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दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मियों की लड़ाई पिछले 38 दिनों से जारी थी। हड़ताल दिनों-दिन मज़बूत होती देख बौखलाहट में आम आदमी पार्टी व भाजपा ने आपसी सहमति बनाकर उपराज्यपाल के ज़रिए इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिए छह महीने की रोक लगा दी है।

बेरोज़गारी के भयंकर होते हालात और रेलवे के अभ्यर्थी छात्रों का आन्दोलन

बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में रेलवे के एन.टी.पी.सी. के अभ्यार्थी आन्दोलनरत हैं। ज्ञात हो 24 जनवरी को बिहार के पटना, आरा व दरभंगा ज़िले में हज़ारों छात्रों ने बड़े स्तर पर रेल रोको आन्दोलन किया। उसके बाद से यह आन्दोलन अन्य राज्यों में भी फैल गया! लेकिन चूँकि मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश के ही छात्रों ने एन.टी.पी.सी. का फ़ॉर्म भरा था, तो ख़ासकर इन राज्यों में छात्रों का आन्दोलन उग्र होता गया। 24 जनवरी को राजेन्द्र नगर टर्मिनल पर और आरा स्टेशन पर क़रीब 7 घण्टे तक छात्रों ने रेलवे को जाम कर दिया।

हरियाणा के निजी क्षेत्र के रोज़गार में 75 प्रतिशत स्थानीय आरक्षण के मायने

गत 15 जनवरी से राज्य में ‘हरियाणा स्टेट एम्प्लॉयमेण्ट ऑफ़ लोकल कैण्डिडेट्स एक्ट, 2020’ को लागू कर दिया है। इस एक्ट के अनुसार हरियाणा राज्य के निजी क्षेत्र में 75 फ़ीसदी नौकरियाँ प्रदेश के निवासियों के लिए आरक्षित कर दी गयी हैं। निजी क्षेत्र में आरक्षण को लागू करने वाला हरियाणा दूसरा राज्य है, इससे पहले आन्ध्रप्रदेश ने प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण लागू कर रखा है। इस एक्ट के लागू होने के बाद, अब हरियाणा में निकलने वाली ऐसी निजी भर्तियाँ जिनमें सकल वेतन 30,000 रुपये से कम होगा, उनमें नियोक्ताओं को 75% नौकरियाँ हरियाणा के निवासियों को देनी होंगी। हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला इसे एक ऐतिहासिक फ़ैसला बता रहे हैं।

दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाकर्मी 31 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर!

दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाकर्मी अपनी जायज़ माँगों को लेकर लगातार संघर्षरत हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक अनिश्चितकालीन हड़ताल के तीसरे दिन हज़ारों की संख्या में आँगनवाड़ी स्त्री कामगार केजरीवाल आवास के बाहर अपनी माँगें उठा रही हैं।
मालूम हो कि केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने माँगपत्रक पर कोई ठोस कार्रवाई न होने की सूरत में 22,000 वर्कर्स और हेल्पर्स 31 जनवरी से दिल्ली की आँगनवाड़ी केन्द्रों का काम ठप्प कर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं।

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव : मज़दूर वर्ग और आम जनता के सामने विकल्प क्या है?

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव एकदम सिर पर हैं। इन पाँच राज्यों के सात चरणों में होने वाले चुनावों में वोट पड़ने की शुरुआत 10 फ़रवरी से हो जायेगी तथा चुनाव परिणाम 10 मार्च को घोषित कर दिये जायेंगे। पूँजीपति वर्ग की विभिन्न चुनावबाज़ पार्टियाँ जोश-ओ-ख़रोश के साथ चुनावी नूराकुश्ती के मैदान में डटी हुई हैं। जिस तरह से बारिश के मौसम में गन्दे नालों का पानी एक नाले से दूसरे नाले में आता-जाता रहता है ठीक वैसे ही चुनावबाज़ पार्टियों के नेता भी एक पार्टी से दूसरी पार्टी में मिल रहे हैं।

पंजाब में धार्मिक चिह्नों की “बेअदबी” के नाम पर मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाएँ

