‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ का दूसरा चरण : समाहार रपट
देशभर में यात्रा को मिले व्यापक समर्थन से बौखलायी मोदी सरकार द्वारा दिल्ली में किये दमन ने इसके सन्देश को और व्यापक रूप से फैलाया! यात्रा अपने मकसद में बेहद कामयाब रही!
जैसा कि आप जानते हैं, मुख्य रूप से ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ की अगुवाई और ‘दिशा छात्र संगठन’, ‘नौजवान भारत सभा’, ‘स्त्री मुक्ति लीग’, ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ समेत कई जनसंगठनों की अग्रणी भागीदारी के साथ चलायी जा रही ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ (BSJAY) का दूसरा चरण 10 दिसम्बर 2023 से 3 मार्च 2024 तक जारी रहा। इस दूसरे चरण में पदयात्राओं के ज़रिये इस यात्रा ने 13 राज्यों के 85 से ज़्यादा ज़िलों को कवर किया और 8600 किलोमीटर से ज़्यादा दूरी तय की। इसकी शुरुआत कर्नाटक के बंेगलुरु से हुई थी और यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में समाप्त हुई। इस बीच यात्रा ने कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखण्ड, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, चण्डीगढ़ और दिल्ली राज्यों का दौरा किया।
यात्रा का असर इस बात से देखा जा सकता था कि 3 मार्च को दिल्ली में यात्रा के समापन के तौर पर होने वाले विशाल प्रदर्शन को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया, बवाना औद्योगिक क्षेत्र में यात्रा के समर्थन में हुई हड़ताल को कुचलने के लिए गिरफ्तारियाँ और हिरासत में यातना तक का सहारा लिया, जन्तर-मन्तर से कई लहरों में हज़ारों लोगों को बार-बार हिरासत में लिया और शहर में जगह-जगह जत्थों में आ रहे मज़दूरों, मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं को रोकने की कोशिश की और जन्तर-मन्तर पर कई दफ़ा लाठी चार्ज तक किया। लेकिन इससे भी वह प्रदर्शन को रोकने में कामयाब नहीं हो पायी। जन्तर-मन्तर पर तो बार-बार प्रदर्शन हुए ही, दिल्ली के करीब आधा दर्जन पुलिस थानों में भी प्रदर्शन होते रहे। प्रदर्शन का सन्देश सीमित होने के बजाय पूरे शहर में और भी ज़्यादा व्यापकता के साथ फैला। हमारे प्रयासों का असर कई बार इसी से पता चलता है कि शोषक और उत्पीड़क हुक्मरान उसके प्रति क्या रवैया अपनाते हैं। मज़दूरों, मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं, आम स्त्रियों व दलितों के इस प्रदर्शन से मोदी सरकार घबरायी और बौखलायी हुई थी और 3 मार्च को दिल्ली पुलिस के रवैये से यह बात साफ़ ज़ाहिर हो गयी।
इस दौरान यात्रा ने लाखों लोगों से सम्पर्क किया। यात्रा ने करीब 3,86,000 पर्चे और 3,242 पुस्तिकाएँ बाँटीं, जो हर क्षेत्र के लोगों की अपनी भाषा में उपलब्ध थीं; हज़ारों नुक्कड़ सभाएँ कीं, सैकड़ों मार्च निकाले, दर्जनों बड़ी जनसभाएँ कीं और व्यापक पैमाने पर दीवार-लेखन, पोस्टरिंग व स्टिकर-प्रचार का काम किया। ये पर्चे और पुस्तिकाएँ पिछले 10 वर्षों में फ़ासीवादी मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों की सच्चाई को तथ्यों व तर्कों समेत जनता के बीच बेनक़ाब करते हैं, भाजपा व संघ परिवार की साम्प्रदायिक फ़ासीवादी राजनीति व धुर जनविरोधी चरित्र का पर्दाफ़ाश करते हैं, बड़े-बड़े धन्नासेठों के चन्दे के बल पर चलने वाली तमाम चुनावबाज़ पार्टियों की सच्चाई को बेपरदा करते हैं और जनता के बीच रोज़गार को बुनियादी अधिकार बनाने के लिए राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून की माँग को उठाते हैं; सभी को समान एवं निशुल्क शिक्षा को बुनियादी अधिकार घोषित करने व शिक्षा के निजीकरण को समाप्त करने की माँग को उठाते हैं; सभी को भोगाधिकार के आधार पर सरकारी आवास की माँग को उठाते हैं; अप्रत्यक्ष करों की अन्यायपूर्ण व्यवस्था को समाप्त करने; पेट्रोलियम उत्पादों पर भयंकर रूप से भारी नाजायज़ करों व जीएसटी की ग़रीब-विरोधी व्यवस्था को समाप्त करने की माँग उठाते हैं; राज्य और सामाजिक जीवन से धर्म को पूर्णत: अलग कर उसे पूरी तरह से व्यक्तिगत मसला बनाने के लिए एक सख़्त सेक्युलर क़ानून की माँग उठाते हैं; ग़रीब किसानों को खेती के लिए सस्ते बीजों, खाद, सिंचाई व खेती के उपकरणों की व्यवस्था हेतु धनी कुलकों-फार्मरों व समूचे धनिक वर्गों पर कर लगाने की माँग करते हैं व उनके लिए आसान संस्थाबद्ध ऋण की माँग उठाते हैं; तात्कालिक तौर पर सभी मनरेगा मज़दूरों को साल भर का रोज़गार देने और न्यूनतम मज़दूरी देने की माँग उठाते हैं; मोदी सरकार के नये पूँजीपरस्त लेबर कोड को पूर्णत: रद्द करने की माँग उठाते हैं और ईवीएम से चुनावों को बन्द कर बैलट पेपर से चुनावों की व्यवस्था पर वापस जाने की माँग उठाते हैं। ये पर्चे और पुस्तिकाएँ देश में फैलाये जा रहे साम्प्रदायिक उन्माद का विरोध करते हैं और उसके पीछे भाजपा व संघ परिवार की फ़ासीवादी राजनीति को उजागर करते हैं। ये संघ परिवार के ‘लव जिहाद’, ‘लैण्ड जिहाद’, ‘गोरक्षा’ आदि की नौटंकी को बेनक़ाब करते हैं, ‘चाल-चेहरा-चरित्र’ की बात करने वाले संघ परिवार व भाजपा के भयंकर और अभूतपूर्व भ्रष्टाचार की भी पोल खोलते हैं। इस रपट के अन्त में इन पर्चों और पुस्तिकाओं को डाउनलोड करने के लिंक दिये गये हैं।
इन माँगों को जनता के बीच व्यापक तौर पर समर्थन मिला। देश के अलग-अलग इलाक़ों में आम मेहनतकश जनता व निम्न मध्यवर्गीय आबादी ने यात्रा की आर्थिक तौर पर मदद भी की। यात्रियों के रुकने-ठहरने, खाने, चाय-नाश्ते का इंतज़ाम लोगों ने खुले दिल से किया। यह दिखलाता है कि पूँजी की ताक़त के बरक्स जनता की ताक़त ऐसी साहसिक परियोजनाओं को ठोस रूप देने में क्रान्तिकारी शक्तियों की हर तरीक़े से सहायता करती है। यात्रा के दौरान व्यापक मेहनतकश जनता के बीच जनसम्पर्क व प्रचार के दौरान देश के अलग-अलग क्षेत्रों में जनता की प्रतिक्रिया के तौर पर निम्न सामान्य नतीजे उभर कर सामने आये।
- व्यापक मेहनतकश जनता में विशेष तौर पर बेरोज़गारी और महँगाई को लेकर भयंकर रोष है। लोगों का मानना था कि पिछले 10 वर्षों में उनके जीवन के आर्थिक हालात पहले से बुरे हुए हैं। वे आर्थिक असुरक्षा महसूस करते हैं। रोज़गार की सुरक्षा में विशेष तौर पर कमी आयी है।
