Category Archives: संघर्षरत जनता

राजधानी दिल्ली में 3 मार्च को बसनेगा अभियान का दूसरा पड़ाव – ‘रोज़गार अधिकार रैली’ में कई राज्यों से हज़ारों की जुटान

पिछली 3 मार्च 2019 के दिन देश की राजधानी दिल्ली में हज़ारों आँगनवाड़ी कर्मियों, औद्योगिक मज़दूरों, छात्रों, युवाओं, घरेलू कामगारों और न्यायपसन्द नागरिकों ने रोज़गार अधिकार रैली निकाली। रोज़गार के मुद्दे पर आयोजित रोज़गार अधिकार रैली का यह दूसरा पड़ाव था। पहला पड़ाव था 25 मार्च 2018 का। ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ (बसनेगा) अभियान के मीडिया प्रभारी योगेश स्वामी ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में बसनेगा पारित कराने के लिए विभिन्न संगठनों और यूनियनों के कार्यकर्त्ताओं की टोलियाँ पिछले काफ़ी समय से प्रचार कार्य में जुटी हुई थी। 3 मार्च की विशाल रैली इसी का परिणाम थी। रोज़गार अधिकार रैली के माध्यम से सत्ता के सामने अपने हक़ का मुक्का तो ठोंका ही गया, इसके साथ ही यह सन्देश भी गया कि देश की जनता नक़ली मुद्दों पर लड़ने की बजाय असली मुद्दों को उठाकर उन पर एकजुट संघर्ष खड़े करना भी जानती है। दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार में कार्यरत विभिन्न यूनियनों और जन-संगठनों ने दिलोजान से रोज़गार अधिकार रैली के आयोजन में ताक़त झोंकी।

डाइकिन के मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!

आज डाइकिन के मज़दूरों के साथ हो रहा है, वही इस सेक्टर में काम करने वाले हर मज़दूर की कहानी है। फै़क्टरी या कम्पनी का नाम बदल जाने से वहाँ काम कर रहे मज़दूरों की समस्याएँ नहीं बदलतीं। जो परेशानियाँ डाइकिन के मज़दूरों की हैं, ठीक वही समस्याएँ अन्य कम्पनियों में काम कर रहे मज़दूरों की है। आज अलग-अलग फै़क्टरियों में मज़दूरों के अधिकारों का हनन बेरोकटोक एक ही तरीक़े से किया जा रहा है। इस शोषण को रोकने का और अपने अधिकार हासिल करने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वो है सेक्टरगत एकता स्थापित करना। आज डाइकिन मज़दूरों के बहादुर साथियों के संघर्ष के समर्थन में नीमराना के हर मज़दूर को आगे आना होगा।

कपड़ा मज़दूरों की हड़ताल से काँप उठा बांग्लादेश का पूँजीपति वर्ग

वॉलमार्ट, टेस्को, गैप, जेसी पेनी, एच एण्ड एम, इण्डिटेक्स, सी एण्ड ए और एम एण्ड एस जैसे विश्व में बड़े-बड़े ब्राण्डों के जो कपड़े बिकते हैं और जिनके दम पर पूरी फै़शन इण्डस्ट्री चल रही है, उस पूरी सप्लाई श्रृंखला के मुनाफ़े का स्रोत बांग्लादेश के मज़दूर द्वारा किये गये श्रम का ज़बरदस्त शोषण ही है। सरकारें और देशी पूँजीपति मुनाफ़ा निचोड़ने की इस श्रृंखला का ही हिस्सा हैं और इसलिए पुरज़ोर कोशिश करते हैं जिससे कम से कम वेतन बना रहे और उनका शासन चलता रहे। पुलिस, सरकार, ट्रेड यूनियनों के कुछ हिस्सों और पूँजीपतियों का एक होकर मज़दूरों को यथास्थिति में बनाये रखने की कोशिश करना साफ़ दर्शाता है कि ये सभी मज़दूर विरोधी ताक़तें हैं।

