चुप्पी तोड़ो, आगे आओ! मई दिवस की अलख जगाओ!!

बिगुल संवाददाता

लुधियाना में मज़दूर दिवस का आयोजन

लुधियाना में मज़दूर दिवस का आयोजन

मई दिवस का इतिहास पूँजी की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ देने के लिए उठ खड़े हुए मज़दूरों के ख़ून से लिखा गया है। जब तक पूँजी की ग़ुलामी बनी रहेगी, संघर्ष और क़ुर्बानी की उस महान विरासत को दिलों में सँजोये हुए मेहनतकश लड़ते रहेंगे। हमारी लड़ाई में कुछ हारें और कुछ समय के उलटाव-ठहराव तो आये हैं लेकिन इससे पूँजीवादी ग़ुलामी से आज़ादी का हमारा जज्ब़ा और जोश क़त्तई टूट नहीं सकता। करोड़ों मेहनतकश हाथों में तने हथौड़े एक बार फिर उठेंगे और पूँजी की ख़ूनी सत्ता को चकनाचूर कर देंगे।

इसी संकल्प को लेकर दिल्ली, लुधियाना और गोरखपुर में मज़दूरों के मई दिवस के आयोजनों में बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों ने शिरकत की और इन आयोजनों को क्रान्तिकारी धार और जुझारू तेवर देने में अपनी भूमिका निभायी।

सभी जगह हुए कार्यक्रमों में बिगुल के साथियों ने कहा कि 1886 के मई महीने में ‘काम के घण्टे आठ’ की माँग को लेकर अमेरिका के शिकागो शहर के मज़दूरों ने जो ज़बरदस्त संघर्ष किया और जो महान क़ुर्बानियाँ दीं, उन्होंने पूरी दुनिया के मज़दूरों को जगा दिया। सरकार ने इस हड़ताल को कुचलने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी जिसमें कई मज़दूर शहीद हुए। झूठे आरोपों में मुक़दमा चलाकर मई आन्दोलन के चार नेताओं – पार्सन्स, स्पाइस, फिशर और एंजेल को फाँसी दे दी गयी। लेकिन उस आन्दोलन से भड़की ज्वाला जंगल की आग की तरह अमेरिका से यूरोप और फिर पूरी दुनिया में फैलती चली गयी। 1887 में मज़दूर वर्ग की पार्टियों के पेरिस सम्मेलन में मज़दूर वर्ग के महान शिक्षक और कार्ल मार्क्स के सहयोगी फ्रेडरिक एंगेल्स के प्रस्ताव पर 1 मई को हर वर्ष ‘अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस’ मनाने का फैसला किया गया। तबसे मई दिवस दुनिया भर के मज़दूरों का त्योहार बन गया। मई दिवस हमें इस बात की याद दिलाता है कि मज़दूर वर्ग को सिर्फ़ आर्थिक माँगों की लड़ाई में नहीं उलझे रहना चाहिए, बल्कि उससे आगे बढ़कर अपनी राजनीतिक माँगों की लड़ाई लड़नी चाहिए, एक इंसान की तरह जीने का हक़ माँगना चाहिए। राजनीतिक माँगों  की यह लड़ाई पूँजीवादी लोकतंत्र की सारी जालसाज़ियों को नंगा करती है, पूँजीवाद की जड़ों पर चोट करती है और पूँजीवाद को कब्र में दफ़नाकर राजकाज और समाज के ढाँचे के समाजवादी पुनर्निर्माण की दिशा में मज़दूर संघर्षों को आगे बढ़ाती है।