- महँगाई से आम जनता त्रस्त है। खाने-पीने की वस्तुओं, बाज़ार में पके खाने, रसोई गैस, पेट्रोल व डीज़ल, वनस्पति तेल, सब्जि़याँ आदि इतने महँगे हो गये हैं कि लोग नियमित तौर पर पोषणयुक्त आहार नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। मकान के किराये, स्कूल-कॉलेज की फ़ीस आदि में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके कारण व्यापक मेहनतकश जनसमुदाय के जीवन स्तर में गिरावट आयी है। यह लोगों के पहनावे, मोबाइल फ़ोन आदि से प्रकट नहीं होता, लेकिन जनता के जीवन को करीबी से देखते ही ये चीज़ें स्पष्ट हो जाती हैं। इसकी सबसे प्रमुख वजह वास्तविक आय का न बढ़ना या उसमें आने वाली गिरावट है।
- छात्रों-युवाओं की सबसे प्रमुख माँग है रोज़गार। उन्हें काम चाहिए। सरकारी विभागों में भर्तियों को मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर कम किया है। इसके अलावा, जहाँ औपचारिक तौर पर भर्तियाँ खुलती हैं, वहाँ फॉर्म भरे जाते हैं तो परीक्षाएँ नहीं होतीं, परीक्षाएँ होती हैं तो परिणाम नहीं आते, परिणाम आते हैं तो नियुक्तियाँ नहीं होतीं या फिर पेपर लीक हो जाता है और फिर परीक्षा ही नहीं होती। इसके ज़रिये सिर्फ़ फॉर्म बेचकर छात्रों-युवाओं को ठगा गया है और भाजपा सरकारों द्वारा हज़ारों करोड़ रुपये ऐंठे गये हैं। अगर कहीं भर्ती होती भी है, तो उसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला होता है और विशेष तौर पर शासन में मौजूद पार्टी अपने लोगों को फ़ायदा पहुँचाती है। छात्रों-युवाओं ने भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून की BSJAY द्वारा उठायी जा रही माँग का पुरज़ोर समर्थन किया और इसे वक़्त की ज़रूरत बताया।
- आम लोगों ने ईवीएम पर गहरा शक़ जताया और हर जगह यात्रा के सदस्यों से कहा कि ‘आप लोग इसे मसला बनाइये, हम साथ देंगे।’ साफ़ तौर पर नज़र आया कि जनता के बहुलांश का ईवीएम से चुनावों पर कतई भरोसा नहीं है और वे बैलट पेपर से चुनावों की व्यवस्था पर वापस जाने का समर्थन करते हैं। वे इस बात पर ताज्जुब भी जता रहे थे कि चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट इस सवाल को इस तरह से नज़रन्दाज़ क्यों कर रहे हैं और क्या वहाँ भी मोदी सरकार के इशारों पर काम हो रहा है? साथ ही, वे इसे विपक्षी पार्टियों की अकर्मण्यता और कायरता बता रहे थे कि वे ईवीएम के मसले पर सिर्फ़़ भुनभुनाकर रह जा रही हैं।
- अधिकांश लोगों ने मोदी सरकार को आज़ादी के 76 वर्षों में आयी सबसे भ्रष्ट सरकार क़रार दिया। लोगों का कहना था कि बड़े से बड़ा भ्रष्टाचारी भाजपा में जाकर “संस्कारी” बन जाता है। लोगों ने भाजपा द्वारा विपक्षी पार्टियों और अपने राजनीतिक विरोधियों पर ईडी और सीबीआई के उपयोग को सीधे-सीधे उत्पीड़न कहा और कहा कि यह बाँह मरोड़कर विपक्ष को घुटने टेकने पर बाध्य करने का तरीका है। उन्होंने माना कि बाकी चुनावी दल भी कोई दूध के धुले नहीं हैं और धनी लोगों की ही सुनते हैं, लेकिन भाजपा सरकार इन विरोधी दलों को किनारे कर तानाशाहाना बर्ताव कर रही है। साथ ही, यह ताज्जुब की बात है कि पिछले 10 साल में ईडी या सीबीआई ने किसी भी भाजपा नेता को भ्रष्टाचार के मामले में नहीं पकड़ा, हालाँकि भाजपा सरकारों के मातहत राफेल से लेकर एनपीए घोटाला, अडाणी घोटाला, व्यापम घोटाला व तमाम सबसे बड़े घोटाले हुए हैं।
