Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

‘जातिवाद की समस्या व इसका समाधान’ विषय पर विचार गोष्ठी

सुखविन्दर ने कहा कि जातिवाद के ख़ात्मे का रास्ता सिर्फ़ मार्क्सवाद के पास है। मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद को आपस में मिलाने की कोशिशें बेबुनियाद हैं, इनका फ़ायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हो रहा है। जय भीम लाल सलाम का नारा एक ग़लत नारा है। डा. अम्बेडकर ने जातीय उत्‍पीड़न के मुद्दे को उभारने में अहम भूमिका निभायी लेकिन उनके पास जाति व्यवस्था के ख़ात्मे का कोई रास्ता नहीं था। वे भाववादी दर्शन और पूँजीवादी अर्थशास्त्र व राजनीति के पैरोकार थे।

होंडा के मजदूरों के समर्थन में गोरखपुर में विरोध प्रदर्शन

पिछले कई महीनों से होंडा फैक्ट्री से गैरकानूनी तरीके से निकाले गए मज़दूर अपनी मांगों को लेकर सड़क पर थे और अब मजदूरों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है। मज़दूरों के साथ ऐसा बरताव नया नहीं हैं, गोरखपुर के मज़दूर भी इसके गवाह हैं।

राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक क्रान्ति को अलग-अलग करके देखना अवैज्ञानिक है

आर्थिक शोषण सामाजिक उत्पीड़न के ऐतिहासिक सन्दर्भ व पृष्ठभूमि को बनाता है और सामाजिक उत्पीड़न बदले में आर्थिक शोषण को आर्थिक अतिशोषण में तब्दील करता है। यही कारण है कि 10 में से 9 दलित-विरोधी अपराधों के निशाने पर ग़रीब मेहनतकश दलित होते हैं और यही कारण है कि मज़दूर आबादी में भी सबसे ज़्यादा शोषित और दमित दलित जातियों के मज़दूर होते हैं। आर्थिक शोषण और सामाजिक उत्पीड़न के सम्मिश्रित रूपों को बनाये रखने का कार्य शासक वर्ग और उसकी राजनीतिक सत्ता करते हैं। यही कारण है कि इस आर्थिक शोषण और सामाजिक उत्पीड़न को ख़त्म करने का संघर्ष वास्तव में पूँजीपति वर्ग की राजनीतिक सत्ता के ध्वंस और मेहनतकशों की सत्ता की स्थापना का ही एक अंग है।

शहीद ऊधमसि‍ंह पार्क में शहीदों के सपनों को पूरा करने का संकल्प लि‍या

7 वर्ष की आयु के बाद उधम सिंह का पालन पोषण अनाथालय में हुआ लेकिन जलियांवाला हत्याकाण्ड का बदला लेकर देश का दाग धोने के जुनून में वो अपनी तमाम बाधाओं को पार करते हुए लंदन तक पहुंचे और वहां पर माइकल ओ डायर को ढेर किया। और इसी जुनून ने प्रेमचन्द की लेखनी को निरंतर गतिमान रखा।

‘हम इस समय मानव इतिहास में सबसे बड़े वैश्विक मज़दूर वर्ग के साक्षी हैं!’

मज़दूरों के संगठन के नये रूप मुख्यधारा के पारंपरिक ट्रेडयूनियनवाद की विफलता की वजह से अस्तित्व में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि 1960 के दशक में यूरोपीय एवं अमेरिकी ‘न्यू लेफ्ट’ और दक्षिणपंथी सिद्धान्तकारों के बीच यह धारणा व्याप्त थी कि मज़दूर वर्ग ख़त्म हो चुका है। उनकी दलील थी कि हम मज़दूर वर्ग के पूँजीवादी शोषण की मंजिल को पार कर चुके हैं क्योंकि प्रौद्योगिकी ने इन सभी प्रश्नों का समाधान कर दिया है। परन्तु 1990 का दशक आते-आते यह स्पष्ट हो चुका था कि मज़दूर वर्ग अतीत की चीज़ नहीं बनने जा रहा बल्कि हम मानवता के इतिहास में सबसे बड़े मज़दूर वर्ग के उभार के साक्षी हैं।

क्रान्तिकारी संगठनों ने अमर शहीद सुखदेव का जन्म दिन मनाया

शहीद सुखदेव को धर्म, जाति, बिरादरी, क्षेत्र आदि से जोड़कर उनकी कुर्बानी के महत्व को घटाने व उनके विचारों पर्दा डालने की जाने-अनजाने में कोशिशें पहले भी होती रही हैं और आज भी हो रही हैं। लेकिन उनकी लड़ाई तो समूची मानवता को हर तरह की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक गुलामी, लूट, दमन, अन्याय से मुक्त करने की थी। इसलिए जाने-अनजाने में की जा रही ऐसी कोशिशों का डटकर विरोध करना चाहिए।

मई दिवस पर देशभर में उठी आवाज – मई दिवस का नारा है! सारा संसार हमारा है!

