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हरियाणा के धारूहेड़ा में हीरो मोटोकार्प कम्पनी में इमारत गिरने से एक की मौत 5 मज़दूर घायल

हर मालिक अपने मुनाफ़े को बरक़रार रखने के लिए मज़दूरों से अत्यधिक काम करवाता है और मज़दूरों की ज़रूरत को पूरा करने वाले ख़र्च कम कर देता है। मज़दूरों की सुरक्षा पर ख़र्च उन्हें बेमतलब का ख़र्च लगता है। ऊपर से फ़ासिस्ट मोदी सरकार मालिकों को अपने यहाँ सबकुछ ठीक होने का ख़ुद सर्टिफि़केशन देने की इजाज़त दे रही है। इसी मुनाफ़े से पूँजीपति वर्ग नेता, मन्त्री और सरकारी एजेंसी को अपने हित के लिए इस्तेमाल कर लेता है। इसी वजह से मालिक हर रोज़ अपने मुनाफ़े की अन्धी हवस को पूरा करने के लिए मज़दूरों की जान को जोखिम में डालते हैं। नतीजतन आये दिन ऐसे अमानवीय व ख़तरनाक हादसे बढ़ते जा रहे हैं।

ऑटोमोबाइल सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन को पुलिस द्वारा बाधित करने की कोशिश!

अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन को बाधित करने के लिए पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई से पता चलता है कि अस्थायी मज़दूरों के एकजुट-संगठित होने के प्रयासों की शुरुआत से पुलिस प्रशासन, कम्पनियों के मालिकान और प्रबन्धन पर असर पड़ रहा है। उनका डर दिखायी दे रहा है। वे किसी भी क़ीमत पर ऑटो सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों को एकजुट होने से रोकना चाहते हैं। इससे पता चलता है कि अगर मालिक-प्रबन्धन-प्रशासन को मज़दूरों की कार्रवाई से तक़लीफ़ हो रही है, तो लड़ाई सही दिशा में आगे बढ़ रही है। सम्मेलन के एजेण्डा के बचे हुए कार्यभारों को अगले ही दिन मज़दूरों की ऑनलाइन मीटिंग में सम्पन्न किया गया जिसमें क़रीब 50 साथी शामिल हुए।

मारुति सुज़ुकी के अस्थायी मज़दूरों के प्रदर्शन पर दमन से पुलिस-प्रशासन और मारुति सुज़ुकी प्रबन्धन का गठजोड़ एक बार फिर से नंगा!

आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए ऑटोमोबाइल सेक्टर के सभी मज़दूरों को भी इसमें शामिल करना होगा। हम लोग जानते हैं कि 80-90 प्रतिशत आबादी तमाम अस्थायी मज़दूरों यानी ठेका, अप्रेण्टिस, फिक्सड टर्म ट्रेनी, नीम ट्रेनी, कैज़ुअल, टेम्परेरी मज़दूर आदि विभिन्न श्रेणी के अस्थायी मज़दूर हैं। इनकी भी वहीं माँगे हैं जो मारुति सुज़ुकी-सुज़ुकी के तमाम अस्थायी मज़दूरों की माँगें हैं।

ऑटोमोबाइल मज़दूर विकास की चिट्ठी

मैं अपने रिश्तेदार के साथ लॉज में उनके कमरे पर रुका। उन छोटे कमरों में मेरा दम घुटता है। एक कमरे में हमलोग 4 से 5 आदमी रहते हैं।  मेरे रिश्तेदार मार्क एग्जौस्ट सिस्टम लिमिटेड मैं काम करते थे। उन्होंने मेरा काम मीनाक्षी पोलिमर्स में लगवा दिया। यहाँ पर करीब 100 लोग काम करते थे। यहाँ बहुत बुरी तरह से हमारा शोषण होता था। कम्पनी फ़र्श पर झाड़ू-पोछा भी लगवाती थी और कभी प्रोडक्शन का काम नहीं हो तो नाली वगैरह भी साफ़ करवाती थी। काम जबरिया दबाव में कराया जाता था, बारह घण्टे का काम आठ घण्टे में करवाया जाता था। अन्दर में बैठने की व्यवस्था नहीं था। बारिश के समय खाने पीने के लिए कोई जगह नहीं थी। गर्मी में काम करवाया जाता और पीने के लिए गर्म पानी दिया जाता। मैं दिन-रात मेहनत करता था ताकि कुछ पैसे कमा बचा सकूँ। लेकिन यहाँ मालिक ज़िन्दा रहने लायक भी पैसा नहीं दे रहा था। हम अपना हक माँग रहे हैं और मालिक दे नहीं रहा है, हम यूनियन बनाने का प्रयास कर रहे हैं मालिक बनने नहीं दे रहा है। मैं जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूँ, लेकिन मैं अब समझ गया हूँ कि मैं अकेले आगे नहीं बढ़ सकता। हम सबकी ज़िन्दगी ख़राब है इसीलिए हम सभी को एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए। इसीलिए दोस्तों और मजदूर भाइयो अपना हक माँगो और यूनियन बनाओ।

