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दिल्ली एमसीडी चुनाव में मेहनतकश जनता के समक्ष विकल्प क्या है?

4 दिसम्बर को दिल्ली में एमसीडी के चुनाव होने वाले हैं। मतलब यह कि फिर से सभी चुनावबाज़ पार्टियों द्वारा झूठे वादों के पुल बाँधे जायेंगे। चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी, सभी के द्वारा जुमले फेंके जायेंगे। ऐसे में मेहनतकश जनता के पास सिर्फ़ कम बुरा प्रतिनिधि चुनने का ही विकल्प होता है और आज के समय में तो कम बुरा तय करना भी मुश्किल होता जा रहा है। सच्चाई तो यही है कि इन सभी में से कोई भी मज़दूर-मेहनतकश जनता का विकल्प नहीं है।

‘आधुनिक रोम’ में ग़ुलामों की तरह खटते मज़दूर

गुड़गाँव के इफ़्को चौक मेट्रो स्टेशन से गुड़गाँव शहर (या भाजपा द्वारा किये नामकरण के अनुसार गुरुग्राम) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आप किसी जादुई नगरी में आ गये हों। आधुनिक स्थापत्यकला (तकनीकी भाषा में कहें तो ‘उत्तरआधुनिक स्थापत्यकला’) के एक से एक नमूनों में शीशे-सी जगमगाती मीनारों की आड़ी-तिरछी आकृतियों से शहर की रंगत अलग ही लगती है। पर इस जगमग शहर की सड़कों पर मज़दूरों को अपने परिवारों के साथ घूमने की इजाज़त नहीं, इस शहर के पार्कों में हम जा नहीं सकते, भले ही सड़कों को चमकाने और पार्कों को सुन्दर बनाने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर ही आती हो।

‘सीओपी’ से यदि पर्यावरण विनाश रुकना है तब तो विनाश की ही सम्भावना अधिक है!

पिछले महीने मिस्र के शर्म अल-शेख़ शहर में 6 नवम्बर से 20 नवम्बर तक जलवायु संकट पर ‘कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़’ का सत्ताइसवाँ सम्मलेन (सीओपी-27) आयोजित किया गया। एक बार फिर तमाम छोटे-बड़े देशों के प्रतिनिधियों ने अन्तरराष्ट्रीय मंच पर इकट्ठा होकर जलवायु संकट पर घड़ियाली आँसू बहाये, पर्यावरणीय विनाश पर शोक-विलाप किया, पृथ्वी को तबाही से बचाने की अपीलें की। इसके अलावा, जलवायु संकट के लिए कौन-से देश ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं और कौन इसके लिए आर्थिक भरपाई करेगा, इस मुद्दे पर भी लम्बी खींचातानी चली।

ईडब्ल्यूएस आरक्षण : मेहनतकश जनता को बाँटने की शासक वर्ग की एक और साज़िश

भाजपा की मोदी सरकार जनता को बाँटने के एक नये उपकरण के साथ सामने आयी है : ईडब्ल्यूएस आरक्षण। इसका वास्तविक मक़सद जनता के बीच जातिगत पूर्वाग्रहों को हवा देना और सवर्ण मध्यवर्गीय वोटों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करना है। यह आरक्षण की पूरी पूँजीवादी राजनीति में ही एक नया अध्याय है। जातिगत आधार पर मौजूद आरक्षण की पूरी राजनीति का भी देश के पूँजीपति वर्ग ने बहुत ही कुशलता से इस्तेमाल किया है, जबकि निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों के हावी होने के साथ आरक्षण के पक्ष या विपक्ष में खड़ी राजनीति का आधार लगातार कमज़ोर होता गया है।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-6 : मूल्य के श्रम सिद्धान्त का विकास : एडम स्मिथ, डेविड रिकार्डो और मार्क्स – 1

हर भौतिक चीज़ के विकास को ही नहीं बल्कि हर वैज्ञानिक सिद्धान्त के विकास को भी हमें ऐतिहासिक तौर पर समझना चाहिए। हमें कभी भूलना नहीं चाहिए कि कोई क्रान्तिकारी और वैज्ञानिक विचार कहीं आसमान से नहीं टपकता। एक ओर वह सामाजिक व्यवहार के बुनियादी रूपों और उनके अनुभवों के समाहार के ज़रिए विकसित होता है, वहीं वह अपने समय तक की बौद्धिक प्रवृत्तियों के साथ एक आलोचनात्मक रिश्ता क़ायम करके ही विकसित हो सकता है। मार्क्स ने भी अपना वैज्ञानिक और क्रान्तिकारी राजनीतिक अर्थशास्त्र किसी वैचारिक निर्वात में या शून्य में नहीं विकसित किया।

