Category Archives: संघर्षरत जनता

हरि‍याणा के चौशाला गाँव में अवैध खुर्दें (अवैध शराबी ठेका) बन्द करने के लि‍ए प्रदर्शन

चौशाला गाँव (कैथल जि़‍ला) में लम्बे समय से चल रहे शराब के खुर्दों पर पाबन्दी लगाने के लि‍ए कलायत एसडीएम कार्यालय का घेराव किया। नौजवान भारत सभा व नशा विरोधी कमेटी के बैनर तले महिलाओं, युवाओं ने कैंची चैक से नशा परोसने वालों के खि़लाफ़ तख्ती और बैनर के साथ रोष प्रदर्शन की शुरुआत की। एसडीएम कार्यालय पर घेराव में अवैध खुर्दें से परेशान जनता ने जि़ला पुलिस प्रशासन के खि़लाफ़ नारेबाजी की और एसडीएम के नाम ज्ञापन सौंपा।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हॉस्टल मेस कर्मचारियों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हॉस्टल मेस कर्मचारी विगत 26 दिनों से अपनी माँगों को लेकर प्रदर्शनरत हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हॉस्टल में काम कर रहे इन करमचारियों को विश्वविद्यालय प्रशासन अपना कर्मचारी मानने तक से इनकार करता रहा है। मात्र 5000 की तनख़्वाह पाने वाले ये कर्मचारी हर साल अपनी माँगों को लेकर आवाज़ उठाते रहे हैं, और हर साल प्रशासन उन्हें यही हवाला देता रहा है कि वे विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं ही नहीं, उन्हें लेबर कोर्ट जाना चाहिए। कर्मचारियों की रजिस्टर्ड यूनियन, होटल मेस कर्मचारी यूनियन ने केस डाला भी और लेबर कोर्ट से बीते 31 मार्च को उनके हक़ में फै़सला भी आ गया । जिस फै़सले में उन्हें विश्वविद्यालय के कर्मचारी मानने, न्यूनतम वेतन लागू करने व पक्के किये जाने की बात थी। मगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने फै़सले को मानने से साफ़ इनकार कर दिया है। प्रशासन का कहना है कि उनके पास कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं है, वहीं दूसरी तरफ़ विश्वविद्यालय में हो रहे ‘रत्नावली’ में बहाने के लिए काफ़ी पैसे हैं।

वाम गठबंधन की भारी जीत के बाद : नेपाल किस ओर?

बहुत सारे भावुकतावादी कम्युनिस्टों में संशोधनवादी वाम गठबन्धन की भारी जीत से यदि कुछ ज़्यादा ही उम्मीदें पैदा हो गयी हैं तो यह अच्छी बात नहीं है क्योंकि मिथ्या उम्मीद नाउम्मीदी से भी बुरी चीज़ होती है। एक अच्छी बात यह है कि संघर्षों में तपी-मंजी नेपाल की कम्युनिस्ट कतारों का एक अच्छा-खासा हिस्सा इस बात को समझता जा रहा है और आने वाले दिनों में इसे वह और बेहतर तरीके से तथा और तेज़ी से समझेगा।

इलाहाबाद में स्वास्थ्यकर्मियों का आन्दोलन

निर्धारित मानकों के हिसाब से 5000 की आबादी पर कम से कम एक महिला तथा एक पुरुष स्वास्थ्य कर्मी की नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन एक स्वास्थ्य कर्मी को 15000 की आबादी पर अकेले काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमर तोड़कर वास्तव में यह व्यवस्था देश की बदहाल स्थिति में जी रही देश की बड़ी आबादी को बेमौत मार रही है।

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाओं की शानदार जीत!

सरकार ने हड़ताल को कमजोर करने के लिए सुपरवाइज़र और सीडीपीओ पर दबाव डालकर महिलाओं को डरा-धमकाकर आँगनवाड़ी खुलवाने की कोशिशें कीं। कुछेक महिलाओं ने इनके डर से आँगनवाड़ी खोली भी। इससे निपटने के लिए यूनियन ने भी अपनी कार्रवाई की। महिलाओं की पिकेटिंग टीम बनायी गयी और जगह-जगह सेण्टरों पर जाकर डरी हुई अपनी बहनों को हौसला दिया गया और समझाया गया कि सुपरवाइ़जर और सीडीपीओ की गीदड़ भभकियों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, वे आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं, आपके साथ आपकी यूनियन है। इस पिकेटिंग का ज़बरदस्त असर हुआ और जो भी महिलाएँ डर रही थी, उनमें साहस और हिम्मत आयी और वे भी हड़ताल में शामिल हो गयीं।

