Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस पर मराठी में क्रान्तिकारी साहित्य के प्रकाशन की शुरुआत

इस मौके पर बोलते हुए नौजवान भारत सभा के नारायण ने कहा कि भगतसिंह की शहादत के इतने वर्षों बाद भी उनके लेख प्रासंगिक हैं। इसका कारण ये है कि भगतसिंह केवल अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय जनता की लड़ाई के ही नहीं बल्कि शोषण के विरुद्ध मज़दूरों की लड़ाई के भी प्रतीक हैं। समानता पर आधारित व शोषणमुक्त समाज का सपना आंखों में लिए भगतसिंह व उनके साथियों ने अपना सब कुछ बलिदान कर दिया पर आज भी वैसा समाज नहीं बन पाया। उसी शोषणमुक्त समाज के निर्माण के लिए दुनियाभर के मज़दूरों की तरह ही भारत के मज़दूर भी लड़ रहे हैं। इस संघर्ष को परिणति तक ले  जाने के लिए भगतसिंह का लेखन आज भी मार्गदर्शक है। सड़े-गले विचारों, रूढ़ि‍यों व बौद्धिक गुलामी की जकड़ से आज़ाद होने की प्रेरणा देने की विलक्षण क्षमता उनके लिखे शब्दों में है। उनके लेखन से प्रेरित होकर खुद को शोषण के विरुद्ध लड़ाई में झोंक देना, यही भगतसिंह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

नाशिक व पुणे में दलित विरोधी अत्याचारों के ख़ि‍लाफ़ मुम्बई में प्रदर्शन

नौजवान भारत सभा के नारायण खराडे ने कहा कि दलित अत्याचार विरोधी क़ानून में संशोधन की माँग करने वालों की असली मंशा समझने की ज़रूरत है। आज महाराष्ट्र के हर जिले में दलितों के विरुद्ध भयंकर अत्याचार अंजाम दिये जा रहे हैं व ऐसे ज़्यादातर केसों में अत्याचार विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज होने के बावजूद भी सज़ा की दर काफी कम (दोष सिद्धि दर 10 प्रतिशत से भी कम) रहती है। ऐसे में इस क़ानून को और ज़्यादा प्रभावी बनाने की ज़रूरत है। नारायण ने बात रखते हुए कहा कि आज मराठा युवाओं को भी इस चीज़ को समझने की ज़रूरत है कि उनके असली दुश्‍मन दलित नहीं बल्कि अमीर किसान व उद्योगपति हैं जो सबको लूट रहे हैं।

लुधियाना में ‘स्त्री मज़दूर संगठन’ की शुरुआत

2 अक्टूबर 2016 को मज़दूर पुस्तकालय, लुधियाना में स्त्रियों की एक मीटिंग हुई। इस मीटिंग में समाज में स्त्रियों की बुरी हालत के बारे में और इस हालत को बदलने के लिए स्त्रियों को जागरूक व संगठित करने की ज़रूरत के बारे में बातचीत की गयी। मज़दूर स्त्रियों की हालत और भी बुरी है। घर और बाहर दोनों जगहों पर स्त्री मज़दूरों को बेहद भयंकर हालातों का सामना करना पड़ता है। मर्दों के बराबर या अधिक काम करने के बावजूद भी उन्हें पुरुष मज़दूरों से कम वेतन मिलता है।

शहीद-ए-आज़म के जन्मदिवस पर लुधियाना में मज़दूर संगठनों द्वारा जातिवाद विरोधी अभियान

शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस पर इस बार टेक्सटाईल हौजरी कामगार यूनियन व कारखाना मज़दूर यूनियन द्वारा 25 से 28 सितम्बर तक लुधियाना में जातिवाद विरोधी अभियान चलाया गया। इस अभियान के तहत यूनियनों द्वारा एक पर्चा जारी किया गया। विभिन्न इलाकों में नुक्कड़ सभाएँ व पैदल मार्च आयोजित किए गये। 28 सितम्बर को मज़दूर पुस्तकालय, ताजपुर रोड, लुधियाना पर जातिवाद के बारे में मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित फिल्म ‘सदगति’ दिखायी गयी और विचार-चर्चा आयोजित की गयी।