गुड़गाँव से लेकर धारूहेड़ा तक की औद्योगिक पट्टी के मज़दूरों के जीवन और संघर्ष के हालात

समूचे ऑटो सेक्टर के मज़दूर आन्दोलन को संगठित कर ऑटो सेक्टर के पूँजीपति वर्ग और उसकी नुमाइन्दगी करने वाली सरकार के सामने कोई भी वास्तविक चुनौती देना तभी सम्भव है जब अनौपचारिक व असंगठित मज़दूरों को समूचे सेक्टर की एक यूनियन में एकजुट और संगठित किया जाय, उनके बीच से तमाम अराजकतावादी व अराजकतावादी-संघाधिपत्यवादी संगठनों को किनारे किया जाय जो लम्बे समय से उन्हें संगठित होने से वास्तव में रोक रहे हैं; और संगठित क्षेत्र के मज़दूरों को तमाम केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के समझौतापरस्त और दाँत व नाखून खो चुके नेतृत्व से अलगकर उस सेक्टरगत यूनियन से जोड़ा जाये। इन दोनों ही कार्यभारों को पूरा करना आज ऑटो सेक्टर के मज़दूर आन्दोलन को जुझारू रूप से संगठित करने के लिए अनिवार्य है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के बीच माँगपत्रक आन्दोलन की शुरुआत

देश के विकास का बखान करते वक़्त सबसे पहले ऑटोमोबाइल पट्टी की बात आती है और हो भी क्यों न? देश के सकल घरेलू उत्पाद का क़रीब 7.1 फ़ीसदी हिस्सा ऑटोमोबाइल सेक्टर से ही आता है। ऑटोमोबाइल सेक्टर के उत्पादन का आधा से अधिक हिस्सा गुडगाँव-मानेसर-धारुहेड़ा–बावल से लेकर भिवाड़ी-ख़ुशखेड़ा-नीमराना में फैली औद्योगिक पट्टी से आता है। यह पट्टी देशी-विदेशी पूँजी के लिए अकूत मुनाफ़़ा लूटने का चारागाह है। किन्तु, यहाँ पर काम कर रहे मज़दूरों का जीवन नर्क से बदतर है। यहाँ हज़ारों कारख़ाना इकाइयों में काम कर रहे लाखों मज़दूर प्रतिदिन 10-12 घण्टा कमरतोड़ मेहनत करने के बावजूद बमुश्किल किसी तरह 8-10 हज़ार रुपये  प्रतिमाह कमा पाते हैं। काम के हालात इस तरह हैं कि मज़दूरों को एक मिनट के अन्दर 13 प्रक्रियाओं से गुज़रना होता है।

आइसिन ऑटोमोटिव के मज़दूर कम्पनी प्रबन्धन के शोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष की राह पर

