Category Archives: संघर्षरत जनता

धरना-प्रदर्शनों पर रोक व काले क़ानूनों के खि़लाफ़ लुधियाना के जनवादी जनसंगठन सड़कों पर उतरे

वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकारें काले क़ानूनों के ज़रिये जनता के जनवादी अधिकारों, नागरिक अाज़ादियों को कुचलने की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। देश के पूँजीवादी-साम्राज्यवादी हुक्मरानों द्वारा जनता के खि़लाफ़ तीखा आर्थिक हमला छेड़ा हुआ है। अमीरी-ग़रीबी की खाई बहुत बढ़ चुकी है। महँगाई, बेरोज़गारी, बदहाली, गुण्डागर्दी, स्त्रियों, दलित, अल्पसंख्यकों पर जुल्म बढ़ते जा रहे हैं। इसके चलते लोगों में तीखा रोष है। जनसंघर्षों से घबराये हुक्मरान काले क़ानूनों, दमन, अत्याचार के ज़रिये जनता की अधिकारपूर्ण आवाज़ दबाने का भ्रम पाल रहे हैं। लेकिन जनता इन काले क़ानूनों, तानाशाह फ़रमानों से घबराकर पीछे नहीं हटने वाली। ये तानाशाह फ़रमान, काले क़ानून हुक्मरानों की मज़बूती का नहीं कमज़ोरी का सूचक हैं। लोग न सिर्फ़ अपने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे बल्कि इन दमनकारी फ़रमानों/काले क़ानूनों को भी वापिस करवाकर रहेंगे।

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान

राज्यसभा में कैबिनेट राज्यमन्त्री जितेन्द्र प्रसाद ने ख़ुद माना था कि कुल 4,20,547 पद अकेले केन्द्र में ख़ाली पड़े हैं। देश भर में प्राइमरी-अपर-प्राइमरी अध्यापकों के क़रीब 10 लाख पद, पुलिस विभाग में 5,49,025 पद, ख़ाली पड़े हैं। केन्द्र और राज्यों के स्तर पर क़रीब बीसियों लाख पद ख़ाली हैं। तो ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इन रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ क्यों नहीं की जातीं? एक ओर बेरोज़गारी की भीषण आग में झुलसती जनता है, वहीं दूसरी ओर नेताओं और पूँजीपतियों की सम्पत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है।

केजरीवाल सरकार के मज़दूर और ग़रीब विरोधी रवैये के ख़िलाफ़ आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने उठायी आवाज़!

 इस योजना में सबसे निचले पायदान पर कार्यरत कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को बलि का बकरा बनाकर केजरीवाल सरकार इस स्कीम में अपने द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालते हुए महिलाकर्मियों के कन्धों पर रख कर बन्दूक चला रही है। ये कोई छिपी हुई बात नहीं है कि इस योजना में लगे एनजीओ का, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, आम आदमी पार्टी से सम्बन्ध है। खुद को आम आदमी का हिमायती कहने वाले केजरीवाल ने यह साबित कर दिया है कि उसकी सरकार के  ख़िलाफ़ अगर आवाज़ उठाई जायेगी तो उस आवाज़ को दबाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।

लुधियाना में 9 वर्ष की बच्ची के अपहरण व क़त्ल के ख़िलाफ़ मेहनतकशों का जुझारू संघर्ष

जीतन राम परिवार सहित लुधियाना आने से पहले दरभंगा शहर में रिक्शा चलाता था। तीन बेटियों और एक बेटे के विवाह के लिए उठाये गये क़र्ज़े का बोझ उतारने के लिए रिक्शा चलाकर कमाई पूरी नहीं पड़ रही थी। इसलिए उसने सोचा कि लुधियाना जाकर मज़दूरी की जाये। यहाँ आकर वह राज मिस्त्री के साथ दिहाड़ी करने लगा। उसकी पत्नी और एक 12 वर्ष की बेटी कारख़ाने में मज़दूरी करने लगी। सबसे छोटी 9 वर्षीय बेटी गीता उर्फ़ रानी को किराये के कमरे में अकेले छोड़कर जाना इस ग़रीब परिवार की मजबूरी थी।

लुधियाना पुलिस कमिशनरी में धरना-प्रदर्शनों पर पाबन्दी के ख़िलाफ़ व्यापक संघर्ष का ऐलान

अपनी समस्याएँ हल न होने पर लोगों को मज़बूरीवश विभिन्न सरकारी अधिकारियों के दफ़्तरों, संसद-विधानसभा मैम्बर, मेयर, काऊंसलर, थाना, चौकी, सड़कों आदि पर प्रदर्शन करने पड़ते हैं। हक़ों के लिए इकट्ठा होना और आवाज़ बुलन्द करना लोगों का जनवादी ही नहीं बल्कि संवैधानिक हक़ भी है। भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत लोगों को अपने विचारों और हक़ों के लिए संगठित होने व संघर्ष करने की आज़ादी है। यह हुक्म लोगों के संवैधानिक व जनवादी अधिकार का हनन है।

