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सी.ओ.पी-26 की नौटंकी और पर्यावरण की तबाही पर पूँजीवादी सरकारों के जुमले

बीते 31 अक्टूबर से 13 नवम्बर तक स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में ‘कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (सीओपी) 26’ का आयोजन किया गया। पर्यावरण की सुरक्षा, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट आदि से इस धरती को बचाने के लिए क़रीब 200 देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। कहने के लिए पर्यावरण को बचाने के लिए इस मंच से बहुत ही भावुक अपीलें की गयीं, हिदायतें दी गयीं, पर इन सब के अलावा पूरे सम्मेलन में कोई ठोस योजना नहीं ली गयी है। (ज़ाहिर है कि ये सब करना इनका मक़सद भी नहीं था।)

नमाज़ को लेकर संघियों का उत्पात : फ़ासीवादी ताक़तों द्वारा जनता को बाँटने की नयी साज़िश!

बीते दिनों नोएडा के सेक्टर-65 के एक पार्क में कुछ लोगों के नमाज़ पढ़ने पर त्रिभुवन प्रताप नामक एक व्यक्ति ने आपत्ति जताते हुए इसकी फ़ोटो यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग कर ट्वीट कर दिया। इसके बाद पुलिस ने वहाँ पहुँचकर नमाज़ को बन्द करा दिया। ग़ौरतलब है कि यहाँ नमाज़ के लिए आने वाले लोग आस-पास के कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूर हैं। ज़ाहिर है, इन मज़दूरों के पास न तो इतने संसाधन है कि वे कहीं दूर मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ें, न ही कारख़ानों में उन्हें इतना वक़्त दिया जाता है कि वे इबादत के लिए मस्जिद तक जा सकें। इसलिए काम के दौरान कारख़ाने से थोड़ी देर छुट्टी लेकर ये लोग पास के पार्क में नमाज़ पढ़ लेते हैं।

महाराष्ट्र में परिवहन निगम कर्मचारियों का आन्दोलन : एक रिपोर्ट

महाराष्ट्र में चल रहा राजकीय परिवहन निगम (स्टेट ट्रांसपोर्ट – एसटी) कर्मचारियों का संघर्ष हाल के आन्दोलनों में उल्लेखनीय स्थान रखता है जिसने दलाल ट्रेड यूनियनों, एसटी महामण्डल, राज्य सरकार और कोर्ट के दबाव को पीछे छोड़कर आन्दोलन को अभी भी जारी रखा हुआ है। सरकार द्वारा दिये जा रहे आर्थिक वेतन वृद्धि के लालच को भी मज़दूरों ने ठेंगा दिखा दिया है और अभी भी राज्य सरकार से विलय की माँग पर डटे हुए हैं। अगर विलय की माँग पूरी हो जाये, तो मज़दूरों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलेगा और उसके तहत सातवाँ वेतन आयोग भी उसी शर्त के अनुसार लागू होगा।

बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी: संकटग्रस्त पूँजीवाद के भीतर लोभ-लालच, सट्टेबाज़ी और अपराध को बढ़ावा देने के नये औज़ार

हाल के वर्षों में भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में खाते-पीते लोगों के बीच बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके पैसे से पैसा बनाने की एक नयी सनक पैदा हुई है। इस सनक को बढ़ावा देने का काम इण्टरनेट, सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों ने किया है जिनमें लोगों को बिना मेहनत किये रातों-रात अमीर बन जाने के सब्ज़बाग़ दिखाये जाते हैं। इन विज्ञापनों में लोगों को बताया जाता है कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके वे बैंक और शेयर बाज़ार में किये गये निवेश के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा पैसा बना सकते हैं।

प्रोजेक्ट पेगासस : पूँजीवादी सत्ता के जनविरोधी निगरानी तंत्र का नया औज़ार

पिछले महीने पूरी दुनिया के राजनीतिक हलक़ों में एक शब्द भ्रमण कर रहा था – पेगासस! ‘प्रोजेक्ट पेगासस’ के खुलासे के बाद न केवल भारत की संसदीय राजनीति में उथल-पुथल पैदा हो गयी बल्कि विश्व के साम्राज्यवादी सरगनाओं तक इसकी आँच पहुँची। यूँ तो वर्ग समाज के अस्तित्व में आने, राजसत्ता के जन्म के साथ ही शोषक-शासक वर्ग द्वारा अपने हितों के मद्देनज़र विकसित किये गये जननिगरानी तंत्र का एक लम्बा इतिहास है। लेकिन वर्ग समाज की सबसे उन्नत अवस्था यानी पूँजीवाद के या वर्तमान ढाँचागत संकट से ग्रस्त पूँजीवाद के दौर में, सूचना तंत्र की स्थूल और सूक्ष्म स्तर पर विराट प्रगति ने राजसत्ता के हाथ में अभूतपूर्व औज़ार सौंप दिया है।

