Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

कोरोना काल में आसमान छूती महँगाई और ग़रीबों-मज़दूरों के जीवन की दशा

सेठों-व्यापारियों और समाज के उच्‍च वर्ग के लिए महँगाई मुनाफ़ा कूटने का मौक़ा होती है, मध्‍यवर्ग के लिए महँगाई अपनी ग़ैर-ज़रूरी ख़र्च में कटौती का सबब होती है और अर्थशास्त्रियों के लिए महँगाई विश्‍लेषण करने के लिए महज़ एक आँकड़ा होती है। लेकिन मेहनत-मजूरी करने वाली आम आबादी के लिए तो बढ़ती महँगाई का मतलब होता है उन्‍हें मौत की खाई की ओर ढकेल दिया जाना। वैसे तो देश की मेहनतकश जनता को हर साल महँगाई का दंश झेलना पड़ता है लेकिन कोरोना काल में उसके सिर पर महामारी और महँगाई की दुधारी तलवार लटक रही है।

कोरोना काल में मनरेगा के बजट में वृद्धि के सरकारी ढोल की पोल

अब यह दिन के उजाले की तरह साफ़ हो चुका है कि पहले से ही संकट के भँवर में फँसी भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर कोरोना महामारी के दौर में पूरी तरह से टूट चुकी है। अब सरकारी आँकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं। लेकिन भयंकर मन्दी और बेरोज़गारी के इस दौर में भी चाटुकार मीडिया मोदी सरकार का चरण-चुम्बन करने से बाज़ नहीं आ रही है। कोरोना संक्रमण को रोकने के नाम पर आनन-फ़ानन में थोपे गये लॉकडाउन के बाद जब मज़दूरों के पलायन को लेकर दुनियाभर में मोदी सरकार की छीछालेदर होने लगी थी तब भी अधिकांश मीडिया घराने सरकार की वाहवाही में जुटे थे।

मोदी की स्वच्छता अभियान की लफ़्फ़ाज़ी और स्‍कूलों में शौचालय बनाने का घोटाला

देश में सरकारी विद्यालयों में शौचालयों के निर्माण पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सी.ए.जी.) द्वारा संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट में भयंकर अनियमितता और घोटाला सामने आया है। 23 सितम्बर 2020 को संसद में पेश इस रिपोर्ट में केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा सरकारी विद्यालयों में बनाये गये शौचालयों और उसमें हुए घोटाले को देखकर यह बात एक बार और पुख़्ता हो जाती है कि किस तरह से सार्वजनिक सम्पदा (जो देश की मज़दूर आबादी की मेहनत से ही पैदा होती है) की लूट बदस्तूर जारी है।

महामारी के दौर में भी चन्द अरबपतियों की दौलत में भारी उछाल! या इलाही ये माज़रा क्या है?

इस साल कोरोना महामारी के बाद भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में लम्बे समय तक आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया जिसकी वजह से दुनिया भर में उत्पादन की मशीनरी ठप हो गयी और विश्व पूँजीवाद का संकट और गहरा गया। लेकिन हाल ही में कुछ संस्थाओं की ओर से जारी किये गये आँकड़े यह दिखा रहे हैं कि महामारी के दौर में भारत और दुनिया के कई अरबपतियों की सम्पत्ति में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ है। ये आँकड़े यह साबित करते हैं कि इन अरबपतियों ने गिद्ध की भाँति आपदा में भी अवसर खोज लिया है जिसकी इजाज़त मौजूदा व्यवस्था ही देती है।

कोरोना के बहाने मज़दूर-अधिकारों पर मोदी सरकार की डकैती

कोरोना महामारी के कारण पहले से ही डगमगा रही वैश्विक अर्थव्यवस्था जिस गहरी मन्‍दी में धँसने की ओर जा रही है उसमें पूँजीपति वर्ग का मुनाफ़ा ना मारा जाये इसके लिए दुनिया भर में सरकारों द्वारा मजदूरों के बचे खुचे-सारे अधिकार खत्म किये जा रहे हैं। दुनिया भर में तमाम दक्षिणपंथी, फासीवादी सत्ताएँ ऐसे ही कड़े कदम ले रही हैं। भारत में भी मोदी सरकार पूरी नंगई के साथ अपनी मज़दूर विरोधी और पूँजीपरस्त नीतियों को लागू करने में लगी हुई है। कोविड-19 महामारी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था का जो नुकसान हुआ है, उसका हर्जाना यह सरकार मज़दूर वर्ग से वसूलेगी।

पीएम केयर्स फ़ण्‍ड : एक और महा-घोटाला!

