नौजवान भारत सभा का प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन
बिगुल संवाददाता
आज के दौर में जहाँ एक ओर पूँजीवादी व्यवस्था अपने ढाँचागत संकट से गुज़र रही है और बुर्जुआ जनवाद का रहा-सहा स्पेस भी सिकुड़कर तेजी से फासीवाद की शक्ल अख़्तियार कर रहा है, वहीं दूसरी ओर इस पूँजीवादी संकट को क्रान्तिकारी परिस्थिति में तब्दील करने वाली क्रान्तिकारी शक्तियाँ पूरी दुनिया में अभूतपूर्व बिखराव और भटकाव की शिकार हैं। क्रान्ति की लहर पर प्रतिक्रान्ति की लहर लगातार हावी है। चारों ओर अन्याय-अत्याचार–भ्रष्टाचार-लूट-बर्बरता और हताशा-निराशा का घटाटोप छाया हुआ है एवं गतिरोध की स्थिति कायम है। ऐसे में, कुछ लोग कहते हैं कि देश एक अन्धी गली के आखिरी मुकाम पर पहुँच गया है जबकि सच तो यह है कि देश एक ऐसे ज्वालामुखी के दहाने के एकदम करीब जा पहुँचा है जो फटने को तैयार है। मगर अभी बदलाव की लड़ाई में एक गतिरोध की स्थिति बनी हुई है।
ऐसे ही गतिरोध को तोड़ने के लिए शहीद-ए-आजम भगतसिंह ने क्रान्ति की स्पिरिट ताज़ा करने की बात कही थी। इसी मकसद को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय नौजवान भारत सभा (नौभास) का प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन भगतसिंह के 107वें जन्मदिवस के अवसर पर 26-27-28 सितम्बर को नई दिल्ली के अम्बेडकर भवन में आयोजित किया गया। भगतसिंह जैसे महान युवा क्रान्तिकारी के विचारों से प्रेरित इस संगठन के प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन को आयोजित करने का इससे बेहतर मौका कोई नहीं हो सकता था। ग़ौरतलब है कि 1926 में भगतसिंह और उनके साथियों ने औपनिवेशिक गुलामी के विरुद्ध भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन को नया वैचारिक आधार देने के लिए और एक नये सिरे से संगठित करने के लिए युवाओं का जो संगठन बनाया था उसका नाम भी नौजवान भारत सभा ही था। यह नाम अपनेआप में उस महान क्रान्तिकारी विरासत को पुनर्जागृत करने और उसे आगे बढ़ाने के संकल्प का प्रतीक है।
नौभास का यह सम्मेलन एक ऐसे समय में सम्पन्न हुआ जब 67 वर्षों की आज़ादी और तरक़्की का कुल अंजाम यह है कि आम मेहनतकशों के अथाह दुखों के सागर में समृद्धि के कुछ टापू उभर आये हैं, जिनपर विलासिता की मीनारें जगमगा रही हैं। पूँजीपतियों और धनिकों की ऊपर की पन्द्रह फ़ीसदी आबादी के लिए ही सारी तरक़्क़ी है। 70 करोड़ मेहनतकशों की आबादी नर्क से भी बदतर जीवन बिता रही है। अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाली जनता के दमन के लिए तरह-तरह के काले क़ानून हैं और बर्बर दमन तंत्र है। देशी पूँजीपतियों के साथ ही देश को विदेशी लूट का भी खुला चरागाह बना दिया गया है। हर साल खरबों रुपये का मुनाफ़ा विदेशी कम्पनियाँ ले जाती हैं और अरबों रुपये विदेशी कर्ज़ों का सूद भरने में ही चले जाते हैं। लोगों को बलपूर्वक उजाड़कर जल-जंगल-जमीन की अकूत सम्पदा सरकार देशी-विदेशी पूँजीपतियों को कौड़ियों के मोल दे रही है। पूँजी की मार से दिवालिया लाखों आम किसान आत्महत्या कर रहे हैं और करोड़ों कंगाल होकर मज़दूरों की कतारों में शामिल हो रहे हैं। बेरोज़गारी और मँहगाई को हल करने के सारे वायदे सुनते युवाओं की कई पीढ़ियाँ बुढ़ा गयीं, पर ये समस्याएँ घटने के बजाय बढ़ती ही गयी हैं।
