ग्रेटर नोएडा में बिजली संकट को लेकर एक बड़े जनआन्दोलन की तैयारी
हिण्डन नदी के किनारे बसे नोएडा-ग्रेटर नोएडा में लाखों लोग भीषण गर्मी में बिना बिजली के रहने को मजबूर!
ग्रेटर नोएडा के कुलेसरा-लखनावली-सुत्याना की जनता के जुझारू विरोध-प्रदर्शन के बाद तत्काल बिजली की सुविधा हुई बहाल!

आदित्य

पिछले साल ‘मज़दूर बिगुल’ के अगस्त और सितम्बर अंक में हमने बताया था कि कैसे हिण्डन नदी के किनारे नोएडा-ग्रेटर नोएडा के लाखों लोग अन्धकारमय ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं। हमने बताया था कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा के विकास के दौरान औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिए तो तमाम योजनाएँ तैयार थीं, लेकिन इसी प्रक्रिया में फैक्ट्रियों में काम करने वाले लाखों मज़दूरों के लिए कोई योजना नहीं थी। इसी का फ़ायदा छोटे कॉलोनाइज़रों और प्रॉपर्टी डीलरों ने उठाया और इन्होंने किसानों से सस्ते दामों पर ज़मीनें ख़रीद कर कॉलोनियाँ काटी तथा छोटे-छोटे प्लाट काटकर मज़दूरों को बेच दिये। इसी तरह की दो दर्जन से ज़्यादा कॉलोनियाँ हिण्डन नदी के दोनों तरफ बसी हैं। छिजारसी, चोटपुर, बहलोलपुर, पर्थला, खंजरपुर, सोरखा, ककराला इत्यादि नोएडा में तथा कुलेसरा, सुत्याना, लखनावली, जलपुरा आदि ग्रेटर नोएडा में ऐसे गाँव हैं जहाँ कई लाख मेहनतकश परिवार रह रहे हैं। इन कॉलोनियों में किसी प्रकार की कोई बुनियादी सुविधा नहीं है। सड़क, नाली, पार्क, बच्चों के लिए खेल के मैदान आदि जैसी सुविधाएँ तो दूर, यहाँ बिजली, साफ़ पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी मौजूद नहीं है।

आपको बताते चलें कि उपर्युक्त तमाम जगहों पर बिजली का कनेक्शन नहीं है और लोग कुछ जुगाड़ करके या सोलर पैनल के सहारे बिजली का इन्तज़ाम कर रहे हैं। एक बड़े हिस्से में बिजली माफियाओं और स्थानीय बाहुबलियों का बोलबाला है, जो इलाक़ों से उगाही करके बिजली विभाग के भ्रष्ट पदाधिकारियों के साथ मिलकर बिजली की सप्लाई कराते हैं।

कुलेसरा, सुत्याना लखनावली में एक सही संघर्ष की शुरुआत

इन्हीं इलाक़ों में कुलेसरा, सुत्याना व लखनावली भी शामिल है जहाँ बिजली की भयंकर समस्या है। यहाँ की कॉलोनियों में पिछले साल ‘एकता संघर्ष समिति’ के नेतृत्व में बिजली समस्या को लेकर पहली बार सही तरीक़े से संघर्ष शुरू हुआ था, जिसका ‘नौजवान भारत सभा’ भी पूरा समर्थन कर रहा है और लगातार इस संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। पिछले साल सितम्बर में ‘एकता संघर्ष समिति’ के ही नेतृत्व में एक महापंचायत बुलायी गयी थी, जिसमें हज़ार से भी ज़्यादा लोगों ने भागीदारी की थी।

इस साल जैसे ही गर्मी का मौसम शुरू हुआ, इलाक़ों में बिजली की समस्या फिर से शुरू हो गयी। कई जगहों पर लोग डेढ़ महीने तक बिना बिजली के रहने को मजबूर थे। ‘एकता संघर्ष समिति’ के नेतृत्व में बीते 22 मई को एक बड़ा प्रदर्शन किया गया था। इस प्रदर्शन को बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला और सैंकड़ो की संख्या में लोग अपने कामों से छुट्टी करके इस प्रदर्शन में शामिल हुए। प्रदर्शन में कुलेसरा, लखनावली और सुत्याना की जनता को एक बड़ी जीत मिली और प्रशासन को माँगपत्रक की 5 में से 4 माँगों को मानना पड़ा। प्रदर्शन के बाद जनता ने बड़ी रैली निकाल कर अपनी जीत का जश्न मनाया।

प्रदर्शन को रोकने की हर कोशिश नाकाम!

