली जैसे त्योहारों को साम्प्रदायिक माहौल बनाने का ज़रिया बना दिया गया है।
ऐसे में मज़दूरों के इस तरह के मेलों की ज़रूरत और भी बढ़ जाती है। ऐसे कार्यक्रमों के ज़रिये हम आम मेहनतकश आबादी में सामूहिकता की भावना को फिर से जगाना चाहते हैं और साथ ही अपनी क्रान्तिकारी विरासत से लोगों को परिचित भी करा रहे हैं।
नौजवान भारत सभा के विशाल ने कहा कि भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हँसते-हँसते अपने देश की मेहनतकश जनता की असल मायने में स्वतन्त्रता की ख़ातिर अर्थात् मेहनतकशों के शासन का सपना आँखों में लिये अपनी जान की क़ुर्बानी दी थी। हमारे ये क्रान्तिकारी केवल बहादुर नायक मात्र नहीं थे, बल्कि विचारवान लोग थे। भगतसिंह युगान्तरकारी विचारक थे। हमारा यह कर्तव्य है कि हम उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाएँ। जेल से नौजवानों के नाम लिखे अपने एक पत्र में भगतसिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने कहा था कि आज नौजवानों को क्रान्ति का सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्ट्री-कारख़ानों के क्षेत्रों में, गन्दी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोंपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रान्ति की अलख जगानी है जिससे आज़ादी आयेगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।
मज़दूरों के लिए यह मेला एक यादगार अनुभव था। कुछ कमियों के बावजूद इस सफ़ल आयोजन के बाद इलाक़े में लोगों के हौसले बुलन्द हुए। अपने महान शहीदों के सपनों का समाज बनाने के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प मूर्त रूप में लोगों के समक्ष उपस्थित हुआ। इस तरह के मेले आम तौर पर मज़दूर इलाक़ों में नहीं होते। हज़ारों लोगों का मेले में शामिल होना मेले के प्रति उनकी दिलचस्पी को दर्शाता है। लोगों की भागीदारी केवल मेले में शामिल होने तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने इसकी पूरी तैयारी में योगदान दिया। टेण्ट लगाने से लेकर, सजावट करने तक के काम में इलाक़े के नौजवान वॉलण्टियर बने। मेले में हुए ख़र्च का अधिकतम हिस्सा भी इलाक़े से ही जुटाया गया। मेले के दौरान आने वालों ने भी आर्थिक सहयोग किया। इससे यह भी साबित हुआ कि आम मेहनतकश आबादी अपने संसाधनों के दम पर अपने संघर्षों के साथ-साथ अपने उत्सवों और जश्न भी आयोजित कर सकती है। भविष्य में इस क़िस्म के कार्यक्रमों का नियमित आयोजन किया जायेगा।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2025
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