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तेलंगाना में निज़ाम की सत्ता के पतन की 75वीं बरसी पर जश्न मनाने की होड़ में भाजपा और टीआरएस ने की इतिहास के साथ बदसलूकी

गत 17 सितम्बर को तेलंगाना में निज़ाम की सत्ता के पतन की 75वीं बरसी के मौक़े पर हैदराबाद शहर में भाजपा और टीआरएस के बीच जश्न मनाने की बेशर्म होड़ देखने में आयी। पूरा शहर दोनों पार्टियों के पोस्टरों व बैनरों से पाट दिया गया था। शहर में दोनों पार्टियों द्वारा कई स्थानों पर रैलियाँ निकाली गयीं और जनता की हाड़तोड़ मेहनत से कमाये गये करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये गये। भाजपा व केन्द्र सरकार ने इस दिन को ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया, जबकि टीआरएस व तेलंगाना सरकार ने इसे ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया। ग़ौरतलब है कि भाजपा पिछले कई सालों से 17 सितम्बर को ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाने की मुहिम चलाती आयी थी।

गहरी निराशा, पराजयबोध और विकल्पहीनता से गुज़रते मज़दूर की कहानी : फ़िल्म ‘मट्टो की साइकिल’

अभी हाल ही में ‘मट्टो की साइकिल’ नामक एक फ़िल्म रिलीज़ हुई। इस फ़िल्म की कहानी निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मट्टो नाम के एक मज़दूर के जीवन पर केन्द्रित है। मट्टो गाँव में ही पत्नी और दो बेटियों के साथ रहता है। उसके परिवार की आर्थिक हालत बहुत ख़राब होती है, जैसा कि आम तौर पर सभी मज़दूरों के साथ होता है। वह अपने घर का अकेला कमाने वाला आदमी है। मट्टो अपनी बीस साल पुरानी जर्जर साइकिल से रोज़ बग़ल के शहर में बेलदारी का काम करने जाता है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले एक मज़दूर के साथ जिस प्रकार से ठेकेदार, मालिक और मध्यम वर्ग से आने वाला व्यक्ति बर्ताव करता है उसकी कुछ झलकियाँ आप इस फ़िल्म में देख सकते हैं।

कविता कृष्णन : सर्वहारा वर्ग की नयी ग़द्दार

कविता कृष्णन : भाकपा (माले) लिबरेशन जैसी पतिततम संशोधनवादी पार्टी में परवरिश और कम्युनिज़्म-विरोधी अमेरिकी साम्राज्यवादी दुष्प्रचार की बौद्धिक ख़ुराक से तैयार हुई सर्वहारा वर्ग की नयी ग़द्दार आनन्द वैसे…

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-5 : माल, उपयोग-मूल्य, विनिमय-मूल्य और मूल्य

मनुष्य के श्रम से पैदा होने वाली वस्तुओं की एक विशिष्टता होती है, उनका उपयोगी होना। वे किसी न किसी मानवीय आवश्यकता की पूर्ति करती हैं। अगर ऐसा न हो तो कोई उन्हें नहीं बनायेगा। उनके उपयोगी होने के इस गुण को हम उपयोग-मूल्य कहते हैं। उपयोग-मूल्य के रूप में वस्तुओं का उत्पादन प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है, तब से जब मनुष्य ने पहली बार अपनी आवश्यकता के लिए प्रकृति को बदलकर वस्तुओं को बनाना या पैदा करना शुरू किया था, यानी उत्पादन शुरू किया था। किसी चीज़ का उपयोग-मूल्य कोई पहले से दिया गया प्राकृतिक गुण नहीं होता है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक और सामाजिक गुण होता है।

बिहार में सियासी उलटफेर कोई आश्चर्य की बात नहीं – ‘तू नंगा तो तू नंगा, मौक़ा मिले तो सब चंगा’ – यही है पूँजीवादी लोकतंत्र की असली हक़ीक़त

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबन्धन तोड़कर जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ के साथ तथा लालू की पार्टी ‘आरजेडी नीत महागठबन्धन’ (आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआईएम और सीपीआई माले लिबरेशन) के साथ मिलकर नयी सरकार बनायी है। नयी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद उदारपन्थी-वामपन्थी ख़ेमा अत्यधिक उत्साहित हो रहा है। कोई इस बदलाव को जनता के हित में एक ज़बर्दस्त बदलाव के रूप में व्याख्यायित कर रहा है तो कोई इसे फ़ासीवादी ताक़तों के ह्रास के रूप में! बिहार में भाजपा का सत्ता से बाहर हो जाना महज़ लुटेरों के बीच के आपसी समीकरणों का बदलाव ही है।