पंजाब में सिख धार्मिक चिह्नों की तथाकथित बेअदबी और “बेअदबी” करने वालों की धार्मिक कट्टरपन्थियों द्वारा सरेआम हत्याओं के एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में घटी एक वारदात में स्वर्ण मन्दिर, अमृतसर में एक युवक की इसी “बेअदबी” के नाम पर उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या कर दी गयी। एक अन्य घटना में कपूरथला में सिख धर्म के प्रतीक निशान साहिब का “अपमान” करने के नाम पर एक और युवक की कट्टरपन्थियों द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी।

पंजाब में केजरीवाल और चन्नी में “आम आदमी” बनने की हास्यास्पद होड़

आगामी पंजाब विधानसभा चुनावों को समीप आते देख पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियों के बीच हलचल शुरू हो गयी है। इन सभी पार्टियों के नेता-मंत्री पाँच साल की शीत निद्रा से बाहर निकल आये हैं और एक के बाद एक बड़े एलान कर रहे हैं। कुछ ऐसे ही एलानों के बीच पंजाब के नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बीच ख़ुद को ‘आम आदमी’ साबित करने की होड़-सी मच गयी।

धनी किसान-कुलक आन्दोलन के नवीनतम दौर में कुछ ज़रूरी सवाल जिन्हें इस आन्दोलन के नेतृत्व से पूछा जाना चाहिए

जब हमने धनी किसान-कुलक आन्दोलन के शुरू होते ही कहा था कि इस आन्दोलन का मूल और मुख्य लक्ष्य लाभकारी मूल्य (एमएसपी) को बचाना और बढ़ाना है, तो इस आन्दोलन के पीछे घिसट रहे कई कॉमरेडों ने कहा था कि इस आन्दोलन का लक्ष्य केवल लाभकारी मूल्य बचाना नहीं है, बल्कि यह फ़ासीवाद-विरोधी आन्दोलन है, यह खेतिहर मज़दूरों को भी फ़ायदा पहुँचाएगा और यह ग़रीब किसानों को भी फ़ायदा पहुँचाएगा, वग़ैरह। लेकिन अब जबकि मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश व पंजाब चुनावों के मद्देनज़र तीन खेती क़ानूनों को वापस ले लिया है, तो मौजूदा धनी किसान-कुलक आन्दोलन के नेतृत्व ने स्वयं ही अपने चरित्र को साफ़ कर दिया है।

सी.ओ.पी-26 की नौटंकी और पर्यावरण की तबाही पर पूँजीवादी सरकारों के जुमले

बीते 31 अक्टूबर से 13 नवम्बर तक स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में ‘कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (सीओपी) 26’ का आयोजन किया गया। पर्यावरण की सुरक्षा, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट आदि से इस धरती को बचाने के लिए क़रीब 200 देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। कहने के लिए पर्यावरण को बचाने के लिए इस मंच से बहुत ही भावुक अपीलें की गयीं, हिदायतें दी गयीं, पर इन सब के अलावा पूरे सम्मेलन में कोई ठोस योजना नहीं ली गयी है। (ज़ाहिर है कि ये सब करना इनका मक़सद भी नहीं था।)

नमाज़ को लेकर संघियों का उत्पात : फ़ासीवादी ताक़तों द्वारा जनता को बाँटने की नयी साज़िश!

बीते दिनों नोएडा के सेक्टर-65 के एक पार्क में कुछ लोगों के नमाज़ पढ़ने पर त्रिभुवन प्रताप नामक एक व्यक्ति ने आपत्ति जताते हुए इसकी फ़ोटो यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग कर ट्वीट कर दिया। इसके बाद पुलिस ने वहाँ पहुँचकर नमाज़ को बन्द करा दिया। ग़ौरतलब है कि यहाँ नमाज़ के लिए आने वाले लोग आस-पास के कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूर हैं। ज़ाहिर है, इन मज़दूरों के पास न तो इतने संसाधन है कि वे कहीं दूर मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ें, न ही कारख़ानों में उन्हें इतना वक़्त दिया जाता है कि वे इबादत के लिए मस्जिद तक जा सकें। इसलिए काम के दौरान कारख़ाने से थोड़ी देर छुट्टी लेकर ये लोग पास के पार्क में नमाज़ पढ़ लेते हैं।