इस प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन, बिचौलिये और स्थानीय बाहुबलियों ने, जो इस प्रदर्शन को सफल होते नहीं देखना चाहते थे, अपना पूरा ज़ोर लगा दिया था। प्रदर्शन को रोकने के लिए प्रदर्शन शुरू होने के दो दिन पहले से ही नेतृत्व के साथियों पर पुलिस द्वारा दबाव बनाना शुरू कर दिया गया था। उनपर फ़र्ज़ी धाराएँ लगायी जा रही थीं और कुछ लोगों द्वारा फ़र्ज़ी शिक़ायत भी की गयी। लेकिन जब इसका कुछ असर नहीं हुआ तो पुलिस ने बड़ी संख्या में इलाक़े में आकर डराने-धमकाने की कोशिश की। हालाँकि लोगों की एकता के आगे पुलिस को झुकना पड़ा। प्रदर्शन नहीं होने देने के लिए तमाम इलाक़ों में अचानक से बिजली भी आ गयी, जहाँ पिछले डेढ़ महीने से बिजली नहीं थी! लेकिन जनता प्रशासन के इस झाँसे में नहीं आयी और अगले दिन प्रदर्शन के लिए निकल पड़ी।

पुलिस ने प्रदर्शन के दिन भी प्रदर्शन को रोकने के लिए डराने-धमकाने से लेकर दमन तक का सहारा लिया। लेकिन जनता की जुझारु एकजुटता के आगे नेतृत्व के साथियों को गिरफ़्तार करने की हर कोशिश नाकाम हो गयी और जनता ने पुलिस की गाड़ी से भी साथियों को बाहर निकाल लिया। इसके बाद इलाक़े के कुछ बिचौलिए और बाहुबली भी आकर बीच-बीच का समझौता करा कर प्रदर्शन ख़त्म करने की कोशिश में लगे थे, लेकिन जनता ने उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अब लगातार इन कॉलोनियों में बिजली आ रही है। स्थानीय बाहुबली और बिचौलियों द्वारा बिजली आपूर्ति बाधित करने की हर कोशिश नाकाम हो रही है। लोग लगातार संगठित हो रहे हैं। इस प्रदर्शन में प्रशासन को 5 में से 4 माँगे मानने को मजबूर होना पड़ा। पाँचवीं माँग बिजली कनेक्शन की माँग थी, जो सिर्फ़ डीएम के स्तर का मसला नहीं है। इसके लिए पहले ही एनजीटी और कोर्ट में कई केस चल रहे हैं। आगे बिजली कनेक्शन के लिए लोगों को बड़े प्रदर्शन के लिए तैयार किया जा रहा है, ताकि इसके ज़रिये क़ानून और न्यायपालिका पर भी दबाव बनाया जा सके। एक जुझारू जन-आन्दोलन के साथ ही क़ानूनी लड़ाई भी जीती जा सकती है।

क्यों मेहनतकश आबादी ही बिजली जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है?

दरअसल पूँजीवादी व्यवस्था में सरकार-प्रशासन से लेकर धन्नासेठों-अमीरज़ादों की जमातों तक मेहनतकश आबादी को इन्सान समझा ही नहीं जाता। इनके लिए ये बस काम करने वाली चलती-फिरती मशीन हैं, 12-14 घण्टे मज़दूरी करने वाले ग़ुलाम हैं और इसलिए ये मज़दूरों को कीड़े-मकोड़ों की तरह जीने के लिए छोड़ देते हैं। सत्ता में चाहे किसी भी चुनावबाज़ पार्टी की सरकार आ जाये, ये सभी तमाम अमीरों और पूँजीपतियों से चन्दे लेते हैं और इसलिए जीतकर आने के बाद तन-मन-धन से उनकी ही सेवा में लगे होते हैं। लेकिन इनमें भी फ़ासीवादी भाजपा यह काम सबसे अधिक तत्परता के साथ करती है और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तो इसमें काफ़ी ज़्यादा माहिर है। इसी का फ़ायदा तमाम बिचौलिये, दलाल और बाहुबली उठाते हैं जो लोगों की मजबूरी का इस्तेमाल कर अपना निजी फ़ायदा निकालते हैं। इन इलाक़ों में तो स्थानीय बाहुबली भी भाजपा का ही सदस्य है।

कुल मिलाकर, बिजली कनेक्शन के लिए संघर्ष तो एक लम्बी लड़ाई की शुरुआत है। आने वाले समय में तो बिजली के अधिकार के अलावा पानी, आवास, सड़क, नाली, स्कूल, अस्पताल आदि तमाम बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा ताकि जो अपनी मेहनत और ख़ून-पसीने के बूते पूरी दुनिया चलाने का काम करते हैं, उन्हें और उनके परिवारों को भी एक बेहतर ज़िन्दगी मिल सके।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2025

 

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