कम्पनी में लम्बे समय से काम कर रहे और संघर्ष की अगुवाई कर रहे जसबीर हुड्डा, अनिल शर्मा, उमेश, सोनू प्रजापति तथा अन्य मज़दूरों ने बताया कि कम्पनी में मज़दूरों के साथ लगातार बुरा व्यवहार किया जाता है। भाड़े के गुण्डों जिन्हें सभ्य भाषा में बाउंसर कह दिया जाता है और प्रबन्धन के लोगों द्वारा गाली-गलौज करना और गधे तक जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना आम बात है। काम कर रही स्त्री मज़दूरों के साथ भी ज़्यादतियाँ और छेड़छाड़ तक के मामले सामने आये, किन्तु संज्ञान में लाये जाने पर प्रबन्धन के उच्च अधिकारियों द्वारा इन्हें आम घटना बताकर भूल जाने की बात कही गयी। मज़दूरों ने अपनी मेहनत के बूते कम्पनी को आगे तो बढ़ाया किन्तु इसका ख़ामियाज़ा मज़दूरों को ही भुगतना पड़ा। शुरुआत में जहाँ एक ‘प्रोडक्शन लाइन’ पर 25 मज़दूर काम करते थे, वहीं अब उनकी संख्या घटकर 18 रह गयी। पहले जहाँ एक घण्टे में 120 पीस तैयार होते थे, वहीं अब उनकी संख्या 300 तक पहुँच गयी, किन्तु मज़दूरों के वेतन में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। कई मज़दूर साथियों के वेतन में तो सालाना 1 रुपये तक की भी बढ़ोत्तरी हुई है। ‘बोनस’ के नाम पर मज़दूरों को एक माह के वेतन के बराबर राशि देने की बजाय छाता और चद्दरें थमा दी जाती हैं। कम्पनी के कुछ बड़े अधिकारी तो सीधे जापानी हैं तथा अन्य यहीं के देसी लोग हैं, किन्तु मज़दूरों को लूटने में कोई किसी से पीछे नहीं है।

ओमैक्स के बहादुर मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

मुनाफ़े की हवस में अन्धे कम्पनी प्रबन्धन के लिए मज़दूर की ज़िन्दगी की क़ीमत महज़ एक पुर्जे जितनी है जिसे इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। परन्तु ओमैक्स के मज़दूर पूँजी की इस गुलामी के ि‍ख़‍लाफ़ अपनी फै़क्टरी गेट पर डेट हुए हैं। मज़दूरों को कम्पनी के अन्दर मौजूद स्थायी मज़दूरों के बीच एकता स्थापित होने का ख़तरा लम्बे समय से खटक रहा था। 6 मार्च को कम्पनी ने यूनियन बॉडी सहित 18 स्थायी मज़दूरों को काम से निकाल दिया और काम पर आने पर स्थायी मज़दूरों से एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा जिसके तहत मज़दूरों को मीटिंग करने व संगठित होने की मनाही थी। कुछ मज़दूरों ने नासमझी और भ्रम में इसपर हस्ताक्षर कर दिये लेकिन करीब 100 मज़दूरों ने ऐसा करने से मना कर दिया। वे हड़ताल पर बैठे हुए मज़दूरों के साथ आ गये और प्रबन्धन के विरुद्ध नारेबाजी करने लगे। यह इस संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण बिन्दु था, जहाँ स्थायी और अस्थायी मज़दूरों के बीच एक ज़बरदस्त एकता क़ायम की जा सकती थी और पूरे संघर्ष को एक नये मुक़ाम तक पहुँचाया जा सकता था। परन्तु यह नहीं किया गया बल्कि उल्टा सभी स्थायी मज़दूर वापस काम पर चले गये। यह क़दम इस संघर्ष को कितना नुक़सान पहुँचायेगा यह तो आने वाले वक़्त में ही पता चलेगा परन्तु अगर मज़दूर इस संघर्ष को अपनी फै़क्टरी गेट से पूरे सेक्टर तक लेकर जायें तो इस संघर्ष को विस्तृत किया जा एकता है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों की कड़ी में हीरो के मज़दूरों का नाम भी हुआ शामिल!

ऑटोमोबाइल सेक्टर में इस तरह सालों साल ठेके पर काम करवाने और स्थायी करने का समय आते ही नौकरी से निकाल देने की प्रथा बहुत पुरानी और आम बात है। यह नीति किसी एक फ़ैक्टरी या कम्पनी तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे सेक्टर के पोर-पोर में फैली हुई है। इसीलिए इस कुप्रथा से लड़ने के लिए आज पूरे सेक्टर के ठेका मज़दूरों को न सिर्फ़ हीरो के संघर्ष में उनका समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिए बल्कि ख़ुद को एक स्वतन्त्र क्राि‍न्तकारी सेक्टरगत यूनियन के तले गोलबन्द होने की ज़रूरत है।

होंडा के मजदूरों के समर्थन में गोरखपुर में विरोध प्रदर्शन

पिछले कई महीनों से होंडा फैक्ट्री से गैरकानूनी तरीके से निकाले गए मज़दूर अपनी मांगों को लेकर सड़क पर थे और अब मजदूरों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है। मज़दूरों के साथ ऐसा बरताव नया नहीं हैं, गोरखपुर के मज़दूर भी इसके गवाह हैं।