लुधियाना में मज़दूरों का विशाल रोष प्रदर्शन

5 अक्टूबर 2018 को मज़दूर संगठनों – कारख़ाना मज़दूर यूनियन, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, गोबिन्द रबड़ लिमिटेड मज़दूर संघर्ष कमेटी व पेण्डू मज़दूर यूनियन (मशाल) के नेतृत्व में बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए मज़दूरों ने डिप्टी कमिश्नर व पुलिस कमिश्नर के कार्यालयों पर रोषपूर्ण प्रदर्शन करके अपने अधिकार लागू करवाने के लिए माँगपत्र सौंपा। मज़दूरों ने कंगनवाल से लेकर डीसी कार्यालय तक 18 किमी लम्बा पैदल मार्च भी किया। मज़दूरों ने माँग की कि न्यूनतम वेतन बीस हज़ार मासिक हो, किये गये काम के पैसे हड़पने वाले व श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले मालिकों को सख़्त से सख़्त सजायें दी जायें, पन्द्रह सौ से अधिक मज़दूरों का कई महीनों का वेतन आदि का पैसा हड़प करके भागने वाले गोबिन्द रबड़ लिमिटेड के मालिक विनोद पोद्दार को गिरफ़्तार किया जाये और मज़दूरों का सारा पैसा दिलाया जाये, कारख़ानों में हादसों से सुरक्षा के प्रबन्ध, पहचान पत्र, हाजि़री, ईएसआई, ईपीएफ़, स्त्रियों को मर्दों के बराबर वेतन व अन्य सभी श्रम क़ानून लागू हों। मज़दूर बस्तियों में साफ़-सफ़ाई, पानी, बिजली, पक्की गलियाँ आदि सहूलियतें लागू हों।

फ़्रांस की सड़कों पर फूटा पूँजीवाद के ख़िलाफ़ जनता का गुस्सा

फ़्रांस के लगभग सभी बड़े शहरों में मज़दूर, छात्र-युवा और आम नागरिक राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पूँजीपरस्त नीतियों के विरोध में सड़कों पर हैं और विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यह लेख लिखे जाते समय ‘येलो वेस्ट मूवमेण्ट’ नाम से मशहूर इस स्वत:स्फूर्त जुझारू आन्दोलन को शुरू हुए एक महीने से भी अधिक का समय बीत चुका है। मैक्रों सरकार द्वारा ईंधन कर में बढ़ोतरी करने के फ़ैसले के विरोध से शुरू हुआ यह आन्दोलन देखते ही देखते संकटग्रस्त पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा आम जनता की ज़िन्दगी की बढ़ती कठिनाइयों के ख़िलाफ़ एक व्यापक जनउभार का रूप धारण करने लगा और आन्दोलन द्वारा उठायी जा रही माँगों में न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने, करों का बोझ कम करने, अमीरों पर कर बढ़ाने और यहाँ तक कि राष्ट्रपति मैक्रों के इस्तीफ़े जैसी माँगें शामिल हो गयीं। आन्दोलन की शुरुआत में मैक्रों ने इस बहादुराना जनविद्रोह को नज़रअन्दाज़ किया और उसे सशस्त्र बलों द्वारा बर्बरतापूर्वक दमन के सहारे कुचलने की कोशिश की। कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों की झड़पें भी हुईं। इस आन्दोलन के दौरान अब तक क़रीब 2000 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। परन्तु जैसाकि अक्सर होता है पुलिसिया दमन की हर कार्रवाई से आन्दोलन बिखरने की बजाय और ज़्यादा फैलता गया और जल्द ही यह जनबग़ावत जंगल की आग की तरह फ़्रांस के कोने-कोने तक फैल गयी।

उत्तर प्रदेश में केन्द्र व राज्य कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए संघर्ष तेज किया

कर्मचारी शिक्षक अधिकार ‘पुरानी पेंशन बहाली’ मंच की ओर से 9 अगस्त को पूरे प्रदेश-भर में जि़ला मुख्यालयों पर एक दिवसीय प्रदर्शन का आयोजन किया गया। उत्तर प्रदेश के विभिन्न जि़लों में बिगुल मज़दूर दस्ता और दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने भी आन्दोलन के समर्थन में शिरकत की। इलाहाबाद में कचहरी पर आयोजित प्रदर्शन में दिशा छात्र संगठन की एक टोली रेल कर्मचारियों के जुलूस के साथ पहुँची।

गोबिन्द रबर लिमिटेड, लुधियाना के मज़दूर संघर्ष की राह पर

तीन यूनिटें बन्द करके न सिर्फ़ 1500 से अधिक मज़दूरों को बेरोज़गार कर दिया गया और उनका चार-चार महीने का वेतन रोककर रख लिया गया है, बल्कि अक्टूबर 2017 से कम्पनी मालिक मज़दूरों का ईपीएफ़़ और ईएसआई का पैसा भी खा गये हैं। करोड़ों के इस घोटाले की तरफ़ श्रम विभाग व पंजाब सरकार दोनों ही आँखें मूँदकर बैठे हैं। क्यों? इसके बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की सिर्फ़ बातें की जाती हैं, जबकि वास्तव में इसे बढ़ावा ही दिया जा रहा है और पंजाब सरकार व श्रम विभाग की इसमें भागीदारी है।

उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने गति पकड़ी

लाखों नौजवान नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र अपने जीवन के सबसे शानदार दिनों को मुर्गी के दरबे नुमा कमरों में किताबों का रट्टा मारते हुए बिता देने के बाद भी अधिकांश छात्रों को हताशा-निराशा ही हाथ लगती है। बहुत सारे छात्रों के परिजन अपनी बहुत सारी बुनियादी ज़रूरतों तक में कटौती कर के पाई-पाई जोड़ करके किसी तरह अपने बच्चों को एक नौकरी के लिए बेरोज़गारी के रेगिस्तान में उतार देते हैं। लेकिन अधिकांश युवा रोज़गार की इस मृग-मारीचिका में भटकते रहते हैं। रोज़गार की स्थिति यह है कि एक अनार तो सौ बीमार। कुछ सौ पदों के लिए लाखों-लाख छात्र फॉर्म भरते हैं। पद इतने कम हैं कि आने वाले पचास सालों में आज जितने बेरोज़गार युवा हैं उनको रोज़गार नहीं दिया जा सकता।

12 जुलाई को क्लस्टर बसों के संवाहकों ने की एक दिवसीय हड़ताल

आमतौर पर एक संवाहक की एक दिन में डबल ड्यूटी लगती है यानी कि आठ-आठ घण्टे की दो पारियाँ। संवाहकों से काम डेली बेसिस पर लिया जाता है यानी उन्हें हर रोज़ अपने लिए ड्यूटी लेनी होती है और उसी हिसाब से उनका मासिक वेतन तय किया जाता है। दिल्ली सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम वेतन तक संवाहकों को नहीं दिया जाता है। किसी अन्य किस्म का बोनस, भत्ता तो दूर की बात है, न कोई रविवार की छुट्टी दी जाती है, न ही कोई अन्य सरकारी छुट्टी। जैसे लेबर चौक पर मज़दूर अपनी श्रमशक्ति बेचने के लिए आपस में होड़ करते हैं, वैसे ही संवाहकों के बीच होड़ पैदा की जाती है। संवाहकों की संख्या जानबूझकर ज़रूरत से ज़्यादा रखी जाती है, ताकि एक संवाहक के ऊपर डीआईएमटीएस जब चाहे तब दबाव बना सके। संवाहकों के ऊपर लगतार ‘नो ड्यूटी’ की एक तलवार लटकती रहती है। ‘नो ड्यूटी’ एक किस्म का निलम्बन है जिसके तहत किसी संवाहक को अनिश्चित सीमा तक ड्यूटी मुहैया नहीं करायी जाती है।

मनरेगा मज़दूरों ने चुना संघर्ष का रास्ता

 इस पूरे मामले से पता चलता है कि किस तरह मज़दूरों का शोषण किया जा रहा है। पहले तो उनसे हाड़तोड़ काम लिया जाता है तथा जब बात पूरी मज़दूरी देने की आती है, तो प्रशासन द्वारा पैर पीछे हटा लिये जाते हैं। कई मज़दूरों को एक साल 6 महीने हुए काम का वेतन भी नहीं मिला है। नीचे से लेकर ऊपर तक मनरेगा ऑफ़िस में भ्रष्टाचार है। यूँ तो मनरेगा क़ानून के तहत 100 दिन काम की योजना है, लेकिन असल में ना तो मज़दूरों को सौ दिन काम मिलता है और ना ही पूरी मेहनत का हि‍साब मि‍लता है। क़ानून की किताबों में नये-नये क़ानून तो बनते हैं, किन्तु व्यवहार में कोई भी लागू नहीं होता। मेहनतकश वर्ग हर जगह शोषण का शिकार है। साथ ही डिजिटल इण्डिया के नाम पर मज़दूरों की दिहाड़ी मोबाइलों में डाली जाती है। अब सवाल यह है कि‍ मज़दूर अपना काम करें या फिर सिम कार्ड से अपने पैसे निकलवाने इधर-उधर भटकेगा।