मज़दूर परिवार जान की गुहार लगाता रहा लेकिन प्रशासन चुनावी ताम-झाम में लगा रहा

गुरुदास, सिधानी (हरियाणा)

हरियाणा प्रदेश के फतेहाबाद जिले में बसा छोटा सा गाँव गुल्लरवाला, जहाँ की लगभग 90% आबादी मजदूर वर्ग मेहनतकश वर्गों से सम्बन्धित है। गाँव में रहने वाले अधिकतर मजदूर कुई खुदाई का कार्य करते हैं। केवल गाँव में ही नहीं आसपास के क्षेत्र में भी कुई खुदाई का कार्य इसी गाँव के लोग करते आए हैं। कुई खुदाई करते समय मिट्टी के गिर जाने का खतरा निरन्तर बना रहता है। मौत के मुँह में कार्य करते इन लोगों का पीढ़ी दर पीढ़ी दशकों से मजदूरी के नाम पर कुई खुदाई का कार्य इनका पेशा बन चुका है। अधिकतर परिवार गरीब हैं और जीवनयापन के लिए जान जोखिम में डालकर काम करना पड़ता है।

अभी हाल में 4 अक्टूबर 2024 को, जहाँ एक तरफ हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव की आखिरी तैयारियाँ जोरों शोरों पर चल रही थी इसी बीच गाँव में मातम छा गया। दरअसल हुआ यह कि गाँव के पाँच युवक जिनमें अधिकतर युवा थे और एक अधेड़ उम्र का रमेश, एक खेत में ट्यूबेल लीक होने की मरम्मत के लिए ट्यूबवेल के पास खुदाई करने चले गये। यह काम खेत के मालिक ने उनको दिया था। ट्यूबेल के साथ-साथ खुदाई करते हुए जहाँ से ट्यूबवेल लीक था वहाँ पर उनको पाइप की मरम्मत करनी थी चाहे वह कितनी भी गहराई में क्यों ना हो। तंगहाली से गुजरते समय में आखिर वह मजदूरी से कैसे मना कर सकते थे और उन्होंने खुदाई का कार्य शुरू कर दिया। लगभग 45 फीट खोदने के बाद जब ट्यूबवेल लीक का कुछ पता नहीं चला तो उनमें से दो युवक घर वापस आ गये। शर्त लेकिन यह थी की यदि वह मज़दूर कार्य को बीच में छोड़ते तो उनको इस हालत में कोई भी मज़दूरी नहीं मिलती। लगातार खुदाई होती गई और गहराई के साथ ट्यूबवेल के पानी खींचने की वजह से मिट्टी बिल्कुल नरम हो चुकी थी। वह अपने औजारों के साथ खुदाई करता हुआ लगभग 60 फीट नीचे तक जा चुका था। इसी दौरान शाम के लगभग 5:00 बजे के करीब एक अनहोनी हुई हुई और आस-पास की मिट्टी खुदाई करते हुए युवक के ऊपर गिर गई। जब तक आसपास के लोग कुछ करते , तब तक युवक अपनी जान गँवा चुका था। आसपास के लोगों ने अपने स्तर पर जितना वह कर सकते थे, किया।

बचाव कार्य चलाया गया परन्तु कुछ भी हाथ नहीं लगा पूरी रात गुजर गई किन्तु यह मज़दूर का कुछ भी अता-पता नहीं था। परिजनों के पास जब खबर पहुँची तो परिवार में मातम छा गया। अभी तक कोई भी सरकारी कर्मचारी मौके पर नहीं पहुँचा था। ग्रामीणों में रोष भर गया। 5 अक्टूबर को जब हरियाणा विधानसभा के चुनाव गाँव के सरकारी स्कूल में हो रहे थे तो गाँव वालों ने वहाँ पर उपस्थित अधिकारियों के सामने रोष प्रदर्शन किया और मदद की गुहार लगाई। मौके पर जिला उपायुक्त  को उपस्थित होना पड़ा तथा स्थिति को सँभालने के लिए पुलिस कर्मियों को निर्देश दिए गये कि ग्रामीणों को वहाँ से भगा दिया जाए । पुलिसकर्मियों के साथ ग्रामीण की झड़प भी हुई और अन्त में पुलिसकर्मियों द्वारा ग्रामीणों को वहाँ से भगा दिया गया। मज़दूर रमेश के दो बच्चे जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है, पत्नी , पिता और माँ द्वारा प्रशासन व ग्रामीणों से मदद की अपील की गई किन्तु ग्रामीणों व कुछ समाजसेवी संगठनों के अलावा प्रशासन द्वारा मौके पर किसी भी प्रकार की सहायता नहीं की गई।

प्रशासन अपने चुनाव में व्यस्त था और दूसरी तरफ युवक को निकालने के लिए लगातार कोशिश हो रही थी। न कोई सांसद और न ही कोई विधायक मौके पर पहुँचा। चुनाव खत्म होने के अगले दिन प्रशासन द्वारा एक टीम भेजी गई जिसने इतनी धीमी गति से बचाव कार्य किया कि अगले 5 दिनों में युवक को लगभग 75 फुट नीचे से निकाला गया।

पूँजीवाद लोकतन्त्र की सच्चाई अब इससे ज्यादा क्या साबित होगी कि एक युवक की जिन्दगी से महत्वपूर्ण चुनाव सम्पन्न करवाना था! इस गली सड़ी व्यवस्था में ऐसी घटनाएँ कोई नयी बात नहीं है। देशभर में खतरनाक कार्यों को बिना सुरक्षा उपकरणों के करते हुए मजदूरों की जिन्दगियाँ हर रोज मौत के मुँह में चली जाती हैं और प्रशासन के लिए यह महज एक दुर्घटना होती है किन्तु जिन परिवारों से कोई चला जाता है उनकी जिन्दगी गरीबों के बोझ तले और भी दब जाती है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सरकार द्वारा कोई मुआवजा नहीं दिया जाता अगर थोड़ा बहुत मुआवजा दिया भी जाता है तो उसका मकसद ये होता है कि मज़दूर परिवार न्याय के लिए आवाज ना उठा सकें और उनके गुस्से पर कुछ ठण्डे पानी के छींटे पड़ जाएँ।

 

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2024 – जनवरी 2025


 

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