भगतसिंह जनअधिकार यात्रा (दूसरा चरण : 10 दिसम्बर से 3 मार्च) – एक संक्षिप्त रिपोर्ट
भगतसिंह की बात सुनो – नयी क्रान्ति की राह चुनो!
बिगुल संवाददाता
भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत बीते साल 10 दिसम्बर को कर्नाटका के बेंगलुरु से हुई। देश के 13 राज्यों, 85 से अधिक ज़िलों से होती हुई यह यात्रा तक़रीबन 8500 किलोमीटर के फ़ासले को तय करके 3 मार्च को देश की राजधानी दिल्ली में समाप्त होगी।
भगतसिंह जनअधिकार यात्रा का मक़सद है मेहनतकश अवाम को उनकी ज़िन्दगी के असल सवालों पर जागृत, गोलबन्द और संगठित करना। महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा और बढ़ती साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ यह यात्रा भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI), नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, स्त्री मुक्ति लीग व अन्य कई क्रान्तिकारी यूनियनों द्वारा निकाली जा रही है। रिपोर्ट लिखे जाने तक यात्रा आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के एक हिस्से से गुज़रती हुई बिहार में दाख़िल हो चुकी है।
यात्रा के फलस्वरूप, ‘महँगाई पर रोक लगाओ’, ‘हर हाथ को काम दो’, ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून पारित करो’, ‘निःशुल्क और एकसमान शिक्षा लेकर रहेंगे’, ‘जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो’ इत्यादि जैसे नारे जनता के बीच अपनी जगह बना रहे हैं। यात्रा जनता की ठोस माँगों और क्रान्तिकारियों के सन्देश को पर्चों, सभाओं, गीतों, नाटकों और नये-नये नारों के माध्यम से गाँव, शहर, झुग्गियों, गलियों, चौराहों तक लेकर जा रही है। मज़दूर बस्तियों से लेकर, फैक्ट्री-कारख़ानों, निम्न मध्यवर्ग की कॉलोनियों, सरकारी दफ़्तरों और कॉलेज-विश्वविद्यालय तक में मिली आबादी ने भगतसिंह जन अधिकार यात्रा की माँगों से सहमति जतायी और इसे आज के वक़्त की ज़रूरत बताया।
कर्नाटक के बेंगलुरु में यात्रा अपने पहले दिन शहर के प्रमुख चौकों, बाज़ारों और आसपास की बस्तियों से होकर गुज़री। दुकानदारों से लेकर रेहड़ी-खोमचे वाले और आसपास काम पर रहे मजदूरों ने यात्रियों की बात को सुना और फ़ासीवादी मोदी सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने की बात कही।
आन्ध्र प्रदेश में यात्रा ने आठ दिनों के दौरान तिरुपति, मंगलगिरी, ताड़ेपल्ली, विजयवाड़ा और विशाखापत्तनम में हज़ारों लोगों के बीच जाकर अपना सन्देश दिया। इस राज्य में सबसे अधिक लोग बेरोज़गारी से परेशान हैं। साल 2022 में आन्ध्र में छात्रों के बीच आत्महत्या दर 10 फ़ीसदी बढ़ी है। आन्ध्र विश्वविद्यालय से लेकर आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के बीच यात्रा ने बढ़ती बेरोज़गारी और छात्रों के बीच फैली निराशा के कारणों पर बात रखी और इसको बदलने के लिए साथ आने का आह्वान किया। इसके अलावा यात्रा मछुआरों की बस्ती, सफ़ाई मज़दूरों की बस्ती और बन्दरगाह पर काम करने वाले मजदूरों के बीच भी गयी और उनकी विशिष्ट माँगों को उठाया।
तेलंगाना में तीन दिनों के दौरान यात्रा खम्मम और हैदराबाद में निकाली गयी। दोनों ही जगहों पर स्थानीय लोगों ने ना सिर्फ़ यात्रा को सराहा बल्कि इसमें शामिल भी हुए। तेलंगाना किसान विद्रोह के जुझारू संघर्ष का केंद्र रहे खम्मम में लोगों ने शिक्षा, रोज़गार, आवास, स्वास्थ्य के हक़ के लिए व्यापक जनएकजुटता कायम करने की बात कही।