- लोगों के बड़े हिस्से ने भाजपा को देश के सबसे धनी लोगों के हितों की सेवा करने वाली पार्टी बताया। जब उनसे पूछा गया कि 5 या 10 किलो फ्री राशन की मोदी सरकार की योजना के बारे में उनका क्या विचार है, तो उनका कहना था कि ऐसी स्थिति ही क्यों पैदा हुई कि मोदी सरकार को यह ख़ैराती कल्याणवाद करना पड़ रहा है? इससे तो मेहनतकश बस भुखमरी के स्तर पर ज़िन्दा रहेगा। लोगों को रोज़गार की गारण्टी, पर्याप्त वेतन और महँगाई से मुक्ति चाहिए। मोदी सरकार यह करने में फेल है। इसीलिए ख़ैरातवाद से लोगों के रोष पर ठण्डे पानी के छिड़काव की कोशिश की जा रही है।
- इस खै़राती कल्याणवाद को साम्प्रदायिक फ़ासीवादी भाजपा सरकार धार्मिक उन्माद के साथ मिश्रित करती है, ताकि लोगों को नियन्त्रण में और शान्त रखा जा सके। धार्मिक समुदायों के बीच झूठे प्रचार के साथ वैमनस्य और परस्पर असुरक्षा की भावना फैलाकर, अल्पसंख्यकों को दुश्मन के तौर पर पेश करके, बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय के मेहनतकश अवाम को फ़ासीवादी उन्माद में बहाने की कोशिश की जाती है। ऐसे विचार इक्का-दुक्का नहीं, बल्कि बहुत-से लोगों ने रखे और उससे भी ज़्यादा लोगों ने इन्हें सुनकर मुखर या मौन सहमति जतायी।
- जब यात्रा टोलियों ने जनता के बीच सच्चे क्रान्तिकारी सेक्येलरिज़्म का अर्थ स्पष्ट किया तो लोगों ने उसका समर्थन किया। जब लोगों को बताया गया कि केवल वही सरकार या शासक पार्टी धर्म को लेकर लोगों में उन्माद फैलाती है, जो अपने बुनियादी कर्तव्य नहीं पूरे कर पाती, मसलन, सभी को रोज़गार, महँगाई से आज़ादी, शिक्षा, चिकित्सा व आवास का अधिकार आदि नहीं मुहैया करा पाती और जो केवल धनपतियों के लिए अधिक से अधिक मुनाफ़े के इन्तज़ामात करने में लगी रहती है। मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, गुरद्वारे बनाना आस्था रखने वाले लोगों का काम है, बशर्ते कि वे किसी अन्य की आस्था के अधिकार का उल्लंघन न करें। इसमें भला सरकार का क्या काम? किसी तथाकथित सेक्युलर देश का प्रधानमन्त्री किसी मन्दिर के शिलान्यास करने का या उसके उद्घाटन में प्रमुख यजमान बनने का काम करने की राजनीतिक अश्लीलता कैसे कर सकता है? वह ऐसा तभी करता है जब वह रोज़गार और महँगाई पर नियन्त्रण के मोर्चे और अन्य आर्थिक मोर्चों पर फेल हो गया हो। इस बात को स्पष्ट करने पर अधिकांश लोगों ने इस पर सहमति जतायी और अपना रोष व्यक्त किया।
