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बिहार में सियासी उलटफेर कोई आश्चर्य की बात नहीं – ‘तू नंगा तो तू नंगा, मौक़ा मिले तो सब चंगा’ – यही है पूँजीवादी लोकतंत्र की असली हक़ीक़त

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबन्धन तोड़कर जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ के साथ तथा लालू की पार्टी ‘आरजेडी नीत महागठबन्धन’ (आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआईएम और सीपीआई माले लिबरेशन) के साथ मिलकर नयी सरकार बनायी है। नयी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद उदारपन्थी-वामपन्थी ख़ेमा अत्यधिक उत्साहित हो रहा है। कोई इस बदलाव को जनता के हित में एक ज़बर्दस्त बदलाव के रूप में व्याख्यायित कर रहा है तो कोई इसे फ़ासीवादी ताक़तों के ह्रास के रूप में! बिहार में भाजपा का सत्ता से बाहर हो जाना महज़ लुटेरों के बीच के आपसी समीकरणों का बदलाव ही है।

मज़दूरों और मेहनतकशों की मुक्ति को समर्पित महान क्रान्तिकारी और चिन्तक थे हमारे भगतसिंह

23 साल की उम्र में देश की आज़ादी के लिए फाँसी के फन्दे पर झूल जाने वाले एक बहादुर नौजवान भगतसिंह की तनी हुई मूँछें और टोपी वाली तस्वीर तो आपने देखी होगी। असेम्बली में बम फेंकने और वहाँ से भागने के बजाय अपनी गिरफ़्तारी देकर बहरी अंग्रेज़ी सरकार को चुनौती देने वाली कहानियों से कई लोग परिचित होंगे। भारतीय शासक वर्ग की पूरी जमात हमारे महान पूर्वज शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर उनके जीवन के केवल इन्हीं पक्षों पर ज़ोर देते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह डर लगातार सताता रहता है कि कहीं जनता इनके विचारों को जानकर अन्याय के विरुद्ध विद्रोह न कर दे।

सिडकुल, हरिद्वार में मज़दूरों की हड्डियाँ कैसे निचोड़ी जाती हैं (एक फ़ैक्टरी से रिपोर्ट)

हरिद्वार स्थित सिडकुल में पंखे बनाने वाली एक कम्पनी है, के.के.जी. इण्डस्ट्रीज लिमिटेड! पंखे बनाने वाली इस कम्पनी के मज़दूर ख़ुद गर्मी और घुटन-भरे माहौल में 12 घण्टे से लेकर 15-16 घण्टे तक काम करते हैं। यहाँ काम की स्थितियाँ बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण हैं। ये कम्पनी हैवेल्स, ओरिएण्ट, पोलर, लूमिनस, गोदरेज, सूर्या, एंकर (पैनासोनिक) आदि कम्पनियों की वेण्डर कम्पनी है। इन सभी के पंखे के.के.जी. में बनते हैं। यह सिडकुल की उन कम्पनियों में शामिल है जहाँ न्यूनतम मज़दूरी बहुत ही कम है और काम के न्यूनतम घण्टे 12 हैं।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-4 : सामाजिक अधिशेष के उत्पादन की शुरुआत और सामाजिक श्रम-विभाजन तथा वर्गों का उद्भव

पूँजीवादी समाज में पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े के स्रोत और मज़दूर वर्ग के शोषण को समझने के लिए हमें कुछ अन्य बातों को समझना होगा, मसलन, सामाजिक अधिशेष, सामाजिक श्रम विभाजन और वर्गों का उद्भव। इन बातों को समझने के साथ हमारे लिए मज़दूर वर्ग के शोषण और पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े के स्रोत को समझना आसान हो जायेगा। इसलिए हम इन मूलभूत अवधारणाओं से शरुआत करेंगे।
आदिम काल में जब मनुष्य क़बीलों में रहता था, तो उसकी उत्पादक शक्तियों के विकास का स्तर बेहद निम्न था।

बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों की रिहाई : भाजपा और संघ की बेशर्मी की पराकाष्ठा

2002 से लेकर अब तक कुछ मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों में न्याय का दरवाज़ा खटखटाने वालों को निराशा ही हासिल हुई है। अभी 24 जून 2022 को ज़ाकिया जाफ़री की याचिका ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया। इतिहास के इस काले अध्याय में देश को शर्मसार करने वाला एक और अध्याय जुड़ गया है। 15 अगस्त को बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों को क्षमा दे कर रिहा कर दिया गया। बिलकिस बानो भी गुजरात नरसंहार की शिकार महिला है।

बीते साल क़र्ज़ों की माफ़ी के साथ पूँजीपति हुए मालामाल!

