मँझोले किसानों के बारे में सर्वहारा दृष्टिकोण का सवाल – दो
सम्पादक-मण्डल ने अपनी माँगों की लम्बी सूची प्रस्तुत करते हुए एक और बात भी कही है। उसका कहना है कि पूँजीवादी विकास ने सभी मध्यवर्गीय तबक़ों की माँगों में समानता ला दी है। लेकिन क्या उत्पादन में लगे मध्यवर्गीय तबक़ों और सेवाओं, व्यापार आदि में लगे मध्यवर्गीय तबक़ों को एक साथ गोलबन्द करना सम्भव है? और यदि ऐसा हो भी जाये तो भी उत्पादन में लगे मध्यवर्गीय तबक़ों की मुख्य माँग तो उत्पादन से ही जुड़ी हुई होगी। ऐसी स्थिति में माँगों की सूची में से खेती की लागत घटाने से जुड़ी बिजली-पानी को रियायती दर पर देने की माँग ही छोटे-मँझोले किसानों की मुख्य माँग होगी। इस हालत में क्या सम्पादक-मण्डल छोटे-मँझोले किसानों के लिए मुख्य माँग के रूप में लागत मूल्य घटाने की माँग की वकालत नहीं कर रहा है?















