बेरोज़गारी का गहराता संकट
बेरोज़गारी की समस्या साल दर साल विकराल रूप लेती जा रही है। स्थाई रोज़गार पाना तो जैसे शेख़चिल्ली के सपने जैसा हो गया है। देश में करोड़ों पढ़े-लिखे डिग्रीधारक युवा नौकरी ना मिलने के चलते अवसाद का शिकार हो रहे हैं। रोज़ ही नौजवानों की आत्महत्या की ख़बरें आ रही हैं। आज देश के नौजवानों के बीच रोज़गार सबसे ज्वलन्त मुद्दा है। विश्वविद्यालय और कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों, दिल्ली व कोटा जैसे महानगरों में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे युवाओं, छोटे क़स्बों और गाँव तक में नौजवानों का बस एक ही लक्ष्य होता है कि किसी भी तरीक़े से कोई छोटी-मोटी सरकारी नौकरी मिल जाये ताकि उनकी और उनके परिवार की दाल-रोटी का काम चलता रहे। आप सभी अपने अनुभव से यह बात जानते ही हैं कि स्थायी नौकरियाँ साल दर साल कम हो रही हैं। एक-एक नौकरी के पीछे हज़ारों हज़ार आवेदन किये जाते हैं, पर नौकरी तो मुट्ठीभर लोगों को ही मिलती है। इस प्रकार हर साल लाखों क़ाबिल नौजवान बेरोज़गारों की भीड़ में शामिल हो रहे हैं और सिवाय अपने भाग्य को कोसने के अलावा उन्हें कोई दूसरा विकल्प नही दिखाई पड़ता।