जी.एन. साईबाबा मामले की रोशनी में भारतीय पूँजीवादी न्याय व्यवस्था का सच

उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने अक्टूबर में बम्बई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के फ़ैसले को निलम्बित करते हुए ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के अन्तर्गत दर्ज माओवादियों से तथाकथित सम्बन्ध मामले में जी.एन. साईबाबा समेत पाँच अन्य राजनीतिक कार्यकर्ताओं की रिहाई पर रोक लगा दी। ज्ञात हो कि उच्चतम न्यायालय के इस आदेश से पहले बम्बई हाई कोर्ट ने जी.एन. साईबाबा व अन्य चार लोगों को रिहा करने का फ़ैसला सुनाया था।

वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट-2022 : मोदी के “रामराज्य” में भूखा सोता हिन्दुस्तान

हाल ही में आयी वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट-2022 ने एक बार फिर मोदी सरकार के विकास के दावे से पर्दा उठा दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक़ भुखमरी के मामले में दुनियाभर के 121 देशों में भारत 107वें पायदान पर है। भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया गया है जहाँ भुखमरी की समस्या बेहद गम्भीर है। भारत की रैंकिंग साउथ एशिया के देशों में केवल अफ़ग़ानिस्तान से बेहतर है, जो तालिबानी क़हर झेल रहा है। उभरती हुई अर्थव्यवस्था, 5 ट्रिलियन इकॉनामी आदि के कानफाड़ू शोर के पीछे की असली सच्चाई यह है कि भुखमरी और कुपोषण के मामले में भारत अपने पड़ोसी देश श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल से तुलनात्मक रूप से बेहद ख़राब स्थिति में है।

हरिद्वार स्थित सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में हर साल बढ़ती बेरोज़गारी – क्या कर रही है सरकार?

हरिद्वार स्थित सिडकुल (SIIDCUL) औद्योगिक क्षेत्र का लेबर चौक दिहाड़ी मज़दूरों के रोज़गार पाने का अड्डा है। इस औद्योगिक क्षेत्र में दो लेबर चौक हैं जहाँ पर आसपास की मज़दूर बस्तियों से मज़दूर काम की तलाश में आते हैं। इन लेबर चौक पर कई प्रकार के काम करने वाले मज़दूर इकट्ठा होते हैं। मशीन चलाने वाले कुशल मज़दूर, फ़ैक्टरी में हेल्पर के तौर पर काम करने वाले, लोडिंग-अनलोडिंग करने वाले, फ़ैक्टरी के कैण्टीन में काम करने वाले, फ़ैक्टरी में सफ़ाई करने वाले, निर्माण मज़दूर, बेलदारी करने वाले मज़दूर। ठेकेदार इन्हीं लेबर चौक पर सस्ती श्रमशक्ति ख़रीदने आते हैं।

राज्यसत्ता के संरक्षण में आज़ाद घूमते हत्यारे, दंगाई! निर्दोष प्रदर्शनकारियों का दमन-उत्पीड़न बदस्तूर जारी!

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर के नेतृत्व में बनी जजों की एक कमेटी ने दिल्ली में फ़रवरी 2020 में हुए दंगो पर एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकार के साथ-साथ पूरी राज्य मशीनरी पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है और दिल्ली दंगों के मुख्य कारणों के तौर पर सत्तासीन हुक्मरानों को ज़िम्मेदार ठहराया है।

इंग्लैण्ड का नया दक्षिणपन्थी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और बेगानी शादी में दीवाने अण्डभक्त

अभी जब इंग्लैण्ड में घोर मज़दूर-विरोधी, धुर-दक्षिणपन्थी कंज़रवेटिव पार्टी का भारतीय मूल का ब्रिटिश कुलीनवादी, धनपशु ऋषि सुनक लिज़ ट्रस नामक एक अन्य दक्षिणपन्थी नेत्री को हटाकर इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री बना तो देश-विदेश में रहने वाले सारे खाते-पीते उच्च व उच्च मध्यवर्गीय भारतीय हर्षोन्माद में ऐसे बौरा गये मानो भारत ने इंग्लैण्ड से दो सौ साल की ग़ुलामी का बदला लेते हुए इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बना लिया हो!