भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के 94वें शहादत दिवस (23 मार्च) पर दिल्ली के शाहबाद डेरी में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की ओर से लगा ‘शहीद मेला’
मज़दूरों के लिए यह मेला एक यादगार अनुभव था। कुछ कमियों के बावजूद इस सफ़ल आयोजन के बाद इलाक़े में लोगों के हौसले बुलन्द हुए। अपने महान शहीदों के सपनों का समाज बनाने के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प मूर्त रूप में लोगों के समक्ष उपस्थित हुआ। इस तरह के मेले आम तौर पर मज़दूर इलाक़ों में नहीं होते। हज़ारों लोगों का मेले में शामिल होना मेले के प्रति उनकी दिलचस्पी को दर्शाता है। लोगों की भागीदारी केवल मेले में शामिल होने तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने इसकी पूरी तैयारी में योगदान दिया। टेण्ट लगाने से लेकर, सजावट करने तक के काम में इलाक़े के नौजवान वॉलण्टियर बने। मेले में हुए ख़र्च का अधिकतम हिस्सा भी इलाक़े से ही जुटाया गया। मेले के दौरान आने वालों ने भी आर्थिक सहयोग किया। इससे यह भी साबित हुआ कि आम मेहनतकश आबादी अपने संसाधनों के दम पर अपने संघर्षों के साथ-साथ अपने उत्सवों और जश्न भी आयोजित कर सकती है। भविष्य में इस क़िस्म के कार्यक्रमों का नियमित आयोजन किया जायेगा।