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मेहनतकश साथियो! देश को आग और ख़ून के दलदल में धकेलने की फ़ासिस्ट साज़िश को नाकाम करने के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ो!

नरेन्द्र मोदी के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद कहा गया था कि पिछली बार जो काम शुरू किये गये थे इस बार उन्‍हें पूरा किया जायेगा। पिछले छह महीने इस बात के गवाह हैं कि भाजपा और संघ परिवार ने इस एजेण्डा को आगे बढ़ाते हुए देश को तबाही की राह पर कितनी तेज़ रफ़्तार से बढ़ा दिया है।

गहरी आर्थिक मन्दी के सही कारण को पहचानो

मन्दी के कारण मज़दूरों की नौकरी छूट रही है, बेरोज़गारी और महँगाई बढ़ी है, परन्तु सरकार अपना पूरा ज़ोर लगा रही है कि पूँजीपतियों में निराशा न हो। मज़दूरों के लिए सरकार कोई नीति नहीं ला रही है। मोदी ने 15 अगस्त को मनमोहन सिंह की यह बात ही दोहरा दी है कि अमीरों को और अमीर बनाइये, उनकी जूठन से ग़रीबों के जीवन में भी समृद्धि आयेगी। हम यह जानते हैं कि समृद्धि नीचे से ऊपर ही जाती है, न कि ऊपर से नीचे की ओर।

सच को पहचानने और बोलने का विवेक और साहस बनाये रखिये क्योंकि हुक़्मरान हमें यक़ीन दिलाना चाहते हैं…

जिस देश में करोड़ों बच्चे रोज़ रात को भूखे या आधा पेट  खाकर सोते हैं, करोड़ों इन्सानों के सिर पर आज भी छत नहीं है, वहाँ हज़ारों करोड़ सिर्फ़ इन्हीं झूठों को सच में बदलने के लिए फूँके जा रहे हैं। पर इससे भी ख़तरनाक बात यह है कि समाज के अच्छे-ख़ासे तबके की चेतना इन भोंपुओं से दिनो-रात होने वाली झूठ की तेज़ाबी बारिश के असर से भ्रष्ट होती जा रही है जिसकी वजह से देश के फ़ासिस्ट शासक मनचाहे ढंग से साम्प्रदायिकता और अन्धराष्ट्रवाद की आँधी चला पा रहे हैं। भारत के मध्यवर्ग का बड़ा हिस्सा ‘मोदी-मोदी!’ और ‘जय श्रीराम!’ के उन्मादी शोर के नशे में डूबकर और अपनी गाड़ी के पीछे ‘एंग्री हनुमान’ का स्टिकर लगाकर देश को ख़ून के दलदल में डुबो देने की साज़िशों का जश्न मना रहा है।  

‘यूएपीए’ संशोधन बिल : काले कारनामों को अंजाम देने के लिए लाया गया काला क़ानून

हर बार ऐसे काले क़ानूनों को बनाने का मक़सद क़ानून-व्यवस्था और अमन-चैन क़ायम रखना बताया जाता है, लेकिन असलियत यह है कि शासक वर्गों को ऐसे काले क़ानूनों की ज़रूरत अपने शोषणकारी, और दमनकारी शासन के ख़ि‍लाफ़ उठने वाली आवाज़ों को बर्बरता से कुचलने के लिए पड़ती है। अब चूँकि केन्द्र में एक फ़ासीवादी सत्ता काबिज़ है, काले क़ानूनों को बेशर्मी से लागू करने के मामले में पुराने सारे कीर्तिमान ध्वस्त किये जा रहे हैं। मोदी सरकार अब कुख्यात ‘यूएपीए’ क़ानून में संशोधन करके अपनी फ़ासीवादी नीतियों का विरोध करने वालों को आतंकी घोषित करने की पूरी तैयारी कर चुकी है। इसीलिए इस संशोधन के बाद ‘यूएपीए’ को आज़ाद भारत के इतिहास का सबसे ख़तरनाक क़ानून कहा जा रहा है।

सैंया भये दोबारा कोतवाल, अब डर काहे का!

भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसमें सभी पार्टियों के गुण्डे, मवाली, हत्यारे और बलात्कारी आकर शरण प्राप्त कर रहे हैं। इस देश के प्रधान सेवक उर्फ़ चौकीदार ने हाल ही में सीना फुलाते हुए कहा था कि कमल का फूल पूरे देश में फैल रहा है, लेकिन वे यह बताना भूल गये कि दरअसल यह फूल औरतों, दलितों, अल्पसंख्यकों और मज़दूरों के ख़ून से सींचा जा रहा है। एक तरफ़ भयंकर बेरोज़गारी और दूसरी तरफ़ ऐसी घटनाएँ दिखाती हैं कि पूरे देश में फ़ासीवाद का अँधेरा गहराता जा रहा है। गो-रक्षा, लव-जिहाद, ‘भारत माता की जय’, राम मन्दिर की फ़ासीवादी राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ आम जनता को बाँटने और आपस में लड़ाने के लिए खेली जाती है।

पूँजीवादी संकट गम्भीर होने के साथ ही दुनिया-भर में दक्षिणपंथ का उभार तेज़

नवउदारवाद के इस दौर में पूँजीवादी व्यवस्था का संकट जैसे-जैसे गम्भीर होता जा रहा है, वैसे-वैसे दुनियाभर में फासीवादी उभार का एक नया दौर दिखायी दे रहा है। पूरी दुनिया में पूँजीवादी व्यवस्था लम्बे समय से संकट में फँसी हुई और उबरने के तमाम उपाय करने के बावजूद इसका संकट पहले से भी ज़्यादा गम्भीर होता जा रहा है। ऐसे में अपने मुनाफ़े की दर को कम होते जाने से बचाने के लिए दुनियाभर के पूँजीपति अपने देश के मज़दूरों और आम जनता के शोषण को बढ़ाते जा रहे हैं। जिन देशों में आम लोगों को पहले से कुछ बेहतर सुविधाएँ मिली हुई थीं वहाँ भी अब वे सुविधाएँ छीनी जा रही हैं। इस बढ़ते शोषण के ख़ि‍लाफ़ लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। ऐसे में हर जगह के पूँजीपति अपने आख़िरी हथियार – फ़ासीवाद को‍ निकालने पर मजबूर हो रहे हैं। कहीं यह एकदम नंगे रूप में सामने आ चुका है तो कहीं इसने अभी नग्न फ़ासीवाद की शक़्ल नहीं ली है मगर उग्र दक्षिणपंथी ताक़तों के उभार के रूप में सामने आया है।

झूठी बातों से सच को हमेशा दबाया नहीं जा सकता! आतंक का राज क़ायम करके लोगों को उठ खड़े होने से रोका नहीं जा सकता

लाशों की ढेरियों, खून की नदियों, जेलों, क़त्लगाहों, आतंक और सन्नाटे से भरे साम्राज्य कभी भी टिकाऊ नहीं होते। झूठी बातों से सच को हमेशा दबाया नहीं जा सकता। आतंक का राज क़ायम करके लोगों को उठ खड़े होने से रोका नहीं जा सकता। और जब लोग उठ खड़े होते हैं, तो दुनिया के तमाम फ़ासिस्ट और तानाशाह मिट्टी में मिल जाते हैं। पर तानाशाह कभी इतिहास के सबक़ पर ध्यान नहीं देते। वे इतिहास को बदल देने के भ्रम में रहते हैं और इतिहास उनके लिए कचरे की पेटी तैयार करता रहता है।