गोरखपुर में मज़दूर दिवस का आयोजन

गोरखपुर में मज़दूर दिवस का आयोजन

उन्होंने मज़दूरों के बीच इस बात को रखा कि बीसवीं सदी में मज़दूर वर्ग ने अनगिनत बहादुराना संघर्षों की बदौलत बहुत सारे क़ानूनी हक़ हासिल किये। यही नहीं, सोवियत संघ, चीन और कई देशों में पूँजीवाद को उखाड़कर मज़दूरों का अपना राज भी क़ायम हुआ। लेकिन पहले राउण्ड की ये जीतें स्थायी नहीं हो सकीं। पूरी दुनिया की पूँजी अपनी एकजुट ताक़त और मज़दूर वर्ग के ग़द्दारों की मदद से मज़दूर वर्ग को एक बार फिर पीछे धकेलने में और मज़दूर राज्यों को तोड़ने में कामयाब हो गयी। तबसे पूरी दुनिया में नवउदारवाद की जो उलटी लहर चल रही है, उसने अनगिनत क़ुर्बानियों से हासिल मज़दूरों के सारे अधिकारों को फिर से छीन लिया है। पूँजी की चक्की मज़दूरों की हड्डियों तक का चूरा बना रही है और शोषण की जोंकें उनकी नस-नस से लहू चूस रही हैं। इस बात को हिन्दुस्तान के हर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूर अपने अनुभव से अच्छी तरह जानते हैं। मज़दूर वर्ग की नकली पार्टियाँ और भ्रष्ट दलाल यूनियनें इस काम में पूँजीवाद की मदद ही कर रही हैं।

लेकिन पूँजीवाद की यह जीत स्थायी नहीं है। पूँजीवाद अजर-अमर नहीं है। इक्कीसवीं सदी में पूँजी और श्रम के बीच फैसलाकुन जंग होगी जिसमें श्रम के पक्ष की जीत पक्की है। भविष्य मज़दूर वर्ग का है। इस बात के संकेत मिलने लगने हैं। सन्नाटा टूटने लगा है। पूरी दुनिया के कोने-कोने से मज़दूर विद्रोहों की ख़बरें आ रही हैं और भारत का मज़दूर भी जागने लगा है। हमें एक लम्बी, कठिन और फैसलाकुन लड़ाई के लिये ख़ुद को तैयार करना होगा।

बिगुल की ओर से इस बात को पुरज़ोर ढंग से रखा गया कि मज़दूरों की पहली ज़िम्मेदारी यह बनती है कि वह छोटी-छोटी आर्थिक लड़ाइयों में उलझे रहने और संसदीय चुनावों से बदलाव के भ्रमजाल से अपने को मुक्त करें। मज़दूरों को पूँजीवाद को जड़मूल से उखाड़ फेंकने के अपने ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने के लिए नये सिरे से लामबन्द होना होगा। मज़दूर वर्ग को स्वयं अपने पिछड़े विचारों की दिमाग़ी ग़ुलामी से भी छुटकारा पाना होगा। हमें पढ़ना, जानना और सीखना होगा – ट्रेड यूनियन संघर्षों और क्रान्तिकारी संघर्षों के बारे में, पूँजीवादी शोषण के नये-नये हथकंडों के बारे में और दुनियाभर में मज़दूर संघर्षों से मिली शिक्षाओं के बारे में। हमें अपनी ट्रेड यूनियनों को क्रान्तिकारी धार देनी होगी और साथ ही उन बिखरे हुए, असंगठित मज़दूरों की ताक़त को लामबन्द करना होगा जो अभी यूनियन के बुनियादी अधिकार से भी वंचित हैं। हुकूमत पर भारी जन दबाव बनाने के लिए और भावी मज़दूर सत्ता का बीज अंकुरित करने के लिए मज़दूरों को अपनी मज़दूर पंचायतें संगठित करनी होगी। स्त्री मज़दूरों की इन यूनियनों और पंचायतों में भागीदारी बढ़ानी होगी और उनके अलग से संगठन भी बनाने होंगे। याद रखिये, आधी आबादी को घरेलू ग़ुलामी में क़ैद रखकर, मज़दूर वर्ग स्वयं अपनी ग़ुलामी से कभी आज़ाद नहीं हो सकता।

मज़दूर वर्ग को मज़दूर क्रान्ति का अपना अगुआ दस्ता तैयार करना होगा। इसके लिए उसे क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बार और अध्ययन-मण्डलों के जरिये मज़दूर क्रान्ति के विज्ञान, इतिहास और भावी रास्ते के नक्शे को जानना समझना होगा। मज़दूरों के बहादुर युवा सपूतों को भगतसिंह के सपनों का मज़दूर राज्य बनाने के लिए भगतसिंह के बताये हुए रास्ते पर चलना होगा और बस्ती-बस्ती में क्रान्तिकारी नौजवान संगठन बनाने होंगे।

