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देश के विभिन्न हिस्सों में माँगपत्रक आन्दोलन-2011 की शुरुआत

यह एक महत्तवपूर्ण आन्दोलन है जिसमें भारत के मज़दूर वर्ग का एक व्यापक माँगपत्रक तैयार करते हुए भारत की सरकार से यह माँग की गयी है कि उसने मज़दूर वर्ग से जो-जो वायदे किये हैं उन्हें पूरा करे, श्रम कानूनों को लागू करे, नये श्रम कानून बनाये और पुराने पड़ चुके श्रम कानूनों को रद्द करे। इस माँगपत्रक में करीब 26 श्रेणी की माँगें हैं जो आज के भारत के मज़दूर वर्ग की लगभग सभी प्रमुख आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं और साथ ही उसकी राजनीतिक माँगों को भी अभिव्यक्त करती हैं। इन सभी माँगों के लिए मज़दूर वर्ग में व्यापक जनसमर्थन जुटाने के लिए आन्दोलन चलाने के वास्ते एक संयोजन समिति का निर्माण किया गया है जो आन्दोलन की आम दिशा और कार्यक्रम को तय करेगी।

8 मार्च के मौके पर ‘स्त्री मजदूर संगठन’ की शुरुआत

सभा में बड़ी संख्या में जुटी मेहनतकश औरतों को सम्बोधित करते हुए कविता ने कहा कि 8 मार्च को मनाया जाने वाला ‘अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस’ हर साल हमें हक, इंसाफ और बराबरी की लड़ाई में फौलादी इरादे के साथ शामिल होने की याद दिलाता है। पिछली सदी में दुनिया की औरतों ने संगठित होकर कई अहम हक हासिल किये। लेकिन गुजरे बीस-पच्चीस वर्षों से जमाने की हवा थोड़ी उल्टी चल रही है। लूट-खसोट का बोलबाला है। मजदूर औरत-मर्द बारह-चौदह घण्टे हाड़ गलाकर भी दो जून की रोटी, तन ढाँकने को कपड़े, सिर पर छत, दवा-इलाज और बच्चे की पढ़ाई का जुगाड़ नहीं कर पाते। मेहनतकश औरतों की हालत तो नर्क से भी बदतर है। हमारी दिहाड़ी पुरुष मजदूरों से भी कम होती है जबकि सबसे कठिन और महीन काम हमसे कराये जाते हैं। कई फैक्ट्रियों में हमारे लिए अलग शौचालय तक नहीं होते, पालनाघर तो दूर की बात है। दमघोंटू माहौल में दस-दस, बारह-बारह घण्टे खटने के बाद, हर समय काम से हटा दिये जाने का डर। मैनेजरों, सुपरवाइजरों, फोरमैनों की गन्दी बातों, गन्दी निगाहों और छेड़छाड़ का भी सामना करना पड़ता है। गरीबी से घर में जो नर्क का माहौल बना होता है, उसे भी हम औरतें ही सबसे ज्यादा भुगतती हैं।

पंजाब में क्रान्तिकारियों की याद में कार्यक्रम

नौजवान भारत सभा ने महान शहीदों – भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के 79वें शहादत दिवस के अवसर पर पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों – लुधियाना, मण्डी गोबिन्दगढ़, माछीवाड़ा, पख्खोवाल, रायकोट, जगराओं, नवाँ शहर, जोनेवाल, खन्ना, अलोड़ गाँव, जोनेवाल गाँव में जोरदार प्रचार अभियान चलाकर हजारों लोगों तक शहीदों के विचार पहुँचाये। इस अवसर पर बड़े पैमाने पर पंजाबी और हिन्दी में पर्चा भी बाँटा गया। शहीद भगतसिंह की तस्वीर वाला एक आकर्षक पोस्टर पंजाब के अनेक शहरों और गाँवों में दीवारों पर चिपकाया गया। लुधियाना, मण्डी गोबिन्दगढ़ और माछीवाड़ा में क्रान्तिकारी नाटकों और गीतों के जरिये शहीदों को श्रध्दांजलि की गयी।

‘क्रान्तिकारी जागृति अभियान’ का आह्वान – भगतसिंह की बात सुनो! नयी क्रान्ति की राह चुनो!!

