Category Archives: मज़दूर बस्तियों से

अनियोजित लॉकडाउन में बदहाल होते मुम्बई के मेहनतकशों के हालात

मानखुर्द, मुम्बई के सबसे बाहरी छोर पर आता है और सबसे ग़रीब इलाक़ों में से एक है। यहाँ मज़दूरों, मेहनतकशों और निम्न मध्यम वर्ग के रिहायशी इलाक़े आपस में गुँथे-बुने ढंग से मौजूद हैं। मुम्बई की इन्हीं बस्तियों में रहने वाली मज़दूर-मेहनतकश आबादी, पूरे मुम्बई के तमाम इलाक़ों को चलाने और चमकाने का काम करती है।

अडाणी को 1 लाख 70 हज़ार एकड़ प्राचीन जंगल माइनिंग के लिए सौंपने वाली मोदी सरकार फ़रीदाबाद में दशकों से बसे हज़ारों घरों को वन संरक्षण के नाम पर उजाड़ रही है!

पिछले महीने की सात तारीख़ को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-हरियाणा सीमा पर फ़रीदाबाद ज़िले के लाल कुआँ इलाक़ा स्थित खोरी गाँव के दस हज़ार से ज़्यादा घरों को बिना किसी पुनर्वासन या मुआवज़े के तोड़ने का फ़ैसला फिर से दुहराया। अपने निर्णय पर अड़े रहते हुये हरियाणा सरकार व फ़रीदाबाद नगर निगम को छह हफ़्ते के अन्दर बेदख़ली प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है।

मुम्बई : मेहनतकशों की ठण्डी हत्याओं की राजधानी

देश की आर्थिक राजधानी कहे जाना वाला मुम्बई शहर सही मायने में पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा मुनाफ़े की हवस को बुझाने के लिए की जाने वाली आम मेहनतकशों की ठण्डी हत्याओं की भी राजधानी है। इन हत्याओं को अक्सर प्राकृतिक दुर्घटनाओं, हादसों आदि का नाम दे दिया जाता है और बहुत सफ़ाई से लूट और मुनाफ़े के लिए की जाने वाली इन हत्याओं पर प्रशासनिक लीपापोती कर दी जाती है।

दिल्ली के शाहाबाद डेरी में मज़दूर बस्तियों के बगल में बनाये गये श्मशान को हटाने का संघर्ष और सरकारी तंत्र का मकड़जाल!

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान सरकार की बदइंतज़ामी ने हजारों लोगों की असमय जान ली। मरने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि लाशों के लिए जगह कम पड़ गयी। कहीं लाशों को नदियों में बहाया गया तो कहीं नये-नये शमशान खोले जा रहे थे। ऐसा ही एक श्मशान अप्रैल महीने में उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के शाहाबाद डेरी के रिहायशी इलाक़े में बनाया गया। तब दिल्ली में कोविड से मरने वालों की संख्या 4 से 5 हज़ार तक बतायी जा रही थी (ज़मीनी हकीकत इससे कहीं अधिक बदतर थी)।

बिना योजना थोपा गया लॉकडाउन और मज़दूरों के हालात

हमारा देश आज ज्वालामुखी के दहाने पर बैठा धधक रहा है। दूसरी तरफ़ हमारे देश का नीरो बाँसुरी बजा रहा है। कोरोना महामारी से बरपे इस क़हर ने पूँजीवादी स्वास्थ्य व्यवस्था के पोर-पोर को नंगा कर के रख दिया है। एक तरफ़ देश में लोग ऑक्सीजन, बेड, दवाइयों की कमी से मर रहे हैं, दूसरी तरफ़ फ़ासीवादी मोदी सरकार आपदा को अवसर में बदलते हुए पूँजीपतियों की तिजोरियाँ भरने में मग्न है। जब कोरोना की पहली लहर के ख़त्म होने के बाद देश भर की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहिए था, तब यह निकम्मी सरकार चुनाव लड़ने में व्यस्त थी।