महाराष्ट्र में यात्रा परभणी, औरंगाबाद, अहमदनगर, पुणे होते हुए मुम्बई और नासिक पहुँची। पुणे में यात्रा जब तळजाई पहुँची तो संघ परिवार के पालतू लम्पट गुण्डों ने “जय श्री राम” के नारे लगाते हुए सभा में ख़लल डालने की कोशिश की मगर आम जनता से यात्रा को मिलता समर्थन देख वे उल्टे पाँव भागने को मजबूर हुए। पुणे जिले में यात्रा राजगुरु के गाँव और सावित्रीबाई फुले के गाँव भी गयी। मुम्बई व आसपास के क्षेत्रों में ठाणे और दादर के इलाक़े में मिले मज़दूरों ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा लाये गये चार लेबर कोड ने हमें आधुनिक ग़ुलामों की क़तार में शामिल कर दिया है। उन्होंने बताया कि यात्रा ने उन्हें अपने गौरवमयी इतिहास की याद दिलायी है और इस निराशा और पस्तहिम्मती के दौर में नयी ऊर्जा का संचार किया है। दादर वह इलाक़ा है जो कभी ट्रेड यूनियन हड़तालों व मज़दूर आन्दोलनों के लिए जाना जाता था। इसके अलावा, यात्रा ने मुम्बई में लल्लूभाई कम्पाउण्ड, मानखुर्द, गोवण्डी के क्षेत्र में भी सघन जनसम्पर्क किया और जनता के बीच हज़ारों की संख्या में पर्चे, पुस्तिकाओं आदि का वितरण किया। आगे, यात्रा ने महाराष्ट्र के तलेगाँव में छँटनी, तालाबन्दी के ख़िलाफ़ और पक्के रोज़गार की माँग के लिए हड़ताल पर बैठे जनरल मोटर्स कम्पनी के कर्मचारियों का समर्थन किया।
मध्यप्रदेश में तीन दिन रुककर यात्रा ने इन्दौर, भोपाल,जबलपुर और रीवा में प्रचार अभियान चलाया। इन्दौर और भोपाल में छात्रों ने भाजपा राज में चल रहे भ्रष्टाचार और नौजवानों की ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ की स्थिति बयान की। गौ-रक्षा, लव-जिहाद, लैंड जिहाद की आड़ में जनमुद्दों पर मिट्टी डालने की राजनीति की मुखालिफ़त की।
उत्तर प्रदेश में यात्रा पहले चरण में इलाहाबाद, बनारस, जौनपुर, आज़मगढ़, अम्बेडकरनगर, मऊ, ग़ाज़ीपुर के विभिन्न इलाक़ों से होते हुए बलिया पहुँची। यात्रा की शुरुआत इलाहाबाद के अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के शहादत स्थल से हुई जिसके बाद यात्रा इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अकबरपुर, करेली, रोशनबाग़ आदि रिहायशी इलाकों सहित छात्र-बहुल इलाक़े छोटा बघाड़ा, सलोरी, कटरा, एलनगंज आदि से गुज़री। 7 जनवरी को भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के तहत विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में ‘वैज्ञानिक नज़रिये पर फ़ासीवादी हमला और इसका प्रतिरोध’ विषय पर जाने-माने शायर, वैज्ञानिक और फ़िल्मकार गौहर रज़ा ने ऑनलाइन शामिल होकर अपनी बात रखी। ‘साम्प्रदायिकता बनाम सच्चा सेक्युलरिज़्म’ विषय पर पत्रकार और एक्टिविस्ट सत्यम वर्मा ने विस्तारपूर्वक बात रखी। ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’ पत्रिका के सम्पादक प्रसेन ने ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ क्यों?’ विषय पर बात रखी। 9 जनवरी को यात्रा इलाहाबाद से बनारस पहुँची जहाँ यात्रा की शुरुआत फ़ातिमा शेख़ के जन्मदिवस पर कार्यक्रम के साथ की गयी। यूपी में अलग-अलग जगहों पर पुरानी पेंशन बहाली की माँग को लेकर रेलवे कर्मचारियों के चल रहे धरने का भी समर्थन करने यात्रियों की टोली पहुँची। उत्तरप्रदेश में मिले एक बेलदारी करने वाले मज़दूर ने बताया कि “योगीराज में हम मेहनतकशों को भूख, बेकारी, अपमान और जहालत ही नसीब है, हमारे बचे हुए अच्छे दिन भी इस सरकार ने छीन लिये हैं, हमें ईवीएम के ज़रिये चुनाव पर भरोसा नहीं रह गया है!” ठीक इसी तरह की बातें हर बस्ती, हर चौक पर हो रही सभाओं में लोगों से सुनने को मिली। यूपी में उपरोक्त ज़िलों में जन प्रतिक्रिया बहुत ही सकारात्मक रही।
