Category Archives: विकल्‍प का ख़ाका

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (सातवीं किस्त)

“कम्युनिस्ट हर देश की मज़दूर पार्टियों के सबसे उन्नत और कृतसंकल्प हिस्से होते हैं, ऐसे हिस्से जो औरों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं; दूसरी ओर, सैद्धान्तिक दृष्टि से, सर्वहारा वर्ग के विशाल जन-समुदाय की अपेक्षा वे इस अर्थ में उन्नत हैं कि वे सर्वहारा आन्दोलन के आगे बढ़ने के रास्ते की, उसके हालात और सामान्य अन्तिम नतीजों की सुस्पष्ट समझ रखते हैं।”

मज़दूरों-मेहनतकशों के लिए लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के मायने – भावी सम्भावनाएँ, भावी चुनौतियाँ और हमारे कार्यभार

लोकसभा चुनाव के इस नतीजे का मुख्य कारण यह है कि बेरोज़गारी, महँगाई, भयंकर भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता से जनता त्रस्त थी और भाजपा की जनविरोधी और अमीरपरस्त नीतियों की वजह से उसकी जनता में भारी अलोकप्रियता थी। यही वजह थी कि आनन-फ़ानन में अपूर्ण राम मन्दिर के उद्घाटन करवाने का भी भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं मिला और फ़ैज़ाबाद तक की सीट भाजपा हार गयी, जिसमें अयोध्या पड़ता है।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (छठी किस्त)

सर्वहाराओं का एक वर्ग के रूप में संगठन और फलतः एक राजनीतिक पार्टी के रूप में उनका संगठन उनकी आपसी होड़ के कारण बराबर गड़बड़ी में पड़ जाता है। लेकिन हर बार वह फिर उठ खड़ा होता है – पहले से भी अधिक मज़बूत, दृढ़ और शक्तिशाली बनकर। ख़ुद बुर्जुआ वर्ग की भीतरी फूटों का फायदा उठाकर वह मज़दूरों के अलग-अलग हितों को क़ानूनी तौर पर भी मनवा लेता है। इंग्लैण्ड में दस घण्टे के काम के दिन का क़ानून इसी तरह पारित  हुआ था।

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा : फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ बुनियादी सवालों पर मेहनतकश जन समुदाय को जगाने और संगठित करने की मुहिम

आज देश की मेहनतकश जनता को इन माँगों पर अपने जुझारू जनान्दोलन खड़े करने होंगे, मौजूदा जनविरोधी सरकार को सबक सिखाना होगा और अपने जुझारू आन्दोलन के बूते यह सुनिश्चित करना होगा कि 2024 में आने वाली कोई भी सरकार हमारी इन माँगों को नज़रन्दाज़ न कर सके। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि जो सरकार जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखे, उसे उखाड़ फेंकना उसका अधिकार ही नहीं उसका कर्तव्य है। आज शहीदे-आज़म के इस सन्देश पर अमल करने का वक़्त है। आइये, हमारी इस मुहिम में, हमारे इस आन्दोलन में शामिल हों और एक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष का हिस्सा बनें।

फ़ासीवाद को परास्त करने के लिए सर्वहारा रणनीति पर कुछ ज़रूरी बातें

चूँकि आर्थिक संकट जारी है, लिहाज़ा भारत में समूचे पूँजीपति वर्ग के बहुलांश का मोदी-शाह की सत्ता, भाजपा और संघ परिवार के साम्प्रदायिक फ़ासीवाद को खुला समर्थन जारी है। क्योंकि उन्हें एक “मज़बूत नेता” की ज़रूरत है, जो मज़बूती से पूँजीपतियों यानी मालिकों, ठेकेदारों, बिचौलियों, दलालों, धनी कुलकों व पूँजीवादी फार्मरों, समृद्ध दुकानदारों, बिल्डरों आदि के हितों की रखवाली करने के लिए आम मेहनतकश जनता पर लाठियाँ, गोलियाँ चलवा सके, उन्हें जेलों में डाल सके और इस सारे कुकर्म को “राष्ट्रवाद”, “धर्म”, “कर्तव्य”, “सदाचार” और “संस्कार” की लफ़्फ़ाज़ियों और बकवास से ढँक सके। बाकी, भाजपाइयों व संघियों के “चाल, चेहरा, चरित्र” से तो समझदार लोग वाक़िफ़ हैं ही और जो नहीं हैं वह पिछले 9 सालों में लगातार राफ़ेल घोटाले, पीएम केयर फ़ण्ड घोटाले, भाजपाइयों द्वारा किये गये बलात्कारों, अडानी-हिण्डनबर्ग मसले और व्यापम घोटाले जैसी घटनाओं में देखते ही रहे हैं। “राष्ट्रवादी शुचिता, संस्कार और कर्तव्य” की भाजपाइयों और संघियों ने विशेषकर पिछले 9 सालों में तो मिसाल ही क़ायम कर दी है!