पूरा देश कोरोना वायरस की वजह से त्रस्त है। करोड़ों मेहनतकश परिवार भुखमरी के कगार पर पहुँच गये हैं। देशभर में भूख से कई मौतें हो चुकी हैं। सरकार और कारख़ाना मालिकों के पल्ला झाड़ लेने के बाद तमाम औद्योगिक शहरों से सैकड़ों किलोमीटर चलकर भूख और पुलिस का ज़ुल्म सहते हुए, अपने बच्चों की मौत तक देखते हुए जो मज़दूर अपने घर पहुँच गये, उनके साथ भुखमरी भी पहुँच गयी है। जो मज़दूर कहीं बीच में या राज्यों के बार्डर पर रोक लिये गये हैं, उन्‍हें जिन कैम्पों में रखा गया है वहाँ की हालत बहुत ख़राब है। डॉक्टरों तक के लिए पर्याप्त सुरक्षा किट नहीं है। लेकिन इसी बीच भाजपा ने कोरोना से निपटने के नाम पर अब एक बड़ा खेल खेला है।

मेहनतकश अवाम के बजट पर डाका डालने वाला केन्द्रीय बजट

इस बार पेश किये गये बजट के लिए निर्मला सीतारमण ने ‘ईज़ आफ़ लिविंग’ यानी “जीवनशैली की सुगमता” को विषयवस्तु बनाया। आइए देखें कि क्या वाकई में इस बजट से लोगों की ज़िन्दगी सुगम होने वाली है। अगर होने वाली है, तो क्या सभी लोगों की होने वाली है या कुछ ख़ास लोगों की?

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव 2020 में फिर से आम आदमी पार्टी की जीत के मायने: एक मज़दूर वर्गीय नज़रिया

जिन्‍होंने भी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पूरे चुनाव अभियान को क़रीबी से देखा है, वह अच्‍छी तरह जानते हैं कि भाजपा के हिन्‍दुत्‍ववादी फ़ासीवाद के एजेण्‍डे के बरक्‍स, अरविन्‍द केजरीवाल ने कोई सही मायनों में सेक्‍युलर, जनवादी और प्रगतिशील एजेण्‍डा नहीं रखा था। उल्‍टे केजरीवाल ने ‘सॉफ़्ट हिन्‍दुत्‍व’ का कार्ड खेला। अपने आपको हिन्‍दू, हनुमान-भक्‍त आदि साबित करने में केजरीवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी। साथ ही, कश्‍मीर में 370 हटाने पर मोदी को बधाई देने से लेकर, जामिया और जेएनयू पर हुए पुलिसिया अत्‍याचार और शाहीन बाग़ और सीएए-एनआरसी-एनपीआर जैसे सबसे ज्‍वलन्‍त और व्‍यापक मेहनतकश आबादी को प्रभावित करने वाले प्रमुख मसलों के सवाल पर चुप्‍पी साधे रहने तक, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने मोदी-शाह-नीत भाजपा के कोर एजेण्‍डा से किनारा काटकर निकल लेने (सर्कमवेण्‍ट करने) की रणनीति अपनायी। तात्‍कालिक तौर पर, इस रणनीति का फ़ायदा आम आदमी पार्टी को मिला है।

मज़दूर-विरोधी नीतियों को धड़ल्ले से लागू करने में जुटी मोदी सरकार का पूँजीपतियों को नया तोहफ़ा!

श्रम क़ानूनों पर मोदी सरकार के हमले जारी हैं। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 20 नवम्बर को औद्योगिक सम्बन्धों पर श्रम संहिता (लेबर कोड ऑन इण्डस्ट्रियल रिलेशन्स) को मंज़ूरी दे दी है जिससे अब कम्पनियों को मज़दूरों को किसी भी अवधि के लिए ठेके पर नियुक्त करने का अधिकार मिल गया है। इसे फ़िक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेण्ट का नाम दिया गया है।

बेरोज़गारी की भयावह स्थिति : पहली बार देश में कुल रोज़गार में भारी कमी!

ऐसे में फ़ासिस्ट मोदी सरकार की पूँजीपतियों को बहुत ज़रूरत है ता‍िक राष्ट्रवाद और धार्मिक जुनून के नशे की खुराकें देकर बेरोज़गार मज़दूरों और युवाओं को एकजुट होने और लड़ने से रोका जा सके। फिलहाल वे अपने मंसूबों में कामयाब होते दिख रहे हैं। क्या इस देश के मज़दूर और नौजवान ऐसे ही चुपचाप बर्बादी की ओर धकेले जाते रहेंगे?