चन्द्रशेखर आजाद के शहादत दिवस (27 फरवरी) से भगतसिंह के शहादत दिवस (23 मार्च) तक उत्तर-पश्चिम दिल्ली के मजदूर इलाकों में नौजवान भारत सभा, बिगुल मजदूर दस्ता, स्त्री मजदूर संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से ‘क्रान्तिकारी जागृति अभियान’ चलाया गया। अभियान टोली ने इस एक महीने के दौरान हजारों मजदूरों से सीधे सम्पर्क किया और उनका आह्वान करते हुए कहा कि चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू की शहादतों को याद करने का सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम मेहनतकश इन महान इन्कलाबियों के जीवन और विचारों से प्रेरणा लेकर पस्तहिम्मती के अंधेरे से बाहर आयें और पूँजी की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए कमर कसकर उठ खड़े हों।

एक तो महँगाई का साया, उस पर बस किराया बढ़ाया

डीटीसी के किरायों में इस बढ़ोत्तरी का असर सबसे ज्यादा उस निम्नमध्‍यवर्गीय आबादी और मज़दूरों पर पड़ेगा जो बसो के जरिए ही अपने कार्यस्थल पर पहुंचते हैं। मेट्रो के आने से उनके लिए बहुत फर्क नहीं पड़ा है। क्योंकि एक तो मेट्रो अभी सब जगह नहीं पहुंची है, दूसरा, उसका किराया वे लोग उठा नहीं सकते। और मज़दूरों और निम्नमध्‍यवर्ग के लोगों की बड़ी आबादी बसों से ही सफर करती है और एक अच्छी-खासी आबादी को रोज काम के लिए दूर-दूर तक सफर करना पड़ता है क्योंकि दिल्ली के सौंदर्यीकरण आदि के नाम पर गरीबों-मज़दूरों की बस्तियों को उजाड़कर दिल्ली के बाहरी इलाकों में पटक दिया गया है। अब कॉमनवेल्थ गेम के नाम पर उन्हें दिल्ली से और दूर खदेड़ा जा रहा है। अब डीटीसी के किरायों में सीधे दोगुनी वृद्धि से हर महीने 12-14 घंटे हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद 2000 से 2600 रुपये पाने वाले मज़दूर को किराये पर ही 600 से लेकर 900 रुपये तक खर्च करने होंगे। जो मज़दूर पहले ही अपने और अपने बच्चों का पेट काटकर जी रहा है, वह अब कैसे जियेगा और काम करेगा ये सोचकर भी कलेजा मुँह को आता है।

नये संकल्पों और नयी शुरुआतों के साथ मना शहीदेआजम भगतसिंह का जन्मदिवस

देश का शोषक हुक्मरान वर्ग जनता के सच्चे नायकों की यादों को पत्थर की मूर्तियों में बदल देना चाहता है। ऐसा ही शहीद भगतसिंह की याद के साथ किया जा रहा है। शहीद भगतसिंह के विचारों और जनता के दुश्मन वर्ग आज उनका नाम ग़लत अर्थों में ले रहे हैं। उन्होंने क्रान्तिकारी आन्दोलन के इतिहास के पन्ने पलटते हुए दिखाया कि शहीद भगतसिंह और उनके साथियों नें भारत में समाजवाद के निर्माण का सपना देखा और इसके लिए संघर्ष किया। उनका मानना था कि भारतीय मेहनतकश जनता की सच्ची आजादी समाजवाद में ही आ सकती है, सिर्फ अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी हासिल कर लेने से जनता की हालत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सुखविन्दर ने कहा कि आज आजाद भारत में भी मेहनतकश ग़रीबी, भुखमरी, बदहाली की जिन्दगी जी रहे हैं। जितने जुल्म अंग्रेजों ने भारतीय मेहनतकश जनता पर किये, उससे कहीं अधिक जुल्म भारतीय हुक्मरानों के शासन में किये गये हैं। उन्होंने कहा कि शहीद भगतसिंह के सपनों के समाज के निर्माण के पथ पर चलना ही शहीद भगतसिंह की कुर्बानी और विचारधारा को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