साल 2021 को याद कीजिए। कोरोना का प्रकोप अपने चरम पर था और सरकार की क्रूरता ने इसे दोगुना घातक बना दिया। लाखों लोगों ने इस कारण अपनी जान गवायी। ऑक्सीजन, बेड, दवाइयों के लिए हाहाकार मचा हुआ था। श्मशानों के आगे लाशों की क़तारें लगी हुई थीं। ये तो था देश की आम अवाम का हाल। मगर दूसरी तरफ़, 2021 में कोरोना महामारी के दौरान भी बड़े पूँजीपतियों की सम्पत्ति में 35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। अकेले गौतम अडानी की सम्पत्ति में पिछले साल 49 बिलियन डॉलर (यानी लगभग 4 लाख करोड़ रुपये) का इज़ाफ़ा हुआ है। इसी दौरान इनकी वफ़ादार मोदी सरकार जनता को मरता छोड़ इन सेठों का मुनाफ़ा बढ़ाने में जी जान से लगी हुई थी और अपने आक़ाओं के क़र्ज़ माफ़ कर रही थी।

“सादगीपसन्द” और “परोपकारी” पूँजीपतियों की असलियत

भारत में अम्बानी और अदानी जैसे पूँजीपतियों के लुटेरे चरित्र के बारे में सभी जानते हैं और यहाँ तक कि पूँजीवादी मीडिया में भी ऐसे पूँजीपतियों के भ्रष्ट व अनैतिक आचरण के बारे में तमाम ख़बरें प्रकाशित हो चुकी हैं। परन्तु नारायण मूर्ति व अज़ीम प्रेमजी जैसे पूँजीपतियों की छवि न सिर्फ़ नौकरियाँ पैदा करके समाज का उद्धार करने वालों के रूप में स्थापित है बल्कि उनकी सादगी, दयालुता, परोपकार व नैतिकता के तमाम क़िस्से समाज में प्रचलित हैं और मीडिया में भी अक्सर उनकी शान में क़सीदे पढ़े जाते हैं।

केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की बेटी द्वारा अवैध रूप से शराबख़ाना चलाने का मामला

देश में एक ओर नौजवानों की भारी आबादी बेकारी-बेरोज़गारी के धक्के खाने को मजबूर है और दूसरी ओर नेताओं के बाल-बच्चे मलाई चाट रहे हैं। मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास विभाग की कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी की बेटी ज़ोइश ईरानी द्वारा गोवा के असगाओ में संचालित ‘सिली सोल्स कैफ़े एण्ड बार’ नामक एक रेस्टोरेण्ट में अवैध तरीक़े से शराबख़ाना चलाये जाने का मामला सामने आया है। एक शिकायतकर्ता के द्वारा मामला उठाये जाने के बाद इस रेस्तरां के ऊपर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इस मामले में कई सारे गम्भीर आरोप लगे हैं। शराब के लाइसेंस को पाने के लिए झूठे एवं ग़ैर-क़ानूनी दस्तावेज़ पेश किये गये हैं।

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आम मेहनतकश आदिवासियों की जीवन स्थिति में कोई बदलाव आयेगा?

हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू जीत हासिल कर भारत की 15वीं राष्ट्रपति बन गयी हैं। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवन्त सिन्हा (जो पहले ख़ुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं) को भारी मतों से परास्त किया। इस तरह द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च संवैधानिक ओहदे पर बैठने वाली दूसरी महिला और प्रथम आदिवासी बन गयीं। द्रौपदी मुर्मू ओड़िशा के मयूरभंज ज़िले के रायरंगपुर शहर से आती हैं और सन्थाल जनजाति से ताल्लुक़ रखती हैं।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-2 : कुछ बुनियादी बातें जिन्हें समझना ज़रूरी है – 1

किसी भी समाज की बुनियाद में मनुष्य के जीवन का भौतिक उत्पादन और पुनरुत्पादन होता है। यदि मनुष्य जीवित होगा तो ही वह राजनीति, विचारधारा, शिक्षा, कला, साहित्य, संस्कृति, वैज्ञानिक प्रयोग, खेल-कूद और मनोरंजन जैसी गतिविधियों में संलग्न हो सकता है। मनुष्य अपने जीवन के भौतिक उत्पादन और पुनरुत्पादन के प्रकृति के साथ एक निश्चित सम्बन्ध बनाता है और उसका रूपान्तरण कर उसके संसाधनों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढालता है। इस गतिविधि को ही हम उत्पादन कहते हैं। मनुष्य के भौतिक जीवन के पुनरुत्पादन के लिए उपयोगी वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करने के लिए मनुष्य प्रकृति को रूपान्तरित करता है। यह मनुष्य का उत्पादन के लिए, यानी अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप, प्रकृति के रूपान्तरण का संघर्ष है।