Category Archives: संघर्षरत जनता

सड़क पर तो हम जीते ही थे, अब न्यायालय में भी जीत के क़रीब है दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष!

दिल्ली सरकार, महिला एवं बाल विकास विभाग और उसके दलालों की बेचैनी इस बात का सबब है कि दिल्ली सरकार के सामने अब कोई रास्ता नहीं बचा है। कुछ वक़्त पहले तक इन्हीं बर्ख़ास्तगियों को सही ठहराने वाला महिला एवं बाल विकास विभाग ऑर्डर जारी कर पुनः बहाली की नौटंकी करने को मजबूर हुआ। लेकिन अनर्गल शर्तों से भरे इस ऑर्डर को महिलाकर्मियों ने नामंज़ूर कर अपने संघर्ष को तब तक जारी रखने का ऐलान किया है जब तक सभी 884 ग़ैर-क़ानूनी टर्मिनेशन रद्द नहीं कर दिये जाते हैं। दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष न केवल टर्मिनेशन के ख़िलाफ़ है बल्कि न्यूनतम मज़दूरी, कर्मचारी का दर्जा, एरियर का भुगतान व ग्रैच्युटी समेत अन्य कई वाजिब माँगों के लिए भी है। महिलाकर्मियों के संघर्ष के दमन के ज़िम्मेदार आम आदमी पार्टी व भाजपा के ख़िलाफ़ दिल्ली निगम चुनाव में चला व्यापक बहिष्कार आन्दोलन भी आगे जारी रहेगा। न्यायालय में हमारा पक्ष इसीलिए मज़बूत है क्योंकि हमारी एकजुटता ठोस है और हम सड़क पर मज़बूत हैं।

‘मज़दूर बिगुल’ के पाठकों से एक अपील

देश में आम मेहनतकश जनता की ऐसी बेहाली कभी नहीं हुई थी। आज साम्प्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता में हमें बहाकर वास्तव में मौजूदा निज़ाम अडानियों-अम्बानियों की पायबोसी और सिजदे में लगा है। ऐसे में, देश में संघ परिवार व मोदी-शाह निज़ाम के ख़िलाफ़ देश के दस राज्यों में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा को भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी व कई जनसंगठन आयोजित कर रहे हैं। उद्देश्य है पूँजीपरस्त साम्प्रदायिक फ़ासीवादी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ और समूची पूँजीवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़, जिसने अपने संकटकालीन दौर में पूँजीपति वर्ग की इस बर्बर व नग्न तानाशाही को पैदा किया है, जनता में एक जागृति, गोलबन्दी और संगठन पैदा करना; शहीदे-आज़म भगतसिंह और उनके साथियों के वैज्ञानिक सिद्धान्तों और उसूलों से जनता को परिचित कराना।

आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों के संघर्ष ने तमाम पूँजीवादी पार्टियों के मज़दूर-मेहनतकश विरोधी चेहरे को बेपर्द किया!

दिल्ली में 31 जनवरी 2022 से शुरू हुआ आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों का संघर्ष दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश के मज़दूर आन्दोलन के इतिहास में एक आगे बढ़ा हुआ क़दम है। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन की रहनुमाई में 38 दिनों तक चली ये हड़ताल हर आने वाले दिन के साथ नया इतिहास रचते हुए और अधिक मज़बूत होती रही। अपनी हड़ताल और रैलियों के माध्यम से सड़कों पर उतरे महिलाओं के सैलाब ने न सिर्फ़ दिल्ली में और केन्द्र में बैठे हुक्मरानों की कुर्सियाँ हिला दी थीं, उन्हें भयाक्रान्त कर दिया था और उनकी असलियत को उजागर किया बल्कि इस समूची पूँजीवादी-पितृसत्तात्मक व्यवस्था को भी चुनौती दी।

एक बार फिर कश्मीरी क़ौम निर्णय में भागीदारी से वंचित

आपको याद होगा कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35ए हटाये जाने के बाद मुख्यधारा का मीडिया और सोशल मीडिया पर मनोरोगी क़िस्म के विकृत मानसिकता वाले भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ता अर्धपागलों की तरह कश्मीर में प्लॉट ख़रीदने का जश्न मना रहे थे और कश्मीर की औरतों के बारे में अपनी कुत्सित मानसिकता का कुरूप प्रदर्शन कर रहे थे क्योंकि मोदी मीडिया ने इसे कुछ इस प्रकार ही प्रस्तुत किया था। लेकिन इस निर्णय से मोदी सरकार को जितनी उम्मीदें थीं उनमें से कुछ भी कारगर होती नज़र नहीं आ रहीं।

फ़िलिस्तीनी जनता के बहादुराना संघर्ष ने एक बार फिर इज़रायली हमलावरों को पीछे हटने पर मजबूर किया