मज़दूरों और मेहनतकशों की मुक्ति को समर्पित महान क्रान्तिकारी और चिन्तक थे हमारे भगतसिंह

23 साल की उम्र में देश की आज़ादी के लिए फाँसी के फन्दे पर झूल जाने वाले एक बहादुर नौजवान भगतसिंह की तनी हुई मूँछें और टोपी वाली तस्वीर तो आपने देखी होगी। असेम्बली में बम फेंकने और वहाँ से भागने के बजाय अपनी गिरफ़्तारी देकर बहरी अंग्रेज़ी सरकार को चुनौती देने वाली कहानियों से कई लोग परिचित होंगे। भारतीय शासक वर्ग की पूरी जमात हमारे महान पूर्वज शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर उनके जीवन के केवल इन्हीं पक्षों पर ज़ोर देते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह डर लगातार सताता रहता है कि कहीं जनता इनके विचारों को जानकर अन्याय के विरुद्ध विद्रोह न कर दे।

सिडकुल, हरिद्वार में मज़दूरों की हड्डियाँ कैसे निचोड़ी जाती हैं (एक फ़ैक्टरी से रिपोर्ट)

हरिद्वार स्थित सिडकुल में पंखे बनाने वाली एक कम्पनी है, के.के.जी. इण्डस्ट्रीज लिमिटेड! पंखे बनाने वाली इस कम्पनी के मज़दूर ख़ुद गर्मी और घुटन-भरे माहौल में 12 घण्टे से लेकर 15-16 घण्टे तक काम करते हैं। यहाँ काम की स्थितियाँ बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण हैं। ये कम्पनी हैवेल्स, ओरिएण्ट, पोलर, लूमिनस, गोदरेज, सूर्या, एंकर (पैनासोनिक) आदि कम्पनियों की वेण्डर कम्पनी है। इन सभी के पंखे के.के.जी. में बनते हैं। यह सिडकुल की उन कम्पनियों में शामिल है जहाँ न्यूनतम मज़दूरी बहुत ही कम है और काम के न्यूनतम घण्टे 12 हैं।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-4 : सामाजिक अधिशेष के उत्पादन की शुरुआत और सामाजिक श्रम-विभाजन तथा वर्गों का उद्भव

पूँजीवादी समाज में पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े के स्रोत और मज़दूर वर्ग के शोषण को समझने के लिए हमें कुछ अन्य बातों को समझना होगा, मसलन, सामाजिक अधिशेष, सामाजिक श्रम विभाजन और वर्गों का उद्भव। इन बातों को समझने के साथ हमारे लिए मज़दूर वर्ग के शोषण और पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े के स्रोत को समझना आसान हो जायेगा। इसलिए हम इन मूलभूत अवधारणाओं से शरुआत करेंगे।
आदिम काल में जब मनुष्य क़बीलों में रहता था, तो उसकी उत्पादक शक्तियों के विकास का स्तर बेहद निम्न था।

बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों की रिहाई : भाजपा और संघ की बेशर्मी की पराकाष्ठा

2002 से लेकर अब तक कुछ मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों में न्याय का दरवाज़ा खटखटाने वालों को निराशा ही हासिल हुई है। अभी 24 जून 2022 को ज़ाकिया जाफ़री की याचिका ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया। इतिहास के इस काले अध्याय में देश को शर्मसार करने वाला एक और अध्याय जुड़ गया है। 15 अगस्त को बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों को क्षमा दे कर रिहा कर दिया गया। बिलकिस बानो भी गुजरात नरसंहार की शिकार महिला है।

बीते साल क़र्ज़ों की माफ़ी के साथ पूँजीपति हुए मालामाल!

साल 2021 को याद कीजिए। कोरोना का प्रकोप अपने चरम पर था और सरकार की क्रूरता ने इसे दोगुना घातक बना दिया। लाखों लोगों ने इस कारण अपनी जान गवायी। ऑक्सीजन, बेड, दवाइयों के लिए हाहाकार मचा हुआ था। श्मशानों के आगे लाशों की क़तारें लगी हुई थीं। ये तो था देश की आम अवाम का हाल। मगर दूसरी तरफ़, 2021 में कोरोना महामारी के दौरान भी बड़े पूँजीपतियों की सम्पत्ति में 35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। अकेले गौतम अडानी की सम्पत्ति में पिछले साल 49 बिलियन डॉलर (यानी लगभग 4 लाख करोड़ रुपये) का इज़ाफ़ा हुआ है। इसी दौरान इनकी वफ़ादार मोदी सरकार जनता को मरता छोड़ इन सेठों का मुनाफ़ा बढ़ाने में जी जान से लगी हुई थी और अपने आक़ाओं के क़र्ज़ माफ़ कर रही थी।