नये साल में मज़दूर वर्ग के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

इस सदी का एक और साल बीत गया। बिना तैयारी के लगाये गये लॉकडाउन, लचर स्वास्थ्य व्यवस्था तथा सरकार के ग़रीब-विरोधी रुख़ के चलते कोविड की दूसरी लहर में आम मेहनतकश जनता ने अकल्पनीय दुख-तकलीफ़ें झेलीं। लॉकडाउन के बाद सामान्य दौर में भी मज़दूरों के जीवन में कोई बेहतरी नहीं हुई है। असल में आर्थिक संकट से जूझती अर्थव्यवस्था में मज़दूरों को कोविड के बाद कम वेतन पर तथा अधिक वर्कलोड पर काम करने पर पूँजीपति वर्ग ने मजबूर किया है। लॉकडाउन व कोविड महामारी की आपदा को देश के धन्नासेठों ने अपने सरगना नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर अच्छी तरह से “अवसर” में तब्दील किया है!

दिल्ली एमसीडी चुनाव में मेहनतकश जनता के समक्ष विकल्प क्या है?

4 दिसम्बर को दिल्ली में एमसीडी के चुनाव होने वाले हैं। मतलब यह कि फिर से सभी चुनावबाज़ पार्टियों द्वारा झूठे वादों के पुल बाँधे जायेंगे। चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी, सभी के द्वारा जुमले फेंके जायेंगे। ऐसे में मेहनतकश जनता के पास सिर्फ़ कम बुरा प्रतिनिधि चुनने का ही विकल्प होता है और आज के समय में तो कम बुरा तय करना भी मुश्किल होता जा रहा है। सच्चाई तो यही है कि इन सभी में से कोई भी मज़दूर-मेहनतकश जनता का विकल्प नहीं है।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (चौथी क़िस्त) – पार्टी का राजनीतिक प्रचार और जनसमुदाय

मज़दूर वर्ग की पार्टी का राजनीतिक प्रचार किस प्रकार ट्रेड यूनियनवाद से अलग होता है इस प्रश्न पर लेनिन की अर्थवादियों से लम्बी बहस चली। पिछले लेख में हमने ज़िक्र किया था कि किस तरह हड़ताल आन्दोलन के उभार के समय स्वतःस्फूर्ततावाद के पूजक अर्थवादी लोग मज़दूरों के बीच कम्युनिस्टों के प्रचार को केवल आर्थिक माँगों के लिए संघर्ष तक सीमित रखते थे। परन्तु कम्युनिस्टों का ख़ुद को मज़दूरों की आर्थिक माँगें उठाने तक सीमित करना ही अर्थवाद नहीं कहलाता है बल्कि मज़दूर वर्ग के अलावा जनसमुदाय की माँगों को अनदेखा करना भी अर्थवाद कहलाता है। ऐसा क्यों है? इसे समझने के लिए हमें कम्युनिस्ट राजनीति के सार को समझना होगा।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (तीसरी क़िस्त) – मज़दूरों का आर्थिक संघर्ष और राजनीतिक प्रचार का सवाल

देश के क्रान्तिकारियों के समक्ष मज़दूर आन्दोलन में मौजूद अर्थवादी भटकाव एक बड़ी चुनौती है। केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की संशोधनवादी ग़द्दारी के साथ ही कई तथाकथित “क्रान्तिकारी” भी अर्थवाद की बयार में बह चुके हैं। मज़दूरवाद, अराजकतावादी संघाधिपत्यवाद तो दूसरी तरफ़ वामपन्थी दुस्साहसवाद की ग़ैर-क्रान्तिकारी धाराएँ मज़दूरों के बीच क्रान्तिकारी राजनीति को स्थापित नहीं होने देती हैं।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (दूसरी क़िस्त) – मज़दूर वर्ग की पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी प्रचार होता है

मज़दूर वर्ग की पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी होता है। यह प्रचार मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश जनता से ही निर्धारित होता है। यानी क्रान्तिकारी प्रचार के लिए सही विचार, सही नारे, और सही नीतियाँ आम मेहनतकश जनता के सही विचारों को संकलित कर, उसमें से सही विचारों को छाँटकर, सही विचारों के तत्वों को छाँटकर और उनका सामान्यीकरण करके ही सूत्रबद्ध किये जा सकते हैं। लेनिन बताते हैं कि “मज़दूरों के आम हितों और आकांक्षाओं के आधार पर, ख़ासकर उनके आम संघर्षों के आधार पर, कम्युनिस्ट प्रचार और आन्दोलन की कार्रवाई को इस प्रकार चलाना चाहिए कि वह मज़दूरों के अन्दर जड़ें जमा ले।” यही बात आम मेहनतकश जनता के बीच किये जाने वाले प्रचार के लिए भी सही है।