‘जातिवाद की समस्या व इसका समाधान’ विषय पर विचार गोष्ठी

सुखविन्दर ने कहा कि जातिवाद के ख़ात्मे का रास्ता सिर्फ़ मार्क्सवाद के पास है। मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद को आपस में मिलाने की कोशिशें बेबुनियाद हैं, इनका फ़ायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हो रहा है। जय भीम लाल सलाम का नारा एक ग़लत नारा है। डा. अम्बेडकर ने जातीय उत्‍पीड़न के मुद्दे को उभारने में अहम भूमिका निभायी लेकिन उनके पास जाति व्यवस्था के ख़ात्मे का कोई रास्ता नहीं था। वे भाववादी दर्शन और पूँजीवादी अर्थशास्त्र व राजनीति के पैरोकार थे।

होंडा के मजदूरों के समर्थन में गोरखपुर में विरोध प्रदर्शन

पिछले कई महीनों से होंडा फैक्ट्री से गैरकानूनी तरीके से निकाले गए मज़दूर अपनी मांगों को लेकर सड़क पर थे और अब मजदूरों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है। मज़दूरों के साथ ऐसा बरताव नया नहीं हैं, गोरखपुर के मज़दूर भी इसके गवाह हैं।

राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक क्रान्ति को अलग-अलग करके देखना अवैज्ञानिक है

आर्थिक शोषण सामाजिक उत्पीड़न के ऐतिहासिक सन्दर्भ व पृष्ठभूमि को बनाता है और सामाजिक उत्पीड़न बदले में आर्थिक शोषण को आर्थिक अतिशोषण में तब्दील करता है। यही कारण है कि 10 में से 9 दलित-विरोधी अपराधों के निशाने पर ग़रीब मेहनतकश दलित होते हैं और यही कारण है कि मज़दूर आबादी में भी सबसे ज़्यादा शोषित और दमित दलित जातियों के मज़दूर होते हैं। आर्थिक शोषण और सामाजिक उत्पीड़न के सम्मिश्रित रूपों को बनाये रखने का कार्य शासक वर्ग और उसकी राजनीतिक सत्ता करते हैं। यही कारण है कि इस आर्थिक शोषण और सामाजिक उत्पीड़न को ख़त्म करने का संघर्ष वास्तव में पूँजीपति वर्ग की राजनीतिक सत्ता के ध्वंस और मेहनतकशों की सत्ता की स्थापना का ही एक अंग है।

शहीद ऊधमसि‍ंह पार्क में शहीदों के सपनों को पूरा करने का संकल्प लि‍या

7 वर्ष की आयु के बाद उधम सिंह का पालन पोषण अनाथालय में हुआ लेकिन जलियांवाला हत्याकाण्ड का बदला लेकर देश का दाग धोने के जुनून में वो अपनी तमाम बाधाओं को पार करते हुए लंदन तक पहुंचे और वहां पर माइकल ओ डायर को ढेर किया। और इसी जुनून ने प्रेमचन्द की लेखनी को निरंतर गतिमान रखा।

‘हम इस समय मानव इतिहास में सबसे बड़े वैश्विक मज़दूर वर्ग के साक्षी हैं!’

मज़दूरों के संगठन के नये रूप मुख्यधारा के पारंपरिक ट्रेडयूनियनवाद की विफलता की वजह से अस्तित्व में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि 1960 के दशक में यूरोपीय एवं अमेरिकी ‘न्यू लेफ्ट’ और दक्षिणपंथी सिद्धान्तकारों के बीच यह धारणा व्याप्त थी कि मज़दूर वर्ग ख़त्म हो चुका है। उनकी दलील थी कि हम मज़दूर वर्ग के पूँजीवादी शोषण की मंजिल को पार कर चुके हैं क्योंकि प्रौद्योगिकी ने इन सभी प्रश्नों का समाधान कर दिया है। परन्तु 1990 का दशक आते-आते यह स्पष्ट हो चुका था कि मज़दूर वर्ग अतीत की चीज़ नहीं बनने जा रहा बल्कि हम मानवता के इतिहास में सबसे बड़े मज़दूर वर्ग के उभार के साक्षी हैं।

क्रान्तिकारी संगठनों ने अमर शहीद सुखदेव का जन्म दिन मनाया

शहीद सुखदेव को धर्म, जाति, बिरादरी, क्षेत्र आदि से जोड़कर उनकी कुर्बानी के महत्व को घटाने व उनके विचारों पर्दा डालने की जाने-अनजाने में कोशिशें पहले भी होती रही हैं और आज भी हो रही हैं। लेकिन उनकी लड़ाई तो समूची मानवता को हर तरह की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक गुलामी, लूट, दमन, अन्याय से मुक्त करने की थी। इसलिए जाने-अनजाने में की जा रही ऐसी कोशिशों का डटकर विरोध करना चाहिए।