मँझोले किसानों के बारे में सर्वहारा दृष्टिकोण का सवाल – एक
लेनिन के ज़माने में खेती पिछड़ी हुई थी और किसान लागतों के लिए इस क़दर औद्योगिक मालों पर निर्भर नहीं थे। लेकिन फि़र भी लेनिन ने इस सवाल को छुआ है और इसे सर्वहारा विरोधी माँग का दर्जा देते नहीं दिखायी देते। हाँ, वे बार-बार आगाह करते हैं कि इससे उनकी तबाही-बरबादी रुक जायेगी, ऐसा भ्रम किसानों को नहीं पालना चाहिए। वह उन बुर्जुआ कोशिशों का भण्डाफ़ोड़ करते हैं जो इस तरह की माँग को किसानों के उद्धार के लिए केन्द्रीय माँग के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके ख़िलाफ़ वे किसानों से कहते हैं : “सुधरी गृहस्थी बढ़िया चीज़ है, ज़्यादा सस्ते हल ख़रीदने में कोई बुराई नहीं है… लेकिन जब किसी ग़रीब या मँझोले किसान से कहा जाता है कि सुधरी गृहस्थी और ज़्यादा सस्ते हल तुम सबको ग़रीबी से पिण्ड छुड़ाने और अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करेंगे और यह काम धनियों को हाथ लगाये बग़ैर ही हो सकता है, तो यह सरासर धोखा है। ये सारे सुधार कम क़ीमतें और सहकार (माल ख़रीदने-बेचने के संघ) धनियों को ही अधिक लाभ पहुँचायेंगे…(गाँव के ग़रीबों से, पेज 38)।”