ढण्डारी अपहरण, बलात्कार व क़त्ल काण्ड-2014 की पीडि़ता शहनाज़ की तीसरी बरसी पर श्रद्धांजलि समागम

गुण्डा गिरोह के इस अपराध व गुण्डा-सियासी-पुलिस-प्रशासनिक नापाक गँठजोड़ के ख़िलाफ़ हज़ारों लोगों द्वारा ‘संघर्ष कमेटी’ के नेतृत्व में विशाल जुझारू संघर्ष लड़ा गया था। जनदबाव के चलते दोषियों को सज़ा की उम्मीद बँधी हुई है। क़त्ल काण्ड के सात दोषी जेल में बन्द हैं। अदालत में केस चल रहा है। पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करने में की गयी गड़बड़ि‍यों के चलते अगवा व बलात्कार का एक दोषी जमानत पर आज़ाद घूम रहा है। इन बलात्कारियों व कातिलों को फाँसी की सज़ा के लिए संघर्ष जारी रहेगा।

हरि‍याणा के चौशाला गाँव में अवैध खुर्दें (अवैध शराबी ठेका) बन्द करने के लि‍ए प्रदर्शन

चौशाला गाँव (कैथल जि़‍ला) में लम्बे समय से चल रहे शराब के खुर्दों पर पाबन्दी लगाने के लि‍ए कलायत एसडीएम कार्यालय का घेराव किया। नौजवान भारत सभा व नशा विरोधी कमेटी के बैनर तले महिलाओं, युवाओं ने कैंची चैक से नशा परोसने वालों के खि़लाफ़ तख्ती और बैनर के साथ रोष प्रदर्शन की शुरुआत की। एसडीएम कार्यालय पर घेराव में अवैध खुर्दें से परेशान जनता ने जि़ला पुलिस प्रशासन के खि़लाफ़ नारेबाजी की और एसडीएम के नाम ज्ञापन सौंपा।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हॉस्टल मेस कर्मचारियों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हॉस्टल मेस कर्मचारी विगत 26 दिनों से अपनी माँगों को लेकर प्रदर्शनरत हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हॉस्टल में काम कर रहे इन करमचारियों को विश्वविद्यालय प्रशासन अपना कर्मचारी मानने तक से इनकार करता रहा है। मात्र 5000 की तनख़्वाह पाने वाले ये कर्मचारी हर साल अपनी माँगों को लेकर आवाज़ उठाते रहे हैं, और हर साल प्रशासन उन्हें यही हवाला देता रहा है कि वे विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं ही नहीं, उन्हें लेबर कोर्ट जाना चाहिए। कर्मचारियों की रजिस्टर्ड यूनियन, होटल मेस कर्मचारी यूनियन ने केस डाला भी और लेबर कोर्ट से बीते 31 मार्च को उनके हक़ में फै़सला भी आ गया । जिस फै़सले में उन्हें विश्वविद्यालय के कर्मचारी मानने, न्यूनतम वेतन लागू करने व पक्के किये जाने की बात थी। मगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने फै़सले को मानने से साफ़ इनकार कर दिया है। प्रशासन का कहना है कि उनके पास कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं है, वहीं दूसरी तरफ़ विश्वविद्यालय में हो रहे ‘रत्नावली’ में बहाने के लिए काफ़ी पैसे हैं।

वाम गठबंधन की भारी जीत के बाद : नेपाल किस ओर?

बहुत सारे भावुकतावादी कम्युनिस्टों में संशोधनवादी वाम गठबन्धन की भारी जीत से यदि कुछ ज़्यादा ही उम्मीदें पैदा हो गयी हैं तो यह अच्छी बात नहीं है क्योंकि मिथ्या उम्मीद नाउम्मीदी से भी बुरी चीज़ होती है। एक अच्छी बात यह है कि संघर्षों में तपी-मंजी नेपाल की कम्युनिस्ट कतारों का एक अच्छा-खासा हिस्सा इस बात को समझता जा रहा है और आने वाले दिनों में इसे वह और बेहतर तरीके से तथा और तेज़ी से समझेगा।

इलाहाबाद में स्वास्थ्यकर्मियों का आन्दोलन

निर्धारित मानकों के हिसाब से 5000 की आबादी पर कम से कम एक महिला तथा एक पुरुष स्वास्थ्य कर्मी की नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन एक स्वास्थ्य कर्मी को 15000 की आबादी पर अकेले काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमर तोड़कर वास्तव में यह व्यवस्था देश की बदहाल स्थिति में जी रही देश की बड़ी आबादी को बेमौत मार रही है।