आज घोषणा करने का दिन, हम भी हैं इंसान

हमें चाहिए बेहतर दुनिया, करते हैं ऐलान

गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र में मई दिवस का आयोजन

गोरखपुर में मज़दूर दिवस का आयोजन

गोरखपुर में मज़दूर दिवस का आयोजन

गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र में 2009 और 2011 में मज़दूरों ने मालिकान, सरकारी तंत्र और नेताशाही की एकजुट शक्ति का डटकर मुकाबला करते हुए ज़बर्दस्त संघर्ष किया था और कई बुनियादी माँगों पर मालिकान को झुकाने में और पुलिस तथा गुण्डों के हमलों को पीछे धकेलने में कामयाब हुए थे। काम के घण्टे आठ कराने, जॉब कार्ड, न्यूनतम वेतन, साप्ताहिक अवकाश जैसी कई उपलब्धियाँ मज़दूरों ने लड़कर जीती थीं। लेकिन उसके बाद से मालिकान फिर से मज़दूरों के मिले हुए अधिकार छीनने और उन्हें पहले की तरह दबा-कुचलकर रखने की हर कोशिश करते रहे हैं। मज़दूरों के नेतृत्व के कुछ प्रमुख व्यक्तियों को झूठे मुकदमों में फँसाकर शहरनिकाले का आदेश पारित कराने से लेकर कई कारख़ानों के अगुआ मज़दूरों को नौकरी से निकालने तक के हथकण्डे उन्होंने अपनाये हैं। कुछ कारख़ानों में तो लगभग आधे मज़दूरों को बदल दिया गया है।

लेकिन इसके बावजूद मज़दूर हर वर्ष बरगदवा में मई दिवस का आयोजन करके संघर्ष जारी रखने का संकल्प लेते रहे हैं। इस वर्ष कई कारख़ानों के मज़दूरों ने बिगुल मज़दूर दस्ता के साथ मिलकर बरगदवा में मई दिवस पर पूरे दिन का कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें मालिकों और श्रम विभाग की हरचन्द कोशिशों के बावजूद भारी संख्या में मज़दूर शामिल हुए।

गोरखपुर में मज़दूर दिवस के अवसर पर सांस्‍कृतिक कार्यक्रम

गोरखपुर में मज़दूर दिवस के अवसर पर सांस्‍कृतिक कार्यक्रम

पहली मई को सुबह 7 बजे से मज़दूरों का विशाल जुलूस निकला जो पूरे औद्योगिक क्षेत्र और मज़दूर बस्तियों तथा मुख्य सड़कों से होते हुए करीब ढाई घण्टे बाद सभा स्थल पर पहुँचा। सभा में बिगुल मज़दूर दस्ता के सत्यम, प्रसेन, अंगद और लालचन्द्र, स्त्री मज़दूर संगठन की मीनाक्षी, टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन गोरखपुर के चन्द्रभूषण राय व अजय मिश्र, इंजीनियरिंग वर्कर्स यूनियन (लक्ष्मी साइकिल वर्क्स) के रामाशीष, वी-एन- डायर्स के फौजदार तथा   ने मई दिवस के शहीदों को याद करते हुए कहा कि हमें अपने रोज़-रोज़ के संघर्षों के साथ ही पूरी पूँजीवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लम्बी लड़ाई की भी तैयारी करनी होगी। तभी शोषण और अन्याय से मज़दूरों की मुक्ति का मई दिवस के शहीदों का सपना पूरा होगा।

जनसभा में इलाहाबाद से आयी शहीद भगतसिंह विचार मंच की टोली ने पूँजीवादी राजनीति पर चोट करने वाला नाटक ‘देश को आगे बढ़ाओ’ तथा क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किये। शाम को 6 बजे से मज़दूरों के एक रिहायशी इलाके, विकासनगर में दो फिल्मों – ‘मौत और मायूसी के कारखाने’ तथा ‘मॉडर्न टाइम्स’ का प्रदर्शन किया गया।

छीने गये अधिकारों को फि़र से लड़कर लेना होगा

हर ज़ोर-ज़ुल्म का ज़ोरदार जवाब हमको देना होगा !

