Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

धागों में उलझी ज़िन्दगियाँ

कई मज़दूर मासिक वेतन के अलावा पीस रेट सिस्टम पर भी काम करते हैं। इस सिस्टम में मज़दूर को पीस के अनुसार तनख्वाह मिलती है न कि समय के अनुसार। एक पूरी कमीज़ के पीस रेट में हुई बढ़त से पता चलता है कि यह बढ़त कितनी कम है। पिछले 14 सालों में पीस रेट ज़्यादा नहीं बढ़े हैं। सन 2000 में, 14 या 15 रुपये प्रति शर्ट से आज ये केवल 20 से 25 रुपये ही हुए हैं और कुछ जगहों पर 30 से 35 रुपये। आज पर-पीस का मतलब पूरी कमीज़ या कपड़ा नहीं, कमीज़ का एक हिस्सा माना जाता है – जैसे कॉलर, बाजू, इत्यादि। तनख्वाह भी कितने कॉलर या बाजू सिले, उसके अनुसार मिलती है। पीस रेट सिस्टम मज़दूरों को बहुत लम्बे समय तक काम करने के लिए मजबूर करता है, ताकि वे ज़्यादा से ज़्यादा पीस बनाकर दिन में ज़्यादा कमा सकें। पीस रेट मज़दूरों में कुछ महिलाएं भी हैं जो घर से ही कई किस्म के महीन काम करती हैं, जैसे बटन या सितारे लगाना।

फिलिस्तीन के साथ एकजुटता कन्वेंशन की रिपोर्ट

शनिवार एवं रविवार के दो सत्रों में ‘जायनवाद और फिलिस्तीनी प्रतिरोधः ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, चुनौतियां और संभावनाएं’ एवं ‘मध्य-पूर्व का नया साम्राज्यवादी खाका और फिलिस्तीनी मुक्ति का सवाल’ विषयों पर कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने इजरायल की नस्लभेदी नीतियों एवं उसके द्वारा फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जे की कोशिशों की कठोरशब्दों में भर्त्सना की । कन्वेंशन में यह भी महसूस किया गया कि भारतीय सरकार ने फिलिस्तीनियों के लक्ष्य के साथ विश्वासघात किया है और वह अब जायनवादी राज्य की सबसे बड़ी समर्थक बन चुकी है जिसने सभी अन्तरराष्ट्रीय कानूनों को धता बातते हुए रखकर फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ अपना पागलपन भरा जनसंहारक अभियान जारी रखा है।

आज़ाद के 109वें जन्मदिवस पर गाज़ियाबाद में दिन भर का अभियान

नौभास के कार्यकर्ताओं ने रेलवे प्लेटफार्म पर छोटी-छोटी सभाएं करके लोगों को आज़ाद के प्रेरणादायी जीवन और उनके क्रान्तिकारी विचारों को बताते हुए बड़ी संख्या में पर्चे वितरित किये। दिन के दूसरे कार्यक्रम में एमएमएच इंटर कॉलेज के सामने एक पुस्तक एवं पोस्टर प्रदर्शनी लगायी गई। इस प्रदर्शनी में चन्द्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू जैसे क्रान्तिकारियों के जीवन और उनके विचारों से जुड़ी ढेरों किताबों एवं आज के दौर की तमाम समस्याओं का क्रान्तिकारी नज़रिये से विश्लेषण करने वाली पुस्तिकाओं की स्टॉल लगायी गयी। इसके अतिरिक्त प्रदर्शनी में कई आकर्षक पोस्टर भी लगाये गये जिनमें क्रान्तिकारियों के उद्धरण व विचारोत्तेजक नारे लिखे थे। यह प्रदर्शनी विशेष रूप से युवाओं एवं आम आबादी के लिए आकर्षण का केन्द्र रही। नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने इस प्रदर्शनी में आये लोगों के साथ क्रान्तिकारियों के विचारों को जान-समझकर उनके अधूरे सपनों को पूरा करने की ज़रूरत के बारे में बातचीत की।

हिमाचल प्रदेश स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मण्डी में हुए गोलीकाण्ड पर एक रिपोर्ट

मज़दूरों ने जो कुछ भी किया वह अपनी आत्मरक्षा में किया, परन्तु पुलिस ने फिर भी मज़दूरों पर दफ़ा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज कर दिया। इसके विपरीत, पुलिस ने न सिर्फ़ इस घटना के मुख्य आरोपी ठेकेदार को वहाँ से भाग जाने का पूरा मौक़ा दिया, बल्कि इलाज के बहाने इस घटना में घायल हुए गुण्डों को सरकारी सुरक्षा में चण्डीगढ़ स्थित पीजीआई अस्पताल में दाखि़ल करवाया गया। जहाँ से अगले रोज़ ये तमाम अपराधी पुलिस की मौजदूगी के बावजूद फ़रार हो गये। ग़ौरतलब बात यह है कि इन तमाम गुण्डों पर पंजाब में हत्या, लूटमार जैसे कई संगीन मुकदमे दर्ज हैं, परन्तु फिर भी हिमाचल पुलिस ने उनकी निगरानी के लिए सिर्फ़ कुछ कांस्टेबल तैनात किये हुए थे। इस पूरे प्रकरण में जो सबसे महत्वपूर्ण बात निकलकर सामने आयी है, वह यह है कि कमान्द कैम्पस के अन्दर स्थित जिस गेस्ट हाउस में ठेकेदार ने इन गुण्डों को ठहराया हुआ था, वहाँ से पुलिस चौकी की दूरी मात्र 50 मीटर है। पहले तो पुलिस और ज़िला प्रशासन वहाँ हथियारबन्द गुण्डों की उपस्थिति से ही पूरी तरह से इंकार करते रहे, परन्तु बाद में उसी स्थान में तलाशी के दौरान उन्हें भारी संख्या में हथियार बरामद हुए। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि सरकार, पुलिस, और स्थानीय प्रशासन को वहाँ रह रहे इन हथियारबन्द गुण्डों की पूरी जानकारी थी, परन्तु फिर भी उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी इन लोगों के खि़लाफ़ कोई भी कारवाई नहीं की।