पिछले मई में 11 दिनों तक गाज़ा शहर पर भयानक बमबारी के बाद 21 मई को इज़रायल और फ़िलिस्तीनी संगठन हमास के बीच संघर्ष विराम हुआ। इज़रायल तो फ़िलिस्तीनी लोगों के जनसंहार की अपनी मुहिम को जारी रखना चाहता था लेकिन हमेशा की तरह फ़िलिस्तीनियों के ज़बर्दस्त बहादुराना संघर्ष और उनके समर्थन में पूरी दुनिया में सड़कों पर उमड़े जन सैलाब ने, और मुख्यत: इसी के कारण अमेरिका के दबाव ने इज़रायल को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

इन्साफ़पसन्द लोगों को इज़रायल का विरोध और फ़िलिस्तीन का समर्थन क्‍यों करना चाहिए

हम इन्साफ़पसन्द लोगों से मुख़ातिब हैं। जो लोग न्याय और अन्याय के बीच की लड़ाई में ताक़त के हिसाब से या समाज और मीडिया में प्रचलित धारणाओं के अुनसार अपना पक्ष चुनते हैं वे इसे न पढ़ें। आज जब दुनियाभर में लोग कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं और हमारे देश में हुक्‍मरानों के निकम्मेपन की वजह से हम अपने देश के भीतर एक नरसंहार के गवाह बन रहे हैं, वहीं इस महामारी के बीच हज़ारों मील दूर ग़ाज़ा में ज़ायनवादी इज़रायल एक बार फिर मानवता के इतिहास के सबसे बर्बर क़िस्‍म के नरसंहार को अंजाम दे रहा है। इस वीभत्स नरसंहार पर ख़ामोश रहकर या दोनो पक्षों को बराबर का ज़िम्मेदार ठहराकर हम इसे बढ़ावा देने का काम करेंगे।

म्यांमार में बर्बर दमन के बावजूद सैन्य तानाशाही के ख़ि‍लाफ़ उमड़ा जनसैलाब

गत 1 फ़रवरी को म्यांमार में एक बार फिर सेना ने तख़्तापलट करके शासन-प्रशासन के समूचे ढाँचे को अपनी गिरफ़्त में ले लिया। वहाँ की निर्वाचित ‘स्टेट काउंसलर’ आंग सान सू की और उनकी पार्टी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया और एक साल के लिए देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।

नेपाल में राजनीतिक-संवैधानिक संकट: संशोधनवाद का भद्दा बुर्जुआ रूप खुलकर सबके सामने है!

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) के भीतर के.पी. शर्मा ओली और पुष्प कमल दाहाल (प्रचण्ड) के धड़ों के बीच महीनों से सत्ता पर क़ब्ज़े के लिए चल रही कुत्ताघसीटी की परिणति पिछले साल 20 दिसम्बर को ओली द्वारा नेपाल की संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग करने की अनुशंसा और के रूप में हुई। राष्ट्रपति विद्या भण्डारी ने बिना किसी देरी के प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले पर मुहर लगा दी। आगामी 30 अप्रैल व 10 मई को मध्यावधि चुनावों की घोषणा भी कर दी गयी है।

उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण पर आमादा सरकार

उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों की जुझारू एकजुटता के आगे आख़िरकार योगी सरकार को झुकना पड़ा। गत 6 अक्टूबर को विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति के साथ हुए समझौते में प्रदेश सरकार को पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड का निजीकरण करने की अपनी योजना को तीन महीने के लिए टालने मजबूर होना पड़ा। निश्चित रूप से यह प्रदेश के 15 लाख कर्मचारियों की एकजुटता की शानदार जीत है। लेकिन इस जीत से संतुष्ट होकर सरकार पर दबाव कम करने से बिजली के वितरण प्रक्रिया का निजीकरण करके निजी वितरण कम्पनियों को मुनाफ़े की सौग़ात देने के मंसूबे को पूरा करने में कामयाब हो जायेगी।

भाजपा शासन के आतंक को ध्‍वस्‍त कर दिया है औरतों के आन्‍दोलन ने!

…जामिया पर दमन के विरोध में दिल्‍ली के शाहीन बाग़ में स्त्रियों का धरना शुरू हुआ जो आज एक ऐसा ताक़तवर आन्‍दोलन बन गया है जिसने मोदी-शाह-योगी की रातों की नींद हराम कर दी है। उन्‍हें सोते-जागते शाहीन बाग़ ही नज़र आता है। बौखलाहट में वे पागलों की तरह शाहीन बाग़-शाहीन बाग़ की रट लगाये हुए हैं। आज देश में 50 से भी ज़्यादा जगहों पर शाहीन बाग़ की तर्ज़ पर अनिश्चितकालीन दिनो-रात चलने वाले धरने जारी हैं जिनकी अगुवाई हर जगह औरतें कर रही हैं, और वही इनकी रक्षाकवच भी है।