बिगुल मज़दूर दस्ता के सनी ने कहा कि मई दिवस केवल शिकागों के मज़दूरों की कुर्बानी की याददिहानी करने का एक दिन नहीं है बल्कि यह वह ऊर्जा स्त्रोत है जिससे आज के समय में हम अपने संघर्षों के लिए शक्ति सोंख सकते है। शिकागों के मज़दूर सिर्फ अपने आर्थिक हक़ों या राजनितिक हक़ों की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे बल्कि वह समूचे मज़दूर वर्ग के लिए इंसानों के लायक ज़िन्दगी जीने के अधिकार के लिए लड़ रहे थे।

राहुल सांकृत्यायन के जन्म दिवस (9 अप्रैल) से स्मृति दिवस (14 अप्रैल) तक ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’ जन अभियान

धार्मिक कट्टरता, जातिभेद की संस्कृति और हर तरह की दिमाग़ी ग़ुलामी के ख़ि‍लाफ़ राहुल के आह्वान पर अमल हमारे समाज की आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। पूँजी की जो चौतरफ़ा जकड़बन्दी आज हमारा दम घोंट रही है, उसे तोड़ने के लिए ज़रूरी है कि तमाम परेशान-बदहाल मेहनतकश आम लोग एकजुट हों और यह तभी हो सकता है जब वे धार्मिक रूढ़ियों और जात-पाँत के भेदभाव से अपने को मुक्त कर लें।

23 मार्च के मौके पर देशभर में विभिन्न कार्यक्रम

शहीद-ए-आज़म भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के शहादत की 85वीं बरसी पर बिगुल मज़दूर दस्ता, नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, पंजाब स्टूडेण्ट यूनियन (ललकार), स्त्री मुक्ति लीग, जागरूक नागरिक मंच और विभिन्न यूनियनों द्वारा देश भर में प्रचार अभियानों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अमर शहीदों के विचारों का जनता के बीच प्रचार-प्रसार किया गया।
करोड़ों लोगों के दिलों की धड़कन हमारे ये शहीद लोगों के दिलों में बेशक आज भी ज़िन्दा हैं किन्तु इनके क्रान्तिकारी विचारों से व्यापक मेहनतकश जनता आम तौर पर अनभिज्ञ दिखाई देती है। वैसे तो देश की संसद तक में भी भगतसिंह की मूर्ति रखी हुई है किन्तु शहीदों के विचार लोगों तक चले जायें इस बात से शासक वर्ग आज भी भयाक्रान्त रहता है। एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान के और एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के किसी भी प्रकार के शोषण के ख़िलाफ़ कुर्बान होने वाले एच.एस.आर.ए. (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) के हमारे इन जाबांज़ नायकों के विचार मेहनतकश जनता के संघर्षों के लिए जहाँ दिशा सूचक के समान हैं वहीं शासक वर्ग की रीढ़ में इनसे वर्तमान में भी कँपकँपी पैदा हो जाती है। भगवा गिरोह जो आज राष्ट्रवाद और देशप्रेम का ठेकेदार बना हुआ है भगतसिंह का नाम ही इसके लिए दु:स्वप्न के समान है। संघियों को यदि देश से इनकी गद्दारी का इतिहास याद दिला दिया जाये तो इन्हें साँप सूँघ जाता है।

छात्रों-युवाओं के दमन और विरोधी विचारों को कुचलने की हरकतों का कड़ा विरोध

हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों के दमन और मुम्बई में आर.एस.एस. विरोधी पर्चे बाँटने पर नौजवान भारत सभा कार्यालय पर आतंकवाद निरोधक दस्ते के छापे की देश भर के जनवादी व नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और विभिन्न जनसंगठनों की तरफ़ से की कड़ी निन्दा की गयी।