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CAA+NPR+NRC सभी के लिए क्यों ख़तरनाक हैं

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) अपने आप में एक ग़लत क़ानून है जो धर्म के आधार पर एक क़ौम के लोगों को नागरिकता देने से इंकार करता है। मगर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर),जो देशव्यापी एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) के लिए पहला क़दम है, के साथ मिलकर यह न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि अन्य सभी भारतीयों के लिए विनाशकारी साबित होगा।

आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा जनउभार है सीएए-एनआरसी विरोधी आन्दोलन

देश की जनता को बाँटने और एक बडी आबादी को सरमायेदारों को दोयम दर्जे का निवासी और सरमायेदारों का गुलाम बना देने के इरादे से देश पर थोपे जा रहे सीएए-एनआरसी के विनाशकारी ‘प्रयोग’ के विरुद्ध देशव्‍यापी आन्‍दोलन सत्ता के सारे हथकण्‍डों के बावजूद मज़बूती से डटा हुआ है और इसका देश के नये-नये इलाक़ों में विस्‍तार हो रहा है। दिल्‍ली का शाहीन बाग इस आन्‍दोलन का एक प्रतीक बन गया है और दिनो-रात के धरने का उसका मॉडल पूरे देश में अपनाया जा रहा है।

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव 2020 में फिर से आम आदमी पार्टी की जीत के मायने: एक मज़दूर वर्गीय नज़रिया

जिन्‍होंने भी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पूरे चुनाव अभियान को क़रीबी से देखा है, वह अच्‍छी तरह जानते हैं कि भाजपा के हिन्‍दुत्‍ववादी फ़ासीवाद के एजेण्‍डे के बरक्‍स, अरविन्‍द केजरीवाल ने कोई सही मायनों में सेक्‍युलर, जनवादी और प्रगतिशील एजेण्‍डा नहीं रखा था। उल्‍टे केजरीवाल ने ‘सॉफ़्ट हिन्‍दुत्‍व’ का कार्ड खेला। अपने आपको हिन्‍दू, हनुमान-भक्‍त आदि साबित करने में केजरीवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी। साथ ही, कश्‍मीर में 370 हटाने पर मोदी को बधाई देने से लेकर, जामिया और जेएनयू पर हुए पुलिसिया अत्‍याचार और शाहीन बाग़ और सीएए-एनआरसी-एनपीआर जैसे सबसे ज्‍वलन्‍त और व्‍यापक मेहनतकश आबादी को प्रभावित करने वाले प्रमुख मसलों के सवाल पर चुप्‍पी साधे रहने तक, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने मोदी-शाह-नीत भाजपा के कोर एजेण्‍डा से किनारा काटकर निकल लेने (सर्कमवेण्‍ट करने) की रणनीति अपनायी। तात्‍कालिक तौर पर, इस रणनीति का फ़ायदा आम आदमी पार्टी को मिला है।

होण्डा, शिवम व अन्य कारख़ानों के संघर्ष को पूरी ऑटो पट्टी के साझा संघर्ष में तब्दील करना होगा

मन्दी के नाम पर छँटनी का कहर केवल होण्डा के मज़दूरों पर ही नहीं बल्कि गुड़गाँव और उसके आसपास ऑटोमोबाइल सेक्टर की कंसाई नैरोलक, शिरोकी टेक्निको, मुंजाल शोवा, डेन्सो, मारुति समेत दर्जनों कम्पनियों में लगातार जारी है। दिहाड़ी, पीस रेट, व ठेका मज़दूर तो दूर स्थायी मज़दूर तक अपनी नौकरी नहीं बचा पा रहे हैं। होण्डा, शिवम, कंसाई नैरोलेक आदि कई कम्पनियों के स्थाई श्रमिक निलम्बन, निष्कासन, तबादले से लेकर झूठे केस तक झेल रहे हैं। होण्डा समेत कई कारख़ानों में चल रहे संघर्षों में कैज़ुअल मज़दूरों के समर्थन में उतरे जुझारू मज़दूरों को निलम्बित किया गया है।

मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ में बर्बर पुलिस दमन की आँखों देखी रिपोर्ट

27 दिसम्बर को जाँच-पड़ताल करने वाली एक टीम के साथ मैं मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ गयी थी। इस टीम में सुप्रीम कोर्ट के वकील, इम्तियाज़ हाशमी और मोहम्मद रेहमान के साथ मेधा पाटकर, दिल्ली के दो वकील सन्दीप पाण्डेय और विमल के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता फै़ज़ल ख़ान भी शामिल थे।

वर्ष 2019 : दुनियाभर में व्‍यवस्‍था-विरोधी व्‍यापक जनान्‍दोलनों का वर्ष

पिछले कुछ वर्षों से दुनियाभर में लुटेरे और उत्पीड़क शासकों के विरुद्ध जनता सड़कों पर उतर रहे हैं। विश्व पूँजीवादी व्यवस्था का संकट गहराते जाने के साथ ही जहाँ एक ओर दुनिया के अनेक मुल्क़ों में फ़ासिस्ट या अर्द्धफ़ासिस्ट क़िस्म की ताक़तें मज़बूत हो रही हैं, वहीं लोगों के अधिकरों पर हमला करने वाले सत्ताधारियों को उग्र जनसंघर्षों का भी सामना करना पड़ रहा है।

सीएए पर केन्द्र सरकार द्वारा जारी प्रश्नोत्तरी (FAQ) का नुक़्तेवार खण्डन

सीएए/एनआरसी पर केन्द्र सरकार द्वारा जारी प्रश्नोत्तरी (FAQ) पूरी तरह गुमराह करनेवाली है और कई बार तो यह बिल्कुल झूठी जानकारी देती है। यह जितना बताती है उससे कहीं अधिक छिपाती है। सरकार ने हर सवाल के जो जवाब जारी किये हैं, उनमें से हर जवाब के अन्त में एडवोकेट मिहिर देसाई की टिप्पणियाँ भी हैं।

सीएए और एनआरसी क्या हैं और इनसे आप कैसे प्रभावित होंगे?

नागरिकता संशोधन क़ानून 2019 के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, ईसाई और बौद्ध धर्म को मानने वालों में से जो लोग 31 दिसंबर 2014 के पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं वे भारत की नागरिकता पाने के हक़दार हैं। इस संशोधन में इन तीन देशों के मुस्लिमों और भारत के अन्य पड़ोसी देशों के सभी लोगों को नागरिकता पाने के अधिकार से वंचित रखा गया है।

जनता के मिज़ाज को भाँपने में फ़ासिस्ट सत्ता बुरी तरह नाकाम!

कहते हैं, जहाँ दमन है, वहाँ प्रतिरोध भी होगा! पिछले साढ़े पाँच वर्षों के दौरान मोदी सरकार और भगवा गिरोह ने देश की जनता के विरुद्ध जो चौतरफ़ा युद्ध छेड़ रखा था, उसके विरुद्ध इस देश के मेहनतकशों और नौजवानों ने लड़ना तो कभी बन्द नहीं किया था, लेकिन इस बार पूरे देश के लोगों के सब्र का प्याला छलक चुका है।

बग़ावत की चिंगारी सुलगा गया गुज़रा साल

इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक भी पूरा हो चुका है। इस पूरे दशक के दौरान लगातार जारी पूँजीवाद का विश्वव्यापी संकट दुनियाभर की मेहनतकश आवाम की ज़िन्दगी को तार-तार करता रहा। क्रान्तिकारी नेतृत्व की ग़ैरमौजूदगी या कमज़ोरी की वजह से दुनिया के तमाम देशों में इस संकट का लाभ धुर-दक्षिणपन्थी और फ़ासिस्ट ताक़तों ने उठाया।