नौजवान भारत सभा का प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन
नौभास का यह सम्मेलन एक ऐसे समय में सम्पन्न हुआ जब 67 वर्षों की आज़ादी और तरक़्की का कुल अंजाम यह है कि आम मेहनतकशों के अथाह दुखों के सागर में समृद्धि के कुछ टापू उभर आये हैं, जिनपर विलासिता की मीनारें जगमगा रही हैं। पूँजीपतियों और धनिकों की ऊपर की पन्द्रह फ़ीसदी आबादी के लिए ही सारी तरक़्क़ी है। 70 करोड़ मेहनतकशों की आबादी नर्क से भी बदतर जीवन बिता रही है। अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाली जनता के दमन के लिए तरह-तरह के काले क़ानून हैं और बर्बर दमन तंत्र है। देशी पूँजीपतियों के साथ ही देश को विदेशी लूट का भी खुला चरागाह बना दिया गया है। हर साल खरबों रुपये का मुनाफ़ा विदेशी कम्पनियाँ ले जाती हैं और अरबों रुपये विदेशी कर्ज़ों का सूद भरने में ही चले जाते हैं। लोगों को बलपूर्वक उजाड़कर जल-जंगल-जमीन की अकूत सम्पदा सरकार देशी-विदेशी पूँजीपतियों को कौड़ियों के मोल दे रही है। पूँजी की मार से दिवालिया लाखों आम किसान आत्महत्या कर रहे हैं और करोड़ों कंगाल होकर मज़दूरों की कतारों में शामिल हो रहे हैं। बेरोज़गारी और मँहगाई को हल करने के सारे वायदे सुनते युवाओं की कई पीढ़ियाँ बुढ़ा गयीं, पर ये समस्याएँ घटने के बजाय बढ़ती ही गयी हैं।