वेतन संहिता अधिनियम 2019 – मज़दूर अधिकारों पर बड़ा आघात

संघी सरकार सत्ता में दोबारा आते ही मुस्तैदी से अपने पूँजीपति आकाओं की सेवा में लग गयी है। पूँजीपतियों के हितों वाले विधेयक संसद में धड़ाधड़ पारित किये जा रहे हैं। सूचना-अधिकार संशोधन और यूएपीए संशोधन जैसे विधेयकों से एक तरफ़ आम अवाम की आवाज़ पर शिकंजे कसने की कोशिश की गयी है, दूसरी तरफ़ वेतन संहिता विधेयक से उनके न्यूनतम वेतन सम्बन्धी अधिकारों को एक तरह से ख़त्म ही कर दिया गया है। इसके अलावा मज़दूरों पर हर तरह से नकेल कसने के लिए और उनकी ज़िन्दगियों को पूरी तरह से मालिकों के रहमोकरम पर छोड़ देने के लिए ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति विधेयक’ भी पेश किया जा चुका है, जबकि औद्योगिक सम्बन्ध और सामाजिक सुरक्षा से सम्बन्धित बिल पेश किये जाने बाक़ी हैं। व्यवसाय में सुलभता के लिए सरकार ने 44 केन्द्रीय श्रम क़ानूनों को इन्हीं चार श्रम संहिताओं में बाँधने का फ़ैसला किया है।

कश्मीर के मुद्दे पर सोचने के लिए कुछ बेहद ज़रूरी सवाल – क्‍या किसी क़ौम को ग़ुुलाम बनाने की हिमायत करके हम आज़ाद रह सकते हैं?

सच्चे मज़दूर क्रान्तिकारियों को हर कीमत पर हर प्रकार के राष्ट्रीय दमन का विरोध करना चाहिए और दमित राष्ट्रों के संघर्षों का बिना शर्त समर्थन करना चाहिए। यदि मज़दूर वर्ग की ताक़तें ऐसा करने में असफल होती हैं और जाने या अनजाने अपने देश के पूँजीपति वर्ग के मुखर या मौन समर्थन की राष्ट्रीय व सामाजिक कट्टरपंथी अवस्थिति अपनाती हैं, तो वह अपने देश के पूँजीपति वर्ग को स्वयं अपना दमन करने का भी लाईसेंस और वैधीकरण प्रदान करती हैं। ऐसी कुछ ताक़तें भारत में भी हैं जिन्होंने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के रद्द होने के बाद ज़ुबान पर ताला लगा लिया है और कश्मीर के मसले पर कुछ भी बोलने से घबरा गयी हैं। ऐसे ग्रुपों व संगठनों को कल इतिहास के कठघरे में खड़ा होकर एक असम्भव सफाई देने का प्रयास करना पड़ेगा। आज हमें धारा के विरुद्ध तैरते हुए कश्मीरी जनता के राष्ट्रीय दमन का विरोध करना होगा और उनके जनवादी हक़ों के संघर्ष का समर्थन करना होगा। केवल तभी हम फासीवादी मोदी सरकार और पूँजीवादी राज्यसत्ता को अन्धराष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता की आँधी चलाकर हर प्रकार के प्रतिरोध व आन्दोलन को कुचलने को सही ठहराने से रोक सकते हैं, उसके सामने एक क्रान्तिकारी चुनौती पेश कर सकते हैं।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में भीषण मन्दी से लाखों लोगों का रोज़गार छिन सकता है

पाँच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के कानफाड़ू शोर के बीच असली सच्चाई यह है कि देश की अर्थव्यवस्था मन्दी की गहरी खाई में गिरती जा रही है। पूँजीपतियों के मुनाफ़े की गिरती दर को बनाये रखने के लिए जनता को तबाही-बर्बादी के नरककुण्ड में धकेलकर उसके ख़ून-पसीने की कमाई से अरबों रुपये के ‘बेल-आउट पैकेज’ पहले ही पूँजीपतियों को दिये जा चुके हैं, लेकिन फिर भी अर्थव्यवस्था को दिवालिया होने से बचाने के सारे नुस्खे नीमहकीमी साबित हो रहे हैं। मन्दी की सबसे बुरी मार ग़रीब मेहनतकश आबादी पर पड़ रही है। महँगाई, बेरोज़गारी, छँटनी, तालाबन्दी सुरसा की तरह मुँह खोले आम आबादी को निगलने पर अमादा है।