लॉकडाउन के बाद दिल्ली में मज़दूरों के हालात

बीते वर्ष मार्च में कोरोना महामारी की वजह से जो लॉकडाउन लगा था, उसमें मज़दूरों के साथ कितना ज़ुल्म हुआ था, वह किसी से छुपा नहीं है। लाखों-करोड़ों की संख्या में मज़दूर देश के महानगरों को छोड़कर गाँव पलायन करने के लिए मजबूर हुए थे। जिसका कारण मोदी सरकार द्वारा बिना किसी तैयारी के लगाया गया लॉकडाउन था। यही हालात दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी छोर पर बसे बवाना-नरेला-बादली जैसे औद्योगिक क्षेत्रों के भी थे।

ओखला औद्योगिक क्षेत्र : एक रिपोर्ट

ओखला औद्योगिक क्षेत्र के रिहायशी इलाक़ों में घूमते हुए हम बंगाली कॉलोनी, जेजे कॉलोनी और नेपाली कॉलोनी गये। इन जगहों पर छोटे-छोटे प्लॉटों को जिस तरह काटकर घर बनाये गये हैं, उसे देखकर लगता है कि भवन निर्माण के असल आश्चर्य ऐफ़िल टावर नहीं, ऐसे घर ही हैं। पतली-पतली गलियों के ऊपर बीम डालकर छोटे-छोटे कमरे बनाये गये हैं।

ओखला औद्योगिक क्षेत्र : मज़दूरों के काम और जीवन पर एक आरम्भिक रिपोर्ट

चौड़ी-चौड़ी सड़कों के दोनों तरफ़ मकानों की तरह बने कारख़ाने एक बार को देख कर लगता है कि कहीं यह औद्योगिक क्षेत्र की जगह रिहायशी क्षेत्र तो नहीं। कई कारख़ाने तो हरे-हरे फूलदार गमलों से सज़े इतने ख़ूबसूरत मकान से दिखते हैं कि वहम होता है शायद यह किसी का घर तो नहीं। लेकिन नहीं ओखला फेज़ 1 और ओखला फेज़ 2 के मकान जैसे दिखने वाले कारख़ाने और कारख़ानों जैसे दिखने वाले कारख़ाने, सभी एक समान मज़दूरों का ख़ून निचोड़ते हैं…

लाखों दिहाड़ी व कैज़ुअल मज़दूरों के लिए अब भी हैं लॉकडाउन जैसे ही हालात

कोरोना नियंत्रण के नाम पर बिना किसी योजना के किये गये लॉकडाउन के बाद अनलॉक करने के भी कई दौर निकल चुके हैं और देश के अधिकांश हिस्सों में ऊपरी तौर पर लॉकडाउन जैसे हालात नज़र नहीं आ रहे हैं। बाज़ारों में भीड़ बढ़ रही है। आबोहवा में प्रदूषण और नदियों में गन्दगी फिर से लौट आयी है। धार्मिक स्थल भी खुल चुके हैं और सरकार की सरपरस्ती में त्योहारों के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने की परम्परा को भी धड़ल्ले से आगे बढ़ाया जा रहा है।

उच्‍चतम अन्‍यायालय के आदेश से 48,000 परिवारों को बेघर करने की बर्बर मुहिम शुरू

सुप्रीम कोर्ट ने देश की राजधानी में रेल पटरियों के पास बनी 48,000 झुग्गियों को अगले तीन महीने में हटा देने का आदेश जारी कर दिया है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसे मार्च और अप्रैल में सड़कों पर चल रहे करोड़ों मज़दूरों की हालत पर सुनवाई करने के लिए समय नहीं मिल रहा था। और अब हज़ारों मज़दूरों और उनके बच्‍चों को सड़क पर फेंक देने का आदेश जारी करने में उसे ज़रा भी समय नहीं लगा।