दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में फिर से आम आदमी पार्टी की जीत के मायने: एक मज़दूर वर्गीय नज़रिया
जिन्होंने भी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पूरे चुनाव अभियान को क़रीबी से देखा है, वह अच्छी तरह जानते हैं कि भाजपा के हिन्दुत्ववादी फ़ासीवाद के एजेण्डे के बरक्स, अरविन्द केजरीवाल ने कोई सही मायनों में सेक्युलर, जनवादी और प्रगतिशील एजेण्डा नहीं रखा था। उल्टे केजरीवाल ने ‘सॉफ़्ट हिन्दुत्व’ का कार्ड खेला। अपने आपको हिन्दू, हनुमान-भक्त आदि साबित करने में केजरीवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी। साथ ही, कश्मीर में 370 हटाने पर मोदी को बधाई देने से लेकर, जामिया और जेएनयू पर हुए पुलिसिया अत्याचार और शाहीन बाग़ और सीएए-एनआरसी-एनपीआर जैसे सबसे ज्वलन्त और व्यापक मेहनतकश आबादी को प्रभावित करने वाले प्रमुख मसलों के सवाल पर चुप्पी साधे रहने तक, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने मोदी-शाह-नीत भाजपा के कोर एजेण्डा से किनारा काटकर निकल लेने (सर्कमवेण्ट करने) की रणनीति अपनायी। तात्कालिक तौर पर, इस रणनीति का फ़ायदा आम आदमी पार्टी को मिला है।