- यात्रा अच्छे-ख़ासे समय व्यापक मज़दूर आबादी के बीच मौजूद रही। इस दौरान मज़दूरों ने अपने काम के भयंकर हालात, सुरक्षा के इन्तज़ाम नदारद होने, बेहद कम मज़दूरी, ईएसआई, पेंशन, पीएफ़ आदि श्रम अधिकारों से वंचित होने पर भारी ग़ुस्सा जताया। उन्होंने बताया कि विशेष तौर पर पिछले एक दशक में उनकी स्थिति सबसे ज़्यादा ख़राब हुई है। अधिकांश मज़दूरों को, विशेष तौर पर, अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूरों को मोदी सरकार के नये लेबर कोड के बारे में पता नहीं था या सही जानकारी नहीं थी। यात्रा के साथियों द्वारा उन्हें इसके ख़तरनाक प्रावधानों के बारे में बताया गया। मज़दूरों ने इन प्रावधानों को समझने पर इनका विरोध किया और संगठित होकर प्रतिरोध करने की ज़रूरत पर बल दिया। अधिकांश जगहों पर मज़दूरों ने बताया कि उनकी सबसे अहम माँग है ठेकेदारी प्रथा पर रोक, काम की गारण्टी और न्यूनतम मज़दूरी समेत अन्य श्रम अधिकार, मसलन, आठ घण्टे का कार्यदिवस, ईएसआई, पीएफ, आदि। मौजूदा केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों पर मज़दूरों का भरोसा लगभग समाप्त है और अधिकांश अनौपचारिक व असंगठित मज़दूर वैसे भी उनकी सदस्यता के दायरे में नहीं हैं।
- एक बात स्पष्ट तौर पर उभरकर आयी कि जनता की बहुसंख्या में मोदी सरकार विचारणीय रूप से अलोकप्रिय है। यदि आप स्वयं ज़मीन पर न उतरें और गोदी मीडिया के झूठ-फ़रेब पर यक़ीन करें, तो आपको यह पता ही नहीं चलता है। पूरी यात्रा के दौरान, हैदराबाद में एक अकेले संघी व्यक्ति से झड़प और पुणे में संघी गुण्डों द्वारा यात्रा टोली का पीछा कर विघ्न डालने के प्रयास के अलावा 13 राज्यों व 85 ज़िलों में कहीं भी मोदी सरकार की हिमायत करने वाले किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की कोई घटना सामने नहीं आयी। उल्टे पुणे में भी यात्रा टोली को संघी गुण्डों का जवाब देने की कोई ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि जनता ने ही उनको नकार दिया। हाँ, मुखर रूप से मोदी सरकार की नाकामी पर बोलने वाले या उस पर गहरा असन्तोष जताने वाले लोग अच्छी-ख़ासी तादाद में मिले। ऐसे लोग ही बहुसंख्या में थे। इससे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों पर भी ताज्जुब होता है। यह भी ग़ौरतलब है कि भाजपा लगभग हर जगह पोस्टल बैलट में हारी और ईवीएम वोटिंग में अधिकांश जगह जीती। साथ ही, चण्डीगढ़ मेयर चुनावों में भी ईवीएम की बजाय बैलट पेपर वोटिंग होने का नतीजा सबके सामने है। इन सब से ईवीएम से होने वाले चुनावों की विश्वसनीयता समाप्त हो गयी है। जनता ने कई जगह ईवीएम को ‘एवरी वोट टू मोदी’ का फुल फॉर्म दे रखा है।
- इसका यह अर्थ नहीं कि भाजपा और मोदी सरकार का कोई समर्थन आधार ही नहीं है। करीब 20 से 25 प्रतिशत आबादी में मोदी सरकार के लिए कोई मुखर समर्थन नहीं, तो एक मौन या अर्द्ध-मुखर समर्थन मौजूद प्रतीत हुआ। इसे आप उस ‘साम्प्रदायिक आम सहमति’ का हिस्सा मान सकते हैं, जिसे संघ परिवार और भाजपा ने पिछले सात-आठ दशकों में और विशेष तौर पर पिछले चार दशकों में निर्मित किया है और जिसका बहुलांश फ़ासीवादी निज़ाम की अन्तिम विनाशकारी परिणति देखकर या अपनी अन्तिम विनाशकारी परिणति देखकर ही होश में आता है। अमीर वर्गों के अलावा, इसका बड़ा हिस्सा मध्यम मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग से आता प्रतीत होता है और उसमें