लुधियाना में मज़दूर दिवस सम्मेलन का आयोजन
मज़दूरों ने दी शिकागो के शहीदों को श्रद्धांजलि

लुधियाना में मज़दूर दिवस का आयोजन

लुधियाना में मज़दूर दिवस का आयोजन

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर लुधियाना के पुडा मैदान में टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, कारखाना मज़दूर यूनियन, नौजवान भारत सभा तथा अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच की ओर से संयुक्त रूप से विशाल ‘मज़दूर दिवस सम्मेलन’ किया गया। फ्मई दिवस के शहीद अमर रहें”, “दुनिया के मज़दूरो एक हो”, “इंकलाब ज़िन्दाबाद’’ आदि गगनभेदी नारे बुलन्द करते हुए हज़ारों मज़दूर सम्मेलन में शामिल हुए। जनसंगठनों ने प्रतिनिधियों ने क्रान्तिकारी लाल झण्डा लहराकर शिकागो के शहीदों को सलामी दी।

टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के अध्यक्ष राजविन्दर ने कहा कि आज मज़दूरों की संगठित ताकत न होने के चलते आठ घण्टे दिहाड़ी के अधिकार सहित बहुतेरे क़ानूनी अधिकार लागू नहीं हो रहे। मज़दूरों को अपनी क्रान्तिकारी विरासत से सीखना होगा और संगठित ताक़त के दम पर अपने अधिकार हासिल करने के लिए आगे आना होगा। नौजवान भारत सभा के संयोजक छिन्दरपाल ने कहा कि यह झूठ कि पूँजीवादी व्यवस्था में वोटों के ज़रिए ज़िन्दगी बेहतर बन सकती है, आज काफ़ी हद तक जनता के सामने नंगा हो चुका है। यह साबित हो चुका है कि पूँजीवादी व्यवस्था में जनतंत्र का कोई मतलब नहीं होता, बल्कि हर जगह पूँजी का ही ज़ोर चलता है। उन्होंने कहा कि मई दिवस का इतिहास गवाह है कि मज़दूर एकजुट होकर ही पूँजी की ताक़त का मुकाबला कर सकते हैं।

अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच के नेता तेग बहादुर साही ने कहा कि मज़दूरों को धर्म, जाति, नस्ल, देश आदि के नाम पर बाँटा जाता रहा है, लेकिन सारी दुनिया के मज़दूरों के हित एक ही हैं। मई दिवस सारे विश्व के मज़दूरों को एक होने का आह्वान करते हुए हर तरह की लूट-खसोट, दमन, नाइंसाफ़ी के खि़लाफ़ उठ खड़े होने की शिक्षा देता है। कारख़ाना मज़दूर यूनियन के संयोजक लखविन्दर ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस कोई रस्म अदायगी का त्योहार न होकर मज़दूरों के न्यायपूर्ण संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेने का दिन है। इसी रूप में शिकागो के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।  विभिन्न टोलियों ने क्रान्तिकारी गीत पेश किये और सम्मेलन की समापन पर इलाके की गलियों-मोहल्लों में क्रान्तिकारी नारे बुलन्द करते हुए मज़दूरों-नौजवानों ने पैदल रैली निकाली।

लुधियाना में टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, कारखाना मज़दूर यूनियन, नौजवान भारत सभा तथा अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच की ओर से आयोजित ‘मज़दूर दिवस सम्मेलन’ में आये मज़दूरों का एक हिस्सा

बिगुल मजदूर दस्ता और दिल्ली कामगार यूनियन की ओर से करावल नगर में मजदूर पंचायत

करावलनगर, दिल्‍ली में मज़दूर दिवस के अवसर पर मज़दूर पंचायत

करावलनगर, दिल्‍ली में मज़दूर दिवस के अवसर पर मज़दूर पंचायत

मई दिवस के अवसर पर बिगुल मजदूर दस्ता और दिल्ली कामगार यूनियन की ओर से करावल नगर में मजदूर पंचायत का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दौरान बच्चों का नाटक ‘तमाशा’, विहान सांस्कृतिक मंच की ओर से नाटक ‘मई दिवस की कहानी’, संगीत कायर्क्रम आदि आयोजित किये गए। इस कार्यक्रम में भगाणा काण्ड संघर्ष समिति के जगदीश ने भी आकर मजदूरों को मई दिवस की बधाई दी व अपने संघर्ष के लिए एकजुटता का आह्वान किया।