देश की चरम लुटेरी, घोर जनविरोधी और असाध्य संकटग्रस्त आर्थिक व्यवस्था की ही सघन अभिव्यक्ति घनघोर पतित, भ्रष्ट और बर्बर अत्याचारी राजनीतिक ढाँचे के रूप में हो रही है। अब इसमें सुधार की कोई उम्मीद नहीं है। सिर से पाँव तक पूरा सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक ढाँचा सड़ चुका है। अब इस ढाँचे को गहरे दफ्न करके एक नये सामाजिक ढाँचे की बुनियाद डालनी ही होगी। देश को बचाने का एक ही रास्ता है। एक आमूलगामी सामाजिक जनक्रांति संगठित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। अब इस्पाती संकल्पों के साथ एकजुट होकर संगठित होकर उठ खड़ा होना आज वक़्त की ज़रूरत है।
यह समाज हरकत में आये, इसके लिए सबसे पहले नौजवानों को कमान सँभालनी होगी। उन्हें आगे आना होगा, और जैसा कि भगतसिंह ने फाँसी की कोठरी से देश के नौजवानों को भेजे गये अपने आखिरी सन्देश में कहा था, मज़दूर क्रान्ति का सन्देश शहरों की मज़दूर बस्तियों और गाँवों की झोपड़ियों तक पहुँचाना होगा।
‘नौजवान भारत सभा’ इसी उद्देश्य से आम मेहनतकश जनता के बहादुर, इंसाफ़पसन्द, विद्रोही सपूतों को एक ठोस क्रान्तिकारी कार्यक्रम के आधार पर संगठित कर रहा है। इसी नाम से भगतसिंह ने लाहौर में नौजवान संगठन बनाया था। आज नयी क्रान्तिकारी भावना के साथ उसी नाम को ज़िन्दा किया गया है। इस क्रान्तिकारी नौजवान संगठन का उद्देश्य देश के बिखरे हुए युवा आन्दोलन को एक सही दिशा की समझ के आधार पर एकजुट करना और उसे व्यापक जनसमुदाय के साम्राज्यवाद-पूँजीवाद विरोधी संघर्ष के एक अविभाज्य अंग के रूप में आगे बढ़ाना है।
सम्मेलन के प्रतिनिधि सत्र
सम्मेलन में पहले दो दिन के प्रतिनिधि सत्रों में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से चुने हुए लगभग 150 नौजवान प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन के अन्तिम दिन भगतसिंह के 107वें जन्मदिवस पर एक खुले सत्र का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 300 लोगों ने हिस्सा लिया जिसमें प्रतिनिधियों के अतिरिक्त नौजवान भारत सभा के शुभचिंतक एवं समर्थक शामिल थे।
सम्मेलन के पहले दिन के प्रथम सत्र की शुरुआत नौजवान भारत सभा के झण्डारोहण से हुई। इसके बाद संयोजन समिति की तरफ से तपीश मैन्दोला ने पिछले दस वर्षों की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह सम्मेलन एक ऐसे समय में हो रहा है जब हमारा देश आम जनता के बहादुर, इंसाफपसन्द, प्रगतिकामी युवा सपूतों से एक बार फिर उठ खड़े होने की और आगे बढ़कर अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी को निभाने की माँग कर रहा है। रिपोर्ट में नौभास के नेतृत्व में चले जनान्दोलनों, प्रचार अभियानों और विभिन्न सांस्कृतिक और रचनात्मक कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया।
पहले दिन के द्वितीय सत्र में नौभास का मसौदा घोषणापत्र और मसौदा संविधान प्रस्तावित किया गया और उनके विभिन्न बिन्दुओं पर गहन बहस-मुबाहसा हुआ। मसौदा घोषणापत्र में यह लिखा है कि भगतसिंह के आदर्शों के अनुगामी नौजवानों का यह दायित्व है कि वे पूँजीवादी राजनीति के छल-छद्म का भण्डाफोड़ करते हुए धार्मिक कट्टरपंथी फासिस्ट ताकतों के विरुद्ध स्वयं जमीनी स्तर पर एकजुट हों और व्यापक मेहनतकश आबादी को भी संगठित करें। इस सत्र के अन्त में घोषणापत्र एवं संविधान पारित किया गया।