कमरतोड़ महँगाई और बेहिसाब बिजली कटौती के ख़िलाफ़ धरना

नौजवान भारत सभा, पंजाब के संयोजक परमिन्दर ने कहा कि इस महँगाई और बिजली की कमी के कारण प्राकृतिक नहीं हैं जैसा कि केन्द्र और पंजाब सरकार बकवास कर रही है। असल में यह तो मुनाफ़ाख़ोरी का नतीजा है और सरकार की मुट्टीभर पूँजीपतियों के पक्ष में और विशाल जनता के ख़िलाफ़ अपनायी गयी नीतियों का नतीजा है। पूँजीवादी सरकार जनता की पेट की भूख तक मिटाने को तैयार नहीं तो ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि सरकार जनता के फ़ायदे के लिए बिजली की पूर्ति के लिए कहाँ तक कोई क़दम उठायेगी। उन्होंने कहा कि कहने को तो 1947 में देश आज़ाद हो गया लेकिन यह एक कोरा झूठ है। ग़ैरबराबरी, ग़रीबी, भूख-प्यास, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य सुविधाओं का अकाल, अशिक्षा बस यही दिया है इस आज़ादी ने। इसलिए जनता की आज़ादी आनी अभी बाक़ी है। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब-जब भी मेहनतकश जनता के संघर्षों का तूफ़ान उठा है नौजवान उनकी अगली कतारों में लड़े हैं और आने वाला समय भी इसी बात की गवाही देगा।

दिशा छात्र संगठन-नौजवान भारत सभा ने शुरू किया ‘शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान’

शहरों में ग़रीबी और बेरोज़गारी की स्थिति गाँवों से भी ज्यादा विकराल है। जनगणना और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के ऑंकड़ों से ही यह साफ़ पता चलता है कि पिछले दो दशकों में शहरों में बेरोज़गारी गाँवों के मुकाबले कहीं तेज़ रफ्तार से बढ़ी है। ऐसे में यदि गाँवों के ग़रीबों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी योजना (नरेगा) बनायी और लागू की गयी है तो शहरी ग़रीब और बेरोज़गार भी ऐसी योजना के हक़दार हैं। नरेगा लागू करते समय सरकार ने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार किया है गाँव के ग़रीबों और बेरोज़गारों को रोज़गार का अधिकार है और यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह उन्हें रोज़गार मुहैया कराये। क्या इसी तर्क से शहरी ग़रीब और बेरोज़गार रोज़गार के अधिकारी नहीं हैं? शहर के ग़रीब और बेरोज़गार भी भारत के उतने ही नागरिक हैं जितने कि गाँव के ग़रीब और बेरोज़गार। शहरों में जीवन कहीं ज्यादा कठिन होता है। यहाँ ग़रीब आबादी के लिए जीवनयापन ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है। सरकारी ऑंकड़े ही बताते हैं शहरों में कुपोषण और भुखमरी गाँवों की तुलना में अधिक है। इसीलिए आज नरेगा के तर्ज़ पर राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारण्टी योजना की सख्त ज़रूरत है।

पाँच क्रान्तिकारी जनसंगठनों का साझा चुनावी भण्डाफोड़ अभियान

देशभर में लोकसभा चुनाव के लिए जारी धमाचौकड़ी के बीच बिगुल मज़दूर दस्ता, देहाती मज़दूर यूनियन, दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, और स्‍त्री मुक्ति लीग ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पंजाब के अलग-अलग इलाकों में चुनावी भण्डाफोड़ अभियान चलाकर लोगों को यह बताया कि वर्तमान संसदीय ढाँचे के भीतर देश की समस्याओं का हल तलाशना एक मृगमरीचिका है। ऊपर से नीचे तक सड़ चुकी इस आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था को ध्वस्त कर बराबरी और न्याय पर टिका नया हिन्दुस्तान बनाने के लिए आम अवाम को संगठित करके एक नया इन्‍कलाब लाना होगा।

मई दिवस पर याद किया मज़दूरों की शहादत को

मई दिवस के दिन सुबह ही गोरखपुर की सड़कें ”दुनिया के मज़दूरों एक हो”, ”मई दिवस ज़िन्दाबाद”, ”साम्राज्यवाद-पूँजीवाद का नाश हो”, ”भारत और नेपाली जनता की एकजुटता ज़िन्दाबाद”, ”इंकलाब ज़िन्दाबाद” जैसे नारों से गूँज उठीं। नगर निगम परिसर में स्थित लक्ष्मीबाई पार्क से शुरू हुआ मई दिवस का जुलूस बैंक रोड, सिनेमा रोड, गोलघर, इन्दिरा तिराहे से होता हुआ बिस्मिल तिराहे पर पहुँचकर सभा में तब्दील हो गया। जुलूस में शामिल लोग हाथों में आकर्षक तख्तियाँ लेकर चल रहे थे जिन पर ”मेहनतकश जब जागेगा, तब नया सवेरा आयेगा”, ”मई दिवस का है पैगाम, जागो मेहनतकश अवाम” जैसे नारे लिखे थे।