मालवणी शराब काण्ड ने दिखाया पुलिस-प्रशासन-राजनेताओं का विद्रूप चेहरा

अगर पुलिस पहले ही अपने कर्तव्य का पालन करती तो इतने सारे लोगों को अपनी ज़िन्दगी नहीं गँवानी पड़ती। पुलिस सिर्फ़ हफ्ता वसूलने में मशगूल रहती है। बेघर लोगों को एक झोपड़ी बनानी हो तो भी ये लोग हफ्ता वसूलने पहुँच जाते हैं। पैसे नहीं देने पर झोपड़ी तोड़ देते हैं। लेकिन इस तरह के अवैध धन्धों को चलने देते हैं। इस पूरे काण्ड में डॉक्टरों ने भी लोगों को बचाने के लिए पूरी तत्परता नहीं दिखायी।

25 मार्च की घटना के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में आम आदमी पार्टी के विरोध में प्रदर्शन

25 मार्च की घटना के विरोध दिल्ली, पटना, मुम्बई और लखनऊ में विरोध प्रदर्शन हुए। 1 अप्रैल को दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में मज़दूरों ने रैली निकाली और इलाके के आप विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। लखनऊ में भी 28 मार्च के दिन कई जनसंगठनों ने मिलकर जीपीओ पर प्रदर्शन किया और केजरीवाल सरकार की निन्दा की। पटना में 5 अप्रैल को नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन ने केजरीवाल का पुतला दहन किया और 25 मार्च की घटना के लिए लिखित माफ़ी की माँग की। मुम्बई में भी इसी दिन दादर स्टेशन के बाहर यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी व नौजवान भारत सभा ने मिलकर प्रदर्शन किया और केजरीवाल सरकार के प्रति भर्त्सना प्रस्ताव पास किया। सूरतगढ़ में भी नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में लोगों ने केजरीवाल सरकार का पुतला फूँका और विरोध प्रदर्शन किया।

नोएडा की मज़दूर बस्ती में शहीद मेले का आयोजन

वक्‍ताओं ने कहा कि आज भगतसिंह और उनके साथियों को याद करने का एक ही मतलब है कि अन्‍धाधुन्‍ध बढ़ती पूंजीवादी–साम्राज्‍यवादी लूट के खिलाफ़ लड़ाई के लिए उनके सन्‍देश को देश के मेहनतकशों के पास लेकर जाया और उन्‍हें संगठित किया जाये। धार्मिक कट्टरपंथ और संकीर्णता के विरुद्ध आवाज़ उठायी जाये और जनता को आपस में लड़ाने की हर साजिश का डटकर विरोध किया जाये

भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु के 84वें शहादत दिवस पर नरवाना में लगा शहीद मेला!

68 साल की आधी-अधूरी आज़ादी के बाद सफ़रनामा हमारे सामने जिसमें जानलेवा महँगाई , भूख से मरते बच्चे, गुलामों की तरह खटते मज़दूर, करोड़ो बेरोज़गार युवा, ग़रीब किसानों की छिनती ज़मीनें, देशी-विदेशी पूँजीपतियों की लूट की की खुल छूट – साफ़ है शहीदों शोषणविहीन, बराबरी और भाईचारे पर आधारित, ख़ुशहाल भारत का सपना पूरा नहीं हो सका। ऐसे में हमें शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए। वो इंसानों को मार सकते है लेकिन विचारों को नहीं। इसलिए हमें मेहनतकश जनता की सच्ची आज़ादी के लिए शहीदों के विचारों को हर इंसाफ़पसन्द नौजवान तक पहुँचाना होगा।

शहीद मेले में अव्यवस्था फैलाने, लूटपाट और मारपीट करने की धार्मिक कट्टरपंथी फासिस्टों और उनके गुण्डा गिरोहों की हरकतें

इतना तय है कि ऐसे तमाम प्रतिक्रियावादियों से सड़कों पर मोर्चा लेकर ही काम किया जा सकता है। इनसे भिडंत तो होगी ही। जिसमें यह साहस होगा वही भगतसिंह की राजनीतिक परम्परा की बात करने का हक़दार है, वर्ना गोष्ठियों-सेमिनारों में बौद्धिक बतरस तो बहुतेरे कर लेते हैं

‘धर्म की उत्पत्ति व विकास, वर्ग समाज में इसकी भूमिका’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

इस विचार संगोष्ठी में का. कश्मीर ने मुख्य वक्ता के तौर पर बात रखी। उन्होंने विस्तार से बात रखते हुए साबित किया कि समाज के वर्गों में बँटने, यानी शोषकों व शोषितों में बँटने, के साथ ही संगठित धर्म अस्तित्व में आया। उत्पादन शक्तियों के विकास के कारण समाज वर्गों में बँटा, आदिम साम्यवादी समाज की जगह गुलामदारी व्यवस्था ने ली और इसी समय धर्म अस्तित्व में आया।