छोटे व सीमान्त किसानों को उजाड़ने और कृषि के पूँजीवादी विकास की रफ़्तार तेज़ करने की दिशा में एक और क़दम
अब भारतीय पूँजीवादी राज्य छोटे-सीमान्त किसानों को ज़मीन के मालिकाने को छोड़ पाने के सांस्कृतिक प्रतिरोध को बाईपास करके इस पहले ही धीमी गति से परन्तु निरन्तर जारी प्रक्रिया को तेज़ और औपचारिक बनाने के लिए क़ानूनी प्रावधान कर रहा है। इन क़रारों के अन्तर्गत होने वाली कृषि प्रभावी रूप से व्यवसायी कॉर्पोरेट खेती ही होगी जिसमें इन छोटे ज़मीन मालिकों को ज़मीन का कुछ किराया ही प्राप्त होगा या ख़ुद श्रम शक्ति बेचने पर मज़दूरी भी। लेकिन अधिक पूँजी निवेश और उन्नत यन्त्रों के प्रयोग से श्रम शक्ति की ज़रूरत भी बहुत कम हो जायेगी तथा ये मुख्यतः अन्य उद्योगों में श्रमिक बनने के लिए मुक्त हो जायेंगे।