फ़िलिस्तीन के समर्थन में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कार्यक्रम
अपने वक्तव्य में प्रो. हबीब ने समूचे इज़रायल-फ़िलिस्तीन विवाद की ऐतिहासिक रूपरेखा प्रस्तुत की एवं बताया कि किस प्रकार जायनवादियों ने पश्चिमी साम्राज्यवादियों की मदद से फ़िलिस्तीन की ज़मीन हड़पी। उन्होंने स्पष्ट किया कि हालाँकि यह बात सच है कि आज जिसे फ़िलिस्तीन कहा जाता है वहाँ प्राचीन काल में यहूदी आबादी रहती थी और उस आबादी को संभवत: दमन की वजह से फ़िलिस्तीन छोड़ना पड़ा, परन्तु प्राचीन काल में यहूदियों का दमन रोम साम्राज्य के दौर में हुआ था और उस समय इस्लाम का उदय भी नहीं हुआ था। इस प्रकार यहूदियों के फ़िलिस्तीन छोड़ने के लिए अरबों की कोई भूमिका नहीं थी। अरबों ने जब फ़िलिस्तीन पर फ़तह की तो वहाँ की अधिकांश आबादी यहूदी नहीं बल्कि ईसाई थी। अरबों के शासन के दौरान यहूदियों के दमन का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। इसलिए यह कहना पूरी तरह से ग़लत है कि यहूदी एवं मुस्लिम सदियों से लड़ते आये हैं। इज़रायल और फ़िलिस्तीन के मौजूदा विवाद के इतिहास की चर्चा करते हुए प्रो. हबीब ने बताया कि उन्नीसवीं सदी के अन्त में ज़ायनवाद की विचारधारा के उदय के बाद से साम्राज्यवादियों की मदद से यहूदियों को फ़िलिस्तीन में बसाने की शुरुआत होती है। उन्होंने 1917 के प्रसिद्ध बैलफोर घोषणा का हवाला दिया जिसमें पहली बार फ़िलिस्तीन में यहूदियों के देश बनाने की बात कही गई।