भी वेतनभोगी मध्य वर्ग के संस्तर कम दिखे और उद्यमी मध्य वर्ग के संस्तर ज़्यादा दिखे। यह आबादी तमाम आर्थिक दिक्कतों के बावजूद अपने साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों और प्रतिक्रियावाद के कारण मोदी सरकार व संघ परिवार के समर्थन में खड़ी है। इस अल्पसंख्या को छोड़ दें तो बाकी आबादी में इस समय गहरी सरकार-विरोधी भावना है। यह दीगर बात है कि इस शेष आबादी में विकल्प को लेकर कोई स्पष्ट सोच नहीं है और ऐसी उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। यात्रा के इस सन्देश पर इस आबादी की सकारात्मक प्रतिक्रिया रही कि बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और ईवीएम के मसले पर जनता के जुझारू जनान्दोलन खड़ा करने की आवश्यकता है और मौजूदा साम्प्रदायिक फ़ासीवादी मोदी सरकार को सबक सिखाने की ज़रूरत है।
इतना स्पष्ट है कि मोदी सरकार और भाजपा नेतृत्व को भी इस माहौल की जानकारी है। इस स्थिति में वह दो चालें चलने की कोशिश कर रही है: पहला, संसदीय विपक्ष को विभाजित रखना और दूसरा, साम्प्रदायिक उन्माद को भड़काकर, मुसलमानों को लेकर नकली और झूठा डर पैदा करके और अन्य विभाजनकारी मुद्दों को उठाकर बहुसंख्यक हिन्दू जनता के वोटों का दोबारा अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने का प्रयास। ईडी, सीबीआई आदि का और पूँजी की ताक़त का इस्तेमाल पहली चाल को कामयाब करने के लिए किया जा रहा है, जबकि काशी-मथुरा में मन्दिर-मस्जिद का मसला उठाकर (क्योंकि राम मन्दिर के इर्द-गिर्द भाजपा अपेक्षित साम्प्रदायिक माहौल नहीं बना पायी), सीएए-एनआरसी लागू करके और तमाम इलाकों में छोटे-मोटे दंगे भड़काकर दूसरी चाल को कामयाब बनाने की कोशिश की जा रही है। कहने की ज़रूरत नहीं कि समूचा गोदी मीडिया इस काम में एक सड़कछाप टुटपुँजिया दंगाई के समान नंगई से मोदी सरकार और भाजपा परिवार का साथ दे रहा है।
ईवीएम का मसला समूची यात्रा के दौरान हर जगह लोगों ने उठाया और यह अपील की कि BSJAY को इस मसले को और ज़्यादा पुरज़ोर तरीके से उठाना चाहिए। जल्द ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और देश में तमाम प्रगतिशील और जनवादी ताक़तें ईवीएम के ख़तरे को चिह्नित करते हुए प्रचार व अभियान कर रही हैं। चुनाव आयोग और अब तक सुप्रीम कोर्ट तक इस मसले पर कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। यहाँ तक कि ये संवैधानिक व न्यायिक संस्थाएँ सभी ईवीएम मशीनों के साथ वीवीपैट गणना व वोटर को अपनी वोटिंग की रसीद देने की माँग को भी लगातार अनसुना कर रहे हैं, जो कि बिल्कुल जायज़ जनवादी माँग है और चुनावी प्रक्रिया के जनवादी चरित्र और विश्वसनीयता को बरक़रार रखने के लिए अनिवार्य है। यह सब निश्चित ही किसी भी व्यक्ति के मन में सन्देह पैदा करने वाली बातें हैं और स्पष्ट है कि भाजपा सरकार और संघ परिवार इस सामान्य-सी जनवादी माँग को किसी भी क़ीमत पर ख़ारिज करने और चुनाव आयोग व न्यायपालिका द्वारा ख़ारिज करवाने के लिए इसलिए आमादा हैं क्योंकि ईवीएम के बिना भाजपा की चुनावी जीत मुश्किल हो सकती है।
ऐसे में, BSJAY की संयोजन समिति ने चुनावों के बाद यात्रा का तीसरा चरण शुरू करने से पूर्व, चुनावों के पहले एक विशेष ‘ईवीएम हटाओ’ अभियान चलाने का निर्णय किया है। ईवीएम के साथ पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर होने वाले चुनावों की विश्वसनीयता भी कठघरे में है और जनता के इस बुनियादी जनवादी अधिकार को सुरक्षित करने के लिए आज इस अभियान की ज़रूरत है।
BSJAY की ओर से हम सभी मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं व नागरिकों का आह्वान करते हैं कि जिस प्रकार यात्रा के पहले दो चरणों के दौरान आपने अपनी भागीदारी और समर्थन को सुनिश्चित किया है, उसी प्रकार BSJAY के इस विशेष अभियान में भी शामिल हों और इस मसले पर जनता को जागरूक, गोलबन्द और संगठित करने में हमारा साथ दें।
यदि भाजपा ईवीएम हटाने और बैलट पेपर से चुनाव कराने या फिर वोटर को मिलने वाली पर्ची के साथ पूर्ण रूप से वीवीपैट वेरीफिकेशन की माँग को नहीं मानती तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि दाल में कुछ काला नहीं है, बल्कि पूरी दाल ही काली है और देश की जनता का चुनाव की प्रक्रिया से भरोसा ख़त्म हो जायेगा। जनता में पहले ही यह अविश्वास है, लेकिन वह बिखरे और असंगठित रूप में है। BSJAY के विशेष ‘ईवीएम हटाओ अभियान’ का मक़सद जनता को इस मसले पर एकजुट और संगठित करना होगा। जल्द ही, इस बाबत एक पुस्तिका और एक पर्चा आपके बीच पेश किया जायेगा। इसके साथ ही इस विशेष अभियान की शुरुआत हो जायेगी। हम इस अभियान में सभी आम मेहनतकश लोगों, छात्रों-युवाओं और सरोकारी नागरिकों से भागीदारी की उम्मीद करते हैं और उनका आह्वान करते हैं कि जनता के एक बुनियादी जनवादी अधिकार की हिफ़ाज़त के लिए आगे आयें।
कुछ ज़रूरी लिंक
पर्चा, भगतसिंह जनअधिकार यात्रा दूसरा चरण
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/BSJAY-II.pdf
Pamphlet, Bhagat Singh Jan Adhikar Yatra 2nd Phase
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/BSJAY-II-ENG.pdf
पुस्तिकाएँ:-
- भगतसिंह जनअधिकार यात्रा आपके बीच क्यों?
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/Why-BSJAY-Hindi.pdf
- मेहनतकश के हालात
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/BSJAY-Booklet-2-Mehnatkash-Ke-Halaat.pdf
- बढ़ती महँगाई की मार! ज़िम्मेदार मोदी सरकार!
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/BSJAY-Booklet-4-inflation.pdf
- शिक्षा और रोज़गार, हमारा जन्मसिद्ध अधिकार!
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/BSJAY-Booklet-3-Edu.pdf
- जाति–धर्म के झगड़े छोड़ो! सही लड़ाई से नाता जोड़ो!!
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/BSJAY-Booklet-5-Secularism.pdf
- भाजपा के “रामराज्य” में भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान
https://bsjayatra.com/wp-content/uploads/2024/03/BSJAY-Booklet-6-Curroption.pdf
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