चीन का एवरग्रान्दे संकट : पूँजीवाद के मुनाफ़े की गिरती दर के संकट की अभिव्यक्ति

चीन के रियल एस्टेट बाज़ार में पैदा हुआ हालिया संकट पूँजीवाद की बुनियादी समस्या यानी लाभप्रभता के संकट का ही लक्षण है। इससे चीन की राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था को ‘कुछ विचलनों के साथ समाजवादी अर्थव्यवस्था’, या ‘किसी क़िस्म की संक्रमणशील अर्थव्यवस्था’ होने के चलते इसे आर्थिक संकटों से मुक्त मानने वाली धारणा निर्णायक तौर पर ध्वस्त हो गयी है। चीन की प्रमुख रियल एस्टेट कम्पनी एवरग्रान्दे के साथ अन्य रियल एस्टेट कम्पनियों का ब्याज़ भर सकने और लाभांश दे सकने की अक्षमता के चलते दिवालिया होने ने यह सिद्ध किया है कि चीन एक पूँजीवादी देश ही है, जिसकी संशोधनवादी सामाजिक फ़ासीवादी क़िस्म की पूँजीवादी राज्यसत्ता के कारण अपनी एक विशिष्टता है।

फ़रीदाबाद औद्योगिक क्षेत्र की एक आरम्भिक रिपोर्ट

आज़ादी के बाद 1949 से फ़रीदाबाद को एक औद्योगिक शहर की तरह विकसित करने का काम किया गया। भारत-पाकिस्तान बँटवारे के समय शरणाथिर्यों को यहाँ बसाया गया था। उस दौर से ही यहाँ छोटे उद्योग-धन्धे विकसित हो रहे थे। जल्द ही यहाँ बड़े उद्योगों की भी स्थापना हुई और 1950 के दशक से इसका औद्योगीकरण और तीव्र विकास आरम्भ हुआ। मुग़ल सल्तनत के काल से ही फ़रीदाबाद दिल्ली व आगरा के बीच एक छोटा शहर हुआ करता था। आज की बात की जाये तो फ़रीदाबाद देश के बड़े औद्योगिक शहरों में नौवें स्थान पर है। फ़रीदाबाद में 8000 के क़रीब छोटी-बड़ी पंजीकृत कम्पनियाँ हैं।

कोयले की कमी और बिजली संकट : साज़िश नहीं बल्कि पूँजीवाद में निहित अराजकता का नतीजा है

अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते से मीडिया में कोयले की कमी की वजह से बिजली के संकट की ख़बरें आना शुरू हो गयी थीं। उसके बाद दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बिजली के सम्भावित संकट पर सार्वजनिक बयान दिया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इस संकट से निपटने के लिए विशेष बैठकें बुलानी पड़ीं। उसके बाद कोल इण्डिया को निर्देश दिया गया कि अन्य क्षेत्रों को कोयले की आपूर्ति रोककर पूरे कोयले को बिजली उत्पादन में लगाया जाये। कोयला और बिजली के क्षेत्र से जुड़े तमाम विशेषज्ञ पहले से ही इस संकट के बारे में सरकार को आगाह कर रहे थे और इसके कारणों की चर्चा कर रहे थे।

अम्बेडकरनगर की जर्जर चिकित्सा व्यवस्था हर साल बनती है सैकड़ों मौतों की वजह

आज़ादी के सात दशक से ज़्यादा का वक़्त बीत चुका है। इन वर्षों में तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ सत्ता में आ चुकी हैं और सभी ने अपनी और अपने आक़ाओं – बड़े-बड़े अमीरज़ादों की तिजोरियाँ भरने का काम किया है। हर बार नये-नये नारों और वायदों के बीच हमारी असली समस्याओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, मज़दूरी आदि को ग़ायब कर दिया जाता है और जाति-धर्म का खेल खेला जाता है। केन्द्र और राज्य की सत्ता में बैठी फ़ासीवादी भाजपा कभी राष्ट्रवाद का जुमला उछालकर तो कभी रामराज्य के नाम पर वोट वैंक की राजनीति करती है।

वज़ीरपुर के मज़दूर आन्‍दोलन को पुन: संगठित करने की चुनौतियाँ

22 अगस्त को सी-60/3 फ़ैक्टरी में पॉलिश के कारख़ाने में छत गिरने से एक मज़दूर की मौत हो गयी। सोनू नाम का यह मज़दूर वज़ीरपुर की झुग्गियों में रहता था। मलबे के नीचे दबने के कारण सोनू की तत्काल मौत हो गयी, हादसा होने के बाद फ़ैक्टरी पर पुलिस पहुँची और पोस्टमार्टम के लिए मज़दूर के मृत शरीर को बाबू जगजीवन राम अस्पताल में ले गयी। मुनाफ़े की हवस में पगलाये मालिक की फ़ैक्टरी को जर्जर भवन में चलाने के कारण एक बार फिर एक और मज़दूर को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।