17 जनवरी की सुबह यात्रा ने बिहार में प्रवेश किया है। इसके बाद 23 जनवरी को यात्रा फिर से उत्तर प्रदेश आयेगी और आगे उत्तराखण्ड, हरियाणा, पंजाब, चण्डीगढ़ से गुज़रते हुए दिल्ली पहुँचेगी।
असल में, भाजपा के “अच्छे दिन”, “हर साल दो करोड़ रोज़गार”, “बहुत हुई महँगाई की मार” जैसे नारों की असलियत आज आम जनता के बीच खुल चुकी है। ख़ासतौर पर उन राज्यों में जहाँ “डबल इंजन” की सरकार है वहाँ तो हालात और भी बुरे हैं। 2014 के बाद से देशभर में मज़दूरों, कर्मचारियों, आंगनवाड़ीकर्मियों, छात्रों, शिक्षकों, डॉक्टरों, खिलाड़ियों, ड्राईवरों यानी अधिकांश क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के आन्दोलन और संघर्ष तेज़ हुए हैं।
मन्दिर के नाम पर हजारों करोड़ रुपये ख़र्च करने वाली और चुनाव से पहले धार्मिक उन्माद को हवा देने वाली इस फ़ासीवादी सरकार के समर्थन में बोलने वाला शायद ही कोई व्यक्ति मिला हो। जनता के बीच सरकार की नीतियों के खिलाफ़ भयंकर असन्तोष और गुस्सा है। भाजपा के पक्ष में आज 15 से 20 फ़ीसदी वही आबादी बोल रही है जिसका फ़ासीवादियों ने व्यवस्थित रूप से साम्प्रदायीकरण किया है बाक़ी एक बड़ी आबादी वो है जो इनकी असलियत से वाकिफ़ हो चुकी है और इसलिए ही इस बार 2024 के चुनाव से पहले ये बेहद की आक्रामक तरीके से हिन्दू-मुसलमान, मन्दिर-मस्जिद का खेल खेल रहे हैं। महँगाई और बेरोज़गारी के मुद्दे पर फ़ेल मोदी सरकार अब आम जनता को बता रही है कि यह सब तो ईश्वर का प्रकोप है, रामलला आयेंगे और सब ठीक हो जाएगा!
मगर, यात्रा के पूरे प्रचार अभियान के दौरान लोगों ने समझा है कि महँगाई और बेरोज़गारी ना तो कोई ईश्वरीय प्रकोप है ना कोई प्राकृतिक आपदा बल्कि इसके पीछे मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं। बढ़ती महँगाई का कारण मोदी सरकार द्वारा अमीरों का टैक्स माफ़ करना, उन्हें कर्ज़ मुक्त करना और इसके कारण होने वाले सरकारी घाटे के लिए जनता पर अप्रत्यक्ष टैक्स का बोझ बढ़ाना है। इसी कारण आज महँगाई कमरतोड़ ढंग से बढ़ रही है। बेरोज़गारी भी इस सरकार के भयंकर आर्थिक कुप्रबन्धन, ठेकाकरण और अनौपचारिकीकरण का नतीजा है। इन समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार ना तो मुस्लिम आबादी है ना बढ़ती जनसंख्या बल्कि इन समस्याओं की ज़िम्मेदार फ़ासीवादी मोदी सरकार और पीछे खड़ा संघ परिवार है जो मेहनतकश अवाम के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के तहत यह सन्देश अवाम तक पहुँचाया जा रहा है कि अगर आज हम अपने ठोस मुद्दों पर लड़ेंगे तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ी, अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य दे पायेंगे। धर्म और मन्दिर-मस्जिद की राजनीति के ज़रिये सत्ता में बैठे फ़ासिस्ट हमें आपस में लड़ाकर अम्बानी-अडाणी की तिजोरियाँ भर रहे हैं। हमें अशफाक़-बिस्मिल की विरासत को आगे लेकर जाना होगा और इनकी साम्प्रदायिक राजनीति का मुँहतोड़ जवाब देना होगा।
रोज़गार के मूलभूत अधिकार की माँग, ठेका प्रथा ख़त्म करने की माँग, पेंशन की माँग, एकसामान और निःशुल्क शिक्षा-चिकित्सा की माँग, अप्रत्यक्ष करों के ख़ात्मे की माँग और राजनीति को धर्म से पूरी तरह अलग करने वाले क़ानून की माँग पर संगठित होकर जुझारू संघर्ष खड़ा करना ही एकमात्र विकल्प है।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2024
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन