Category Archives: Slider

उत्‍तर प्रदेश में आतंक के राज्‍य को क़ानूनी जामा पहनाने के लिए आया काला क़ानून

एक ऐसी संस्था की कल्पना करें जो जब चाहे शक के आधार पर किसी को भी गिरफ़्तार कर सकती है; जिसको गिरफ़्तारी के लिए किसी वारण्ट या मजिस्ट्रेट की अनुमति की ज़रूरत नहीं है; जिसका हर सदस्य हर समय ड्यूटी पर माना जाएगा; जिसका ‘कोई भी सदस्य’ किसी भी समय किसी को भी गिरफ़्तार कर सकता है; जिसके ख़िलाफ़ सरकार की इजाज़त के बिना अदालत भी किसी मामले को संज्ञान में नहीं ले सकती है; जिसकी सेवाएँ कोई निजी संस्था भी ले सकती है। ये बातें सुनकर आपको कुख़्यात फ़ासिस्ट संस्था गेस्टापो की याद आ सकती है, लेकिन हम गेस्टापो की बात नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं ‘उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल (यूपीएसएसएफ़)’ की, जिसका गठन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार करने जा रही है।

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर फ़ैसला, सभी दंगेबाज़ साम्प्रदायिक फ़ासीवादी हुए बरी

लखनऊ की सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने अपने फै़सले में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में नामज़द सभी जीवित 32 आरोपियों को दोषमुक्त करके मुक़दमे से बरी कर दिया है। कोर्ट के फ़ैसले के बाद न्यायपसन्द लोगों के ज़ेहन में नये सवाल ये उभर रहे हैं कि यदि यह कुकर्म पूर्वनिर्धारित-पूर्वनियोजित नहीं था तो फिर आडवाणी के नेतृत्व में संघी गिरोह की रथयात्राएँ किस चीज़ के लिए निकाली जा रही थी?

कृषि-सम्‍बन्‍धी तीन अध्‍यादेश, मौजूदा किसान आन्‍दोलन और मज़दूर वर्ग

मौजूदा लेख में हम विस्‍तार से चर्चा करेंगे कि इन कृषि-सम्‍बन्‍धी अध्‍यादेशों से किन्‍हें लाभ होगा, किन्‍हें नुक़सान होगा, मौजूदा किसान आन्‍दोलन का वर्ग चरित्र क्‍या है, और क्‍या मज़दूर वर्ग इन अध्‍यादेशों के मज़दूर व ग़रीब-विरोधी प्रावधानों का विरोध गाँव के पूँजीपति वर्ग, यानी धनी किसानों व कुलकों के मंच से कर सकता है?

झूठे मुद्दों की भूलभुलैया से निकलो, रोज़गार के लिए सड़कों पर उतरो!

देश आज अभूतपूर्व बेरोज़गारी का सामना कर रहा है। सरकार या तो इस समस्या से पूरी तरह आँख चुराए हुए है या फिर जीडीपी में भारी गिरावट की तरह इसे भी “दैवी आपदा” साबित करने की कोशिश कर रही है। लेकिन अगर आपकी आँखों पर भक्ति की पट्टी नहीं बँधी है तो इस सच्चाई को समझना क़तई मुश्किल नहीं है कि बेरोज़गारी की इय भयावह हालत की ज़िम्मेदार पूरी तरह मोदी सरकार और उसके कारनामे हैं। अगर आप अब भी आँखों से यह पट्टी उतारने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आपको शायद तब ही समझ में आयेगा जब बेरोज़गारी और महँगाई की आग आपके घर को झुलसाने लगेगी। उन जर्मनीवासियों की तरह जिनकी हिटलर भक्ति तब टूटी जब जर्मनी पूरी तरह बर्बाद हो गया।

कोरोना महामारी और लॉकडाउन: ज़िम्मेदार कौन है? क़ीमत कौन चुका रहा है?

दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। ये शब्द लिखे जाने तक 9 लाख 20 हज़ार से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं, जिनमें से क़रीब 80 हज़ार मौतें भारत में हुई हैं। दुनिया में अब तक लगभग 3 करोड़ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 2 करोड़ 10 लाख ठीक हो गये हैं। भारत में कुल संक्रमित लोगों की संख्या अब तक 48 लाख पार कर चुकी है, जिनमें से क़रीब 38 लाख लोग ठीक हुए हैं। हालाँकि जो लोग ठीक हो रहे हैं उनमें से भी बहुतों को कई तरह की गम्भीर परेशानियाँ हो जा रही हैं।

आरएसएस और भाजपा के निर्माणाधीन “हिन्दू राष्ट्र” में मज़दूरों की क्या जगह है?

अयोध्या में राम मन्दिर के भूमि पूजन के साथ शायद बहुत से मज़दूर भाई-बहन भी कुछ ख़ुश हुए होंगे। हो सकता है कि उनमें से भी कुछ को लगा हो कि अब रामराज्य की स्थापना हो रही है, अब “हिन्दू राष्ट्र” बन रहा है, अब शायद उन्हें तंगहाली, बेरोज़गारी और भूख-कुपोषण से मुक्ति मिल जायेगी। ऐसे में, हम आज के दौर की कुछ ठोस सच्चाइयों को आपके सामने रखना चाहते हैं और आपके मन में कुछ सवाल खड़े करना चाहते हैं।

लॉकडाउन में दिल्ली के मज़दूर : नौकरी जा चुकी है, घर में राशन है नहीं, घर जा नहीं सकते

पिछले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लागू करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को अचानक पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया। दिल्‍ली में बड़ी संख्या में मेहनतकश ग़रीब आबादी रहती है जिसकी रोज़ की कमाई तय करती है कि शाम को घर में चूल्हा जलेगा कि नहीं। फै़क्ट्री मज़दूर, रेहड़ी-खोमचा लगाने वाले व निम्न मध्यवर्ग की आबादी जो कुल मिलाकर देश की 80 फीसदी आबादी है, उसपर लॉकडाउन क़हर बन कर टूटा है।

लॉकडाउन में गुड़गाँव के मज़दूरों की स्थिति

गुड़गाँव के सेक्टर 53 में, ऊँची-ऊँची इमारतों वाली हाउसिंग सोसायटियों के बीच मज़दूरों की चॉल है। छोटे से क्षेत्र में दो से तीन हज़ार मज़दूर छोटे-छोटे कमरों में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उसी चॉल में अपने परिवार को भूख, गर्मी, बीमारी से परेशानहाल देख मुकेश ने खु़दकुशी कर ली। तीस वर्षीय मुकेश बिहार के रहने वाले थे, और यहाँ पुताई का काम करते थे। लॉकडाउन का पहला चरण किसी तरह खींचने के बाद जब दूसरा चरण शुरू हुआ तो मुकेश की हिम्मत जवाब दे गयी।

कोरोना के बहाने मज़दूर-अधिकारों पर मोदी सरकार की डकैती

कोरोना महामारी के कारण पहले से ही डगमगा रही वैश्विक अर्थव्यवस्था जिस गहरी मन्‍दी में धँसने की ओर जा रही है उसमें पूँजीपति वर्ग का मुनाफ़ा ना मारा जाये इसके लिए दुनिया भर में सरकारों द्वारा मजदूरों के बचे खुचे-सारे अधिकार खत्म किये जा रहे हैं। दुनिया भर में तमाम दक्षिणपंथी, फासीवादी सत्ताएँ ऐसे ही कड़े कदम ले रही हैं। भारत में भी मोदी सरकार पूरी नंगई के साथ अपनी मज़दूर विरोधी और पूँजीपरस्त नीतियों को लागू करने में लगी हुई है। कोविड-19 महामारी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था का जो नुकसान हुआ है, उसका हर्जाना यह सरकार मज़दूर वर्ग से वसूलेगी।

पीएम केयर्स फ़ण्‍ड : एक और महा-घोटाला!

पूरा देश कोरोना वायरस की वजह से त्रस्त है। करोड़ों मेहनतकश परिवार भुखमरी के कगार पर पहुँच गये हैं। देशभर में भूख से कई मौतें हो चुकी हैं। सरकार और कारख़ाना मालिकों के पल्ला झाड़ लेने के बाद तमाम औद्योगिक शहरों से सैकड़ों किलोमीटर चलकर भूख और पुलिस का ज़ुल्म सहते हुए, अपने बच्चों की मौत तक देखते हुए जो मज़दूर अपने घर पहुँच गये, उनके साथ भुखमरी भी पहुँच गयी है। जो मज़दूर कहीं बीच में या राज्यों के बार्डर पर रोक लिये गये हैं, उन्‍हें जिन कैम्पों में रखा गया है वहाँ की हालत बहुत ख़राब है। डॉक्टरों तक के लिए पर्याप्त सुरक्षा किट नहीं है। लेकिन इसी बीच भाजपा ने कोरोना से निपटने के नाम पर अब एक बड़ा खेल खेला है।