वीवो इण्डिया में मज़दूरों का शोषण और उत्पीड़न

मज़दूरों को बिना किसी छुट्टी के पूरे 30 दिन काम करना पड़ता है, जिसके एवज़ में उन्हें प्रति माह 9300 रुपये मिलते हैं। पीएफ़ और इएसआई काटने के बाद, प्रत्येक मज़दूर को तीस दिन के काम के लिए महज़ लगभग 7100 रुपये मिलते हैं। इसके अलावा, कम्पनी मज़दूरों को फै़क्टरी लाने और ले जाने के लिए बस की सुविधा और कैण्टीन से भोजन की सुविधा मुफ़्त मुहैया कराती है। मज़दूरों का कहना है कि कैण्टीन का खाना बहुत ही घटिया कि़स्म का होता है। कम्पनी की नीति के तहत काम से एक दिन ग़ैर-हाज़िर रहने पर वेतन से 2000 रुपये काट लिए जाते हैं और यदि उपस्थिति पूरी रही, तो वेतन में अतिरिक्त 2000 रुपये जोड़ दिये जाते हैं। यह पुरस्कार वास्तव में दिया नहीं जाता बल्कि महज़ एक दिन ग़ैर-हाज़िर रहने पर वेतन से इस पुरस्कार राशि से 20 प्रतिशत अधिक की कटौती हो जाती है।

‘आज़ादी कूच’ : एक सम्भावना-सम्पन्न आन्दोलन के अन्तरविरोध और भविष्य का प्रश्न

हम एक बार यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि हमारी इस कॉमरेडाना आलोचना का मकसद है इस आन्दोलन के सक्षम और युवा नेतृत्व के समक्ष कुछ ज़रूरी सवालों को उठाना जिनका जवाब भविष्य में इसे देना होगा। आज समूचा जाति-उन्मूलन आन्दोलन और साथ ही हम जैसे क्रान्तिकारी संगठन व व्यक्ति जिग्नेश मेवानी की अगुवाई में चल रहे इस आन्दोलन को उम्मीद, अधीरता और अकुलाहट के साथ देख रहे हैं। किसी भी किस्म का विचारधारात्मक समझौता, वैचारिक स्पष्टवादिता की कमी और विचारधारा और विज्ञान की कीमत पर रणकौशल और कूटनीति करने की हमेशा भारी कीमत चुकानी पड़ती है, चाहे इसका नतीजा तत्काल सामने न आये, तो भी।

दिल्ली आँगनवाड़ी महिलाओं का लम्बा और जुझारू संघर्ष!

अरविन्द केजरीवाल सरकार की इस लगातार जारी वायदा-खि़लाफ़ी को देखते हुए हड़ताल की लीडिंग कमिटी ने 4 अगस्त को फिर एक ज़बरदस्त कार्यक्रम की योजना बनायी। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में हज़ारों आँगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर्स ने राजघाट से दिल्ली सचिवालय तक ‘आँगनवाड़ी आक्रोश रैली’ का आयोजन किया। 15 अगस्त के मद्देनज़र दिल्ली पुलिस कार्यक्रम को लेकर आना-कानी कर रही थी, लेकिन महिलाओं की ताक़त के आगे आखि़र उसे भी झुकना पड़ा। दिल्ली सचिवालय पहुँचकर महिलाओं ने ज़बरदस्त नारेबाज़ी की और अपनी सभा को चलाया। लेकिन केजरीवाल महाशय उस दिन भी नदारद थे।

यूनियन बनाने की कोशिश और माँगें उठाने पर ठेका श्रमिकों को कम्पनी ने निकाला, संघर्ष जारी

केन्द्र में भाजपा की फासीवादी मोदी सरकार तो खुल्ले तौर पर मज़दूरों की विरोधी है ही लेकिन दिल्ली का ये नटवरलाल जो कि छोटे बनिये-व्यापारी का प्रतिनिधित्व करता है किसी भी मायने में मोदी से कम नहीं है! जिन तथाकथित ‘लिबरल जन’ का भरोसा इस नटवरलाल पर है और जो इसे मोदी का विकल्प समझ रहे हैं, उन्हें भी अब अपनी आँखे खोल लेनी चाहिए।

ऑटोमैक्स में तालाबंदी के ख़ि‍लाफ़ आन्दोलन

इस चीज की चर्चा करना भी जरूरी है कि इस कम्पनी में  पिछले 20-25 सालों में 30-40 श्रमि‍कों के हाथ कटे हैं और किसी का हाथ, बाजू, अंगूठा और कुछ श्रमिकों का तो एक बार ज़्यादा कटा है और कई श्रमिकों के तो पैर कटे हैं। आज तक किसी को कोई उचित मुआवजा नहीं मिला।