दूसरे दिन के प्रथम सत्र में अहम राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर प्रस्ताव पारित किये गये जिसमें शहीदों के लिए श्रद्धांजलि प्रस्ताव, मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरोध में प्रस्ताव, दुनिया भर में बढ़ रहे धार्मिक कट्टरपंथ के ख़िलाफ़ प्रस्ताव, फिलिस्तीनी जनता के मुक्ति संघर्ष के समर्थन में प्रस्ताव, दुनिया भर में चल रहे जनान्दोलनों के समर्थन में प्रस्ताव, देश भर में चल रहे जनान्दोलनों के समर्थन और सत्ता तन्त्र द्वारा उनके दमन के विरोध में प्रस्ताव, संघ परिवार द्वारा चलायी जा रही ‘लव जिहाद’ की झूठी मुहिम पर निन्दा प्रस्ताव, पंजाब के काले कानून पर विरोध प्रस्ताव, स्त्री-विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ प्रस्ताव, दलित और जनजाति उत्पीड़न के खिलाफ प्रस्ताव, देश भर में जारी छात्र-युवा आन्दोलनों के समर्थन तथा उनके बर्बर दमन के विरुद्ध प्रस्ताव, पूँजीवाद द्वारा की जा रही पर्यावरण की तबाही पर प्रस्ताव तथा हिन्दी पत्रिका ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’, पंजाबी पत्रिका ‘ललकार’ एवं मराठी पत्रिका ‘स्फुलिंग’ को नौजवान भारत सभा की सहयोगी पत्रिकाओं के रूप में चयन सम्बन्धी प्रस्ताव शामिल थे। इसके अलावा देश तथा विदेश से अनेक संगठनों तथा बुद्धिजीवियों-सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से नौभास के सम्मेलन के लिए भेजे गये शुभकामना सन्देशों को पढ़कर सुनाया गया।
दूसरे दिन के द्वितीय सत्र में नौभास की 17 सदस्यीय केन्द्रीय परिषद का चुनाव किया गया जिसने 7 सदस्यीय केन्द्रीय कार्यकारणी का चुनाव किया और फिर कार्यकारिणी द्वारा अपने पदाधिकारों का चुनाव किया गया। नौभास की हरियाणा इकाई के अरविन्द को अध्यक्ष चुना गया, दिल्ली इकाई के योगेश को उपाध्यक्ष, पंजाब इकाई के छिन्दरपाल को महासचिव तथा ग़ाज़ियाबाद इकाई की श्वेता को कोषाध्यक्ष चुना गया।
अन्तिम दिन: खुला सत्र एवं रैली
सम्मेलन के अन्तिम दिन भगतसिंह के 107वें जन्मदिवस पर आयोजित खुले सत्र की शुरुआत शहीदों को श्रद्धांजलि से हुई। उसके बाद मुक्तिकामी छात्रों-नौजवानों की पत्रिका ‘आह्वान’ के सम्पादक अभिनव ने अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने अपनी बात में कहा कि सबको समान शिक्षा और रोज़गार के केन्द्रीय मुद्दे के अतिरिक्त आम मेहनतकश जनता के अन्य जनवादी अधिकारों मसलन स्वास्थ्य और आवास जैसे मुद्दों पर भी नौजवान भारत सभा को आन्दोलन छेड़ना चाहिए क्योंकि इन मुद्दों के ज़रिये भी पूँजीवादी व्यवस्था का भण्डाफोड़ किया जा सकता है।
तीसरे दिन के अन्तिम सत्र में विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें बिहार के मुज़फ्फ़रपुर से आयी बिहार राज्य जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा ‘विकल्प’ की टीम ने गुरुशरण सिंह द्वारा रचित नाटक ‘इंक़लाब ज़िन्दाबाद’ नाटक का मंचन किया और क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की। इसके अलावा पंजाब की क्रान्तिकारी संगीत टोली ‘दस्तक’ एवं दिल्ली की सांस्कृतिक टोली ‘विहान’ ने भी क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की। सम्मेलन का समापन शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की याद में एक रैली से हुआ। युवाओं ने ‘भगतसिंह के सपनों को साकार करो’, ‘भगतसिंह का आह्वान, जागो-जागो नौजवान’, ‘नौजवान जब भी जागा, इतिहास ने करवट बदली है’ जैसे गगनभेदी नारों के साथ रैली का समापन हुआ।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2014
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