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में मई दिवस

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में मई दिवस के अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्ता, स्त्री मज़दूर संगठन और नौजवान भारत सभा की ओर से नरेला औद्योगिक क्षेत्र के शाहपुर गढ़ी की मज़दूर बस्ती तथा शाहबाद डेयरी की ई-ब्लॉक की झुग्गी बस्ती में जनसभा, पर्चा वितरण, नाटक, गीत व फ़िल्म शो आयोजन किया गया।

जनसभा में वक्ताओं ने कहा कि भारत के मज़दूरों की पहली जिम्मेदारी यह बनती है कि वे दुअन्नी-चवन्नी की आर्थिक लड़ाइयों और संसदीय चुनाव से बदलाव के भ्रमजालों से अपने को मुक्त करें तथा दलाल ट्रेड यूनियनों, गद्दार मज़दूर नेताओं और चुनावी पूंजीवादी पार्टियों को मज़दूर बस्तियों से लात मारकर बाहर खदेड़ दें। उन्हें मेहनतकश जनता को बाँटने वाली धार्मिक कट्टरपंथी फासिस्ट ताकतों और जातिवादी राजनीति के ठेकेदारों से भी लोहा लेना होगा। वक्ताओं का कहना था कि हमें बस्ती-बस्ती में नये सिरे से क्रान्तिकारी मज़दूर यूनियनें बनानी होंगी और बिखरे हुए, असंगठित मज़दूरों की भारी ताक़त को लामबन्द करना होगा। हुकूमत पर भारी जन दबाव बनाने के लिए और भावी मज़दूर सत्ता का बीज अंकुरित करने के लिए मज़दूरों केा अपनी पंचायतें संगठित करनी होंगी। स्त्री मज़दूरों की इन यूनियनों और पंचायतों में भागीदारी बढ़ानी होगी और उनके अलग से संगठन भी बनाने होंगे।

शाहबाद डेयरी में मई दिवस के अवसर पर सांस्‍कृतिक कार्यक्रम

शाहबाद डेयरी में मई दिवस के अवसर पर सांस्‍कृतिक कार्यक्रम

मज़दूरों को मज़दूर क्रान्ति के विज्ञान, इतिहास और भावी रास्ते के नक्शे को जानना-समझना होगा। मज़दूरों के बहादुर युवा सपूतों को भगतसिंह के सपनों का मज़दूर राज्य बनाने के लिए भगतसिंह के बताये रास्ते पर चलना होगा और बस्ती-बस्ती में क्रान्तिकारी नौजवान संगठन बनाने होंगे।

सड़ाँध मारती संसदीय व्यवस्था के ऊपर व्यंग्य नाटक ‘देख फकीरे लोकतंत्र का फूहड़ नंगा नाच’ को स्थानीय आबादी ने खूब सराहा। कार्यक्रम में ‘आ रे नौजवान’ तथा ‘पहले पहिल जब वोट माँगे अइलें’ की भी प्रस्तुति हुई। मई दिवस पर बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा निर्मित लघु फिल्म ‘लड़ाई जारी है’ के प्रदर्शन के अलावा रूसी क्रान्ति पर बनी फिल्म ‘दस दिन जब दुनिया हिल उठी’ का भी प्रदर्शन किया गया।

शाहाबाद डेयरी में बारिश की रुकावट के बावजूद स्थानीय मज़दूरों, महिलाओं, नौजवानों और बच्चों ने कार्यक्रम में पूरे उत्साह के साथ भागीदारी की। कार्यक्रम के बाद वहां की जनसमस्याओं की पंचायत भी लगी।

 

 

मज़दूर बिगुल, मई 2014

 


 

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