Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

स्त्रियों को पहली बार वास्तविक आज़ादी की राह पर आगे बढ़ाने का काम अक्टूबर क्रान्ति के बाद स्थापित सोवियत समाजवाद ने किया

आज तमाम बुर्जुआ नारीवादी, उत्तर आधुनिकतावादी, अस्मितावादी चिन्तक, वर्ग-अपचयनवादी सूत्रीकरण पेश करते हुए स्त्री-प्रश्न पर मार्क्सवादी चिन्तन को गुज़रे ज़माने की चीज़ बताते हैं। अकादमिक हलक़ाें में भी इस तथ्य का उल्लेख हमें नहीं मिलता है कि रूसी क्रान्ति के बाद इतिहास में सोवियत सत्ता ने पहली बार, स्त्रियों को बराबरी का अधिकार दिया, इसे न केवल क़ानूनी धरातल पर बल्कि आर्थिक-राजनीतिक व सामाजिक धरातल पर इसे सम्भव बनाया। ज्ञात इतिहास में पहली बार स्त्रियों को चूल्हे-चौखट की गुलामी से मुक्त किया गया। विवाह, तलाक व सहजीवन जैसे मामलों में राज्य, समाज और धर्म के हस्तक्षेप को ख़त्म किया गया। भारी पैमाने पर स्त्रियों की उत्पादन और समस्त आर्थिक-राजनीतिक कार्यवाहियों में बराबरी की भागीदारी को सम्भव बनाया। यह कहा जा सकता है कि प्रबोधन कालीन मुक्ति और समानता के आदर्शों को पहली बार इतिहास में वास्तविकता के धरातल पर उतारने का काम अक्टूबर क्रान्ति ने किया।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

वक्ताओं ने कहा कि पूरी दुनिया में भूख-प्यास, लूट, दमन, जंग, क़त्लेआम, धर्म-नस्ल-देश-जाति-क्षेत्र के नाम पर नफ़रत आदि के सिवाय इस पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था से और कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि हम इस गली-सड़ी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए पुरज़ोर ढंग से लोगों को जगाने और संगठित करने की कोशिशों में जुट जायें।

राहुल सांकृत्यायन पर देहरादून में विचार गोष्ठी

राहुल फ़ाउण्डेशन और नौजवान भारत सभा के संयुक्त तत्वाधान में राहुल सांकृत्यायन के स्मृतिदिवस 14 अप्रैल के अवसर पर पंचायती हॉल, दर्शनलाल चौक, देहरादून में विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में तमाम वक्ताओं ने राहुल सांकृत्यायन के जीवन-दर्शन, कृतित्व, व्यक्तित्व पर विस्तार से बात रखी और आज के दौर में राहुल सांकृत्यायन को याद करने की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा कि आज पूँजीवादी व्यवस्था चौतरफ़ा संकटों से घिर चुकी है। इस संकट से ध्यान भटकाने के लिए और इस सड़ी हुई व्यवस्था को बचाए रखने के लिए तमाम प्रतिक्रियावादी फासिस्ट ताक़तें जनता को धार्मिक अन्धविश्वास, कूपमण्डूकता, रूढि़यों, पाखण्डों की दिमाग़ी गुलामी की ज़जीरों में बाँध देना चाहती हैं। और एक हद तक वे अपने इस काम में सफल भी हुए हैं। ऐसे में प्रगतिशील क्रान्तिकारी ताक़तों को राहुल सांकृत्यायन की तरह ही वैचारिक सांस्कृतिक आन्दोलनों को जनता के बीच में खड़ा करना पड़ेगा।

भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहादत दिवस पर मुम्बई व अहमदनगर में चला 15 दिवसीय शहीद यादगारी अभियान

भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहादत दिवस के अवसर पर नौजवान भारत सभा द्वारा मुम्बई व अहमदनगर में 15 दिवसीय शहीद यादगारी अभियान चलाया गया। इस अभियान के अन्तर्गत हिन्दी व मराठी में हज़ारों पर्चे वितरित किये गये, विचार गोष्ठिया़ँ, पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित की गयी व गौहर रज़ा की इंक़लाब डॉक्यूमेण्ट्री की स्क्रीनिंग भी की गयी। अन्तिम दिन यानी 3 अप्रैल को अहमदनगर के रहमत सुल्तान फ़ाउण्डेशन सभागृह में ‘फासीवाद के मौजूदा दौर में भगतसिंह की प्रासंगिकता’ विषय पर परिसंवाद रखा गया व साथ ही दो पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।

लुधियाना – सैकड़ों लोगों ने दी महान क्रान्तिकारी शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि

बीते 26 मार्च को लुधियाना में मज़दूर पुस्तकालय, ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी (ताजपुर रोड) पर शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु की याद में, शहादत की 86वीं वर्षगाँठ को समर्पित क्रान्तिकारी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कारख़ाना मज़दूर यूनियन, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, स्त्री मज़दूर संगठन व नौजवान भारत सभा द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। संगठनों द्वारा शहादत दिवस के सम्बन्ध में लुधियाना की मज़दूर आबादी में एक सप्ताह तक सघन प्रचार अभियान चलाया गया था। व्यापक पर्चा वितरण, नुक्कड़ नाटकों की पेशकारी और नुक्कड़ सभाओं आदि माध्यमों के ज़रिये लोगों तक क्रान्तिकारी शहीदों का सन्देश पहुँचाया गया।

मारुति-सुजुकी के बेगुनाह मज़दूरों को उम्रक़ैद व अन्य सज़ाओं के खि़लाफ़ लुधियाना में ज़ोरदार प्रदर्शन

एक बहुत बड़ी साजि़श के तहत़ क़त्ल, इरादा क़त्ल जैसे पूरी तरह झूठे केसों में फँसाकर पहले तो 148 मज़दूरों को चार वर्ष से अधिक समय तक, बिना ज़मानत दिये, जेल में बन्द रखा गया और अब गुड़गाँव की अदालत ने नाजायज़ ढंग से 13 मज़दूरों को उम्रक़ैद और चार को 5-5 वर्ष की क़ैद की कठोर सज़ा सुनाई है। 14 अन्य मज़दूरों को चार-चार साल की सज़ा सुनाई गयी है लेकिन चूँकि वे पहले ही लगभग साढे़ चार वर्ष जेल में रह चुके हैं इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया है। 117 मज़दूरों को, जिन्हें बाक़ी मज़दूरों के साथ इतने सालों तक जेलों में ठूँसकर रखा गया, उन्हें बरी करना पड़ा है। सबूत तो बाक़ी मज़दूरों के खि़लाफ़ भी नहीं है लेकिन फिर भी उन्हें जेल में बन्द रखने का बर्बर हुक्म सुनाया गया है।

‘महान अक्टूबर क्रान्ति और इक्कीसवीं सदी की नयी समाजवादी क्रान्तियाँ : निरन्तरता और परिवर्तन के तत्व’ पर नयी दिल्ली में व्याख्यान

अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करणों को रचने के लिए जहाँ अक्टूबर क्रान्ति की समस्याओं की समझ अनिवार्य है, वही आज के दिक् और काल में दुनिया के पूँजीवादी समीकरण को समझना भी बेहद ज़रूरी है। आज दुनियाभर के देशों में उपनिवेश, अर्धउपनिवेशों जैसी स्थिति नहीं है और इन देशों में राष्ट्रीय जनवादी क्रान्ति के कार्यभार भी सम्पन्न हो चुके हैं इसीलिए आज के युग की क्रान्तियाँ चीन की नवजनवादी क्रान्ति जैसी नहीं होंगी। साथ ही, आज की क्रान्तियाँ अक्टूबर क्रान्ति की हु-ब-हु कार्बन कॉपी या नक़ल भी नहीं हो सकतीं।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर कार्यक्रम

आज देशभर की आधी आबादी दोहरी गुलामी का शिकार है। कहीं वो दहेज के लिए जलाई जा रही है, कहीं कारख़ानों में खप रही है तो कहीं दफ़्तरों में, तो कहीं चूल्हे में ख़ुद को झोंक देने के ि‍लए मजबूर है। अपने वजूद से बेख़बर पितृसत्ता और पूँजीवाद की गुलामी के लिए पिस रही है। साल दर साल महिला विरोधी अपराध की घटनाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। ख़ासकर आज का दौर अगर देखा जाये जब हर ओर फासीवादी हमले हो रहे है तो महिलाएँ, अल्पसंख्यक, दलित और मज़दूर वर्ग इसका पहले शिकार हो रहे हैं।

‘भारत में जाति व्यवस्था : उद्भव, विकास और उन्मूलन का सवाल’ विषय पर परिचर्चा

जाति व्यवस्था पर चोट आज इसी रूप में की जा सकती है कि तमाम जातियों की मेहनतकश आबादी वर्ग आधारित एकजुटता स्थापित करे। मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था, जो जातिवाद का समाज की मेहनतकश जनता को बाँटने के लिए इस्तेमाल करती है, के क्रान्ति के द्वारा ख़ात्मे का सवाल बेशक एजेण्डे पर होना चाहिए किन्तु यह भी उतना ही सच है कि व्यापक जाति विरोधी आन्दोलनों को खड़ा किये बग़ैर मेहनतकश आबादी को एकजुट नहीं किया जा सकता।

नोटबन्दी के विरोध में बिगुल मज़दूर दस्ता और जनसंगठनों का भण्डाफोड़ अभियान

मोदी सरकार की नोटबन्दी का सख्त विरोध करते हुए बिगुल मज़दूर दस्ता, नौजवान भारत सभा, जागरूक नागरिक मंच, स्त्री मज़दूर संगठन और अन्य जनसंगठन देश के विभिन्न इलाक़ों में प्रचार अभियान चलाकर लोगों को इस घोर जनविरोधी फ़ैसले की असलियत से वाकिफ़ करा रहे हैं।